चवन्नी का अवसान : चवनिया मुस्कान:चवन्नी का अतिम संस्कार
15 अगस्त 1950 से भारत में सिक्कों का चलन शुरू हुआ। उन दिनों "आना" का चलन था आम जीवन में। आना अर्थात छः पैसा और सोलह आने का एक रूपया। फिर बाजार और आम आदमी की सुविधा के लिए 1957 में दशमलव प्रणाली को अपनाया गया यानि रूपये को पैसा में बदल कर। अर्थात एक रूपया बराबर 100 पैसा और 25 पैसा का सिक्का चवन्नी के नाम से मशहूर हो गया।
भले ही 1957 में यह बदलाव हुआ हो लेकिन व्यवहार में बहुत बर्षों बाद तक हमलोग आना और पैसा का मेल कराते रहते थे। यदि 6 पैसे का एक आना और 16 आने का एक रूपया तो उस हिसाब से एक रुपया में तो 16x6 = 96 पैसे ही होना चाहिए। लेकिन उसको पूरा करने के लिए हमलोगों को समझाया जाता था कि हर तीन आने पर एक पैसा अधिक जोड़ देने से आना पूरा होगा। मसलन 3 आना = 3x6+1=19 पैसा। इस हिसाब से चार आना 25 पैसे का, जो चवन्नी के नाम से मशहूर हुआ। फिर इसी क्रम से 7 आने पर एक पैसा और अधिक जोड़कर यानि 7x6+2 = 44 पैसा, इसलिए आठ आना = 50 पैसा, जो अठन्नी के नाम से आज भी मशहूर है और अपने अवसान के इन्तजार में है। उसके बाद 11 आने पर 3 पैसा और 14 आने पर 4 पैसा जोड़कर 1 रुपया = 16x6+4 = 100 पैसे का हिसाब आम जन जीवन में खूब प्रचलित था 1957 के बहुत बर्षों बाद तक भी।
हलाँकि आज के बाद चवन्नी की बात इतिहास की बात होगी लेकिन चवन्नी का अपना एक गौरवमय इतिहास रहा है। समाज में चवन्नी को लेकर कई मुहाबरे बने, कई गीतों में इसके इस्तेमाल हुए। चवन्नी की इतनी कीमत थी कि एक दो चवन्नी मिलते ही खुद का अन्दाज "रईसाना" हो जाता था गाँव के मेलों में। लगता है उन्हीं दिनों मे किसी की कीमती मुस्कान के लिए"चवनिया मुस्कान" मुहाबरा चलन में आया होगा। चवन्नी का उन दिनों इतना मोल था कि "राजा भी चवन्नी ऊछाल कर ही दिल माँगा करते थे"। यह गीत बहुत मशहूर हुआ आम जन जीवन में जो 1977 में बनी फिल्म "खून पसीना" का गीत है।
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लेखक:श्यामल सुमन |
और आज चवन्नी का इतना मोल घट गया "मंहगाई डायन" के कारण कि आज उसका का अतिम संस्कार है। चवन्नी ने मुद्रा विनिमय के साथ साथ समाज से बहुत ही रागात्मक सम्बन्ध बनाये रखा बहुत दिनों तक। अतः मेरी विनम्र श्रद्धांजलि है चवन्नी को उसके इस शानदार अवसान पर।--श्यामल सुमन; सम्पर्क--09955373288
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