प्रज्ञा जी का लेखन साहित्यिक निकष पर मूल्यांकन योग्य है । अन्तरजालीय पत्रकारिता मे इनके महत्वपूर्ण योगदान की प्रशंसा करना आवश्यक है । जब कभी भी ब्लागोँ की साहित्य के विकास मे भूमिका पर चर्चा होगी , याद तब याद आएगी. ये शब्द हैं अरुणेश मिश्रा जी के जो उन्होंने ऑरकुट पर प्रज्ञा पांडे जी की कविता के बारे में कहे. लखनयू में रह रहीं प्रज्ञा एक लम्बे अरसे से चुपचाप अपने लेखन में लगीं हैं. पर प्रज्ञा जी की कविता की बात करने से पहले चर्चा करते हैं एक और नयी कलम रीना और उसकी एक कविता का. आजकल जयपुर में रह रही रीना का कहना है," दिल की चीखे जब बढ जाती हैं और जज्बातो की आंधी रोके नही रुकती.. तो लिख लेती हू." इसी तरह लखनयू में ही रेडियो ब्राडकास्टर और निर्मात्री के तौर पर नाम कमा रही मीनू खरे भी बहुत ही अच्छा लिख रही हैं. लखनयू में ही एक और नाम है सुशीला पूरी का.
कानपुर हल्द्वानी की शेफाली पांडे का रंग भी कुछ कम नहीं है. मैं अंग्रेज़ी, अर्थशास्त्र एवं शिक्षा-शास्त्र (एम. एड.) विषयों से स्नातकोत्तर हूँ, लेकिन मेरे प्राण हिंदी में बसते हैं| उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल के एक सरकारी विद्यालय में कार्यरत, मैं अंग्रेजी की अध्यापिका हूँ| मेरा निवास-स्थान हल्द्वानी, ज़िला नैनीताल, उत्तराखंड है| अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है| बचपन में कविताओं से शुरू हुई मेरी लेखन-यात्रा कहानियों, लघुकथाओं इत्यादि से गुज़रते हुए 'व्यंग्य' नामक पड़ाव पर पहुँच चुकी है| मेरे व्यंग्य-लेखन से यदि किसी को कोई कष्ट या दुःख पहुंचे तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ पहले देखिये रीना की कविता का रंग. आज सुबह अखबार मे फिर छोटी सी बच्ची के साथ बलात्कार की खबर आई है.दो चार रोज पहले भी अखबार मे बाप और उसके रिश्तेदारो ने बेटी के साथ सालो बलात्कार किया ये खबर आई.रोज छोटी छोटी बच्चियो के साथ ऐसा हो रहा है... आखिर क्युं? मन बडा भारी हो जाता है.सन्दर्भ मे ......
1 comment:
आपकी बातों से पूर्ण सहमत हैं हम.
प्रज्ञा जी, सुशीला पुरी जी, मीनू खरे जी, रीना जी, शेफाली पाण्डेय जी की लेखनी उत्कृष्ट है.
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