Wednesday, January 11, 2012

प्रवासी भारतीय दिवस – संकल्‍पना और साक्षात् के 10 वर्ष

प्रवासी भारतीय दिवस:56 देशों के प्रतिनिधियों ने  लि‍या भाग
वि‍शेष लेख                                                                                       राकेश बी. दुबे*
प्रवासी  भारतीय दिवस पर जयपुर राजस्थान में वेबसाईट लांच करते हुए प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह  उनके साथ त्रिनडाड और टोबेंगो की प्रधान मंत्री सुश्री कमला प्रसाद बिसेसर, राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल, मुख्य म्न्त्रिअशिक गहलोत और ओवरसीज़ भारतीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री व्यालार रवि भी नजर आ रहे हैं.
08 जनवरी, 2012 को भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रवासी भारतीय दिवस-2012 का उद्घाटन किया । प्रवासी भारतीय दिवसों की श्रृंखला में यह दसवां कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में त्रिनीडाड एवं टोबैगो की प्रधानमंत्री श्रीमती कमला प्रसाद बिसेसर मुख्‍य अतिथि थीं ।  09 जनवरी, 2012 को भारत की राष्‍ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने, दुनियां भर में अपने-अपने क्षेत्र में उल्‍लेखनीय उपलब्‍धियां प्राप्‍त करने वाले भारतीय मूल के 14 व्‍यक्‍तियों को प्रवासी भारतीय सम्‍मान से अलंकृत किया । इस वर्ष प्रवासी भारतीय दिवस में 56 देशों के 1500 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्‍सा लि‍या। प्रवासी भारतीय समुदाय के साथ भारत के जुड़ाव के इस अनूठे कार्यक्रम की संकल्‍पना किसने की, किन-किन रास्‍तों से गुजरकर वर्ष 2003 में प्रवासी भारतीय दिवस की शुरूआत हुई, इन बातों की जानकारी के लिए इतिहास पर एक सरसरी नज़र डाल लेना अभीष्‍ट होगा ।  

     प्रवास की संकल्‍पना, प्राचीन सभ्‍यताओं के समय से ही अस्‍तित्‍व में है । वैदिक सभ्‍यता से लेकर 18वीं शताब्‍दी तक इसका स्‍वरूप भारत में प्राय: ज्ञानार्जन के लिए, लोक कल्‍याण के लिए और धार्मिक अभिप्रायों से किए जाने वाले प्रवास का रहा है । बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद सम्राट अशोक ने ईसा-पूर्व तीसरी शताब्‍दी में अपने पुत्र एवं पुत्री को धार्मिक अभिप्राय से प्रवास पर भेजा था । दक्षिण भारत के राजेन्‍द्र चोल जैसे शक्‍तिशाली सम्राटों ने सुदूर पूर्व के देशों (वर्तमान मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया आदि) तक अपनी नौसेनाओं को भेजकर राजनैतिक-आर्थिक संबंध स्‍थापित किए जो अभी तक विद्यमान हैं । अल बरूनी, मेगस्‍थनीज, मार्को पोलो, ह्वेन सांग, इब्‍न बतूता आदि ने अरब एवं यूरोपीय देशों से आकर भारत में प्रवास किया था ।  मध्‍य एशिया के देशों से आए तुर्क, हूण, पठान, उज्‍बेक आदि का भारत में आगमन तो आक्रमणकारियों के रूप में हुआ था लेकिन वे बाद में यहीं के होकर रह गए और इस प्रकार वे भी भारत में अन्‍य देशों के प्रवासी ही माने जाएंगे । हजारों वर्ष तक भारतीय सभ्‍यता का अरब देशों एवं चीन, इंडोनेशिया, बर्मा, कम्‍बोडिया आदि देशों के साथ प्रत्‍यक्ष और यूरोपीय देशों के साथ अप्रत्‍यक्ष सम्‍पर्क/संबंध रहा है ।

     व्‍यापारिक उद्देश्‍यों के लिए बड़े पैमाने पर प्रब्रजन एवं प्रवास की शुरुआत 16वीं शताब्‍दी में हुई । वॉस्‍को डि गामा, कोलम्‍बस, पेदरो अलवरेस कबराल आदि जैसे महान नाविकों ने भारत, अमेरिका, ब्राजील जैसे देशों का समुद्री सम्‍पर्क यूरोपीय देशों से जोड़कर प्रवास के नए रास्‍ते खोल दिए । भारत के तटवर्ती प्रदेशों से व्‍यापारियों ने अफ्रीका महाद्वीप के देशों के साथ संबंध बनाना शुरू किया । गुजराती व्‍यापारियों ने वर्तमान केन्‍या, उगांडा, जिम्‍बाबवे, जाम्‍बिया, दक्षिण अफ्रीका में अठारहवीं शताब्‍दी में अपने कदम रखे । इन्‍हीं में से एक व्‍यापारी दादा अब्‍दुल्‍ला सेठ के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में महात्‍मा गांधी ने मई, 1893 में नटाल प्रान्‍त में पदार्पण किया । रंगभेद नीति के साथ उनका संघर्ष और प्रवासी भारतीय समुदाय के सम्‍मान की उनकी लड़ाई सर्वविदित है । अहिंसा और सत्‍याग्रह के सर्वथा नवीन साधनों से प्राप्‍त सफलता से वे जन-जन के मानस में प्रतिष्‍ठित हो गए । वर्ष 1915 की 09 जनवरी को वे भारत वापस लौटे और 22 वर्ष के प्रवास के बाद लौटे इस महान आत्‍मा से प्रेरणा लेकर इस दिवस को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है ।  

     दरअसल, प्रवासी भारतीयों के साथ भारत का औपचारिक संबंध तो था लेकिन एक निकटवर्ती, घनिष्‍ठ और आत्‍मिक जुड़ाव की आवश्‍यकता बहुत समय से महसूस की जा रही थी । नवम्बर, 1977 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित एक समारोह में तत्‍कालीन विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि दूर-दराज के देशों में बसे भारतवंशियों के साथ हमें अपना नाता और प्रगाढ़ करना होगा और कि भारत, इन प्रवासियों की सेवाओं, त्‍याग और संघर्ष को किसी प्रकार नहीं भूल सकता । प्रवासी भारतीयों के साथ अपने जुड़ाव को प्रगाढ़ करने के लिए किस प्रकार की नीतियां बनाई जाएं, कौन से साधन अपनाए जाएं और किस प्रकार का तंत्र तैयार किया जाए, इस पर चर्चा होती रही और फलस्‍वरूप 18 अगस्‍त, 2000 को विधिवेत्‍ता, संस्‍कृति कर्मी, कवि, राजनयिक एवं राजनेता डॉ लक्ष्‍मीमल्‍ल सिंघवी की अध्‍यक्षता में एक समिति का गठन विदेश मंत्रालय ने किया । इस समिति में पूर्व विदेश राज्‍यमंत्री श्री आर.एल. भाटिया, पूर्व राजनयिक श्री जे. आर. हिरेमथ, अन्‍तर-राष्‍ट्रीय सहयोग परिषद् के महासचिव श्री बालेश्‍वर अग्रवाल और राजनयिक श्री जे.सी शर्मा शामिल थे । समिति ने 20 से अधिक देशों का प्रत्‍यक्ष दौरा करके, विश्‍व भर के यथा-संभव अधिकतम प्रवासी भारतीय संगठनों से, पूर्व राजनयिकों से बातचीत करके और अपने संचित ज्ञान एवं अनुभव के आधार 19 दिसम्‍बर, 2001 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को दी जिसमें, अन्‍य बातों के साथ-साथ प्रवासी भारतीय दिवस 09 जनवरी को मनाए जाने और प्रति वर्ष प्रवासी भारतीय सम्‍मान दिए जाने की सिफारिशें भी शामिल थीं ।

     समिति ने पाया कि 19वीं शताब्‍दी में भारत में अंग्रेजी शासन के चलते, नए अवसरों की तलाश में और आर्थिक कारणों से बड़े पैमाने पर लोग दूसरे देशों में प्रवास पर गए । इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ब्रिटेन की संसद ने जब वर्ष 1833-34 में गुलामी प्रथा को समाप्‍त कर दिया और दुनियां भर में फैले उनके साम्राज्‍य को मजदूरों का अभाव सताने लगा तो गुलामी की एक नई तरकीब निकाली गई जिसे शर्तबंदी (अंग्रेजी में अग्रीमेंट- जिसका अपभ्रंश रूप गिरमिट पड़ गया) कहा गया । इसमें अधिकतम पांच वर्ष के अग्रीमेंट पर कामगारों को त्रिनीडाड एवं टोबैगो, गयाना, सूरीनाम, मॉरीशस और फीजी जैसे देशों में ले जाया गया । इन गिरमिटिया मजदूरों का जीवन, गुलामों से किसी प्रकार बेहतर नहीं था । प्रवासियों की दूसरी खेप, भारत की आजादी के बाद, पेशेवर कार्मिकों के रूप में अमेरिका, ब्रिटेन तथा कनाडा जैसे विकसित देशों में और इसके समानांतर एक धारा, तेल-समृद्ध खाड़ी देशों में कुशल और अर्ध-कुशल कामगारों के रूप में गई । वर्ष 1970 के बाद, उच्‍च कुशल एवं पेशेवर लोग, आगे की पढ़ाई के लिए या वैज्ञानिक एवं तकनीकी पदों पर काम करने के लिए गए । इस प्रकार, भारत के प्रवासी समुदाय में आज की स्‍थिति में लगभग 25 लाख लोग शामिल हैं और दुनियां में चीन ही संभवत: एकमात्र ऐसा देश है जिसका प्रवासी समुदाय, भारत जैसा विविध और विशाल है ।

     चीन की आर्थिक प्रगति में प्रवासी चीनियों के भारी योगदान को देखते हुए, प्रवासी भारतीयों के भारत से आत्‍मिक/आध्‍यात्‍मिक/सामाजिक जुड़ाव को देखते हुए और पश्‍चिम के देशों में अपनी कड़ी मेहनत के बल पर आर्थिक समृद्धि प्राप्‍त कर लेने पर अपनी मातृभूमि के प्रति कुछ करने की आकांक्षा से साक्षात्‍कार करते हुए समिति ने पुरजोर सिफारिश की कि इस विशाल प्रवासी भारतीय समुदाय से लाभ उठाने से पहले हमें उनकी समस्‍याओं एवं चिंताओं का समाधान करना होगा जैसे कि-  

1.      खाड़ी देशों में जाने वाले श्रमिकों के साथ भारत में भर्ती कंपनियां धोखाधड़ी करती हैं। 
2.      काम के दौरान मालिकों द्वारा उनके पासपोर्ट अपने कब्‍जे में ले लिए जाते हैं, उन्‍हें पूरी मजदूरी नहीं दी जाती है, उनसे जानवरों की तरह काम लिया जाता है, उनका दैहिक शोषण किया जाता है ।
3.      भारतीय दूतावासों से उन्‍हें पर्याप्‍त मदद नहीं मिलती है । भारत में उनके परिवारी जनों की सुरक्षा नहीं की जाती है ।
4.      भारत लौटने पर उन्‍हें कस्‍टम अधिकारियों द्वारा परेशान किया जाता है ।
5.      अन्‍य देशों की नागरिकता गृहण कर चुके भारतीय मूल के व्‍यक्‍तियों को भारत आगमन के लिए विदेशियों की तरह वीसा लेना पड़ता है ।
6.      प्रवासियों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक, आर्थिक चिंताओं के समाधान के लिए भारत में उन्‍हें बहुत भटकना पड़ता है ।
7.      पूर्वी अफ्रीकी देशों में,  फीजी में तथा अन्‍य देशों में भी भारतीय मूल के व्‍यक्‍तियों के सामने राजनैतिक/सामाजिक/जातीय आधार पर संकट आने की स्‍थिति में उनकी सहायता के भारत को आगे आना चाहिए, अनिवासी भारतीयों को भारत में मताधिकार होना चाहिए, आदि आदि ।
भारत सरकार ने इन समस्‍याओं के समाधान के लिए इन 10 वर्षों में कई उल्‍लेखनीय कदम उठाए हैं- 
1.      खाड़ी देशों में या अन्‍यत्र भी, आपत्‍ति में आए साधनहीन प्रवासियों की सहायता के लिए 43 देशों में भारतीय समुदाय कल्‍याण कोष की स्‍थापना की गई है । इसमें अन्‍य के साथ-साथ, मुसीबतज़दा मजदूरों/घरेलू नौकर/नौकरानियों को रहने-खाने की व्‍यवस्‍था, सरकारी खर्च पर उन्‍हें भारत पहुंचाने की सुविधा और दुर्भाग्‍यवश मौत हो जाने पर पार्थिव शरीर को भारत लाया जाना शामिल है ।
2.      भारतीय मूल के व्‍यक्‍तियों को भारत की यात्रा के लिए लम्‍बी अवधि का एकमुश्‍त वीसा एवं रहने की अवधि में छूट प्रदान करने वाला पीआईओ कार्ड दिया गया । बाद में इसका नवीकृत रूप ओसीआई कार्ड दिया जा रहा है । इससे भारतीय मूल के व्‍यक्‍ति लंबी अवधि तक बिना वीजा के भारत आ-जा सकते हैं । यह योजना वर्ष 2005 से लागू है और अब तक 8 लाख से अधिक ओसीआई कार्ड जारी किए जा चुके हैं ।  
3.      सैकड़ों वर्ष पूर्व गए प्रवासियों की चौथी-पांचवीं पीढ़ी अपने पैतृक स्‍थान की खोज में बहुत परेशानियों का सामना करती थी । इसके लिए वर्ष 2008 से ट्रेसिंग द रूट्स नाम की योजना चलाई जा रही है ।
4.      प्रवासी भारतीयों की युवा पीढ़ी को आधुनिक भारत का साक्षात्‍कार कराने के लिए ‘भारत को जानो’ (know India program) चलाया जा रहा है । अलग-अलग राज्‍यों के सहयोग से चलाई जाने वाली योजना में 18 से 26 वर्ष के युवाओं को भारत की प्रायोजित यात्रा कराई जाती है । अब तक 17 यात्रा-कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं जिनमें पांच सौ से अधिक युवा हिस्‍सा ले चुके हैं ।  
5.      युवा पीढ़ी को भारत में उपलब्‍ध उच्‍च स्‍तरीय शिक्षा की सुविधा देने के लिए, उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में उनके लिए स्‍थान आरक्षित किए गए हैं और प्रति वर्ष 100 विद्यार्थियों को 5000 अमेरिकी डॉलर प्रति विद्यार्थी की दर से छात्रवृत्‍ति दी जाती है । अलग से पीआईओ विश्‍वविद्यालय स्‍थापित किए जाने की योजना पर काम चल रहा है ।
6.      ओवरसीज इंडियन यूथ क्‍लब, स्‍टडी इंडिया प्रोग्राम,  आदि के द्वारा नई पीढ़ी को भारत से जोड़ने का काम किया जा रहा है ।
7.      वर्ष 2003 से लगातार प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन 7 से 9 जनवरी तक किया जाता है जिसमें भारत के प्रधान मंत्री, राष्‍ट्रपति, कई केन्‍द्रीय मंत्री, राज्‍यों के मुख्‍यमंत्री तथा मंत्रालयों/विभागों के उच्‍चाधिकारी शामिल होते हैं । प्रवासी भारतीय दिवस, एक उल्‍लेखनीय आयोजन बन गया है । अब तक दिल्‍ली में 6 और मुंबई, हैदराबाद, चैन्‍नई और जयपुर में एक-एक प्रवासी भारतीय दिवस आयोजित किए जा चुके हैं । औसतन 1500 से 1800 प्रतिनिधि इन आयोजनों में प्रति वर्ष हिस्‍सा लेते हैं ।
8.      लघु प्रवासी दिवसों की योजना शुरू की गई है । अब तक न्‍यूयॉर्क, सिंगापुर और कनाडा में ऐसे लघु प्रवासी दिवस मनाए गए हैं । अगला दिवस, दुबई में आयोजित किया जाएगा ।
9.      अपने-अपने प्रवास के देश में उल्‍लेखनीय सफलताएं प्राप्‍त करने वाले, मानव सेवा के क्षेत्र के काम करने वाले तथा भारत का नाम रोशन करने वाले व्‍यक्‍तियों/संस्‍थाओं को प्रति वर्ष राष्‍ट्रपति द्वारा सम्‍मानित किया जाता है । वर्ष 2012 तक 133 व्‍यक्‍तियों एवं 03 संस्‍थाओं को उनकी उपलब्‍धियों/सेवाओं के लिए सम्‍मानित किया जा चुका है ।
10.  अनिवासी भारतीयों द्वारा भारतीय महिलाओं से विवाह के बाद विदेश ले जाकर उन्‍हें परेशान किए जाने की घटनाओं को देखते हुए, प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय द्वारा एक विशेष प्रकोष्‍ठ का गठन करके तथा अलग-अलग देशों के महिला संगठनों की सहायता से परित्‍यक्‍त/सताई गई महिलाओं की सहायतार्थ कदम उठाए जा रहे हैं।

     इतना सब होने के बावजूद, अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है । अनिवासी/प्रवासी भारतीयों को ओसीआई कार्ड प्राप्‍त करने में, भारत में छूट गई अपनी अचल सम्‍पत्‍तियों की सुरक्षा में, यहां चलने वाले मुकदमों में बार-बार पेश होने में, चैरिटी के कार्यों हेतु उचित चैनल उपलब्‍ध न होने के रूप में, उच्‍च स्‍तरीय स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं स्‍थापित करने में स्‍थानीय स्‍वीकृतियां आसानी से उपलब्‍ध होने में, उचित पारिश्रमिक और आसान सेवा शर्तें न होने के कारण उत्‍कृष्‍ट शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्‍थानों में अपनी सेवाएं देने में अड़चनों/समस्‍याओं का सामना करना पड़ रहा है । परन्‍तु इतना तय है कि प्रवासी भारतीयों के साथ एक सक्रिय एवं व्‍यापक संपर्क/संबंध/सहयोग के कार्यक्रम के रूप में वर्ष 2003 से प्रारम्‍भ, प्रवासी भारतीय दिवस ने हमें एक रास्‍ता दिखाया है । हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि यह कार्यक्रम, केवल एक आर्थिक गतिविधि बनकर न रह जाए अपितु इसका सरोकार, प्रवासी भारतीयों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक एवं भावनात्‍मक चिंताओं से भी बना रहे ।  

  इसके लिए न केवल प्रवासी भारतीय समुदाय की विशालता, विविधता और उपलब्‍धियों को भी भारतीय जनता के सामने रखना होगा और उनकी समस्‍याओं, भारत से उनकी अपेक्षाओं को भी समझना होगा बल्‍कि अपने नीतिगत ढांचे में और बदलाव लाकर, प्रवासियों के प्रति अनुकूल वातावरण बनाकर, उनकी सेवाओं का लाभ उठाते हुए, उनके भारत के साथ गहरे अनुराग को सराहा जाना होगा ।           ..............

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