Tuesday, November 29, 2011

बड़े रिटेलर भी ‘बिचौलिए’ हैं

उनकी व्यापारिक नीति साफ है- कम से कम दाम में खरीदो और ज्यादा से ज्यादा दाम में बेचो।
वालमार्ट और भारत का खुदरा बाज़ार (भाग-2)--एक भारत स्वाभिमानी रवि
अमेरिका में बेरोज़गारी की दूसरी वजह है बड़ी रिटेल कंपनियां 
आदरणीय दोस्तों 
हमेशा ‘सबसे सस्ते विक्रेता’ की खोज के कारण अमेरिका में बड़े रिटेलर्स अब दूसरे देशों के बाजारों में पहुंच गए हैं। ‘वालमार्ट’ या ‘टार्गेट’ जैसे रिटेलर्स अमेरिका में बना माल बहुत कम रखते या बेचते हैं। उनके ज्यादातर सामान अमेरिका के बाहर से आते हैं, जिससे अमेरिकी कारखाने बंद हो गए हैं और लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैंबड़े रिटेलर्स का कारोबार बढ़ा है, लेकिन उत्पादन क्षेत्र में गिरावट आई है। अमेरिका में वर्ष 1979 में उत्पादन क्षेत्र में एक करोड़ 95 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ था। उसके बाद उसमें निरंतर गिरावट आती गई। 2011 में यह आंकड़ा गिरकर एक करोड़ 18 लाख तक आ गया है। यानी 32 साल में 77 लाख रोजगार का नुकसान। यानी लगभग दो लाख 40 हजार रोजगार प्रति वर्ष या 20 हजार रोजगार प्रति माह की हानि। हालांकि इसका पहला कारण नई तकनीक है, जिससे कम लोगों से ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है। लेकिन इसकी दूसरी वजह है बड़ी रिटेल कंपनियां, जो दूसरे देशों या ‘ऑफशोर’ से व्यापारिक माल खरीदती हैं और उत्पादन क्षेत्र को बंद हो जाने पर बाध्य करती हैं। मई 2011 में अमेरिका में बेरोजगारी का स्तर 9.1 फीसदी है। वहां एक करोड़ 39 लाख लोग बेरोजगार हैं। बेरोजगारी के ये आंकड़े आसानी से नीचे नहीं आ सकते, क्योंकि रोजगार की मूलभूत संरचना को बड़े रिटेल ने बदलकर रख दिया है। सबक बिल्कुल साफ है। मल्टी-ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारी तादाद में भारतीय उत्पादों के स्थान पर विदेशी उत्पादों को ले आएगा, जिससे उत्पादन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार घटेंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था रोजगार के अवसर पैदा करने में अच्छी भूमिका नहीं निभा रही, और सरकार के बजट के हिसाब से हमारे यहाँ पहले से ही jobless growth हो रहा है । नेशनल सैंपल सर्वे ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण- 2009-10 में बताया है कि देश की आधी से अधिक (51 प्रतिशत) श्रमिक-संख्या स्वरोजगार में है, 16 प्रतिशत नियमित वेतन वाली नौकरी में, जबकि 33.5 प्रतिशत श्रमिक आबादी दिहाड़ी मजदूरी में लगी है। पिछले दस साल में, नियमित वेतन वाली नौकरी की श्रेणी में औसतन एक लाख रोजगार प्रति वर्ष की बढ़ोतरी हुई है। पर हमारी बढ़ती जनसंख्या के साथ इस स्तर की रोजगार वृद्धि अपर्याप्त है।

रोजगार के जरिये सामाजिक संतुलन बनाए रखने में भारतीय रिटेल क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमारे देश में तकरीबन एक करोड़ 30 लाख रिटेल प्रतिष्ठान या खुदरा विक्रेता हैं। आईआरएस-2011 के अनुसार, दो करोड़ 55 लाख लोगों को इस क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है। इनमें वे विक्रेता भी शामिल हैं, जिनके पास अपनी दुकान नहीं है। देश के कुल रोजगार का 11 प्रतिशत इस क्षेत्र की बदौलत है, और इस मामले में कृषि के बाद यह दूसरे स्थान पर है। मल्टी-ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सीधा शिकार वैसे लोग ही बनेंगे, जो किसी तरह रिटेल क्षेत्र से अपना गुजारा कर रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था उन्हें रोजगार के दूसरे विकल्प नहीं दे सकती। रिटेल में रोजगार के सुरक्षा वॉल्व के बिना सामाजिक अशांति किसी भी हद तक जा सकती है। सरकार ने मल्टी-ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने की जो दलीलें दी हैं, वे बनावटी हैं। एक दलील यह है कि किसानों को उनके उत्पाद की मिलने वाली कीमत और उपभोक्ताओं द्वारा अदा की गई कीमत के बीच बड़ा अंतर है। यह अंतर ‘बिचौलियों’ द्वारा हड़प लिया जाता है। ये विदेशी रिटेलर्स सीधे किसानों से खरीदेंगे और ‘बिचौलियों’ को हटाकर वे किसानों को उनकी फसल की बेहतर कीमत देंगे। बड़े रिटेलर भी ‘बिचौलिए’ हैं। उनकी व्यापारिक नीति साफ है- कम से कम दाम में खरीदो और ज्यादा से ज्यादा दाम में बेचो। दलील यह है कि जब बड़े रिटेलर किसानों से खरीदने के लिए बाजार में आएंगे, तो वे किसी तरह प्रचलित मूल्य की अनदेखी कर किसानों को अधिक कीमत देंगे। ऐसा बिलकुल नहीं होने वाला। इसके विपरीत बड़े रिटेलर किसानों की मंडी में जाएंगे और कुछ ही समय में एकाधिकार जमाकर वहां की स्पर्धा को समाप्त कर देंगे। फिर किसान अपना उत्पाद बेचने के लिए बड़े रिटेलर के रहमोकरम पर रहेंगे। किसानों को अच्छी कीमत मिलने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं। एक, अच्छी सड़कें। दूसरी, जल्दी खराब होने वाले उत्पादों के बेहतर भंडारण की क्षमता। तीसरी, वक्त पर बाजार की सही जानकारी। सेलफोन ने इस आखिरी जरूरत को काफी हद तक पूरा कर दिया है। बाकी दो का रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से कोई वास्ता नहीं। भारत में बुनियादी ढांचे की दो समस्याएं हैं- सड़क और बिजली। भारत की 30 लाख किलोमीटर से अधिक सड़कों में से राष्ट्रीय राजमार्ग लगभग दो प्रतिशत है, राज्यों के राजमार्ग चार प्रतिशत, जबकि 94 प्रतिशत जिला और ग्रामीण सड़कें हैं। जिला और ग्रामीण सड़कें राज्य सरकार के विषय हैं, और यहीं पर आपूर्ति-श्रृंखला संरचना ढह जाती है। इसी तरह, 1,74,000 मेगावाट की मौजूदा क्षमता के बावजूद केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने अगले वित्त वर्ष और उसके बाद के लिए जरूरत के मुकाबले विद्युत उत्पादन दस फीसदी कम रहने का अनुमान लगाया है। इस वजह से नियमत: बिजली जाती है, जो कोल्ड-चेन के परिचालन को बेहद मुश्किल बना देती है। बड़े रिटेलर सड़क और बिजली के इस मुद्दे को नहीं सुलझा सकते। आपूर्ति-श्रृंखला के बुनियादी मसलों को सुलझाने और कृषि उत्पादों के अपव्यय को कम करने की उनकी क्षमता सीमित होगी। यह भी कहा जाता है कि भारतीय औद्योगिक घराने पहले से ही खुदरा बाजार में हैं, ऐसे में विदेशी रिटेलर बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। इस दलील से अधिक भ्रामक कुछ नहीं हो सकता। जब ‘वालमार्ट, ‘टेस्कोस’ और ‘केयरफॉर ’ बाजार में उतरते हैं, तब वे स्थानीय स्पर्धा को पूरी तरह ध्वस्त कर देते हैं, क्योंकि उनका व्यापार उसी पर आधारित है। उनके संसाधन असीम हैं। उनके निवेश उथल-पुथल मचाने की हद तक जा सकते हैं। उनका उत्पाद-स्रोत विश्वव्यापी होगा। भारतीय व्यवसाइयों ने अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया होगा, जो इनकी तुलना में ठहर सकें। इससे समय के साथ आस-पड़ोस के किराना स्टोर्स पूरे देश में हजारों-लाखों की संख्या में बंद हो जाएंगे। बाजार का संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाएगा, और कई परिवार व समुदाय आर्थिक रूप से नष्ट हो जाएंगे। जहां कहीं भी ये बड़े रिटेलर गए हैं, वहां ऐसा ही हुआ है। यही वजह है कि न्यूयॉर्क शहर भी ‘वालमार्ट’ को बाहर रखने की लड़ाई लड़ रहा है। सरकार का कहना है कि वह ‘समावेशी विकास’ को बढ़ावा देना चाहती है। लेकिन मल्टी-ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश उत्पादन और रिटेल क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार को चोट पहुंचाएगा, जो समावेशी विकास की अवधारणा के एकदम उलट है। 

जय हिंद 
एक भारत स्वाभिमानी 
रवि

3 comments:

Rajeysha said...

Yes, but apne desh ke... is liye yahan ki janta inke baare me sochti hai nahi.. apne mohallay ka baniya... chor hota hai,phir bhi hum uske paas jaane me bura nahi samajhtey..

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Neeraj Kumar said...

well argumented post.

Neeraj Kumar said...

well argued post!