Sunday, May 09, 2010

कोशिश जिंदगी के राज़ जानने की

जिंदगी क्या है ?  व्यक्ति कहां से आता है और मौत के बाद कहाँ जाता है ? इस तरह के बहुत से सवाल लम्बे अरसे से जवाब मांग रहे हैं. शास्त्रों और ग्रन्थों में इन सवालों का जवाब देने के लिए बहुत कुछ दर्ज है. कुछ भाग्यवान लोगों को यह सब समझ भी आ जाता है पर आम तौर पर लोग इस मुद्दे पर उन लोगों के दबाव में आ जाते हैं जो उन्हें बार बार कहते है की अन्धविश्वासी मत बनो.  हालांकि ऐसा कई बार हुआ है कि विज्ञान के सामने योग और दूसरे क्षेत्रों से कई तरह की चुनौतियां आयीं पर वज्ञान उनका कोई उत्तर नहीं दे सका. अब एक नयी चुनौती आई है प्रहलाद भाई जानी उर्फ़ माता जी. इस समय 81  वर्ष की उम्र  के इस साधक ने पिछले 70 वर्षों से अन्न और जल का पूरी तरह से त्याग कर रखा है. इसके बावजूद वह पूरीं तरह स्वस्थ हैं. बढ़ती हुई उम्र का भी उन पर कोई असर नहीं दिखता. गुजरात के बनासकांठा जिले के एक मन्दिर में रहने वाले इस साधक की इस हैरानकुन दिनचर्या ने सभी को हैरत में डाल रखा है. उन पर 22 अप्रैल से शुरू हुआ शोध 7 मई तक चला. गांधी नगर के चरादा गांव के इस साधक ने ११ वर्ष की आयु में ही सन्यास ले लिया था और 40 वर्ष तक मौन व्रत भी रखा.   
             जब इस मुद्दे को गीता शर्मा ने फेसबुक पर उठाया तो Kislay Savran ने कहा कि  एक इंसान ने सारे विज्ञानं को बौना साबित कर दिया फिर एक बार ....ये योग की है एक स्थिति है ..जिस से जीव आपने आप को चेतना स्वरूप में शुन्य में ले जाकर स्थित कर देता है. तब ये सब बड़ी ही सुगमता से संभव है ....
             इसी तरह Rajendra Kumar ने कहा कि इसे ही कहते है इन्द्रियों को वश में करना आप माने या ना माने पिछले २० सालों में मेरी पत्नी अभी तक हजारों हार्ट अटेक झेल चुकी है ....कैसे सब ईश्वर के साथ होने से !
         Rudresh Tripathi ने इसी मुद्दे पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि  इससे एक बात तो स्पष्ट रूप से प्रमाणित होती है वह यह कि, मनुष्य अगर संयमित दिनचर्या का पालन और सच्ची ईश्वर भक्ति करे तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है। इस कथ्य के अनेकोँ प्रमाण है। हमारी सनातनी परंपरा और मान्यताऐँ झूठे नहीँ है। इस बात को माता जी अपने तप और लगन से नयी पीढ़ियों के समक्ष एक बार पुन: साबित कर दिया।


          इस  चर्चा में शामिल होते हुए  Chainsingh Shekhawat ने कहा कि यह भारतीय जीवन पद्धति और योग का कमाल है. विशुद्ध भारतीय आत्मा ऐसी ही होती हैं.हमारे देश का आध्यात्म सदैव ही एक रहस्य रहा है.यह तो हम ही हैं जो पश्चिमी जीवन शैली सो अपना आदर्श मान बैठे हैं.
                इस मुद्दे को फेसबुक पर उठानेवाली उठाने वाली Gita Sharma  ने कहा कि तीन सो के करीब डोक्टर वेज्ञानिकों प्रथम जाँच पड़ताल में कुछ भी नही ढूंड पाए ,बाबा जी सही सलामत हैं , एक प्रश्न यह है जब डॉ वेज्ञानिकों के प्ले कुछ ना पड़ता हो ,तब वह टेस्ट आदि के नाम पर मरीज को अपनी लियाकत दिखाना शुरू करते हैं ,जब टेस्टों में भी व्यक्ति सही हो तो भी उसे मरीज बनाकर दवा देना पसंद क्यों करते हैं ?विज्ञान भरोसे के काबिल नही रहा इन बाबा जी की जांच पड़ताल ने साबित कर दिया है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
       इस शोध का समय समाप्त होने के बाद आठ मई को  Gita Sharma ने  एक रिपोर्ट पोस्ट की जिसमें कहा गया कि रक्षा वैज्ञानिक भी नहीं जान सके बाबाजी का राज़ 
ठ्ठशत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद पिछले 65 साल से बिना कुछ खाए पिए रहने का दावा करने वाले गुजरात के चुनरी वाले बाबा उर्फ माताजी उर्फ प्रहलाद जानी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली बन गए हैं। रक्षा विभाग की शोध संस्था और देश के नामी चिकित्सक भी माताजी के बिना खाए पीए रहने का रहस्य नहीं जान सके। अगर इस रहस्य से पर्दा उठ जाता है तो अंतरिक्ष यात्रियों को खानपान का सामान नहीं ले जाना पड़ेगा। साथ ही भुखमरी की समस्या से निपटा जा सकेगा। माताजी की खासियत यह है कि वे मल-मूत्र नहीं त्यागते। जबकि मूत्र विसर्जन नहीं करने पर मौत संभव है। माताजी की इस सिद्धी से दो साल पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को भारतीय प्रबंध संस्थान में अवगत कराया गया था। कलाम की ही पहल पर उनकी जांच की प्रक्रिया शुरू की गई। नई दिल्ली के रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डिपास) ने गुजरात के 32 चिकित्सकों की मदद से गत दो सप्ताह तक अहमदाबाद के स्टर्लिग अस्पताल में माताजी का परीक्षण किया। इस दौरान उन पर लगातार सीसीटीवी कैमरों के जरिए नजर रखी गई। जिसमें उनका एमआरआई, सीटी स्केन, ईसीजी, सोनोग्राफी आदि परीक्षण कर उनके शरीर की एक-एक हलचल पर नजर रखी गई लेकिन सब रिपोर्ट सामान्य पाई गई। स्टर्लिग अस्पताल के न्यूरोफिजिशियन डॉ. सुधीर शाह ने बताया कि ब्लेडर में मूत्र बनता था, लेकिन कहां गायब हो जाता है इस पहेली को डॉक्टर भी नहीं सुलझा पाए हैं। इससे पहले उनका मुंबई के जेजे अस्पताल में भी परीक्षण किया जा चुका है। लेकिन इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका। डा. शाह बताते हैं कि माताजी कभी बीमार नहीं हुए। उनकी शारीरिक क्रियाएं सभी सामान्य रूप से क्रियाशील हैं। माताजी के सेवक भिखाभाई प्रजापति की मानें तो गांधीनगर के चराड़ा गांव निवासी प्रहलाद कक्षा तीन तक पढे़ लिखे हैं। ग्यारह वर्ष की उम्र में उन्हें साक्षात देवी मां के दर्शन हुए जिसके बाद उन्होंने घर त्याग कर आबू तथा गिरनार के जंगलों में चले गए। चालीस वर्ष तक उन्होंने मौन व्रत भी रखा।
   अब देखना यह है इस खोज का जन जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है.  --रैक्टर कथूरिया  

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