कलाकार को फांसी:जीतन मरांडी झारखंड के प्रसिद्ध प्रगतिशील लोक कलाकार
जनज्वार.झारखण्ड के गिरिडीह जिले की अदालत ने चिलखारी हत्याकांड मामले में 23 जून को चार माओवादियों को फांसी की सजा सुनाई है. झारखण्ड के इतिहास में यह पहली बार है कि माओवादियों को किसी मामले में फांसी की सजा हुई है. सजायाफ्ता लोगों में मनोज रजवार, छत्रपति मंडल, अनिल राम और जीतन मरांडी हैं, जिनमें जीतन मरांडी झारखंड के प्रसिद्ध प्रगतिशील लोक कलाकार हैं.
जनज्वार.झारखण्ड के गिरिडीह जिले की अदालत ने चिलखारी हत्याकांड मामले में 23 जून को चार माओवादियों को फांसी की सजा सुनाई है. झारखण्ड के इतिहास में यह पहली बार है कि माओवादियों को किसी मामले में फांसी की सजा हुई है. सजायाफ्ता लोगों में मनोज रजवार, छत्रपति मंडल, अनिल राम और जीतन मरांडी हैं, जिनमें जीतन मरांडी झारखंड के प्रसिद्ध प्रगतिशील लोक कलाकार हैं.
चिलखारी में 26अक्टूबर 2007 को हुई गोलीबारी में 19 लोगों की जान गई थी. मृतकों में झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का बेटा अनूप भी था.माओवादियों ने यह हमला तब किया था जब वहां एक रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था.इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर मानते हुए जिला और सत्र न्यायधीश इन्द्रदेव मिश्र ने सजा सुनाई है. हालाँकि अदालत के इस फैसले का झारखंड में व्यापक विरोध हो रहा है.फांसी की सजा के विरोध में झारखण्ड के कई जेलों में बंद कैदी भी हैं और वे आमरण अनशन कर रहे हैं.
जीतन और उनकी पत्नी : एक नए विनायक
जीतन मरांडी के खिलाफ हुए फैसले के बारे में झारखण्ड बचाओ आन्दोलन और पीयूसीएल का कहना है कि जीतन को फर्जी तरीके से फंसाया गया है. संगठन के मुताबिक संदिग्धों में एक जीतन मरांडी था, जो फरार होने में सफल रहा. पुलिस उसे पकड़ने में अब तक नाकाम रही है और हमारे संगठन के मानवअधिकार कार्यकर्ता जीतन मरांडी को इस मामले में अभियुक्त बना दिया,जबकि हत्याकांड के वक्त वह गांव में नहीं थे.संगठन का दावा है कि पुलिस मानवाधिकार कार्यकर्ता जीतन मरांडी के खिलाफ फर्जी गवाह पेश कर उन्हें मौत की सजा दिलाने में सफल रही है.
संगठन की और से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक जीतन मरांडी नक्सलवादी नहीं है,वे एक सांस्कृतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. जीतन मरांडी एक प्रतिभाशाली कलाकार है, वे संगीत बनाते है, गीत लिखते है,और नुक्कड़ नाटक करते है.वे अपनी कला का इस्तेमाल गिरिडीह जिले के गावों में लोगो का मनोरंजन करने और उनकी जीवन की समस्यों के बारे में उन्हें जागरूक करने में करते है.ऐसे में जाहिर है कि वहां के प्रशासन और पुलिस के लिए वे एक खतरनाक व्यक्ति थे और वे उन्हें सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.
झारखण्ड बचाओ आन्दोलन से जुड़े लोगों का आरोप है कि 'पुलिस ने हत्याकांड में शामिल असली जीतन मरांडी को पकड़ने का किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया.उनके लिए हमारे साथी को पकडना और उसे आरोपी बताना बहुत आसान था.पुलिस के लिए तथा कथित ‘गवाह को पेश करना कोई बड़ी बात नहीं थी जो अदालत में कबूल करते कि उन्होंने मरांडी को हत्याकांड की जगह देखा था और कोर्ट के लिए ये तथा कथित गवाह सजा मुकर्रर करने के लिए काफी थे.
वो सुबह कभी तो आएगी
जैसे ही कोर्ट ने सजा दी मरांडी ने कोर्ट परिसर में जोर जोर से ‘वो सुबह कभी तो आएगी’गीत गाना शरू कर दिया.जीतन की पत्नी अपर्णा ने भी 2 साल के अपने बच्चे को गोद में उठाये हुए उनकी आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिला दी. इस सजा के पीछे की कहानी एक राजनीतिक षड़यंत्र है जो पूर्व मुख्य मंत्री की पार्टी के नेताओं और पुलिस की मिलीभगत में रचा गया है ताकि जनता को डरा कर चुपचाप दमन सहते रहने को मजबूर किया जा सके.
कोर्ट में जतीन ने घोषणा की कि वे इस सजा के खिलाफ अपील करेंगे. कोर्ट से बाहर उनकी बीबी अपर्णा ने भी इस बात की पुष्टि की.अपर्णा के कहा कि वह न केवल उच्च न्यायालय में बल्कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में भी सजा के खिलाफ अपील करेंगी. (सौजन्य: नरिंदर कुमार जीत)
जीतन मरांडी के खिलाफ हुए फैसले के बारे में झारखण्ड बचाओ आन्दोलन और पीयूसीएल का कहना है कि जीतन को फर्जी तरीके से फंसाया गया है. संगठन के मुताबिक संदिग्धों में एक जीतन मरांडी था, जो फरार होने में सफल रहा. पुलिस उसे पकड़ने में अब तक नाकाम रही है और हमारे संगठन के मानवअधिकार कार्यकर्ता जीतन मरांडी को इस मामले में अभियुक्त बना दिया,जबकि हत्याकांड के वक्त वह गांव में नहीं थे.संगठन का दावा है कि पुलिस मानवाधिकार कार्यकर्ता जीतन मरांडी के खिलाफ फर्जी गवाह पेश कर उन्हें मौत की सजा दिलाने में सफल रही है.
संगठन की और से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक जीतन मरांडी नक्सलवादी नहीं है,वे एक सांस्कृतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. जीतन मरांडी एक प्रतिभाशाली कलाकार है, वे संगीत बनाते है, गीत लिखते है,और नुक्कड़ नाटक करते है.वे अपनी कला का इस्तेमाल गिरिडीह जिले के गावों में लोगो का मनोरंजन करने और उनकी जीवन की समस्यों के बारे में उन्हें जागरूक करने में करते है.ऐसे में जाहिर है कि वहां के प्रशासन और पुलिस के लिए वे एक खतरनाक व्यक्ति थे और वे उन्हें सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.
झारखण्ड बचाओ आन्दोलन से जुड़े लोगों का आरोप है कि 'पुलिस ने हत्याकांड में शामिल असली जीतन मरांडी को पकड़ने का किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया.उनके लिए हमारे साथी को पकडना और उसे आरोपी बताना बहुत आसान था.पुलिस के लिए तथा कथित ‘गवाह को पेश करना कोई बड़ी बात नहीं थी जो अदालत में कबूल करते कि उन्होंने मरांडी को हत्याकांड की जगह देखा था और कोर्ट के लिए ये तथा कथित गवाह सजा मुकर्रर करने के लिए काफी थे.
वो सुबह कभी तो आएगी
जैसे ही कोर्ट ने सजा दी मरांडी ने कोर्ट परिसर में जोर जोर से ‘वो सुबह कभी तो आएगी’गीत गाना शरू कर दिया.जीतन की पत्नी अपर्णा ने भी 2 साल के अपने बच्चे को गोद में उठाये हुए उनकी आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ मिला दी. इस सजा के पीछे की कहानी एक राजनीतिक षड़यंत्र है जो पूर्व मुख्य मंत्री की पार्टी के नेताओं और पुलिस की मिलीभगत में रचा गया है ताकि जनता को डरा कर चुपचाप दमन सहते रहने को मजबूर किया जा सके.
कोर्ट में जतीन ने घोषणा की कि वे इस सजा के खिलाफ अपील करेंगे. कोर्ट से बाहर उनकी बीबी अपर्णा ने भी इस बात की पुष्टि की.अपर्णा के कहा कि वह न केवल उच्च न्यायालय में बल्कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में भी सजा के खिलाफ अपील करेंगी. (सौजन्य: नरिंदर कुमार जीत)
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