बदलाव निश्चित है : आम आदमी की ताकत ही क्रांती लाएगी न की सत्ता से बंधे दल
आदरणीय महेंद्र कचोलिया जी
आपके पत्र के लिए आपका धन्यवाद् | मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि ये लेख मैंने नहीं लिखा है मैंने बस आप लोगों के लिए कॉपी करके पेस्ट किया है |
कहाँ जाता है कि जब घुप्प अँधेरा होता है तो सुबह भी जल्दी आती है और मुझे अब लग रहा है कि सवेरा जल्दी आएगा | बदलाव तो होना है, ये निश्चित है | आज देश में गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विकास का लाभ चन्द लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है। योजना आयोग के अनुसार 2004-05 में भारत में गरीबों की संख्या 27 फीसदी थी। जो योजना आयोग के ही अनुसार अब बढ़कर 32 फीसदी हो गयी है। इतना ही नहीं, विकास की दर 8 या 9 प्रतिशत बताई जा रही है, उसके बावजूद गरीबों की संख्या इतनी बढ़ गयी है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जिसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी हैं, ने कहा है कि यदि देश में खाद्य सुरक्षा कानून बनाना है तो भारत की 70 फीसदी आबादी को 2 या 3 रूपये प्रति किलो अनाज देना पड़ेगा। मतलब यह हुआ कि देश की 70 फीसदी आबादी अत्यंत गरीब है। फिर हम दुनिया के मंचों पर, मूँछों पर ताव देकर, यह क्यों कहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा हैੈ भारत के कुछ लोग बेहद धनी होते जा रहे हैं, पर साफ ज़ाहिर है कि इस आर्थिक प्रगति का लाभ आम आदमी को नहीं मिल रहा। इसका मूल कारण है भ्रष्टाचार। जो धन जनता के हित की योजनाओं पर खर्च होना चाहिए, वह भ्रष्टाचारियों की जेब में जा रहा है और इस लूट में कई बड़े औद्योगिक घराने भी शामिल हैं। फिर भी भ्रष्टाचार के इस विकराल स्वरूप के बारे में कोई भी राजनैतिक दल गम्भीर नहीं है। बयान सब देते हैं। पर अपना आचरण बदलने को कोई तैयार नहीं। नतीज़तन आम जनता मंहगाई की मार के साथ साथ भरष्टाचार झेल रही है। ऐसे में जो नेतृत्व का शून्य पैदा हो गया था, उसे भरने के लिए अन्ना हजारे व बाबा रामदेव जैसे लोग मैदान में उतर रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इनका अभियान बिल्कुल उचित है और इनका हठ भी सही है। क्योंकि बिना डरे राजनैतिक दल कुछ भी बदलने नहीं जा रहे। ये आपस में छींटाकशी करते रहेंगे और उसका राजनैतिक फायदा लेते रहेंगे। भ्रष्टाचार को निपटाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे। इसलिए किसी न किसी को तो यह जिम्मेदारी लेनी ही थी। अब स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे ने ली है तो उन्हें इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाना होगा। इसमें अनेक बाधाऐं भी आयेंगी। कुछ तो राजनैतिक दलों की ओर से और कुछ निहित स्वार्थों की ओर से। इस लड़ाई में देश के हर जागरूक नागरिक को हिस्सा लेना चाहिए। जरूरी नहीं कि सब एक मंच पर से ही लड़ें। भारत-पाकिस्तान का युद्ध होता है तो कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के मोर्चे पर अलग-अलग लड़ा जाता है। भ्रष्टाचार से युद्ध भी भारत-पाक युद्ध से कम नहीं है। इसलिए जिसे जहाँ, जैसा मंच मिले, जुट जाना चाहिए। सफलता और असफलता तो भगवान के हाथ में है लेकिन कर्म तो करना होगा | हृदय से सभी चाहते हैं कि ऐसे सभी प्रयास सफल हों और आम आदमी को भ्रष्टाचार से राहत मिले।
रवि
अभी हाल ही में एक आलेख प्रकाशित हुआ था पंजाब स्क्रीन में जो हमें रवि वर्मा की ओर से प्राप्त हुआ. उनके लेख पहले भी पंजाब स्क्रीन में प्रकाशित होते रहे हैं और उन्हें पसंद भी किया जाता रहा है. अब जब थोडा सा विरोध हुआ तो उन्होंने यह कहा क यह आलेख उनका लिखा हुआ ही नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया की उन्होंने इसे कापी पेस्ट किया था. अगर सच यह है तो रवि जी को मूल स्रोत का उल्लेख करना चाहिए था. सत्य की आवाज़ में तभी दम होता है जब सत्य बोलने वाला खुद भी सामने आकर पूरी निडरता से इस सत्य की कीमत चुकाने को तैयार हो. मुझे वो शेयर याद आ रहा है :
जिस धज से कोई मकतल में गया, वोह शान सलामत रहती है,
यह जान तो आनी जानी है; इस जान की कोई बात नहीं...!
महेंद्र कचोलिया जी को यह बात याद रझने चाहिए की अगर आज किसी की पुकार सुन कर भी सवा करोड़ लोगों में से केवल एक लाख लोग ही मैदान में आते हैं तो कसूर लोगों का नहीं उन नेतायों का है जिनकी अपने आवाज़ में कभी सच नहीं होता. वे पुकारते हैं. लोगों को भड़काते हैं और जब गोली चलती है तो खुद किसी पिछले दरवाज़े से निकल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुँच जाते हैं. इतिहास गवाह है की जब जब भी अगुवाई करने वाले सचे मन से आगे आये हैं तब तब लोगों ने भी उनके एक इशारे पर अपना सब कुछ न्योछावर किया. सत्ता के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलने वालों के सहारे कभी क्रांतियाँ नहीं होती. दूसरों पर कुर्बानी का उपदेश तभी असर करता है जब आह्वान करने वाला खुद भी हर कुर्बानी के लिए तैयार हो. हमें इस पर आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी पर उससे पहले पढिये. महेंद्र कचोलिया और रवि वर्मा के विचार --रेक्टर कथूरिया
रवि भाई,
बातें सच हैं.. बात कहने का तरीका थोडा गलत हैं….
देश में हताशा है… आम आदमी में हताशा है…. आम आदमी की मानसिकता बदल गयी है… बेईमानी अब सहज हो गयी ..लोगों के दिमाग पर सुबह सुबह न्यूज़पेपर…. पूरा दिन चलने वाले मीडिया… ने घोटाला घोटाला घोटाला कर के लोगों का मानस ही ऐसा बना दिया कि आम इन्सान अब बेईमान हो गया … हजारों करोड़ों के घोटाले mein आम आदमी को लगता है…क्या हुआ जो मैंने 2-5000 कि रिश्वत खाई….
आपने एक बात सच कही…. जनता मुद्दे के साथ है …फिर चाहे उसे अन्ना उठाये… चाहे बाबा रामदेव या चाहे आप उठाएं….
टुनिशिया मैं एक आदमी ने पहल कि और सर्कार बदल डाली… मगर हिंदुस्तान की जनता में तो इतना भी दम नहीं कि एक कॉमन काज के लिए घर से बहार निकले… टुनिशिया कि आबादी कितनी थी…. 10 लाख लोग सड़कों पर थे… यहाँ 125 करोड़ लोगों में से 1 लाख लोग आये थे बाबा के साथ…
चलो इस देश की यही नियति है तो कौन क्या कर सकता है ?
दूसरी और इस पर अपनी जवाबी प्रतिक्रिया में रवि वर्मा लिखते हैं...:
आपके पत्र के लिए आपका धन्यवाद् | मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि ये लेख मैंने नहीं लिखा है मैंने बस आप लोगों के लिए कॉपी करके पेस्ट किया है |
कहाँ जाता है कि जब घुप्प अँधेरा होता है तो सुबह भी जल्दी आती है और मुझे अब लग रहा है कि सवेरा जल्दी आएगा | बदलाव तो होना है, ये निश्चित है | आज देश में गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विकास का लाभ चन्द लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है। योजना आयोग के अनुसार 2004-05 में भारत में गरीबों की संख्या 27 फीसदी थी। जो योजना आयोग के ही अनुसार अब बढ़कर 32 फीसदी हो गयी है। इतना ही नहीं, विकास की दर 8 या 9 प्रतिशत बताई जा रही है, उसके बावजूद गरीबों की संख्या इतनी बढ़ गयी है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जिसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी हैं, ने कहा है कि यदि देश में खाद्य सुरक्षा कानून बनाना है तो भारत की 70 फीसदी आबादी को 2 या 3 रूपये प्रति किलो अनाज देना पड़ेगा। मतलब यह हुआ कि देश की 70 फीसदी आबादी अत्यंत गरीब है। फिर हम दुनिया के मंचों पर, मूँछों पर ताव देकर, यह क्यों कहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा हैੈ भारत के कुछ लोग बेहद धनी होते जा रहे हैं, पर साफ ज़ाहिर है कि इस आर्थिक प्रगति का लाभ आम आदमी को नहीं मिल रहा। इसका मूल कारण है भ्रष्टाचार। जो धन जनता के हित की योजनाओं पर खर्च होना चाहिए, वह भ्रष्टाचारियों की जेब में जा रहा है और इस लूट में कई बड़े औद्योगिक घराने भी शामिल हैं। फिर भी भ्रष्टाचार के इस विकराल स्वरूप के बारे में कोई भी राजनैतिक दल गम्भीर नहीं है। बयान सब देते हैं। पर अपना आचरण बदलने को कोई तैयार नहीं। नतीज़तन आम जनता मंहगाई की मार के साथ साथ भरष्टाचार झेल रही है। ऐसे में जो नेतृत्व का शून्य पैदा हो गया था, उसे भरने के लिए अन्ना हजारे व बाबा रामदेव जैसे लोग मैदान में उतर रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इनका अभियान बिल्कुल उचित है और इनका हठ भी सही है। क्योंकि बिना डरे राजनैतिक दल कुछ भी बदलने नहीं जा रहे। ये आपस में छींटाकशी करते रहेंगे और उसका राजनैतिक फायदा लेते रहेंगे। भ्रष्टाचार को निपटाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे। इसलिए किसी न किसी को तो यह जिम्मेदारी लेनी ही थी। अब स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे ने ली है तो उन्हें इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाना होगा। इसमें अनेक बाधाऐं भी आयेंगी। कुछ तो राजनैतिक दलों की ओर से और कुछ निहित स्वार्थों की ओर से। इस लड़ाई में देश के हर जागरूक नागरिक को हिस्सा लेना चाहिए। जरूरी नहीं कि सब एक मंच पर से ही लड़ें। भारत-पाकिस्तान का युद्ध होता है तो कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के मोर्चे पर अलग-अलग लड़ा जाता है। भ्रष्टाचार से युद्ध भी भारत-पाक युद्ध से कम नहीं है। इसलिए जिसे जहाँ, जैसा मंच मिले, जुट जाना चाहिए। सफलता और असफलता तो भगवान के हाथ में है लेकिन कर्म तो करना होगा | हृदय से सभी चाहते हैं कि ऐसे सभी प्रयास सफल हों और आम आदमी को भ्रष्टाचार से राहत मिले।
रवि
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