Saturday, February 04, 2012

सृजन-प्रक्रिया पूर्णतया यांत्रिकी और........


रसायनिकी के सूत्रों की तरह अकवितामय
Sarojini Sahoo   ###  अमृत-प्रतीक्षा ###;

सृजन-प्रक्रिया पूर्णतया यांत्रिकी और
रसायनिकी के सूत्रों की तरह अकवितामय
पूछो, प्रसव-पीडा से छटपटाती उस प्रसूता को,
पूछो, दूरबीन से झाँक रहे खगोलशास्त्र के उन वैज्ञानिकों को,
पूछो, एपीस्टीमोलॉजी, ब्रीच, कन्ट्रेक्शन, सर्विक्स
प्लेसेन्टा को लेकर व्यस्त डॉक्टरों से उस कविता का पता।
इतना होने के बावजूद
गर्भमुक्त प्रसूता की आँखों के किसी कोने में आँसू

और होठों पर थिरकती संतृप्ति भरी हँसी।
कविता पैदा होती है रात के आकाश में
कविता उपजती है पहले सृजन
नवजात शिशु के हँसने और रोने में।
कविता क्या होती है ?
पूछो, रसायन प्रयोगशाला में काम कर रहे
अनभिज्ञ नवागत छात्रों को
पूछो, गर्भस्थ शिशु का पेट में पहले प्रहार
से भयभीत और उल्लासित माँ को
पूछो, प्लेनेटोरियम में टिकट बेचते
लड़कों से,
उस कविता का पता।
प्रज्ञा-चेतना से बाहर निकल कर
देखो, सृजन-प्रक्रिया पूर्णतया यांत्रिक
मगर सृष्टि कवितामय।
{8:53am Feb 4, 2012
( An excerpt from my short story ‘Amrit Pratiksha’, included in my short stories collection “ Rape Tatha Anya Kahaniyan”, ISBN : 978 81 7028 921 0, published by Rajpal & Sons, Delhi.) 

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