Thursday, July 21, 2011

बहुत ही श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया मीरी-पीरी दिवस


श्री अकाल तख्त साहिब से फिर याद कराया गया मीरी पीरी का संदेश 
अमृतसर: (गजिंदर सिंह)  सिखों धर्म में छठी  पातशाही और मीरी-पीरी के मालिक साहिब श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब की तरफ से बिक्रमी संवत 1663 में मीरी तथा पीरी की दो तलवारे धारण करके गुरुता गद्दी पर विराजमान हुए. उन ऐतिहासिक पलों को याद रखते हुए  इस दिन को मीरी-पीरी दिवस के तौर पर सिख कौम बहुत ही  श्रद्धा और उलास के साथ  मनाती  है,  इस के चलते आज श्री अकाल तख्त साहिब पर यह दिवस बड़े श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया, इस मौके पर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने समूचे सिख कौम को इस पवित्र दिवस पर बधाई देते हुए बाणी और बाणे को धारण करने और गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने की अपील की, इस मौके पर श्री अकाल तख्त साहिब पर करवाए गए समागम में संगत भारी संख्या में भाग लिया.
सिखों के रक्त रंजित और भक्ति भावना से परिपूर्ण इतिहास में पांचवीं पातशाही श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत के बाद उनके बेटे छठी पातशाही साहिब श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब को गुरुता गद्दी पर बिठाया गया, गुरता गद्दी के समागम के दौरान बाबा बुड्डा जी ने साहिब श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब को गलती से एक तलवार उनके उलटे हाथ में धारण करवा दी, जब बाबा बुड्डा साहिब को अपनी इस गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने इस तलवार को उतारना चाहा तो गुरु जी ने कहा कि बाबा जी आपने जो किया है वह ठीक है, आप एक तलवार और धारण करवा दो, यह दोनों तलवारे मीरी-पीरी के निशान होंगे और अब सिख कौम को संत सिपाही बनना पड़ेगा, छठी पातशाही ने उस दिन से ही कौम को बाणी और बाणे को धारण करने का हुक्म जारी किया और जुल्म के साथ लड़ने और उसका मुकाबला करने का आदेश भी दिया, 
इसी के चलते वह खुद भी चार बार मुगलों के साथ टकराए और जीत हासिल की, गुरु जी के गुरुता गद्दी दिवस को समूचा सिख जगत मीरी-पीरी दिवस के रूप में मनाता है, इस दिन को समर्पित एक समागम श्री अकाल तख्त साहिब पर करवाया गया, जिसमे भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और गुरु की अमृतमयी बाणी सुन कर अपने जीवन को निहाल किया और गुरु के सामने नतमस्तक होकर गुरु का आशीर्वाद लिया, श्री दरबार साहिब के प्रबंधकों और श्री हरगोबिन्द साहिब शिरोमणी ढाडी सभा की तरफ से इस मौके पर गुरमत समागम सजाये गए, जिसमे श्री अखंड पाठ साहिब के भोग डाले गए और इसके बाद कीर्तन दरबार सजाये गए, जिसमे कौम के महान कीर्तनी जत्थों ने शब्द-कीर्तन कर संगतों को निहाल किया, इस मौके पर श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने सिख कौम को बधाई देते हुए सिख कौम को बणी और बाणे के साथ जुड़ने की अपील की.  
.सिखों के छठे पातशाही श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब की गुरुता गद्दी के दिवस पर निकला नगर कीर्तन 
अमृतसर - (गजिंदर सिंह)  छठी पातशाही और मीरी-पीरी के मालिक साहिब श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब की तरफ से बिक्रमी संवत 1663 में मीरी तथा पीरी की दो तलवारे धारण करके गुरुता गद्दी पर विराजमान हुए और इस इतिहासिक दिन को समर्पित मीरी-पीरी दिवस को सिख कौम बड़े श्रद्धा और उलास के साथ मानती है, इस के चलते जहाँ आज श्री अकाल तख्त साहिब पर यह दिवस बड़े श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया वहीँ श्री गुरु जी के जन्म  स्थान गुरु की वडाली से एक नगर कीर्तन पूरे श्रद्धा के साथ चल कर  सच्च्खंड श्री हरिमंदिर साहिब पहुंचा, इस नगर कीर्तन में भारी गिनती में संगतों ने भाग लिया, इस नगर कीर्तन में गतका पार्टियों ने अपनी कला के जौहर दिखाए, गौर तलब है की गतका पार्टियों में भाग लेने वाले छोटे छोटे बचे भी इसमें इतनी मुहारत हासिल कर लेते हैं की देखने वाला दंग रह जाता है.इस मौके पर नगर कीर्तन के सम्बन्ध में बात करते हुए नगर कीर्तन की अध्यक्षता कर रहे  जगतार सिंह मान ने इस दिवस के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए कहा, कि आज का यह नगर कीर्तन साहिब गुरु श्री हरगोबिन्द सिंह जी के जन्म स्थान गुरु की वडाली से शुरू होकर अमृतसर के विभिन्न बाजारों से होता हुआ सच्च्खंड श्री हरिमंदिर साहिब में श्री अकाल तख्त साहिब पहुंचा और नमस्तक होकर वापिस गुरु की वडाली में जाकर संपन्न होगा, उन्होंने कहा, कि आज उनके द्वारा 20 वा नगर कीर्तन निकला गया है 

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