आज भी समझा जाता है बच्ची के जन्म को बोझ
लगातार बढ़ रही है बाल झूले में छोडी जाने वाली बच्चियों की संख्या अमृतसर से गजिंदर सिंह किंग
आज हमारे देश में महिला शक्तिकरण को ले कर कई बार चर्चा होती रही है, लेकिन अमृतसर में इस महिला शक्तिकरण का एक काला चेहरा सामने ला रहा है, जहाँ आए दिन लोग आपनी बच्चियों को जन्म दे कर फैंक जाते है, पिछले एक महीने में 6 बच्चियों को लोगो ने अमृतसर जिला प्रशासन की ओर से रेडक्रास भवन के बाहर पंगूड़ा स्कीम के तहत लगाए गए पंगूडे में रखा और चले गए. अमृतसर जिला प्रशासन की ओर से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए रेडक्रास भवन में चलाई गई पंगूड़ा स्कीम में लड़कियों को छोड़ने के मामले दिन प्रति दिन बड़ते जा रहे है. सन 2008 में चलायी गयी पंगूड़ा स्कीम में अब तक 43 बच्चे पंगूडे में आ चुके है, लेकिन सब से बड़ी हैरान करने वाली बात यह है, कि 2008 में 8 बच्चे 2009 में 9 बच्चे 2010 में 16 बच्चे और 2011 में 13 बच्चे और सब से बड़ी हैरान करने वाली बात यह है, कि पिछले एक महीने में 6 बच्चे यहाँ पर आ चुके है, जो एक खतरे की घंटी है वहीँ इस बात से प्रशासन के अधिकारी भी जानकार है, अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर का कहना है, कि जिस तरह से बच्चे यहाँ पिछले एक महीने में आए है.
उस से यह साफ़ साबित होता है, कि हमारे समाज में आज भी बच्ची के जन्म को बोझ समझा जाता है और कहीं न कहीं अन-पढ़ता इस पर बढ़ी हो रही है, जिस कारण यह आंकड़े दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे है, वहीँ उन का कहना है, कि आज जरुरत है, कि समाज में लोग बढ़-चढ़ कर आगे आए और इस को विरोध कर के लड़कियों और लड़कों में समानता रखे , साथ ही उन का कहना है, कि आज हमारे समाज का ताना बाना है, वह खराब है और दहेज़ प्रथा की सोच है और लड़कियों को अपनाने की जरूरत है, साथ ही उन का कहना है, कि प्रशासन लोगों की सोच बदलने के लिए कई प्रयास कर रहा है और परिणाम भी सार्थक हो रहे है, वहीँ इन बच्चियों के ऊपर उन का कहना है, कि इन बच्चियों को यहाँ छोड़ने के बाद इका-दूका लोग ही उन को मिलने के लिए आए थे, लेकिन ज्यादातर उन को मिलने के लिए कोई नहीं आता, इस से एक बात साफ़ साबित होती है, कि यहाँ पर आज भी लोग लड़कियों को अपनाने में गुरेज करते है.
उस से यह साफ़ साबित होता है, कि हमारे समाज में आज भी बच्ची के जन्म को बोझ समझा जाता है और कहीं न कहीं अन-पढ़ता इस पर बढ़ी हो रही है, जिस कारण यह आंकड़े दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे है, वहीँ उन का कहना है, कि आज जरुरत है, कि समाज में लोग बढ़-चढ़ कर आगे आए और इस को विरोध कर के लड़कियों और लड़कों में समानता रखे , साथ ही उन का कहना है, कि आज हमारे समाज का ताना बाना है, वह खराब है और दहेज़ प्रथा की सोच है और लड़कियों को अपनाने की जरूरत है, साथ ही उन का कहना है, कि प्रशासन लोगों की सोच बदलने के लिए कई प्रयास कर रहा है और परिणाम भी सार्थक हो रहे है, वहीँ इन बच्चियों के ऊपर उन का कहना है, कि इन बच्चियों को यहाँ छोड़ने के बाद इका-दूका लोग ही उन को मिलने के लिए आए थे, लेकिन ज्यादातर उन को मिलने के लिए कोई नहीं आता, इस से एक बात साफ़ साबित होती है, कि यहाँ पर आज भी लोग लड़कियों को अपनाने में गुरेज करते है.
4 comments:
आज 03-09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
यही विडंबना है ... दुर्भाग्यपूर्ण
कितनी बढ़ी विडंबना है ये की जिस नारी के बिना सृजन ही नहीं हो सकता उसी को पैदा होते ही अपने से दूर करता जा रहा है इंसान इसे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है | बहुत सुन्दर और सार्थक लेख |
sharmnaak !!
saarthak evam saamyik lekh.
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