Wednesday, April 30, 2014

दीक्षांत समारोह में राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का भाषण

30-अप्रैल-2014 19:47 IST
मणिपुर विश्‍वविद्यालय के समारोह में बताये छात्रोँ को जिँदगी के गुर 
The President, Shri Pranab Mukherjee addressing on the occasion of the 14th Convocation of Manipur University, at Canchipur, in Imphal, Manipur on April 29, 2014.
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी 29 अप्रैल, 2014 को कांचीपुर, इम्फाल, मणिपुर में मणिपुर विश्वविद्यालय के 14वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर संबोधित करते हुए। 
पूर्वोत्‍तर भारत में उच्‍च शिक्षा का प्रधान केन्‍द्र मणिपुर विश्‍वविद्यालय के इस 14वें दीक्षांत समारोह में शामिल होकर मुझे बड़ी खुशी है। 

1980 में अपनी स्‍थापना से ही मणिपुर विश्‍वविद्यालय पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देने में उत्‍कृष्‍ट भूमिका निभा रहा है। अपने पाठ्यक्रम के जरिए यह भारत के समेकित संस्‍कृति को फैला रहा है। इसके कार्यक्रम और नीतियों का उद्देश्‍य मानवता की भावना, सहनशीलता और जानकारी को बढ़ाना है। मैं इस विश्‍वविद्यालय के प्रणेताओं से अपील करता हूं कि वे पूरी लगन और शिद्दत से विश्‍वविद्यालय का विकास करते रहें। 

प्रिय छात्रों : 
मैं उन सभी छात्रों को बधाई देता हूं, जिन्‍हें आज डिग्री मिल रही है। मैं श्री रिशांग किशिंग और श्री एल. वीरेन्‍द्र कुमार सिंह को बधाई देता हूं, जिन्‍हें डॉक्‍टर ऑफ लॉ और डॉक्‍टर ऑफ लिटरेचर की उपाधि से सम्‍मानित किया गया है। 

किसी भी अकादमिक संस्‍थान के लिए दीक्षांत समारोह अति महत्‍वपूर्ण होता है। छात्रों और अध्‍यापकों के जीवन के जीवन में यह क्षण महत्‍वपूर्ण होते हैं। इस दिन छात्रों को अपनी कड़ी मेहनत का फल मिलता है। आप ज्ञान और मजबूत चरित्र से लैस होकर विश्‍वविद्यालय की सीमा छोड़ेंगे। विश्‍वविद्याल से बाहर जाकर परिवर्तन करें, अपने आस-पास के लोगों के जीवन को छूएं और उसमें बदलाव लाएं और खुशहाल विश्‍व बनाएं। 

मित्रों शिक्षा से अंधकार से प्रकाश की ओर, पिछड़ेपन को छोड़ आगे बढ़ा जाता है और बेहतर जीवन बनता है। भविष्‍य में तरक्‍की के लिए निवेश से अगर किसी को जोड़ा जाता है, तो वह है शिक्षा। शिक्षा की मजबूती से देश का निर्माण होता है और लम्‍बे समय ज्ञान से विकास हासिल किया गया है। ऐसे देशों ने बदलते संसाधनों को बड़ी आसानी से ग्रहण किया है। शिक्षा से ही उन्‍हें संसाधन की कमियों से निपटने की क्षमता हासिल हुई है और उच्‍च तकनीक आधारित अर्थव्‍यवस्‍था तैयार की गई है। अगर भारत दुनिया की कतार में आगे रहना चाहता है, तो यह सुदृढ़ शिक्षा पद्धति के जरिए ही हासिल किया जा सकता है। 

भारत में बड़ी संख्‍या में युवा हैं। दो तिहाई जनसंख्‍या 35 वर्ष से कम आयु के लोगों की है। वे हमारा भविष्‍य है, इसलिए उन्‍हें अच्‍छा नागरिक बनाने की आवश्‍यकता है। भारत में 20 प्रतिशत से कम लोगों का उच्‍चशिक्षा के क्षेत्र में नामांकन है। उच्‍चशिक्षा के सरंचना को बढ़ाने के लिए त्‍वरित प्रयास किये जा रहे है, क्‍योंकि यह पर्याप्‍त नहीं है और इससे हमारी आगे आने वाली पी‍ढ़ी की क्षमता कम हो सकती है। पिछले दशक के दौरान मणिपुर विश्‍वविद्यालय सहित कई केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों का निर्माण एक निर्णायक कदम था। मणिपुर विश्‍वविद्यालय को 2005 में केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय बनाया गया था। ये विश्‍वविद्यालय प्राचीन भारत के उच्‍चशिक्षा केन्‍द्र नालंदा और तक्षशिला जैसा सम्‍मान पाने में सक्षम हैं। 

अगर हम हमारे देश की उच्‍चशिक्षा की स्थिति का ईमानदारी से आंकलन करें, तो यह कह सकते है कि विश्‍वस्‍तर की तुलना में कई उच्‍च अकादमिक संस्‍थान से बेहतर स्‍नातक नहीं निकल पा रहे है। विश्‍व की सर्वोच्‍च 200 विश्‍वविद्यालयों की सूची में एक भी भारतीय विश्‍वविद्यालय नहीं है। इस मुद्दे पर राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों के उप-कुलपतियों की वार्षिक बैठक में भी विचार-विमर्श किया गया था। 

मुझे यह जानकर खुशी है कि हमारे संस्‍थानों भी रैंकिंग प्रक्रिया को अब गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। पिछले वर्ष सितम्‍बर में आईआईएम कोलकाता को एक सम्‍मानीय एंजेंसी द्वारा प्रबंधन कार्यक्रम में स्‍नातकोत्‍तर की डिग्री देने वाला सबसे अच्‍छा बिजनेस स्‍कूल का दर्जा दिया गया। 

मित्रों: शिक्षा के आधार शिक्षक होते है। अच्‍छे अध्‍यापक शिक्षा मानकों को दर्शाते है। शिक्षकों के विकास के लिए कई उपाय की आवश्‍यकता है। रिक्‍त पड़े अध्‍यापकों के पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरना होंगे। शिक्षा के क्षेत्र में विविधता और नये विचार लाने के लिए विदेश से प्रतिभाशाली शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिए। 

हमारे वि‍श्‍ववि‍द्यालय के काम-काज को जि‍न बीमारि‍यों ने घेर रखा है वह अच्‍छे शासन व्‍यवहार के अभाव के कारण है। शासन के ढ़ांचे को नि‍र्णय लेने की तेज पारदर्शी व्‍यवस्‍था वि‍कसि‍त करनी होगी। इस संदर्भ में संस्‍थान के पुराने लोगों को शासन व्‍यवस्‍था में शामि‍ल करके ऐसी गति‍शीलता दी जा सकती है जि‍सकी हमारी संस्‍थानों में कमी है। वर्तमान पाठ्यक्रमों की समीक्षा तथा नए पाठ्यक्रमों को लागू करने में भी संस्‍थान के पुराने लोगों के अनुभवों को लाभ उठाया जा सकता है। 

उद्योग के साथ व्‍यापक स्‍तर पर साझेदारी वि‍कसि‍त करने के लि‍ए ठोस प्रयास करना होगा। उद्योग और शि‍क्षा जगत के बीच आपसी संबंध के लि‍ए संस्‍थागत प्रबंध करना आवश्‍यक है। इससे शोध, पीठ तथा प्रशि‍क्षण कार्यक्रम चलाने के लि‍ए प्रायोजक मि‍ल सकेंगे। 

टैक्‍नोलॉजी बेहतरीन ज्ञान वाहक और सूचना का प्रसारक होती है। ज्ञान के नेटवर्क से बौद्धि‍क सहयोग में मदद मि‍लती है। इससे शारीरि‍क परेशानि‍यां भी समाप्‍त होती हैं। टैक्‍नोलॉजी आधारि‍त मीडि‍या अकादमि‍क आपाद-प्रदान के लि‍ए समय की आवश्‍यकता है। 

हमारे वि‍श्‍ववि‍द्यालयों में शोध की अनदेखी की स्‍थि‍ति‍ बदलनी होगी। हमारी शि‍क्षा प्रणाली में हमें बहु-वि‍षयात्‍मक दृष्‍टि‍ अपनानी होगी क्‍योंकि‍ अधि‍कतर शोधकार्यों में वि‍भि‍न्‍न वि‍षयों के लोगों की आवश्‍यकता होती है। हमें उन क्षेत्रीय वि‍शेषताओं पर जोर देना होगा जहां वि‍श्‍ववि‍द्यालय स्‍थापि‍त कि‍ए गए हैं। मणि‍पुर वि‍श्‍ववि‍द्यालय अपने शोध वि‍शेषज्ञता को इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए प्राथमि‍कता दे सकता है कि‍ मणि‍पुर राज्‍य जैववि‍वि‍धता वाला राज्‍य है। 

हमारे वि‍श्‍ववि‍द्यालयों का कर्तव्‍य है कि‍ वे जि‍ज्ञासा का वातावरण बनाएं और अपने वि‍द्यार्थि‍यों को वैज्ञानि‍क शोध प्रदान करें। वि‍श्‍ववि‍द्यालयों को वि‍द्यार्थि‍यों के वि‍चारों तथा बुनि‍यादी खोजों को पंख लगाना चाहि‍ए। नए वि‍चारों को अच्‍छे उत्‍पाद में बदला जा सकता है और इस काम में वि‍श्‍ववि‍द्यालय अग्रणी भूमि‍का अदा कर सकते हैं। अनेक केंद्रीय वि‍श्‍ववि‍द्यालयों ने इनोवेशन क्‍लब स्‍थापि‍त कि‍ए गए हैं। इसे और आगे बढ़ाने के लि‍ए उस इलाके में स्‍थापि‍त आईआईटी और एनआईटी के इंक्‍यूबेटर्स का सहयोग लेना चाहि‍ए। इंक्‍यूबेटरों के साथ क्‍लबों के जुड़ाव से शोध के अग्रणी केंद्रों और आम आदमी के बीच संपर्क के लि‍ए 'इनोवेशन वेब' बनाने में मदद मि‍लेगी। आशा है कि‍ मणि‍पुर वि‍श्‍ववि‍द्यालय अगले कुछ वर्षों में नए खोज को बढ़ावा देगा। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि‍ वि‍श्‍ववि‍द्यालय ने इस दि‍शा में कदम बढाए हैं। 

मि‍त्रों, मणि‍पुर एक सुंदर राज्‍य है और कला, संस्‍कृति‍ तथा खेल-कुद के क्षेत्र में राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर शानदार प्रदर्शन कि‍या है। मणि‍पुर के युवाओं और महि‍लाओं की उपलब्‍धि‍यों पर भारत को गर्व है। मणि‍पुर भवि‍ष्‍य में देश को और गौरव दि‍लाएगा। यह आवश्‍यक है कि‍ सभी लोग वि‍शेषकर इस राज्‍य के युवा यह मानते हैं कि‍ हिंसा रहि‍त माहौल में ही अर्थव्‍यवस्‍था तथा समाज फल-फूल सकता है। हिंसा से कि‍सी समस्‍या का समाधान नहीं होता। हिंसा दर्द को बढ़ाती है और सभी पक्षों को आहत करती है। 

मैं मणि‍पुर के युवाओं का आह्वान करता हूं कि‍ वे अपने देश का भवि‍ष्‍य संवारने में देश के बाकी हि‍स्‍सों के युवाओं के साथ मि‍लकर काम करें। चाहे व्‍यापार हो, उद्योग हो, शि‍क्षा हो या संस्‍कृति‍ हो हमारे देश के लोग वि‍चारों, उद्यमों तथा युवा आबादी की ऊर्जा के बल पर आगे बढ़ रहे हैं। 

उभरते हुए भारत में मणि‍पुर के युवाओं के लि‍ए अपार अवसर हैं। मैं मणि‍पुर के युवाओं से अपील करता हूं कि‍ वे हिंसा तथा तनाव के काले दि‍नों को पीछे छोड दें और नया सवेरा होने दें। हमें अपने सामूहि‍क भवि‍ष्‍य में वि‍श्‍वास करते हुए आगे बढ़ना होगा। मैं यह आश्‍वस्‍त करना चाहूंगा कि‍ भारत सरकार तथा मणि‍पुर की सरकार यह सुनि‍श्‍चि‍त करने के लि‍ए कर्तव्‍य से बंधे हुए हैं कि‍ प्रत्‍येक मणि‍पुरी का जीवन सम्‍मानजनक हो और उन्‍हें समान अधि‍कार और अवसर मि‍ले। इसी कारण राज्‍य में अनेक प्रमुख आर्थि‍क वि‍कास कार्यक्रम अवसंरचना परि‍योजनाएं शुरू की जा रही है। 

मैं सफल और शांति‍पूर्ण तरीके से चुनाव कराने के लि‍ए मणि‍पुर के लोगों को धन्‍यवाद देता हूं। हमें खुशी मनाने चाहि‍ए कि‍ हम वि‍श्‍व के सबसे बड़ा लोकतंत्र है। 16वीं लोकसभा के लि‍ए चुनाव जारी है और मणि‍पुर सहि‍त हमारे देश के लोग बड़ी संख्‍या में अपना वोट डालने नि‍कल रहे हैं और अपने अधि‍कारों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। 

मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि‍ 2009 में प्रति‍बंधि‍त मणि‍पुर वि‍श्‍ववि‍द्यालय छात्र संघ अगले शैक्षि‍क सत्र से फि‍र अस्‍ति‍त्‍व में आएगा। मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ छात्र संघ इस वि‍श्‍ववि‍द्याल के वि‍द्यार्थि‍यों के कल्‍याण में महत्‍वपूर्ण और साकारात्‍मक भूमि‍का अदा करेगा। यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है कि‍ राजधानी दि‍ल्‍ली में पूर्वोत्‍तर के युवाओं पर हमले की दुखद घटनाएं देखने को मि‍ली है। हमें यह सुनि‍श्‍चि‍त करना होगा कि‍ हमारे देश का बहुलवादी चरि‍त्र तथा भारत की एकता का तार ऐसी घटनाओं से कमजोर न हो। मुझे खुशी है कि‍ केंद्र सरकार तथा दि‍ल्‍ली की सरकार ने अभि‍युक्‍तों को पकड़ने और उन्‍हें सज़ा दि‍लाने में दृढ़ कदम उठाए हैं और ऐसे उपाय सुनि‍श्‍चि‍त कि‍ए हैं कि‍ ऐसी घटनाएं दोबारा न हो। 

मि‍त्रों, भारत नए अवसरों तथा उंची उपलब्‍धि‍यों के चौराहे पर खड़ा है भारत द्वारा वि‍श्‍व का नेतृत्‍व करने की बात अब कोई काल्‍पनि‍क बात नहीं है। आप देश के शि‍क्षि‍त युवा उभरते हुए नए भारत का नि‍र्माण करेंगे। अपनी शि‍क्षा का इस्‍तेमाल समाज में परि‍वर्तन के लि‍ए करें। आप महात्‍मा गांधी की इन शब्दों से प्रेरणा लें 'शि‍क्षा का मूल आप के अंदर की श्रेष्‍ठ बातों को बाहर नि‍कालना है' मैं भवि‍ष्‍य में मणि‍पुर वि‍श्‍ववि‍द्यालय की सफलता और आपके उज्‍जवल भवि‍ष्‍य की कामना करता हू्ं। 

धन्‍यवाद जय हि‍न्‍द 
***
वि.के./एजी/ए.एम./वाई.बी/एसकेपी-1451

Friday, April 25, 2014

वोट: हौंसले और उत्साह की लहर

जज़्बा, जोश और इरादा बदलाव का 
A physically challenged voter arrives, at a polling booth to cast her vote, during the 6th Phase of General Elections-2014, in Chennai, Tamil Nadu on April 24, 2014. (PIB photo)
तमिलनाडु, चेन्‍नई में 24 अप्रैल, 2014 को आम चुनाव-2014 के छठे चरण के मतदान के दौरान एक विकलांग महिला मतदाता वोट डालने के लिए जाती हुई। (पीआईबी फोटो)

मई दिवस 1947

यह एक गाथा है… पर आप सबके लिए नहीं!   -हावर्ड फास्ट
वर्ष 1947 के मई दिवस के अवसर पर लिखा गया प्रसिद्ध अमेरिकी उपन्यासकार हावर्ड फास्ट का यह लेख मई दिवस की गौरवशाली परम्पराओं की याद एक ऐसे समय में करता है जब अमेरिका में लम्बे संघर्षों से हासिल मज़दूर अधिकारों पर हमला बोला जा रहा था। आज भारत में देशी-विदेशी पूँजी की मिली-जुली ताक़त ने श्रम पर ज़बरदस्त हमला बोल दिया है। ऐसे में यह लेख आज भारत के मज़दूरों के लिए लिखा गया महसूस होता है, और मई दिवस की यह गाथा उत्साह और जोश से भर देती है। इसका अनुवाद 1946 के नौसेना विद्रोह में शामिल रहे ‘मज़दूर बिगुल’ के वयोवृद्ध सहयोगी सुरेन्द्र कुमार ने किया है। मज़दूर बिगुल से हम यह आलेख साभार प्रकाशित कर रहे हैं। यह बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है और साथ ही राह भी दिखाता है। —सं.

यह गाथा उनके लिए है। उन माताओं के लिए जो अपने बच्चों को मरता नहीं बल्कि ज़िन्दा देखना चाहती हैं। उन मेहनतकशों के लिए जो जानते हैं कि फासिस्ट सबसे पहले मज़दूर यूनियनों को ही तोड़ते हैं। उन भूतपूर्व सैनिकों के लिए, जिन्हें मालूम है कि जो लोग युद्धों को जन्म देते हैं, वे ख़ुद लड़ाई में नहीं उतरते। उन छात्रों के लिए, जो जानते हैं कि आज़ादी और ज्ञान को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। उन बुद्धिजीवियों के लिए, जिनकी मौत निश्चित है यदि फासिज्म ज़िन्दा रहता है। उन नीग्रो लोगों के लिए, जो जानते हैं कि जिम-क्रो’ और प्रतिक्रियावाद दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उन यहूदियों के लिए जिन्होंने हिटलर से सीखा कि यहूदी विरोध की भावना असल में क्या होती है। और यह गाथा बच्चों के लिए, सारे बच्चों के लिए, हर रंग, हर नस्ल, हर आस्था-धर्म के बच्चों के लिए  उन सबके लिए लिखी गयी है, ताकि उनका भविष्य जीवन से भरपूर हो, मौत से नहीं।
यह गाथा है जनता की शक्ति की, उनके अपने उस दिन की, जिसे उन्होंने स्वयं चुना था और जिस दिन वे अपनी एकता और शक्ति का पर्व मनाते हैं। यह वह दिन है, जो अमरीकी मज़दूर वर्ग का संसार को उपहार था और जिस पर हमें हमेशा फख़्र रहेगा।
उन्होंने आपको  यह नहीं बताया 
हावर्ड फास्ट
…स्कूल में आपने इतिहास की जो पुस्तकें पढ़ी होंगी उनमें उन्होंने यह नहीं बताया होगा कि ”मई दिवस” की शुरुआत कैसे हुई थी। लेकिन हमारे अतीत में बहुत कुछ उदात्त था और साहस से भरपूर था, जिसे इतिहास के पन्नों से बहुत सावधानी से मिटा दिया गया है। कहा जाता है कि ”मई दिवस” विदेशी परिघटना है, लेकिन जिन लोगों ने 1886 में शिकागो में पहले मई दिवस की रचना की थी, उनके लिए इसमें कुछ भी बाहर का नहीं था। उन्होंने इसे देसी सूत से बुना था। उजरती मज़दूरी की व्यवस्था इन्सानों का जो हश्र करती है उसके प्रति उनका ग़ुस्सा किसी बाहरी स्रोत से नहीं आया था।
पहला ”मई दिवस” 1886 में शिकागो नगर में मनाया गया। उसकी भी एक पूर्वपीठिका थी, जिसके दृश्यों को याद कर लेना अनुपयुक्त नहीं होगा। 1886 के एक दशक पहले से अमेरिकी मज़दूर वर्ग जन्म और विकास की प्रक्रिया से गुज़र रहा था। यह नया देश जो थोड़े-से समय में एक महासागर से दूसरे महासागर तक फैल गया था, उसने शहर पर शहर बनाये, मैदानों पर रेलों का जाल बिछा दिया, घने जंगलों को काटकर साफ़ किया, और अब वह विश्व का पहला औद्योगिक देश बनने जा रहा था। और ऐसा करते हुए वह उन लोगों पर ही टूट पड़ा जिन्होंने अपनी मेहनत से यह सब सम्भव बनाया था, वह सबकुछ बनाया था जिसे अमेरिका कहा जाता था, और उनके जीवन की एक-एक बूँद निचोड़ ली।
स्त्री-पुरुष और यहाँ तक कि बच्चे भी अमेरिका की नयी फैक्टरियों में हाड़तोड़ मेहनत करते थे। बारह घण्टे का काम का दिन आम चलन था, चौदह घण्टे का काम भी बहुत असामान्य नहीं था, और कई जगहों पर बच्चे भी एक-एक दिन में सोलह और अठारह घण्टे तक काम करते थे। मज़दूरी बहुत ही कम हुआ करती थी, वह अक्सर दो जून रोटी के लिए भी नाकाफी होती थी, और बार-बार आने वाली मन्दी की कड़वी नियमितता के साथ बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी के दौर आने लगे। सरकारी निषेधाज्ञाओं के ज़रिये शासन रोज़मर्रा की बात थी।
परन्तु अमरीकी मज़दूर वर्ग रीढ़विहीन नहीं था। उसने यह स्थिति स्वीकार नहीं की, उसे किस्मत में बदी बात मानकर सहन नहीं किया। उसने मुक़ाबला किया और पूरी दुनिया के मेहनतकशों को जुझारूपन का पाठ पढ़ाया। ऐसा जुझारूपन जिसकी आज भी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती।
1877 में वेस्ट वर्जीनिया प्रदेश के मार्टिन्सबर्ग में रेल-हड़ताल शुरू हुई। हथियारबन्द पुलिस बुला ली गयी और मज़दूरों के साथ एक छोटी लड़ाई के बाद हड़ताल कुचल दी गयी। लेकिन केवल स्थानीय तौर पर; जो चिनगारी भड़की थी, वह ज्वाला बन गयी। ”बाल्टीमोर और ओहायो” रेलमार्ग बन्द हुआ, फिर पेन्सिलवेनिया बन्द हुआ, और फिर एक के बाद दूसरी रेल कम्पनियों का चक्का जाम होता चला गया। और आख़िरकार एक छोटा-सा स्थानीय उभार इतिहास में उस समय तक ज्ञात सबसे बड़ी रेल हड़ताल बन गया। दूसरे उद्योग भी उसमें शामिल हो गये और कई इलाक़ों में यह रेल-हड़ताल एक आम हड़ताल में तब्दील हो गयी।
पहली बार सरकार और साथ ही मालिकों को भी पता चला कि मज़दूर की ताक़त क्या हो सकती है। उन्होंने पुलिस और फौज बुलायी; जगह-जगह जासूस तैनात किये गये। कई जगहों पर जमकर लड़ाइयाँ हुईं। सेण्ट लुई में नागरिक प्रशासन के अधिकारियों ने हथियार डाल दिये और नगर मज़दूर वर्ग के हवाले कर दिया। उन लोमहर्षक उभारों में कितने हताहत हुए होंगे, उन्हें आज कोई नहीं गिन सकता। परन्तु हताहतों की संख्या बहुत बड़ी रही होगी, इस पर कोई भी, जिसने तथ्यों का अध्ययन किया है, सन्देह नहीं कर सकता।
हड़ताल आख़िरकार टूट गयी। परन्तु अमरीकी मज़दूरों ने अपनी भुजाएँ फैला दी थीं और उनमें नयी जागरूकता का संचार हो रहा था। प्रसव-वेदना समाप्त हो चुकी थी और अब वह वयस्क होने लगा था।
अगला दशक संघर्ष का दौर था, आरम्भ में अस्तित्व का संघर्ष और फिर संगठन बनाने का संघर्ष। सरकार ने 1877 को आसानी से नहीं भुलाया; अमेरिका के अनेक शहरों में शस्त्रागारों का निर्माण होने लगा; मुख्य सड़कें चौड़ी की जाने लगीं, ताकि ”गैटलिंग” मशीनगनें उन्हें अपने नियन्त्रण में रख सकें। एक मज़दूर-विरोधी प्राइवेट पुलिस संगठन ”पिंकरटन एजेंसी” का गठन किया गया, और मज़दूरों के ख़िलाफ उठाये गये क़दम अधिक से अधिक दमनकारी होते चले गये। वैसे तो अमेरीका में दुष्प्रचार के तौर पर ”लाल ख़तरे” शब्द का इस्तेमाल 1830 के दशक से ही होता चला आया था, लेकिन उसे अब एक ऐसे डरावने हौवे का रूप दे दिया गया, जो आज प्रत्यक्ष तौर पर हमारे सामने है।
परन्तु मज़दूरों ने इसे चुपचाप स्वीकार नहीं किया। उन्होंने भी अपने भूमिगत संगठन बनाये। भूमिगत रूप में जन्मे संगठन नाइट्स ऑफ लेबर के सदस्यों की संख्या 1886 तक 7,00,000 से ज़्यादा हो गयी थी। नवजात अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर का मज़दूर यूनियनों की स्वैच्छिक संस्था के रूप में गठन किया गया, समाजवाद जिसके लक्ष्यों में एक लक्ष्य था। यह संस्था बहुत तेज़ रफ़्तार से विकसित होती चली गयी। यह वर्ग-सचेत और जुझारू थी और अपनी माँगों पर टस-से-मस न होने वाली थी। एक नया नारा बुलन्द हुआ। एक नयी, दो टूक, सुस्पष्ट माँग पेश की गयी : ”आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन”।
1886 तक अमेरिकी मज़दूर नौजवान योद्धा बन चुका था, जो अपनी ताक़त परखने के लिए मौक़े की तलाश कर रहा था। उसका मुक़ाबला करने के लिए सरकारी शस्त्रागारों का निर्माण किया गया था, पर वे नाकाफी थे। ”पिंकरटनों” का प्राइवेट पुलिस दल भी काफी नहीं था, न ही गैटलिंग मशीनगनें। संगठित मज़दूर अपने क़दम बढ़ा रहा था, और उसका एकमात्र जुझारू नारा देश और यहाँ तक कि धरती के आर-पार गूँज रहा था : ”एक दिन में आठ घण्टे का काम — इससे ज़रा भी ज़्यादा नहीं!”
1886 के उस ज़माने में, शिकागो जुझारू, वामपक्षी मज़दूर आन्दोलन का केन्द्र था। यहीं शिकागो में संयुक्त मज़दूर प्रदर्शन के विचार ने जन्म लिया, एक दिन जो उनका दिन हो किसी और का नहीं, एक दिन जब वे अपने औज़ार रख देंगे और कन्धे से कन्धा मिलाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे।
पहली मई को मज़दूर वर्ग के दिवस, जनता के दिवस के रूप में चुना गया। प्रदर्शन से काफी पहले ही ”आठ घण्टा संघ” नाम की एक संस्था गठित की गयी। यह आठ घण्टा संघ एक संयुक्त मोर्चा था, जिसमें अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर, नाइट्स ऑफ लेबर और समाजवादी मज़दूर पार्टी शामिल थे। शिकागो की सेण्ट्रल लेबर यूनियन भी, जिसमें सबसे अधिक जुझारू वामपक्षी यूनियनें शामिल थीं, इससे जुड़ी थी।
शिकागो से हुई शुरुआत कोई मामूली बात नहीं थी। ”मई दिवस” की पूर्ववेला में एकजुटता के लिए आयोजित सभा में 25,000 मज़दूर उपस्थित हुए। और जब ”मई दिवस” आया, तो उसमें भाग लेने के लिए शिकागो के हज़ारों मज़दूर अपने औज़ार छोड़कर फैक्टरियों से निकलकर मार्च करते हुए जनसभाओं में शामिल होने पहुँचने लगे। और उस समय भी, जबकि ”मई दिवस” का आरम्भ ही हुआ था, मध्य वर्ग के हज़ारों लोग मज़दूरों की क़तारों में शामिल हुए और समर्थन का यह स्वरूप अमेरिका के कई अन्य शहरों में भी दोहराया गया।
और आज की तरह उस वक्त भी बड़े पूँजीपतियों ने जवाबी हमला किया — रक्तपात, आतंक, न्यायिक हत्या को ज़रिया बनाया गया। दो दिन बाद मैकार्मिक रीपर कारख़ाने में, जहाँ हड़ताल चल रही थी, एक आम सभा पर पुलिस ने हमला किया। उसमें छह मज़दूरों की हत्या हुई। अगले दिन इस जघन्य कार्रवाई के विरुद्ध हे मार्केट चौक पर जब मज़दूरों ने प्रदर्शन किया, तो पुलिस ने उन पर फिर हमला किया। कहीं से एक बम फेंका गया, जिसके फटने से कई मज़दूर और पुलिसवाले मारे गये। इस बात का कभी पता नहीं चल पाया कि बम किसने फेंका था, इसके बावजूद चार अमेरिकी मज़दूर नेताओं को फाँसी दे दी गयी, उस अपराध के लिए, जो उन्होंने कभी किया ही नहीं था और जिसके लिए वे निर्दोष सिद्ध हो चुके थे।
इन वीर शहीदों में से एक, ऑगस्ट स्पाइस, ने फाँसी की तख्ती से घोषणा की :
”एक वक्त आयेगा, जब हमारी ख़ामोशी उन आवाज़ों से ज़्यादा ताक़तवर सिद्ध होगी, जिनका तुम आज गला घोंट रहे हो।” समय ने इन शब्दों की सच्चाई को प्रमाणित कर दिया है। शिकागो ने दुनिया को ”मई दिवस” दिया, और इस बासठवें मई दिवस पर करोड़ों की संख्या में एकत्र दुनियाभर के लोग ऑगस्ट स्पाइस की भविष्यवाणी को सच साबित कर रहे हैं।
शिकागो में हुए प्रदर्शन के तीन वर्ष बाद संसारभर के मज़दूर नेता बास्तीय किले पर धावे (जिसके साथ फ़्रांसीसी क्रान्ति की शुरुआत हुई) की सौवीं सालगिरह मनाने के लिए पेरिस में जमा हुए। एक-एक करके, अनेक देशों के नेताओं ने भाषण दिया।
आख़िर में अमेरीकियों के बोलने की बारी आयी। जो मज़दूर हमारे मज़दूर वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा था, खड़ा हुआ और बिल्कुल सरल और दो टूक भाषा में उसने आठ घण्टे के कार्यदिवस के संघर्ष की कहानी बयान की जिसकी परिणति 1886 में हे मार्केट का शर्मनाक काण्ड था।
उसने हिंसा, ख़ूंरेज़ी, बहादुरी का जो सजीव चित्र पेश किया, उसे सम्मेलन में आये प्रतिनिधि वर्षों तक नहीं भूल सके। उसने बताया कि पार्सन्स ने कैसे मृत्यु का वरण किया था, जबकि उससे कहा गया था कि अगर वह अपने साथियों से ग़द्दारी करे और क्षमा माँगे तो उसे फाँसी नहीं दी जायेगी। उसने श्रोताओं को बताया कि कैसे दस आयरिश ख़ान मज़दूरों को पेनसिल्वेनिया में इसलिए फाँसी दी गयी थी कि उन्होंने मज़दूरों के संगठित होने के अधिकार के लिए संघर्ष किया था। उसने उन वास्तविक लड़ाइयों के बारे में बताया जो मज़दूरों ने हथियारबन्द ”पिंकरटनों” से लड़ी थीं, और उसने और भी बहुत कुछ बताया। जब उसने अपना भाषण समाप्त किया तो पेरिस कांग्रेस ने निम्नलिखित प्रस्ताव पास किया :
”कांग्रेस फैसला करती है कि राज्यों के अधिकारियों से कार्य दिवस को क़ानूनी ढंग से घटाकर आठ घण्टे करने की माँग करने के लिए और साथ ही पेरिस कांग्रेस के अन्य निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए समस्त देशों और नगरों से मेहनतकश अवाम एक निर्धारित दिन एक महान अन्तरराष्ट्रीय प्रदर्शन संगठित करेंगे। चूँकि अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर पहली मई 1890 को ऐसा ही प्रदर्शन करने का फैसला कर चुका है, ”अत: यह दिन अन्तरराष्ट्रीय प्रदर्शन के लिए स्वीकार किया जाता है। विभिन्न देशों के मज़दूरों को प्रत्येक देश में विद्यमान परिस्थितियों के अनुसार यह प्रदर्शन अवश्य आयोजित करना चाहिए।”
तो इस निश्चय पर अमल किया गया और ”मई दिवस” पूरे संसार की धरोहर बन गया। अच्छी चीज़ें किसी एक जनता या राष्ट्र की सम्पत्ति नहीं होतीं। एक के बाद दूसरे देश के मज़दूर ज्यों-ज्यों मई दिवस को अपने जीवन, अपने संघर्षों, अपनी आशाओं का अविभाज्य अंग बनाते गये, वे मानकर चलने लगे कि यह दिन उनका है  और यह भी सही है, क्योंकि पृथ्वी पर मौजूद समस्त राष्ट्रों के बरक्स हम राष्ट्रों का राष्ट्र हैं, सभी लोगों और सभी संस्कृतियों का समुच्चय हैं।
और आज के मई दिवस की क्या विशेषता है
पिछले मई दिवस गत आधी शताब्दी के संघर्षों को प्रकाश-स्तम्भों की भाँति आलोकित करते हैं। इस शताब्दी के आरम्भ में मई दिवस के ही दिन मज़दूर वर्ग ने परायी धरती को हड़पने की साम्राज्यवादी कार्रवाइयों की सबसे पहले भर्त्सना की थी। मई दिवस के ही अवसर पर मज़दूरों ने नवजात समाजवादी राज्य सोवियत संघ का समर्थन करने के लिए आवाज़ बुलन्द की थी। मई दिवस के अवसर पर ही हमने अपनी भरपूर शक्ति से असंगठितों के संगठन का समारोह मनाया था।
लेकिन बीते किसी भी मई दिवस पर कभी ऐसे अनिष्टसूचक लेकिन साथ ही इतने आशा भरे भविष्य-संकेत नहीं दिखायी दिये थे, जितना कि आज के मई दिवस पर हो रहा है। पहले कभी हमारे पास जीतने को इतना कुछ नहीं था, पहले कभी हमारे खोने को इतना कुछ नहीं था।
जनता के लिए अपनी बात कह पाना आसान नहीं है। लोगों के पास अख़बार या मंच नहीं है, और न ही सरकार में शामिल हमारे चुने गए प्रतिनिधियों की बहुसंख्या जनता की सेवा करती है। रेडियो जनता का नहीं है और न फिल्म बनाने वाली मशीनरी उसकी है। बड़े कारोबारों की इज़ारेदारी अच्छी तरह स्थापित हो चुकी है, काफी अच्छी तरह — लेकिन लोगों पर तो किसी का एकाधिकार नहीं है।
जनता की ताक़त उसकी अपनी ताक़त है। मई दिवस उसका अपना दिवस है, अपनी यह ताक़त प्रदर्शित करने का दिन है। क़दम से क़दम मिलाकर बढ़ते लाखों लोगों की क़तारों के बीच अलग से एक आवाज़ बुलन्द हो रही है। यह वक्त है कि वे लोग, जो अमरीका को फासिज्म के हवाले करने पर आमादा हैं, इस आवाज़ को सुनें।
उन्हें यह बताने का वक्त है कि वास्तविक मज़दूरी लगभग पचास प्रतिशत घट गयी है, कि घरों में अनाज के कनस्तर ख़ाली हैं, कि यहाँ अमेरिका में अधिकाधिक लोग भूख की चपेट में आ रहे हैं।
यह वक्त है श्रम विरोधी क़ानूनों के ख़िलाफ आवाज़ बुलन्द करने का। दो सौ से ज़्यादा श्रम विरोधी क़ानूनों के विधेयक कांग्रेस के समक्ष विचाराधीन आ रहे हैं, जो यकीनन मज़दूरों को उसी तरह तोड़ डालने के रास्ते खोल देंगे, जिस तरह हिटलर के नाज़ीवाद ने जर्मन मज़दूरों को तोड़ डाला था।
संगठित अमेरिकी मज़दूरों के लिए आँख खोलकर यह तथ्य देखने का वक्त आ गया है कि यह मज़दूरों की एकता क़ायम करने की आख़िरी घड़ी है वरना बहुत देर हो जायेगी और एकताबद्ध करने के लिए संगठित मज़दूर रहेंगे ही नहीं।
आप यहाँ पढ़ रहे हैं गाथा, उन लोगों की जो बारह से पन्द्रह घण्टे रोज़ काम करते थे, आप पढ़ रहे हैं गाथा, उस सरकार की, जो आतंक और निषेधाज्ञाओं के बल पर चल रही है।
यह है उन लोगों का लक्ष्य, जो आज श्रमिकों को चकनाचूर करना चाहते हैं। वे अपने ”अच्छे” दिनों को फिर वापस लाना चाहते हैं। इसका सबूत यूनाइटेड माइन के खनिक मज़दूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। आप जब मई दिवस के अवसर पर मार्च करेंगे तो आप उन्हें अपना जवाब देंगे।
वक्त आ गया है यह समझने का कि ”अमरीकी साम्राज्य” के आह्वान का, यूनान, तुर्की और चीन में हस्तक्षेप से क्या रिश्ता है! साम्राज्य की क़ीमत क्या है? जो दुनिया पर राज कर दुनिया को ”बचाने” के लिए चीख़ रहे हैं, उन्हें दूसरे साम्राज्यों के अंजाम को याद करना चाहिए। उन्हें यह आँकना चाहिए कि ज़िन्दगी और धन दोनों अर्थों में युद्ध की क्या क़ीमत होती है।
वक्त आ गया है यह देखने के लिए जाग उठने का कि कम्युनिस्टों के पीछे शिकारी कुत्ते छोड़े जाने का क्या अर्थ है? क्या एक भी ऐसा कोई देश है, जहाँ कम्युनिस्ट पार्टी को ग़ैरक़ानूनी घोषित किया जाना फासिज्म की पूर्वपीठिका न रहा हो? क्या ऐसा कोई एक भी देश है, जहाँ कम्युनिस्टों को रास्ते से हटाते ही मज़दूर यूनियनों को चकनाचूर न कर दिया गया हो?
वक्त आ गया है कि हम हालात की क़ीमत को समझें। कम्युनिस्टों को प्रताड़ित करने के अभियान की क़ीमत था संगठित मज़दूरों को ठिकाने लगाना — उसकी क़ीमत है फासिज्म। और आज ऐसा कौन है, जो इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि फासिज्म की क़ीमत मौत है?
मई दिवस इस देश के समस्त स्वतन्त्रताप्रिय नागरिकों के लिए प्रतिगामियों को जवाब देने का वक्त है। मार्च करते जा रहे लाखों-लाख लोगों की एक ही आवाज़ बुलन्द हो रही है — मई दिवस प्रदर्शन में हमारे साथ आइये और मौत के सौदागरों को अपना जवाब दीजिये।

Thursday, April 24, 2014

गठबंधन की सरकार नीतियों के क्रियान्वयन में बाधक

Thu, Apr 24, 2014 at 12:05 PM
विचारधारा तो साझे में सबसे बड़े घटक की ही चलनी चाहिए -कन्हैया झा  
भोपाल: 24 अप्रैल 2014: इस चुनाव के माहौल में प्रधानमंत्री पर लिखी गयी श्री संजय बारू (लेखक) की पुस्तक बहुत चर्चा में है. लेखक यूपीए-1 के कार्यकाल में श्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे. नब्बे के दशक में श्री मनमोहन सिंह ने वित्त-मंत्री के पद पर कार्य करते हुए देश की अर्थ-व्यवस्था को लाईसेंस-परमिट राज से मुक्त किया था. यूपीए-1 के दौरान अमरीका से नाभिकीय-ऊर्जा के अनुबंध करने के समय भी उन्होनें अदम्य साहस का परिचय दिया था. उनकी ईमानदारी, देशभक्ति, कार्यकुशलता एवं सौम्य स्वभाव के कारण सभी उनका आदर करते हैं. फिर आज उनको लेकर इतना दुष्प्रचार क्यों हो रहा है ?
वास्तव में समस्या के मूल में वह शासन व्यवस्था है, जिसकी कमियाँ पिछले दो दशकों से चली आ रही साझा सरकारों के कारण पूरी तरह से उजागर हुई हैं. यूपीए-1 सरकार वाम-पंथी दलों के सहयोग से बनी थी, जो पूंजीवादी अमरीका को अपना घोर शत्रु मानते हैं. शासन चलाने के लिए कुछ लक्ष्मण-रेखायें तय की गयीं, जिसके लिए दोनों ही ओर से कुछ उदारवादी रुख अपनाए गए थे. देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अणु-ऊर्जा के विकल्प को अपनाने का विचार किया. परंतू सन 1998 के अणु-बम विस्फोट के कारण, अमरीकी पाबंदियों के चलते, विश्व का कोई भी देश भारत को नाभिकीय-ईंधन देने को तैयार नहीं था.  
अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह से बहुत प्रभावित थे. सन 2005  में क्रेमलिन में हो रहे एक समारोह में जॉर्ज बुश एवं उनकी पत्नि लौरा अपनी सीट से उठे और श्री मनमोहन सिंह एवं उनकी पत्नि को संबोधित करते हुए उन्होनें कहा:
"लौरा ! तुम भारतीय प्रधानमंत्री से मिलो. तुम जानती हो कि 100 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाला भारत एक प्रजातंत्र है, जिसमें अनेक मतों एवं अनेक भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं. इनकी अर्थ-व्यवस्था भी प्रगति पर है, और यह व्यक्ति इस देश को नेतृत्व दे रहा है."
शुरू में अमरीकी राष्ट्रपति आदर से श्री मनमोहन सिंह को 'सर' कहकर बुलाते थे. बाद में जब श्री बुश भारत आये तो एक दोस्त की तरह से वे श्री मनमोहन सिंह के कंधे पर हाथ रख कर चलते देखे गए थे. इन  दोनों नेताओं के व्यक्तिगत प्रयासों से ही दोनों ही देशों में अनेकों प्रशासनिक बाधाओं के बावजूद नाभिकीय-अनुबंध का प्रारूप संसद की मंजूरी के लिए तैयार था.
भारत ने सन 1974 में पहला परमाणु-बम विस्फोट किया था. तभी से भारत पर नाभिकीय अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर करने का अमरीकी दबाव था. भारत यह हस्ताक्षर नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह चीन की ही भांति नाभिकीय अस्त्रों को विकसित करने के अपने विकल्प को कायम रखना चाहता था. इस अनुबंध से अमरीका भारत के लिए एक अपवाद (exception) बना रहा था. इस प्रकार भारत के लिए अपने प्रति पिछले चार दशकों से चले आ रहे भेद-भाव को हमेशा के लिए ख़त्म करने का यह एक सुनहरा मौक़ा था.
इसी बीच वाम-पंथी दलों में नेतृत्व परिवर्तन से पार्टी में कट्टरवादी लोगों का वर्चस्व हो गया. उन्होनें नाभिकीय अनुबंध के विरोध को जनता के समक्ष ले जाने के लिए प्रेस-वार्ता का आयोजन किया, जबकि प्रधानमन्त्री ने इस विषय पर संसद में वक्तव्य दिया था. साथ ही उन्होनें सभी पार्टियों के नेताओं को अपने निवास-स्थान पर बात-चीत के लिए आमंत्रित किया, जहां पर प्रशासनिक अधिकारियों ने अनुबंध का पूरा विवरण उनके सम्मुख रखा. वाम-पंथियों द्वारा मुद्दे को जनता के बीच ले जाने का कोई औचित्य नहीं था.
यह देश विविधताओं से भरा हुआ है. जनता से यह अपेक्षा करना कि वह संसद में किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत दे पाएगी, मुश्किल है. साझा सरकार में यदि सभी पार्टियां अपनी विचारधारा पर अड़ी रहेंगी तो शासन नहीं चल सकेगा. विचारधारा तो साझे में सबसे बड़े घटक की ही चलनी चाहिए, क्योंकि सबसे अधिक मत देकर जनता ने उसकी विचारधारा का अनुमोदन किया है. हाँ ! यदि क्रियान्वन में कहीं भ्रष्टाचार होता है तो अवश्य ही ऐसी सरकार को गिरा देनी चाहिए.  

Thursday, April 17, 2014

1984 दंगे--जगदीश टाइटलर केस

श्री एच. एस. फूल्का दिल्ली उच्च न्यायलय में उपस्थित हुए
नयी दिल्ली 17 अप्रैल 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
1984 दंगों के मुकदमे में जगदीश टाइटलर आज दिल्ली उच्च न्यायलय के माननीय न्यायाधीश श्री वी. पी. वैश के समक्ष उपस्थित हुए। श्री एच्. एस. फूल्का विशेष रूप से लुधियाना से इस मामले के लिए दिल्ली पहुंचे। कुछ हफ़्तों पहले, अकाली दल ने यह अफवाह उड़ाई थी कि श्री फूल्का जी ने टाइटलर केस से अपना हाथ पीछे खीच लिया है। हालांकि, आज श्री फूल्का जी इस अनिर्णीत केस में उपस्थित हुए एवं माननीय न्यायाधीश श्री वैश से इस मामले में २९ मई तक का स्थगनकाल लिया, क्यूंकि इस केस में लम्बे समय तक चलने वाली बहस कई घंटों तक खीच सकती है। 
एक अन्य १९८४ सिख दंगों का केस दिल्ली उच्च न्यायलय के कोर्ट न. ३३ में सूचीबद्ध था। इस केस में बलवान कोखर, सज्जन कुमार के सह-अभियुक्त ने अंतरिम जमानत कि याचिका दायर कि थी। श्री फूल्का इस केस में भी उपस्थित थे एवं यह मामला भी स्थगनकाल में डाल दिया गया है। अतः श्री फूल्का आज इन दोनों मुकदमों में उपस्थित थे और बहस भी की। राजनीति में प्रवेश करने के साथ उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य नहीं बदला है। 

अजनाला कुँए का मामला:कोछड़ के अतिरिक्त नहीं पहुँची कोई और रिपोर्ट

19 अप्रैल को अजनाला पहुँचेगीं पुरातत्व विभाग व विशेषज्ञों की टीमें
अमृतसर; 17 अप्रैल 2014:  (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो//तस्वीरें-गजिंदर सिंह किंग):
मीडिया से बात  करते
 इतिहासकार श्री सुरेंद्र कोछड़
अजनाला के कुँए में 157 वर्षों से दफन राष्ट्रीय विद्रोह के सैनिकों की निकाली गईं अस्थियां तथा वहां बनाए जाने वाले स्मारक के संबंध में पंजाब सरकार द्धारा  बनाई पाँच स्दसीय सलाहकार कमेटी के सदस्यों में से नियत किए दिन तक मात्र इतिहासकार एवं शोधकर्ता श्री सुरेंद्र कोछड़ ने ही अपनी रिपोर्ट जमा कराई है। बुधवार दोपहर पंजाब सचिवालय चंडीगढ़ में प्रिंसीपल सचिव (होम) श्री एस.एस. चन्नी की अध्यक्षता में हुई सलाहकार कमेटी के सदस्यों तथा विशेषज्ञों की मीटिंग के बाद यह उक्त जानकारी दी गई। मीटिंग की कार्रवाई के संबंध में कल्चरल, पुरातत्व एवं म्यूजीयम विभाग पंजाब के डायरैक्टर स. नवजोत सिंह रंधावा ने बताया कि सलाहकार कमेटी के सदस्यों डॉ. जसपाल सिंह (उप-कुलपति पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला), इतिहासकार प्रीथपाल सिंह, प्रो. हरीश शर्मा, इतिहासकार श्री सुरेंद्र कोछड़, प्रो. मुज्जफर आलम (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली) तथा आर्कोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया को पंजाब सरकार द्वारा 11 मार्च को पत्र न. 2139-2144 जारी करके अजनाला के कुँए के संबंध में अपनी रिपोर्ट 30 मार्च तक जमा कराने के आदेश दिए थे। श्री कोछड़ के अतिरिक्त किसी अन्य की रिपोर्ट न प्राप्त होने पर यह समय अवधि बढ़ाकर 15 अप्रैल तक कर दी गई थी। श्री रंधावा ने कहा कि उक्त कुँए की खोज करके उसमें से सन् 1857 के राष्ट्रीय विद्रोह के सैनीकों की अस्थियां निकालवाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले इतिहासकार श्री कोछड़ ने अपनी तैयार की रिपोर्ट कमेटी के चेयरमैन तथा मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल को 26 मार्च को ही सौंप दी, जबकि शेष कोई भी सदस्य नियत दिन तक अपनी रिपोर्ट जमा नहीं करा सका। उन्होंने कहा कि शेष इतिहासकारों ने रिपोर्ट पूरी करने के लिए पंजाब सरकार से अब और अत्याधिक समय मांगा है।
19 अप्रैल को अजनाला पहुँचेगीं पुरातत्व विभाग व विशेषज्ञों की टीमें
प्रिंसीपल सचिव श्री एस.एस. चन्नी ने मीटिंग में सलाहकार कमेटी, विशेषज्ञों तथा अन्य अधिकारियों की उपस्थिति में स्मारक तथा कुँए में से निकली अस्थियों के रख-रखाव व अन्य जाँच के लिए 19 अप्रैल को अजनाला में पुरातत्व विभाग के माहिरों के साथ अस्थियों की जाँच करने में माहिरों की एक टीम को भेजने का निर्णय लिया है। श्री कोछड़ ने अंर्तरार्ष्टीय स्तर तक पहुँच चुके अजनाला के शहीदी कुँए के उक्त मामले में राज्य व केंद्र सरकार की कारगुजारी के प्रति नराज़गी प्रक्ट करते हुए कहा था कि कुँए में से निकली अस्थियों तथा मिट्टी की अभी तक न तो कोई जाँच ही करवाई गई है और न ही अस्थियों को सरक्षंण देने के लिए पुरातत्व विभाग ने ही कोई पहल की है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि विशेषज्ञों द्वारा अस्थियों का रख-रखाव न रखे जाने के कारण कुँए में से साबुत निकाली गई अस्थियां तथा खोपरियां भुरनी शुरू हो गई हैं और अगर भविष्य में इन अस्थियों को कोई बड़ा नुकसान पहुँचता है अथवा इनकी प्रमाणिकता को लेकर कोई विवाद खड़ा होता है, तो उसकी जवाबदेह केंद्र तथा राज्य सरकार होगी।
अलग से डिब्बी में लगाने के लिए
इंडीयन वर्कज़ ऐसोसिएशन (ग्रेट ब्रिटेन) को भी दी जानकारी
इंडीयन वर्कज़ ऐसोसिएशन, ग्रेट ब्रिटेन तथा शहीद ऊधम सिंह वेलफेयर ट्रस्ट, ब्रिमिंगम की मांग पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार को 26 मार्च को पत्र न. डी.डी. न. 4/16012/08/2014-सी.एस.आर.-2 जारी करके सलाहकार कमेटी से अजनाला के उक्त कुँए के संबंध में जानकारी मंगवाई थी, तांकि ब्रिटिश सरकार से उक्त सैनिकों की पहचान पता करने तथा इस नरसंहार के लिए मौजूदा ब्रिटिश सरकार से माफी मंगवाई जा सके। इस संबंध में श्री कोछड़ ने उक्त कुँए की पृष्ठ-भूमि तथा सन् 1857 के उक्त हिंदूस्तानी सिपाहियों के साथ हुए अमानविय वर्ताव तथा कुँए की खुदाई के पैदा हुई मौजूदा स्थिति की सारी जानकारी तस्वीरों सहित उक्त संस्थायों सहित कल्चरल, पुरातत्व एवं म्यूजीयम विभाग पंजाब को भेज दी है। 

Wednesday, April 16, 2014

जुर्म: शिकायतकर्ता ही हट जाते हैं शिकायत से पीछे

लूट की शिकायत करने वालों ने कहा मिल गए हैं उनके पैसे 
लुधियाना: 16 अप्रैल 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
जुर्म की घटनायों में वृद्धि लगातार जारी है। लोग पुलिस के पास शिकायत भी करते हैं लेकिन जाँच पड़ताल का काम शुरू होते ही अधिकतर लोग पीछे हट जाते हैं। इस तरह का नया मामला एक लूट के संबंध में भी सामने आया। किसी लुटेरा गिरोह के सदस्यों ने हरगोबिंद नगर इलाके में मंगलवार की देर रात लुटेरों ने एक घर में घुसकर महिला पर हमला कर दिया और तीन लाख रुपये व दस तोला सोने के जेवरात लेकर फरार हो गए। इस सारी घटना का पता तब चला जब हमले में घायल महिला को होश आया और उसने शोर मचाया। लूट की घटना का पता चलने पर थाना डिवीजन नंबर 6 की पुलिस मौके पर पहुंची और मामले की जानकारी ली। इस  इलाके में सनसनी फ़ैल गई। 
इस संबंध में घटना का शिकार हुए हरजीत सिंह ने बताया कि उनका हौज़री का काम है। उनका बेटा कुछ दिनों से बीमार था और मंगलवार को ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिली थी। इसी बीच मंगलवार देर रात को उनके घर में लुटेरे घुस आए। इत्तफ़ाक़ से इसी दौरान उनकी पत्नी हरप्रीत कौर बाथरूम जाने के लिए उठी थी। हरप्रीत ने लुटेरों को देख लिया तो लुटेरों ने उसके सिर पर किसी हथियार से वार कर दिया जिसके बाद वह वहीं गिर पड़ी और बेहोश हो गई। उसके बेहोश होते ही लुटेरे पूरी तरह से निश्चिन्त हो गए होंगें। प्राप्त विवरण के मुताबिक इसके बाद लुटेरों ने घर में पड़ी तीन लाख की नगदी व जेवरात उड़ा लिए और फरार हो गए। इस बीच बेहोश पड़ी हरप्रीत होश में आई तो उसने शोर मचा दिया। जिस पर हरप्रीत का पति और घर की ऊपरी मंजिल पर रहने वाले किरायेदार जागे। घर के अंदर सामान बिखरा पड़ा था। इसके बाद घटना की जानकारी पुलिस को दी गई। पुलिस ने सरे मामले की पड़ताल भी शुरू कर दी। इसके बी आड़ ही घटना में नाटकीय मोड़ आया। थाना डिवीजन नंबर 6 के एसएचओ संदीप वढेरा के अनुसार सुबह हरजीत सिंह ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर शिकायत की थी। मगर उसके बाद कोई बयान दर्ज कराने नहीं आया। शाम होने पर उन लोगों ने लिखकर दे दिया कि उनके पैसे मिल गए हैं। बहरहाल, पूरे मामले की जांच की जा रही है। अब देखना है कि हकीकत कब सामने आती है। लूट की वारदात फ़र्ज़ी थी या फिर लूट का शिकार हुए लोग किसी दबाव, घबराहट या झमेले के डर से पीछे हट गए। 

Tuesday, April 15, 2014

धर्मकर्म: श्री अर्धनागेश्वर एवं शिव परिवार का मूर्ती स्थापना दिवस

 बलदेव गुप्ता कोयले वाले करेंगे पूजा और मूर्ती स्थापना

लुधियाना: 17 अप्रैल 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
लुधियाना में धर्म कर्म के आयोजनों में तेज़ी जारी है। कहीं मूर्ति स्थापना, कहीं लंगर, कहीं भजन संध्या और कहीं कलश स्थापना।  कथा और कीर्तन से एक बार फिर पूरे माहौल को धार्मिक रंग में रंगने के प्रयास जोरों पर हैं। महंत कृष्ण बावा और महंत गौरव बावा के कृपा पूर्ण प्रयासों  से

लुधियाना में प्राचीन हनुमान मंदिर ठाकुर द्धारा नौहरिया की तरफ से एक शानदार आयोजन 20 अप्रैल को किया जा रहा है।  इस शुभ अवसर पर श्री अर्धनागेश्वर एवं शिव परिवार का मूर्ती स्थापना दिवस  धूमधाम से होगा। इस में श्री गणेश जी, पार्वती जी और नंदी जी की भव्य मूर्तियां स्थापित कीं जाएंगी।  इस  मौके पर श्री बलदेव गुप्ता कोयले वाले मूर्ती स्थापना और पूजा अर्चना करेंगे। पूजा और मूर्ती स्थापना सुबह 9 बजे होगी जबकि भंडारा दोपहर को 12 बजे होगा। मंदिर प्रबंधकों ने सभी भक्तों को इस अवसर पर प्रेम से निमंत्रित किया है। शिव परिवार का गुणगान पूरी श्रद्धा से होगा। प्रबंधन कमेटी ने याद दिलाया है कि शिव परिवार का गुणगान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।  को लेकर भक्तों में बहुत उत्साह है। 

श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर में कलश स्थापना 

लुधियाना: श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर (निजानन्द धाम) सभा के  तत्वविधान में 18 से 20 अप्रैल 2014 तक कलस स्थापना के लिए एक विशेष आयोजन हो रहा है। इसके साथ ही परमहंस बाबा दया राम स्मृति महोत्स्व भी होगा। गौरतलब है कि यह मंदिर गिल नहर के साथ साथ दोराहा रोड पर पाम एन्क्लेव, सिधवां केनाल बाईपास, लुधियाना में सुशोभित है। दिनांक 18 अप्रैल शुक्रवार को श्री श्री 108 महाराज जी जगत राज जी के करकमलों द्धारा अखंड परायणों का शुभरंभ होगा जबकि पूर्णाहूति 20 अप्रैल 2014 को प्रात 11 बजे होगी।इसके बाद 12 बजे कलश स्थापना होगी और 12 बजे से बाद दोपहर 2 बजे तक महाराज श्री जी के प्रवचन होंगें। भजन कीर्तन भी होगा और दोपहर 2 बजे भण्डारा भी होगा जिसमें महाराज की कृपा से प्रसाद का अटूट वितरण होगा। संगत बहुत दूर दूर से आएगी इस लिए अपना स्थान समय पर ग्रहण करें।  

Sunday, April 13, 2014

पंजाब में भी छाया केजरीवाल का जादू

जगह जगह हुए गर्मजोशी से स्वागत-सड़कों पर जुटी लाखों की भीड़
लुधियाना, अप्रैल 13, 2014: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
लगता है दिल्ली और देश के अन्य भागों की तरह अब पंजाब में भी केजरीवाल का जादू छाने लगा है। लोग सैलाब की तरह केजरीवाल की एक झलक पाने के लिए उमड़े आये। गर्मी के इस मौसम में साईकल कई कई किलोमीटर पैदल चल कर तो कई साईकल पर सवार होकर केजरीवाल की एक झलक पाने चले आये।  इनमें बच्चे भी थे और बज़ुर्ग भी। यूं लगता था जैसे लुधियाना की सड़कों पर जनता का सागर लहरा रहा हो जो अपने विरोध में आई हर चीज़ को बहा ले जायेगा। इस रोड शो के सामने बड़े बड़े स्टार प्रचारक फीके पड़ते नज़र आये। "नायक" फिल्म का वह सीन जिसमें हार पकड़ कर रास्ते में बैठा एक अपाहिज बच्चा बहुत मुश्किल ज़रा सा खिसकता है और हार उठा कर अनिल कपूर से कहता है कि यह देश भी मेरी तरह लंगड़ा हो गया है इसे उठा कर चला दीजिये। वह सीन लुधियाना में अलग अलग रूप लेकर बार बार साकार होता नज़र आया। और तो और पल के ऊपर से गुज़रे तो नीचे बने चतर सिंह पार्क में जमा सीटू कार्यकर्तायों ने केजरीवाल को कामरेड अरविन्द ख कर अभिवादन किया और नीचे उनके दरम्यान आने को भी ही कहा। जवाब में केजरीवाल केवल मुकराये और आगे बढ़ गए लेकिन इस मुस्कराहट में बहुत कुछ था जो समय आने पर सामने आएगा।
गौरतलब है कि लुधियाना से लोक सभा प्रत्याशी श्री फुलका ने लुधियाना में विशाल रोड शो का आयोजन किया, जिसमें लगभग दो लाख की संख्या में लोक उपस्थित हुए और श्री अरविंद केजरीवाल का लुधियाना में स्वागत किया। श्री केजरीवाल एवं श्री फुलका से मिलने के लिए इतनी तादाद में भीड उमड आई कि रोड शो का आगे बढना बहुत मुश्किल हो गया था।
यह रोड शो 25 स्टाप पर रुका। हर एक स्टाप पर हजारो की तादाद में लोग एकत्रित हुए। ना केवल सदस्य और स्वयंसेवक वहां पर मौजूद थे किंतु लोग अपनी दुकानों और घरों से दौडते हुए केजरीवाल जी से मिलने को आए।
श्री केजरीवाल लोगों का प्यार और समर्थन देख कर बहुत खुश हुए और पूरे रोड शो के उपरांत उन्होनें सभी से हाथ मिलाया एवं फूलों की मालाऐं और सिरोपे भी स्वीकार किए। कुछ सर्मथक श्री केजरीवाल जी से मिलकर इतने प्रसन्न हुए कि उनकी आंखों से भावुकता में अश्रुधारा बह निकली।
औरतों और बच्चों की प्रतिक्रिया अपरिहार्य थी। बहुत से बच्चे श्री केजरीवाल जी की जीप पर चढ गये और उन्हें मालाएं पहना कर सम्मानित करते हुए फोटो खिंचवाने लगे। उन्होनें केजरीवाल जी का ऑटोग्राफ भी लिया। बस्ती जोधेवाल में एक युवती दौडती हुई श्री केजरीवाल जी की जीप की तरफ आई और कहा ‘‘देश को बचा लो !’’ शुरु से लेकर आखिर तक केजरीवाल जी की जीप के पीछे लगभग 4 किलोमीटर तक काफिला था जो उनके समर्थकों का पार्टी के प्रति समर्पण का परिचय दे रहा था।
आप प्रत्याशी श्री एच.एस.फुलका ने कहा यह कोई रैली नहीं, यह एक क्रांति है। इस रोड शो के द्वारा पंजाब में भ्रष्ट नेताओं के अंत का आरंभ किया जाता है। लुधियाना में लोगों की प्रतिक्रिया यह है कि अब उन्हें बदलाव चाहिए और वह इसके लिए अपने घरों से बिना डरे बाहर निकलने को तत्पर हैं।
13 अप्रैल की सुबह श्री फुलका जी लुधियाना से, केजरीवाल जी के साथ अहमदगढ में होने वाले रोड शो के लिये रवाना हुये। वहां पर भी लोगों की प्रतिक्रिया काफी अच्छी रही।  गुरदासपुर ने भी 12 अप्रैल को अपने समय काल की बहुत बडी रैली देखी।
पंजाब में लोगों की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि आम आदमी वर्तमान सरकार से तंग आ चुका है और वह हर हाल में बदलाव चाहता है। लोगों को केजरीवाल में बदलाव का नायक नज़र आ रहा है। फिल स्टारों को अपना स्टार प्रचारक बनाने वाले राजनीतिक दल सकते में हैं।  उनके पास शायद अब कोई स्वच्छ सियासी चेहरा नहीं बचा है। मोदी की जगराओं रैली में साडी सरकारी ताकत झौंक देने की बाद भी कुर्सियां खली पड़ीं थीं।
लोगों ने जो गर्मजोशी केजरीवाल के प्रति दिखाई उसे देख कर नेहरू और शास्त्री का ज़माना याद आने लगा है। अब देखना है कि केजरीवाल उन उम्मीदों पर कहाँ तक खरा उतर पाते हैं। अगर इस बार भी उम्मीद टूट गयी तो लोग वोट पर्ची को भूल कर बंदूक के रास्ते पर आ सकते हैं। इस लिए मामला केवल जीत हार का नहीं हिंसक क्रांति को रोकने का भी है। लोग जब तंग आते हैं तो बहुत कुछ कर गुज़रते हैं। उन्हें माओवादी रास्ते पर बढ़ने से अगर कोई रोक सकता है तो वह फ़िलहाल केवल केजरीवाल का जादू ही है। यह लम्बी देर तक नहीं चला तो देश के हालत अँधेरे हो सकते हैं। 

HSJ ने भेजा आरोप लगाने वालो को एक करोड़ की मानहानि का नोटिस

 कहा--झूठे आरोप लगाने वाले हुए बेनकाब
* पुलिस जांच में नहीं प्रस्तुत कर पाए तथाकथित व्यापारी आरोप 
* आरोपियों पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का मामला दर्ज न हुआ तो होगा आंदोलन 
लुधियाना: 13 अप्रैल 2014: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
खुद को तथाकथित व्यापारी बताकर हिन्दू सिख जागृति सेना पर वसूली करने के आरोप पुलिस जांच में झूठे साबित हुए हैं। वसूली के आरोप लगाने वाले लोग जांच अधिकारियों के समक्ष आरोप सिद्ध करने तो दूर तथ्य तक पेश नहीं कर पाए। हिन्दू सिख जागृति सेना ने पुलिस द्धारा की जांच की आरटीआई के माध्यम से हासिल की रिपोर्ट को आधार बनाकर हिन्दू सिख जागृति सेना पर आरोप लगाने वाले बंसत नगर निवासी अजय बहल पुत्र राम कृष्ण,चंडीगढ़ रोड स्तिथ एलआईजी फ्लैट निवासी दीपक तनेजा पुत्र सिकंदर लाल तनेजा,इस्लामिया स्कूल रोड निवासी सुखविन्द्र सिंह पुत्र चनन सिंह, निक्का मल चौंक निवासी सौरभ खन्ना पुत्र चरणजीत खन्ना को संगठन के लीगल एडवाईजर एडवोकेट संजीव मल्हौत्रा के माध्यम से भेजकर एक करोड़ की मानहानि का कानूनी नोटिस भेजा है। रविवार को शिवपुरी स्थित टूटीयां वाले मंदिर में हिन्दू सिख जागृति सेना और सहयोगी संगठनो के एकत्रित हुए सैंकड़ों कार्यकर्ताओ ने पुलिस कमिश्नर से आग्रह किया कि वे हिन्दू सिख जागृति सेना पर वसूली के झूठे आरोप लगाने वाले आरोपियों के खिलाफ की गई जांच के आदार पर उन पर आईपीसी की धारा 499,500,420,304,102 और 295-ए के तहत हिन्दू समाज की धार्मिक भावनाए आहत करने के आरोप में मामला दर्ज करें। हिन्दू सिख जागृति सेना के अध्यक्ष प्रवीण डंग और चेयरमैन अश्वनी कत्याल ने सैंकड़ों पदाधिक्कारियों व कार्यकर्ताओ की मौजूदगी में प्रशासनिक अधिकारियों को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर पुलिस प्रशासन ने झूठे आरोप लगाने वालों पर मामला दर्ज न किया तो संगठन के सदस्य सडक़ों पर उतर कर रोष प्रर्दशन करेंगे। उन्होने आरोप लगाया कि झूठे आरोप लगाने वालों का असली मकसद संगठन की तरफ से सनातन धर्म के प्रचार के लिए आयोजित किए जा रहे हनुमान चालीसा के पाठ के आयोजनों में विघ्न डाल कर सनातन धर्म के प्रचार को प्रभावित करना है। इसलिए इस बात की भी जांच की जाए कि इस साजिश के पीछे तथाकथित व्यापरियों के पीठे कौन सी ताकतें काम कर रहीं है। इसके लिए उन्होनें महानगर में धर्म परिवर्तन के लिए प्रयत्नशील एक तथाकथित बाबा का हाथ होने की शंका भी जाहिर की। उन्होनें बताया कि वसूली के आरोप लगाने वाले अजय बहल, दीपक तनेजा, सौरभ खन्ना के अतीत की भी जांच की जाए कि इन पर कौन कौन से मामले दर्ज है। इससे पूर्व संगठन सदस्यों ने हनुमान जंयती पर टूटीयां वाला मंदिर मे आयोजित होने वाले हनुमान चालीसा के पाठ की तैयारियों संबधी विचार विमर्श किया।

अरविन्द केजरीवाल ने लोगों के दिलों को छूया

केजरीवाल को लेकर लोगों में भावनाओं का तूफ़ान 

My letter to Arvind Kejriwal
अरविंद,  
आपकी खाँसी ठीक नहीं हो रही है ,पंजाब में भी पूरे दिन आप रोड शो के दौरान खांसते रहे .यह ठीक नहीं है सर ! आपके पास रिसोर्स नहीं हैं,उम्मीदवार अपने थोडे बहुत पैसों से और गरीब जनता से मिले थोडे से चंदे से लड रहे हैं ! हरिद्वार की उम्मीद कंचन भट्टाचार्य चौधरी बता रही हैं कि ग्रामीन भारत में आप CULT का स्टेटस लेते जा रहे हैं !सुना है आप के लगभग ४५० उम्मीदवारों में से हर एक चाहता है कि अरविंद एक बार कुछ घंटों के लिये ही सही उनके चुनाव क्षेत्र में आ जायें ...पैसे नहीं हैं,समय नहीं है ...मध्य प्रदेश में खंडवा के लोगों ने तो घर-घर दान लेके इतना इकट्ठा किया कि एक बार आप भी हेलिकोप्टर से fatafat उनसे मिल लो !

खाँसी ही नहीं ,आपको सांस की भी दिक्कत है,मुझसे ज्यादा कौन जानेगा...मुझे भी है...आप कैसे दिल्ली के लिये ३ डिग्री तापमान में सड़क पर सो गए ऐसे में यह इतिहास है ! जिनको डियाबिटीस (मधुमेह) है वो भी बतायेंगे की १४ दिन तो क्या २ दिन का उपवास रखना अपनी जान को हथेली पे रखने जैसा है ! आपका schedule बनारस,हरियाणा,दिल्ली, चंडीगढ़, गुजरात,महाराष्ट्र,कर्नाटक,दिल्ली,पंजाब चल ही रहा है...रुक नहीं रहा....आप छह घंटे बीमार पड जाते हो तो विरोधियों की सांस में सांस आती है...स्याही, आरोप, किचड,

थप्पड , घूंसा,अंडे...सब चल रहा है और इसी के साथ आप लाली और नाचिकेता जैसे घोर विरोधियों से मिल उनका मन भी जीत रहे हो....

देश में मुझ जैसो का जोश,उम्मीद चरम पर है,मेरे विदेश में रहने वाले देसी दोस्तों का भी ...

अब तो बदलेंगे,अब तो खडे होंगे,अब तो अपनी सड़क नलियां खुद बनायेंगे,अब तो अपना और अपने वतन का भाग्य स्वयम लिखेंगे !!

लोकमान्य तिलक को स्वराज मांगने पर बर्मा में 6 वर्ष कैद व मौत नसीब हुई ....आज 106 साल बाद हम वो स्वराज लेके रहेंगे !! आप निश्चिन्त रहो !!

बस अपना ख्याल रखो अपनी सेहत का ख्याल रखो,नहीं कह सकता की आराम करो पर अपना ख्याल रखो....अभी बहुत कुछ होना है,यह सपना भारत ही नहीं हर उस देश में जाना है जहाँ भारत जैसे हालात है..जहाँ भी मैं और आप जैसे आम आदमी हैं !!

Obviously,
Kishlay Sharma 

(Twitter : @kishlaysharma एक आम आदमी (आपको ऐसे खत कोई और नहीं लिखेगा)

बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर की 123 वीं वर्षगाँठ पर :

Sun, Apr 13, 2014 at 6:13 PM
दलित वर्ग की राजनैतिक चेतना और परिपक्वता से  मुख्यधारा के समाज को सीखने की जरुरत है !
14 अप्रैल इस तथ्य की गहराई को समझने के लिये सबसे प्रासंगिक दिन 
Courtesy photo
यह शीर्षक थोड़ा सा अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है लेकिन यदि पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर इस पक्ष पर थोड़ा सा गंभीर चिन्तन करें तो निश्चितरूप से वास्तविक जनतंत्र की परिकल्पना दलित वर्ग के नेतृत्व में एक व्यापक राष्ट्रीय आन्दोलन के माध्यम से सम्भावित हो सकती है।  
बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर शायद देश के एक मात्र ऐसे व्यक्तित्व और मार्गदर्शक हैँ जो आज भी दबे कुचले वर्गों के बीच जीवंत हैं। डॉ० अम्बेडकर के विचार समाज के जिस वर्ग के सम्मान ,समानता और अधिकारों को सुनिश्चित करके देश की मुख्यधारा से जोड़ने की पैरवी करते हैं, वह वर्ग सीधे सीधे उनके विचारों को आत्मसात करता है, प्रेरणा और दिशा लेता है। वह दलित वर्ग के आत्मविश्वास और ऊर्जा का माध्यम  है।

दलित और आदिवासी मात्र दो ऐसे  वर्ग या समुदाय हैं जो अपने मुक्तिदाताओ डॉ ० अम्बेडकर और बिरसा मुण्डा को अपने जीवन में सबसे ज्यादा महत्व देते हैं जबकि देश के अधिकतर अन्य समुदाय अपने वैचारिक विश्वासों से ज्यादा अपने धार्मिक आस्थाओ को महत्व देते हैं। विचार और आस्था का यह असहज रिश्ता ही आज मुख्यधारा के समाज की  सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। जबकि दलित और आदिवासी समुदाय के अन्दर इस  मुद्दे पर गहरी स्पष्टता है।  इस तथ्य के अन्दर एक व्यापक सन्देश छिपा हुआ है।
14 अप्रैल का दिन इस तथ्य की गहराई को समझने के लिये सबसे प्रासंगिक दिन है।प्रत्येक वर्ष  14 अप्रैल को दिल्ली का संसद मार्ग , 14 अक्टूबर को नागपुर की दीक्षा भूमि और 6  दिसम्बर को मुम्बई का चैत्य भूमि स्थल इसके गवाह होते हैं। जहाँ लाखों की तादाद में स्वतः स्फूर्त तरीके से देश भर के दलित अपने पूरे परिवारों के साथ अपने मुक्तिदाता को नमन करने पूरे जोशखरोश के साथ पहुँचते है। इन आयोजनो का  कोई केंद्रीय आयोजक नहीं होता है और न कोई अपील या निमन्त्रण भेजा जाता है। यह गुलामी के खिलाफ मुक्ति का महापर्व जैसा आभास कराता है।5  से 15 लाख की तादाद में अपने मुक्तिदाता को नमन करने पहुँचा  दलित वर्ग का यह स्वतः स्फूर्त और स्वानुशसित जन समुदाय समानता और आत्मसम्मान की भावना से भरा होता है। आज़ादी के 66 वर्षो में इस महापर्व जैसा कोई भी दूसरा उदाहरण आज तक नहीं मिला है।  
इन तीन महापर्वो में बिकने वाला आंबेडकर साहित्य पूरे देश में दूसरे महापुरुषों के पूरे साल में बिकने वाले साहित्य से कई गुना होता है। जिसे खरीदनेवाले कोई दलित बुद्धिजीवी वर्ग न होकर आम निम्न दलित व्यक्ति महिला ,पुरुष और बच्चे होते हैं। यह पुरे देश के सामने सम्मान, समानता और अधिकार के संघर्ष का एक जीवंत उदाहरण है। जिसे  14 अप्रैल को दिल्ली के संसद मार्ग में , 14 अक्टूबर को नागपुर की दीक्षा भूमि में या फिर 6 दिसम्बर को मुम्बई के चैत्य भूमि स्थल में महसूस किया जा सकता है।
इतना ही नहीं देश भर में शायद आंबेडकर जयंती एक मात्र ऐसा पर्व है जिसे पूरे देश में समुदाय के द्वारा सामूहिक रूप से मनाया जाता है। प्रभातफेरी से शुरू होकर देर रात तक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन देश भर में गॉवो से लेकर शहरो की दलित बस्तीओ में नए वस्त्रो से सजे धजे स्त्री पुरुष और बच्चे इस महापर्व के महत्त्व का अहसास बहुत आसानी से करा देंगे।
यह महज़ संयोग नहीं है बल्कि प्रत्यक्ष सत्य है कि देश भर में डॉ ० आम्बेडकर की 98 % प्रतिमाएँ दलित समुदाय ने लगवाई हैं जबकि गांधीजी की 98 % प्रतिमाएँ सरकार के द्वारा स्थापित की गई हैं। यह दलित वर्ग की राजनैतिक चेतना और परिपक्वता का ज्वलंत उदाहरण है। 

 गांधी से लेकर मार्क्स तक की  विचारधारायें किताबों में बंद हैं या फिर कुलीन वर्ग की बैठको में बुद्धि विलास के काम आती हैं। लेकिन आम जनता या फिर मुख्यधारा के समाज न तो उससे कोई दिशा ले पाते हैं और न ही प्रेरणा !!!!!!
डॉ अम्बेडकर का विचार और साहित्य अपने वर्ग से सीधे संवाद करता है।  उसे प्रेरणा और ऊर्जा देता है।
अब समय आ गया है जब यदि हमें वास्तविक जनतंत्र चाहिये जो समानता, सबको बराबरी के अधिकार और अवसर देने की गारन्टी देता हो तो वह मुक्ति की वास्तविक और अन्तिम लड़ाई दलितों के नेतृत्व में ही सम्भव है।
फैसला हम सबको मिलकर करना है। ।!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
डॉ ०  अम्बेडकर की 123 जयन्ती पर आप सभी को अभिनन्दन !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

ARUN KHOTE
राष्ट्रीय भूमिश्रम  एवं न्याय आन्दोलन
National Movement For Land, Labor & Justice-NMLLJ
4A/ 98 , Vishal Khand-4 , Gomti Nagar,
Lucknow -226010 Uatter Pradesh (INDIA)
Mob: 91#7703047590

Saturday, April 12, 2014

श्री मद भागवत कथा के संदर्भ में प्रचार सामग्री जारी

Sat, Apr 12, 2014 at 3:23 PM
अवध पब्लिक वेल्फेयर सोसाईटी द्धारा विशेष आयोजन 
लुधियाना: 12 अप्रैल 2014: (राजेश मिश्रा//पंजाब स्क्रीन): 
अवध पब्लिक वेल्फेयर सोसाईटी द्वारा शिव मन्दिर गली .5 प्र्ताप नगर के सहयोग से इस बार 13 अप्रैल से लेकर 20 अप्रैल तक चलने वाली श्री मद भागवत कथा के प्र्चर प्र्सर हेतु कैलंडर ,पोस्टर, निमंत्रण पत्र आदि सामग्री मन्दिर प्रागण में सोसाईटी तथा मन्दिर के प्र्धान श्री पी.एन.पाठक राम रूप शुक्ल ने जारी की इस अवसर पर मन्दिर में उपस्थित सोसाईटी तथा मन्दिर के सदस्यो को संबोधित करते श्री.पी.एन.पाठक ने कहा की शिव मन्दिर में इस बार 13 अप्रैल से लेकर 20 अप्रैल तक श्री मद भागवत कथा आयोजित की जा रही है जिसमे प्रमुख संत ब्यास पीठ स्वामी दयानंद सरस्वती जी महाराज अपनी संगीतमय कथा द्वारा श्र्धालुयो को रसभोर करेगे कथा रोजाना साय.7 बजे से आरम्भ होगी 13 अप्रैल को मन्दिर से ही शोभा यात्रा आरम्भ होगी जिसमे भारी संख्या में लोग शामिल होगे इस कथा में मुख्य अतिथि पुर्वांचल समाज के संरक्षक उद्योगपति श्री टी.आर.मिश्रा, दिनेश तिवारी होगे 20 अप्रैल को अमृतमय भंडारा होगा जिसके लिए सदस्यो को जिमेवारी दी गई इस अवसर पर मन्दिर संरक्षक रघुवंशमणि शर्मा , .के.त्रिपाठी ,सुखराम आज़ाद ,राम क्रिशन पांडे ,राम रतन शुक्ल ,राजेश मिश्रा ,संतोष वर्मा ,अम्बिका प्र्साद पांडे , मानिक राम तिवारी ,राज बहादुर सिंह ,मदन लाल चावला ,कुल्दीप शर्मा , नंद किशोर शर्मा , जीया लाल वर्मा ,जगजीवन तिवारी आदि शामिल रहे