Sunday, May 08, 2011

तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ.......!

ज़िन्दगी की राहें सीधी और सपाट नहीं होती. कदम कदम पर ज़िन्दगी जीने की कीमत देनी पड़ती है. शयामल सुमन ने इस हकीकत को बार बार जी कर देखा है. संघर्ष, संघर्ष और लगातार संघर्षों से निकला एक साधारण इंसान शयामल सुमन जो अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश में आज भी संघर्षरत है.उनकी  रचनायें कहती हैं, उनका स्वभाव कहता है कि उन्होंने इस राह पर चलने का मौल बार बार अदा किया लेकिन कभी हार नहीं मानी.प्रस्तुत हैं उनकी कुछ काव्य रचनायें, आपको उनकी  कविता के तेवर कैसे लगे, उनकी कलम की धार कैसी लगी अवश्य बताएं.-रेक्टर कथूरिया.

माँ
मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,
इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।
तू ही तू है मेरी जिन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।

तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?
तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।
कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,
और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।
प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।


तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।
वही ममता बिलखती अभी गाँव में।
काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,
आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?
तेरी गहराइयों में मिली सादगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।


गोद तेरी मिले है ये चाहत मेरी।
दूर तुमसे हूँ शायद ये किस्मत मेरी।
है सुमन का नमन माँ हृदय से तुझे,
सदा सुमिरूँ तुझे हो ये आदत मेरी।
बढ़े अच्छाईयाँ दूर हो गन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।

         # # #
अच्छा लगा
हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा
बह रही उल्टी हवा से जूझना अच्छा लगा

दुख ही दुख जीवन का सच है लोग कहते हैं यही
दुख में भी सुख की झलक को ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा

हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा

रिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह में
साथ अपनों का मिला तो घूमना अच्छा लगा

कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा

घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा

दे गया संकेत पतझड़ आगमन ऋतुराज का
तब भ्रमर के संग सुमन को झूमना अच्छा लगा

           # # #

रीति बहुत विपरीत

जीवन में नित सीखते नव-जीवन की बात।
प्रेम कलह के द्वंद में समय कटे दिन रात।।

चूल्हा-चौका संग में और हजारो काम।
इस कारण डरते पति शायद उम्र तमाम।।

झाड़ु, कलछू, बेलना, आलू और कटार।
सहयोगी नित काज में और कभी हथियार।।

जो ज्ञानी व्यवहार में करते बाहर प्रीत।
घर में अभिनय प्रीत के रीति बहुत विपरीत।।

बाहर से आकर पति देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहे सुमन आँख में लाज।।
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परिचय
नाम :
श्यामल किशोर झा

लेखकीय नाम : श्यामल सुमन

जन्म तिथि: 10.01.1960

जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार

शिक्षा : स्नातक ( अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी)

तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा
वर्तमान पेशा : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर

साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित                        
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।
अंतरजाल पत्रिका "अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी आदि में सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित।
गीत ग़ज़ल संकलन "रेत में जगती नदी" कला मंदिर प्रकाशन दिल्ली में शीघ्र प्रकाशनार्थ
रुचि के विषय : नैतिक मानवीय मूल्य एवं सम्वेदना



आप उनकी काव्य रचनायें उनके कविता जगत मनोरमा में भी पढ़ सकते हैं बस यहाँ क्लिक करके

पोस्ट स्क्रिप्ट: श्यामल सुमन गाते भी बहुत अच्छा है...जल्द ही आपको सुनवायेंगे उनकी आवाज़ में उन्हीं की  एक और रचना 

2 comments:

Sawai Singh Rajpurohit said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.

Sawai Singh Rajpurohit said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.