Saturday, January 14, 2012

आम लोगों की आवाज: सामुदायिक रेडियो मट्टोली

उन लोगों की आवाज जो खुद को व्यक्त नहीं कर सकते
वि‍शेष लेख                                                                                  सुधा एस. नंबूदिरी*
पिछले ढ़ाई वर्षों से केरल के सुदूर इलाके वायनाड़ के लोग यहां के एकमात्र सामुदायिक रेडियो- रेडियो मट्टोली की गूंज सुनकर जागते हैं। अगर आप वायनाड में हैं तो 90.4 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक आप रेडियो मट्टोली सुन सकते हैं। वायनाड़ जिले में मनंतवाड़ी, द्वारका में स्थित इस सामुदायिक रेडियों का संचालन वायनाड़ सोशल सर्विस सोसायटी द्वारा किया जाता है। यह स्वयंसेवी संगठन पिछले छत्तीस वर्षों से वायनाड़ जिले में विकासात्मक कार्य की गतिविधियों में सक्रिय है।
रेडियो के निदेशक थॉमस जोसेप थेरकम अपनी खुशी बयां करते हुए कहते हैं- रेडियो मट्टोली की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई और यह अपने आप में सफलता की कहानी है। नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार कुल आबादी में से 24.05 प्रतिशत दैनिक श्रोता हैं। जिले के जनसांख्यिकी आंकडों के अनुसार (2011 की जनगणना के मुताबिक) यह संख्या 2,00,056 लोगों तक पहुंच गई है। लेकिन यदि साप्ताहिक और किसी खास अवसर पर इसे सुनने वाले लोगों को शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या 74.05 प्रतिशत (6,10,539) तक पहुंच जाएगी। इसका अन्य रोमांचक पहलू यह है कि सामुदायिक रेडियो कार्यक्रम सुनने के लिए 56 प्रतिशत लोग रेडियो सेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि मट्टोली सुनने के लिए 40 प्रतिशत लोग अपने मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं।

     श्री थेरकम के अनुसार व्यापक ज्ञान, प्रौद्योगिकी, जागरुकता और सशक्तिकरण आदि के लिए सामुदायिक रेडियो एक ऐसा संपूर्ण उपकरण है जो श्रोताओं के प्रति लक्षित है। अन्य मीडिया माध्यमों जैसे समाचारपत्रों अथवा टेलीविजन की तुलना में रेडियो का स्थान हमेशा अधिक मज़बूत स्थिति में रहा है। कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही सामाचारपत्र अथवा पैम्फलेटो  को पढ़ सकता है। इसके अलावा टेलीविजन देखने का तात्पर्य है उसे अपना समय देना और इसके लिए बिजली की भी आवश्यकता होती है लेकिन रेडियो सुनते हुए कोई अन्य काम भी साथ साथ किया जा सकता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि वायनाड के लगभग  30,000 परिवारों के पास बिजली कनेक्शन नहीं है।रेडियो मट्टोली केरल में प्रथम सामुदायिक रेडियो सेवा है और राज्य में एकमात्र इलेक्टॉनिक मीडिया माध्यम जो प्रतिदिन जनजातीय भाषाओं में कार्यक्रम का प्रसारण करता है। शिक्षा, सूचना, स्वास्थ्य आदि से संबंधित कार्यक्रमों का प्रतिदिन दोपहर 2:30 बजे और रात 8:05 बजे प्रसारण किया जाता है। केरल राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद् के सहयोग से रेडियो मट्टोली एक विशेष विज्ञान कार्यक्रम “नम्मा सस्त्रा” का भी प्रसारण करता है। यह स्थानीय भाषाओं में भी प्रसारित होता है। इसके अलावा गांधी जी के विचारों, अधिकारियों और जनता के बीच संबंधों, स्वास्थ्य कार्यक्रम, रोज़गार प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रमों, नवीन पाठ्यक्रमों आदि पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण भी किया जाता है। । समाज में समाजिक-आर्थिक बदलाव लाने के उद्देश्य पर आधारित लाभकारी सूचनाओं का प्रसारण करने के अपने उद्देश्य में यह सफल रहा है। श्री थेकरम का कहना है कि इस पर प्रसारित होने वाले अधिकांश कार्यक्रम स्थानीय लोगो द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं जिससे श्रोताओं पर इसका तत्काल भावात्मक जुड़ाव हो जाता है और संदेश प्रभावी रुप से ग्रहण हो जाता है। इसके लक्ष्य समूह में हाशिए पर खडे किसान, स्थानीय लोग, दलित, कृषि श्रमिक महिलाएं और बच्चे शामिल हैं इसलिए इस प्रकार का भावात्मक जुडाव आवश्यक है। विश्वास कायम करने के लिए इन लोगों का जुडाव आवश्यक है। रेडियो मट्टोली ने विद्यालयों में मट्टोली क्लबों की भी स्थापना की है। जिले के 288 विद्यालयों में से 91 विद्यालयों में मट्टोली क्लब हैं। इस क्लब के सदस्यों को मट्टोली पर अपने कार्यक्रम प्रसारित करने का अवसर प्राप्त होता है। इससे बच्चों के भीतर नेतृत्व क्षमता, सृजनात्मकता और जागरुकता का विकास होता है। उन्हें मीडिया जगत का अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जाता है।      58 लाख रुपए के शुरुआती निवेश के साथ रेडियो मट्टोली की शुरुआत हुई जिसका इस्तेमाल इसके बुनियादी ढांचे और रेडियो मट्टोली के एक वर्ष तक सुचारु रुप से चलने के लिए किया गया। आज इसे नाबार्ड, कॉफी बोर्ड, केरल राज्य कृषि वभाग और सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वरा सीमित व्यवसायिक विज्ञापनों का सहयोग प्राप्त है। यह सही है कि रेडियो मट्टोली उन लोगों की आवाज है जो अपने आप को व्यक्त नहीं कर सकते। यह  सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रुप से उन्हें आगे की राह पर प्रशस्त करता है।

*मीडिया और संचार अधिकारी(पत्र सूचना कार्यक्रम, कोचीन


सामुदायिक रेडियो संघ की मांग मंजूर

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