Wednesday, November 25, 2009
और अब 1984 पर जरनैल सिंह की नयी किताब : I Accuse ...
25 बरसों से लगातार न्याय की इंतज़ार कर रही सिख कौम के युवा पत्रकार जरनैल सिंह ने जूता उछाला तो बात दूर दूर तक पहुच गयी. दरअसल वह जूता किसी व्यक्ति पर न तो था न ही हो सकता था क्योंकि सिख कौम तो दोनों वक्त सर्बत्त का भला मांगती है. सिख आक्रोश का वह जूता उछला था उस सिस्टम पर जिस पर सभी को शर्म आनी चाहिए पर कभी आती नहीं. बात आई गयी हो गयी. इसकी याद ताज़ा हुयी आज उस वक्त जब मैं अपनी मेल देख रहा था. उसमे एक ऐसा पत्र भी था जिसमें एक बार फिर नवम्बर-1984 की चर्चा की गयी थी. उसे खंगालता खंगालता मैं पहुँच गया एक ऐसी साईट पर जिसमे एक बार फिर नज़र आया जरनैल सिंह का चेहरा. चर्चा उसकी किताब की थी. इस किताब को अपने गरिमामय अंदाज़ में प्रकाशित किया है पेंगुइन ने और इसकी भूमिका लिखी है खुशवंत सिंह ने. तथ्यों और आंकड़ों का ज़िक्र जहाँ जरनैल सिंह की पत्रकारिता और तर्क को दिखाता है वहीँ पर घटनायों का मार्मिक प्रस्तुतिकरण उसके कवी ह्रदय से भी रूबरू करवाता है.
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9 comments:
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अगर समुदायिक चिट्ठाकारी में रूचि हो तो यहाँ पधारें http://www.janokti.blogspot.com . और पसंद आये तो हमारे समुदायिक चिट्ठे से जुड़ने के लिए मेल करें janokti@gmail.com
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बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
i would like to read.narayan narayan
उम्दा जानकारी
जीवन दर्शन की ये बातें ,मन मेरा बहलाती हैं
आपका स्वागत है ब्लागिंग में ,हवाएं गुनगुनाती हैं
धीरे -धीरे समाज का हर तबका संस्कार और संयम खोता जा रहा है
Its good that you reviewed the book written by the person who himself witnessed the masscare when 11 yr old When he hurled a shoe on chidamram it showed to the nation how nothing substantial was done to heal the open wounds of the sikh community shame when people say 'secular india '
it reminds of the book 'when a tree shook delhi 'by phoolka and manoj
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