Thursday, October 27, 2011

नाम में भी बहुत कुछ रखा है

 महाराष्ट्र में 280 बच्चियों के नाम बदलने का फैसला 
जनसत्ता, 25 अक्तूबर, 2011:बेटियों के नाम: 
अगर किसी को ऐसे नाम से पुकारा जाए जिसका मतलब उसे यह अहसास दिलाना हो कि वह इस दुनिया में गैरजरूरी है तो हर बार बुलाने पर उसकी मन:स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। भारत में बेटियों को लेकर ऐसी मानसिकता कोई आश्चर्य नहीं पैदा करती। महाराष्ट्र में कुछ इलाकों में यह प्रथा रही है कि बेटे की उम्मीद में अगर किसी परिवार में बेटी पैदा हो जाती है तो उसका नाम ही ‘नकुशा’ रख दिया जाता है। इस शब्द का अर्थ है ‘अवांछित’। समझा जा सकता है कि किसी लड़की को परिवार, समाज या स्कूल में इस शब्द से संबोधित किए जाने पर कैसा लगता होगा। कहते हैं, नाम में क्या रखा है। लेकिन यह उदाहरण बताता है कि नाम में भी बहुत कुछ रखा है। इस रिवायत से निजात दिलाने और ‘नकुशा’ नाम की लड़कियों को दूसरा नाम देने की पहल खुद महाराष्ट्र सरकार ने की है। इसके तहत सतारा जिले के ग्रामीण इलाकों में ऐसी दो सौ अस्सी बच्चियों की पहचान की गई और उनके अभिभावकों से बात कर उनके नाम बदलने का फैसला किया गया। फिर बाकायदा एक समारोह आयोजित कर ‘नकुशा’ नाम की लड़कियों के परिवारों की पसंद के मुताबिक पूजा, नीता, आशा और ऐश्वर्या आदि नाम रखे गए। किसी को अपमानित करने वाली स्थितियों से निजात दिलाने की लगातार कोशिश एक सभ्य और प्रगतिशील समाज की निशानी है। महाराष्ट्र सरकार की यह पहल इसलिए भी सराहनीय है क्योंकि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव, वोट की फिक्र या कई दूसरे कारणों से सामाजिक सुधारों के मामले में सरकारें आमतौर पर कोई जोखिम नहीं लेना चाहतीं। यही वजह है कि परंपरा के नाम पर समाज या परिवार में ऐसे व्यवहार भी खुलेआम निबाहे जाते हैं जो मानवीय तकाजों के खिलाफ होते हैं।
दरअसल, पितृसत्तात्मक ढांचे का मनोविज्ञान इस कदर गहरे पैठा है कि बहुत सारे लोग सिर्फ इसलिए किसी परंपरा का पालन करते रहते हैं क्योंकि उसके अर्थ और असर के बारे में सोचने का मौका उन्हें नहीं मिलता। खासतौर पर अपने बच्चों के मामले में लोग आमतौर पर वैसे भेदभावपरक व्यवहार बेझिझक निबाहते रहते हैं, जिनमें बेटे को तरजीह जाती है और बेटियों को हाशिये पर छोड़ दिया जाता है। एक औसत भारतीय परिवार बेटे की चाहत पूरी करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। यह अकारण नहीं है कि देश के बहुत सारे हिस्सों में बालकों के मुकाबले बच्चियों और इसी तरह पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों का अनुपात काफी चिंताजनक हद तक गिर गया है। हरियाणा में यह आंकड़ा प्रति एक हजार पुरुषों के मुकाबले महज सात सौ चौहत्तरस्त्रियों तक पहुंच गया है। इससे तरह-तरह की सामाजिक विसंगतियां पैदा हो रही हैं। हरियाणा में लड़के के विवाह के लिए लड़की ढूंढ़ने में हो रही मुश्किल इसका सिर्फ एक पहलू है। नकुशा नाम रखे जाने का चलन भले महाराष्ट्र के एक हिस्से तक सीमित रहा है, मगर बच्चियों को अवांछित मानने की मानसिकता बहुत व्यापक है। इसलिए बड़ी चुनौती इस मानसिकता को बदलने की है। इसमें सभी सरकारों और सामाजिक संस्थाओं को तत्परता दिखानी चाहिए। महाराष्ट्र को भी देखना होगा कि उसकी पहल महज नाम का बदलाव होकर न रह जाए।(जनसत्ता से साभार)   

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