Tuesday, December 14, 2010

कब तक यह अपमान...?

एक बार फिर भारतीय संस्कृति को अपमानित करने का दुस्साहस हुआ है. अभी साड़ी के अपमान का घाव हरा ही था कि अब पगड़ी पर वार कर दिया गया. नाम है सुरक्षा कारणों से की जानेवाली  तलाशी का. कितनी अजीब बात है कि आज कल के आधुनिक यंत्रों से सुसज्जित कार्यप्रणाली के होते हुए भी  अपनाए जाते हैं दशकों पुराने पिछड़े हुए तरीके. अमेरिका में भारत की राजदूत मीरा शंकर के साथ चार दिसम्बर को तलाशी के नाम पर बाद सलूकी हुई क्यूंकि उसने साड़ी पहन रखी थी.सुरक्षा कर्मियों ने उसकी एक नहीं सुनी और तलाशी के बाद ही छोड़ा. कहा यह गया कि बाडी स्कैनर नहीं होने के कारण तलाशी आवश्यक है.मीरा ने अपने कागज़ दिखाए, अपनी पहचान बताई, वरिष्ठ अधिकारियों से भी बात की लेकिन उसे संदिग्धों की तरह एक अलग कमरे में ले जाया गया.  
भारत ने इस पर सखत रोष जताया तो दबाव बढ़ता देख कर दस दिसम्बर को इसकी माफ़ी मांग ली गयी. ओबामा प्रशासन ने सारी घटना पर दुःख जताते हुए वादा किया कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा लेकिन अब दो दिन बाद एक अन्य राजनयक हरदीप सिंह पुरी के साथ वही बदसलूकी दोहराई गयी.गौरतलब है कि  1952 में जन्मे हरदीप सिंह पुरी ने 1974  में भारतीय विदेश सेवा ज्वाइन की थी. उनकी पत्नी लक्ष्मी पुरी भी भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी हैं. हरदीप पुरी जापान, जेनेवा, श्रीलंका, ब्रिटेन और ब्राजील में भारतीय दूतावासों और हाई कमिशन में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. इसी बीच अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत रोनेन सेन ने इस घटना पर कहा कि वह भी इस प्रक्रिया से कई बार गुजर चुके हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका में हाथों से तलाशी एक सामान्य सी बात है. 
गौरतलब है कि इस शर्मनाक घटना से पूर्व भी भारत के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों और जानेमाने फिल्मी कलाकारों के साथ अमेरिका में बदसलूकी की घटनाएं हो चुकी हैं...... रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीज और शाहरुख खान को भी ऐसा कड़वा तजुर्बा हो चुका है. तलाशी के नाम पर हुई इस नयी घटना को अंग्रेजी मीडिया ने भी अहमीयत दे कर प्रकाशित किया है. पगड़ी की बात चली है तो यह बात याद रखना अवशयक है कि दुनिया में सिख धर्म ने इसे जो सम्मान दिया वो शायद किसी और ने नहीं दिया. पगड़ी बहुत पहले भी थी और अब कई गैर सिखों में इसका रिवाज जारी है लेकिन पगड़ी की पहचान एक सिख ड्रेस के  तौर पर हो चुकी है. पगड़ी के बारे में एक जर्मन इतिहासकार लिओ फ्रोबेनिउस का कहना है कि सबसे पहले पगड़ी बाँधने की शुरूआत सुडान में हुई. जब 1 जनवरी १९६३ को जन्मी कैमीला ने अपनी पढाई पूरी की तो अप्रैल 2008 में उसे ओपन यूनिवर्सिटी की तरफ से  डाक्टरेट की डिग्री प्रदान करने का वक्त भी आया. उस समय कैमिला ने जिस ड्रेस को पहन कर इसे प्राप्त किया; उस ड्रेस में पगड़ी भी शामिल थी. पगड़ी बहुत से हालातों से गुजरी और बहुत से लोगों के पास पहुंची पर सिख धर्म ने इसे दस्तार का पावन नाम दे कर इसके सम्मान पर अपनी मोहर भी लगा दी. इस लिए पगड़ी का अपमान किसी एक सिख का अपमान नहीं. यह उन सभी का अपमान है जिन्होंने कभी भी पगड़ी को अपने साथ रखा या इसके सम्मान का अहसास किया. यही बात साड़ी पर भी लागू होती है. मर्यादा और सम्मान ....इनको गम्भीरता से सम्भालना अब पहले से अधिक आवश्यक हो गया है.--रेक्टर कथूरिया   

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