Wednesday, August 15, 2012

स्वतंत्रता-दिवस की सार्थकता //राजीव गुप्ता

लगभग 60%  जनसँख्या  गरीबी में अपना जीवनयापन कर रही है
                                                                                                                                             साभार तस्वीर 
15 अगस्त 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के साथ द्वितीय विश्व युद्ध हिरोशिमा और नागासाकी के त्रासदी के रूप में कलंक लेकर समाप्त तो हुआ परन्तु जापान पिछले वर्ष आये भूकंप और सूनामी जैसी त्रासदी के बाद भी बिना अपने मूल्यों से समझौता किये राष्ट्रभक्ति, अपनी ईमानदारी और कठिन परिश्रम के आधार पर अखिल विश्व के मानस पटल पर लगभग हर क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ता हुआ नित्य-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है. ठीक दो वर्ष बाद 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष ने अपने को रणबांकुरों के बलिदानों की सहायता से एक खंडित-रूप में अंग्रेजों की बेड़ियों से स्वाधीन करने से लेकर अब तक भारत ने कई क्षेत्रो में को अपनी उपलब्धियों के चलते अपना लोहा मनवाने के लिए पूरे विश्व को विवश कर दिया.
भारत ने लंबी दूरी के बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र अग्नि-5 का परीक्षण किया जिसकी मारक-क्षमता चीन के बीजिंग तक की दूरी तक है और अरिहंत नामक पनडुब्बी का विकास किया  जो कि परमाणु ऊर्जा से चलती है तथा पानी के अन्दर असीमित समय तक रह सकती है और साथ ही सागरिका जैसी मिसाइलो को छोड़ने में भी सक्षम है को अपनी नौ सेना में शामिल कर अपनी सामरिक शक्ति में कई गुना वृद्धि किया तो वहीं रिसैट-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण कर दिखाया जिससे बादल वाले मौसम में भी तस्वीर ली जा सकती है. भारत अपने भुवन" नामक तकनीकी के माध्यम से गूगल अर्थ तक को पीछे छोड़ दिया है. इस तकनीकी के माध्यम से दुनिया भर की सैटेलाईट तस्वीर बहुत बेहतर तरीके से जिसकी गुणवत्ता गूगल अर्थ की गुणवत्ता से कई गुना बेहतर है.
अपने पहले मानवरहित चंद्रयान-1 के माध्यम से चन्द्रमा की धरती पर तिरंगे साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के साथ ही  भारत विश्व का चौथा देश बन गया. इतना ही नहीं चिकित्सा क्षेत्र में नैनोटेक्नोलॉजी के माध्यम से हमारे देश ने गत कुछ समय में असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं परिणामतः कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों का भी इलाज संभव हो गया है.  भारत हर वर्ष एक नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है जिसकी वजह से पूरा विश्व भारत को उभरती हुई महाशक्ति के रूप में मान्यता देने को मजबूर हुआ है. टीम इंडिया ने विश्व कप क्रिकेट 2011 पर कब्जा जमाया तो भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स और फॉर्मूला वन रेस का आयोजन कर दुनिया में अपना परचम लहरा दिया.
परन्तु भारत की इन उपलब्धियों के बावजूद इसका एक दूसरा रूप भी है. भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनता अभी भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण भारत से सम्बन्ध रखती  है.  भारत में हुई हरित क्रांति के इतने साल बाद भी हम नई खेती के तरीको को मात्र 20 - 25  प्रतिशत खेतो तक ही ले जा पायें है . आज भी भारतीय - सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी) में  कृषि का  लगभग 15  प्रतिशत  का योगदान है .  बावजूद इसके भारत की आधी  से ज्यादा एनएसएसओ के ताजा आंकड़ो के आधार पर लगभग 60%  जनसँख्या  गरीबी में अपना जीवनयापन कर रही है . देश का कुल 40 प्रतिशत हिस्सा सिंचित/असिंचित है . इन क्षेत्रो के किसान पूर्णतः मानसून पर निर्भर है . आज भी किसान जोखिम उठाकर बीज, खाद, सिंचाई इत्यादि के लिए कर्ज लेने को मजबूर है ऐसे में अगर फसल की पैदावार संतोषजनक न हुई आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है .
भारत में किसानो की वर्तमान स्थिति बद से बदत्तर है . जिसे सुधारने के लिए सरकार को और प्रयास करना चाहिए . इसी के मद्देनजर किसानो की इस स्थिति से निपटने हेतु पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल की अध्यक्षता में गत वर्ष अक्टूबर में एक कमेटी बनायीं गयी थी जो शीघ्र ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौपेगी . इन सब उठापटक के बीच इसका एक  दूसरा पहलू यह भी है कि सीमित संसाधन के बीच यह देश इतनी बड़ी आबादी को कैसे बुनियादी जरूरतों को उपलब्ध करवाए यह अपने आपमें एक बड़ा सवाल है जिसके लिए आये दिन मनरेगा जैसी  विभिन्न सरकारी योजनाये बनकर घोटालो की भेट चढ़ जाती है और भारत - सरकार देश से गरीबी खत्म करने के खोखले दावे करती रहती है .
सिर्फ इतना ही नहीं भारत में स्वास्थ्य - सेवा तो भगवान भरोसे ही है अगर ऐसा माना जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी . एक तरफ जहा हमारी सरकार चिकित्सा - पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करती  है तो वही देश का दूसरा पक्ष कुछ और ही बयान करता है जिसका अंदाज़ा हम आये दिन देश के विभिन्न भागो से आये राजधानी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के आगे जमा भीड़ को देखकर लगा सकते है जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली - स्थित एम्स आना पड़ता है . एक आकडे के मुताबिक आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इलाज़ के अभाव में प्रसव - काल में 1000 मे 110 महिलाये दम तोड़ देती है . ध्यान देने योग्य है कि यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक ने प्रसव  स्वास्थ्य सेवा पर चिंतित होते हुए कहा है कि विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 800 से अधिक महिलाये प्रसव  के समय दम तोड़ देती है . भारत में आज भी एक हजार बच्चो  में से 46 बच्चे काल के शिकार हो  जाते है और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते है .
भारत को अब मैकाले – शिक्षा नीति को भारत-सापेक्ष बनाना नितांत आवश्यक है क्योंकि प्राचीन भारतीय शिक्षा दर्शन का परचम विश्व में कभी लहराया था. प्राचीन भारत का शिक्षा-दर्शन की शिक्षा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए थी. इनका क्रमिक विकास ही शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य था. मोक्ष जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य था और यही शिक्षा का भी अन्तिम लक्ष्य था. प्राचीन काल में जीवन-दर्शन ने शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित किया था. जीवन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का प्रभाव शिक्षा दर्शन पर भी पड़ा था. उस काल के शिक्षकों, ऋषियों आदि ने चित्त-वृत्ति-निरोध को शिक्षा का उद्देश्य माना था. शिक्षा का लक्ष्य यह भी था कि आध्यात्मिक मूल्यों का विकास हो. किन्तु इसका यह भी अर्थ नहीं था कि लोकोपयोगी शिक्षा का आभाव था. प्रथमत: लोकोपयोगी शिक्षा परिवार में, परिवार के मध्यम से ही सम्पन्न हो जाती थीं. वंश की परंपरायें थीं और ये परम्परायें पिता से पुत्र को हस्तान्तरित होती रहती थीं.
प्राचीन युग की प्रधानता होने से राजनीति में हिंसा और शत्रुता, द्वेष और ईर्ष्या, परिग्रह और स्वार्थ का बहुल्य न होकर, प्रेम, सदाचार त्याग और अपरिग्रह महत्वपूर्ण थे. उदात्त भावनायें बलवती थीं. दिव्य सिद्धान्त जीवन के मार्गदर्शक थे. सामाजिक व्यवस्था में व्यक्ति प्रधान नहीं था, अपितु वह परिवार और समाज के लिए व्यक्तिगत स्वार्थ का त्याग करने को तत्पर था. उदात्त वृत्ति की सीमा सम्पूर्ण वसुधा थी. जीवन का आदर्श ‘वसुधैवकुटुम्बकम्’ था. भौतिकवादिता को छोड़ व्यवसायों के क्षेत्र में प्रतियोगिता नहीं के बराबर थीं. सभी के लिए काम उपलब्ध था. सभी की आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाती थीं. भारत की राजनीति में भ्रष्टाचार और  काले  -धन जैसी सुरसा रूपी बीमारी को खत्म करके तथा तंत्र-व्यवस्था को भारतीय - सापेक्ष कर एकांगी-विकास की बजाय समुचित-विकास पर ध्यान देना चाहिए ताकि एक खुशहाल और समृद्ध भारत का सपना साकार हो सके और हर भारतीय स्वतंत्रता की सार्थकता को समझ सकें.    

 - राजीव गुप्ता, लेखक,  9811558925
 पंजाब स्क्रीन में भी देखें 
दिल्ली स्क्रीन में देखें: एक ही जन्म में दो जन्म का कारावास

ये भारत देश है मेरा !

स्वतंत्रता दिवस के इस पावन त्यौहार पर हमें कुछ लिंक मिले हैं। इन लिंकस  में दो ऐसी तस्वीरें हैं जो इंसान की बराबरी पर सवाल खड़ा करती हैं। कुछ इसे लोगों के बारे में बताती हैं जिहें अभी पूजा पाठ की स्वतन्त्रता नहीं मिली। क्या सचमुच छूयाछात अभी जारी है ?

                                                                                                                                               दोनों तस्वीरें साभार 

इन् तस्वीरों की पोस्टिंग 4 दिसम्बर 2011 को हुई थी। क्या अब वहां कुछ बदला है।.....ये तुरंत स्पष्ट नहीं हो सका। स्वतन्त्रता दिवस के इस एतिहासिक दिवस पर आओ आज संकल्प लें की इंसान को बराबरी का हक दिलाने के लिए इस वर्ष कुछ और ठोस कदम उठाए जायेंगे।--रेक्टर कथूरिय!

Friday, August 10, 2012

पंजाब के भूजल में खतरे की गूँज लोकसभा में भी

Courtesy photo 
जल संसाधन एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री वींसेंट एच पाला ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को पंजाब राज्य सरकार से पेयजल में यूरेनियम-संदूषण के आकलन का प्रस्ताव हुआ है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने पंजाब के सभी प्रभावित जिलों में पेयजल स्रोतों में यूरेनियम संदूषण की जांच के लिए जनवरी, 2011 में 3.80 करोड़ रुपये जारी किए हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र पेयजल में यूरेनियम के संदूषण की जांच करने में पंजाब सरकार की मदद कर रहा है।

इसके अतिरिक्त, पेयजल स्रोतों में से यूरेनियम को हटाने हेतु प्रौद्योगिकी कार्यों को अंतिम रूप देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय और पंजाब सरकार के विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। समस्या से निपटने के लिए संभव कार्रवाई की एक सूची पंजाब सरकार को भेजी गई है।          ( पत्र सूचना कार्यालय) 
09-अगस्त-2012 19:56 IST

सब के लिए शुभ जन्माष्टमी....!

दुखों से मुक्ति का एक ही रास्ता....
भगवान कृष्ण की शरण.....!
मुक्ति दाता भगवान कृष्ण......! 
                                                                                                                          साभार चित्र
अधिकारों की जंग....! 
न्याय की जंग.....!
शांति के लिए जंग....!
गम में भी खुशियों का रास्ता बताने वाला कृष्ण कन्हया 
पूरे समाज को रास्ता दिखाने कारावास में ही चला आया....और हमें मुक्ति का मार्ग दिखा गया....!
इस बार की जन्माष्टमी आप सबको अवश्य ही कृष्ण के रंग में रंग जाये.....!

अनशन की बिसात पर राजनीति//राजीव गुप्ता

अन्ना टीम ने जनता को धता बताकर अलग ही कदम उठाया
राजीव गुप्ता
स्वतंत्रता-पश्चात भारत में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी. देश से व्याप्त भ्रष्टाचार को ख़त्म करने हेतु जनता सडको पर उतरकर सरकार पर दबाव बनाकर उससे क़ानून बनवायेगी यह लगभग अशोचनीय सी-ही स्थिति थी. परन्तु गत दो वर्षो से भारत में ऐसा हुआ. जनता हाथो में मशाल थामे सडको पर उतरी, कई - कई दिनों तक समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में अनशन हुए. ऐसा लगने लग गया कि भारत में इस भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन का "राष्ट्रीयकरण" हो गया है क्योंकि इस आन्दोलन में समाज के हर वर्ग ने बढ़-चढ़कर भाग लिया परिणामतः  भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन की लहर पूरे देश में चली. इस आन्दोलन ने एक बार तो महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले आंदोलनों की याद दिला दी क्योंकि सन 1920 के बाद के आंदोलनों की प्रकृति बिलकुल बदल गयी थी और गांधी जी के आह्वान पर समाज के सभी वर्ग ने अंग्रेजो की पराधीनता से स्वतंत्रता-प्राप्ति की साफ़ नियति से घर से निकल पड़े थे.

दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में 3 जून को बाबा रामदेव के अनशन पर हुई पुलिसिया कार्यवाही से पूरा देश में सरकार के खिलाफ आक्रोश था अतः जनता के इस आक्रोश का प्रस्फुटन उस  समय हुआ जब 16 अगस्त, 2011 को अन्ना हजारे को अनशन न करने देने के लिए षड्यंत्र के तहत सरकार ने उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. उसकी परिणति यह हुई कि जनता के साथ-साथ लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली मीडिया ने अन्ना हजारे को अपना भरपूर समर्थन दिया परिणामतः अन्ना टीम द्वारा संचालित  भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन का राष्ट्रीयकरण-सा हो गया ऐसा प्रतीत होने लगा. उनके इस आन्दोलन को अगस्त क्रांति तक का नाम दिया जाने लगा और सरकार से जनलोकपाल बनाने की मांग जोर - शोर से उठाई गयी. जनता की इस मांग से सरकार दबाव में आ गयी और संसद से लिखित आश्वासन के बाद ही यह अनशन का आन्दोलन थमा. इस आन्दोलन के साथ जुड़े जन सैलाब के प्रमुख दो कारण ही थे- एक स्वतंत्रता - पश्चात जनता को अन्ना टीम नहीं "सिर्फ अन्ना ही" एक मात्र साफ़ छवि एवं नियति वाले समाजसेवी के रूप में आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता के रूप में मिले थे और दूसरा इस आन्दोलन को आधुनिकतम तकनीकी और मीडिया की सहायता से दूरदराज क्षेत्र में रहने वाले लोगो तक इस आन्दोलन की खबर मिली. समाचार चैनल चौबीस घंटे बस इसी आन्दोलन से सम्बंधित खबरों को दिखाते रहे और ऐसा प्रतीत होने लगा कि इस आन्दोलन को सफल बनाने की कमान मीडिया पर ही है.

परन्तु हाल के  अन्ना टीम के अनशन ने जनता के सारे अरमानो को धता बताकर  एक अलग प्रकार का ही अविश्वसनीय कदम उठाया. अगर हम अन्ना और अन्नाटीम के बयानों पर नजर दौडाए तो पता चलता है कि कलतक अन्ना टीम बिना चुनाव लड़े जिस राजनीति की शुद्धिकरण की बात करती थी उसने अपना एकदम से पैतरा कैसे बदल लिया यह एक यक्ष प्रश्न जनता के सामने खड़ा हो गया है. अभी हाल ही में अन्नाटीम के तीन सदस्यों  द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन शुरू करने के लगातार दो दिन बाद तक यह घोषणा होती रही कि जब तक हमारी मांगे नहीं मनी जाती हम बलिदान हो जायेंगे पर अनशन से पीछे नहीं हटेंगे पर रातोरात ऐसा क्या हो गया कि 23 लोगो की बातो का आधार बनाकर जनता को राजनैतिक विकल्प देने के लिए राजनैतिक पार्टी बनाने की घोषणा के साथ अनशन ख़त्म कर दिया गया. इसी घोषणा के साथ अन्ना टीम की नियति भी सवालो के घेरे में आ गयी और जनता में यह सन्देश गया कि क्या ये सारे अनशन अन्ना टीम की महत्वकांक्षा का यह कोई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा थे और जनता को यह दिखाने की कोशिश थी कि सरकार उनकी नहीं सुन रही है जबकि सरकार का रवैया तो पहले से ही जग - जाहिर था हालाँकि सरकार का रवैया इस बार जरूर आश्चर्यजनक रहा कि पिछले साल अगस्त में सरकार जिस अन्ना की उंगलियों पर  नाच रही थी, उसने इस बार उनकी टीम से प्रत्यक्ष तो क्या अप्रत्यक्ष संवाद की भी जरूरत नहीं समझी और आन्दोलन को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया.

यहाँ सवाल अब जनलोकपाल का नहीं बल्कि नियति का है. जब संसद में जनलोकपाल बनाने के लिए अपनी राजनैतिक पार्टी ही बनानी थी तो  दो-वर्ष तक क्या अन्ना टीम ( हालाँकि अब यह टीम बर्खास्त हो चुकी है ) राजनैतिक पार्टी बनाने की भूमिका के साथ-साथ जन समर्थन प्राप्त करने के लिए  अनशन की बिसात  पर राजनीति कर रही थी. व्यवस्था परिवर्तन हेतु जन-आन्दोलन  करना और खुद चुनाव लड़कर व्यवस्था परिवर्तन करना दो अलग - अलग ध्रुवो के मिलन जैसी बात है . इससे पहले साफ़ और स्पष्ट नियति से जनता को विकल्प देने के लिए जयप्रकाश नारायण ने भी "जनता पार्टी" का गठन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री को चुनाव में हराया था हालाँकि वह पार्टी मात्र तीन सालो में ही टूट गयी थी. ध्यान देने योग्य है  इससे पहले जयप्रकाश नारायण ने भी 25 जून 1975 को एमरजेंसी अर्थात आपातकाल के खिलाफ आन्दोलन छेड़ा था.  उस समय भी जनता राजनेता जयप्रकाश नारायण की अगुआई में सत्ता के खिलाफ सरकार विरोधी सामग्रियों तथा मीडिया पर प्रतिबंधो के बावजूद सडको पर उतरी और 1977 के लोकसभा चुनाव में अपने मतदान के जरिये सत्ता के मद में चूर सत्ताधारियो को अर्श से फर्श पर ला दिया था.

यह सर्वस्वीकार्य है कि भारत में भ्रष्टाचार की सड़क चुनाव-प्रणाली से ही गुजरती है अतः चुनाव-सुधार की नितांत आवश्यकता है पर चुनाव जीतने की महत्वकांक्षा के साथ - साथ राजनैतिक विकल्प देने का रास्ता जमानत जब्त होने की तरफ भी जाता है. जनता बड़ी भावुक प्रवृत्ति होने की वजह से मतदान भावुकता के वशीभूत होकर मतदान करती है. भले ही अन्ना और उनके शुभचिंतक चुनाव न लड़े और किसी बड़े नाम की बजाय आम जनता के बीच से कोई अपना उमीदवार खड़ा करे पर इतना तो तय है कि आगामी लोकसभा का चुनाव  बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है. भविष्य में राजनीति के दांव - पेच का ऊँट किस करवट बैठेगा व सरकार किस पार्टी की बनेगी यह तो समय के गर्भ में है पर हाँ इतना जरूर है कि जनता के लिए अब किसी आन्दोलन पर विश्वास करना बड़ा मुश्किल हो जायेगा.
राजीव गुप्ता , 9811558925    

Thursday, August 09, 2012

मेरा गोविन्दा, श्याम ,गोपाला !! !

मेरा छोटा सा प्यारा सा लाला!
मेरा गोविन्दा, श्याम ,गोपाला !!
जसुमति का है यह  क्न्हाई,
इसे नज़र किसी ने  लगाई,
कर डारूंगी,उसका मुँह काला!! मेरा गोविन्दा श्याम..
नन्द्लाला का है यह खिलोना,
मेरा छौना है सबसे सलोना,
बडे नाज़ों से इसको है पाला !!मेरा गोविन्दा श्याम...
ब्रज़ मण्डल मे बाजे -बधाई ,
इसकी प्यारी छवि सबको भाई!
नाचें ब्रज के गोपी औ ग्वाला !!मेरा गोविन्दा श्याम..

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

Wednesday, August 08, 2012

हत्यारों के बाद चोरों ने भी दी पुलिस को चुनौती

लुधियाना के गहन भीडभाड वाले पोश इलाके घुमार मण्डी में चोरी चोरों ने घड़ियों की दुकान पर किया हाथ साफ़....पुलिस जांच जारी  
लुधियाना के पोश इलाके घुमार मंडी में तीस लाख की घड़ियाँ चोरी होने की खबर से सनसनी फ़ैल गई है. यह चोरी इंडो वाच नामक दूकान पर हुयी जहाँ अच्छे अच्छे ब्रांड की महंगी घड़ियाँ बिकती हैं. सख्त निगरानी के इस क्षेत्र में सी सी टी वी कैमरे भी लगे हैं लेकिन फिर भी चोरों ने यहाँ भुत ही सफाई से हाथ साफ़ कर लिया.
 लुधियाना की घुमार मंडी एक आधुनिक कारोबारी केंद्र बन चुय्की हैं . चौड़े बाज़ार और घनता घर के बाद लुधियाना की शोपिंग को एक नया रंग रूप इसी घुमार मंडी से मिला. यहाँ हुई  एक बड़ी चोरी ने सब के होश उड़ा दिए हैं. करीब तीस लाख की यह चोरी इंडो वाच नामक दूकान पर हुई.

 इंडो वाच के शोरूम मालिक विजय कुमार  बहुत ही घबराहट में मीडिया को बताया अंदाज़न २५ तीस लाख के माल की चोरी हुई है. तिजौरी में कुछ हजार रुपयों का कैश भी था पर ज्यादा नुक्सान कीमती और महंगे ब्रांड की घड़ियाँ चोरी होने से हुआ.घड़ियों की इतनी बड़ी चोरी से सारा बाज़ार सन्न रह गया. गौरतलब है की शो रूम का शटर बस थोडा सा ही मुदा हुआ था. पहली नजर से देख कर दीवार में कोई दरार सी भी नज़र नहीं नाती. न जाने इतने छोटे से रास्ते में से चोर कैसे अंदर गया होगा और फिर माल लेकर कैसे बाहर निकला होगा.
पुलिस ने मौके पर पह्गुंच कर पूरी बारीकी से जाँच शुरू कर दी है. सी टी वी कैमरे के फुटेज पर नज़रें गधा कर बैठे पुलिस टीम के सदस्य हर चेहरे को गौर से देख रहे हैं. इसके साथ ही उन्ग्ल्कियों के निशाँ लेने का काम भी बहुत ही ज़िम्मेदारी से पूरा किया जा रहा है. पुलिस के साथ महिला जांच अधिकारी भी थे. पुलिस का कहना है कि जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा.
मौके पर तयनात पुलिस अधिकारी ने बताया के मामले के जाँच जारी है और उसके बाद ही कुछ कहा जा सकेगा.
इस चोरी के बाद बड़े शोपिंग केन्द्रों की सुरक्षा पर पैदा हुए सवालों पर फिर से से गंभीरता के साथ विचर आवश्यक हो गया है. कुल मिला कर हत्या हो या चोरी, लूट हो या तस्करी....मुजरिमों का होंसला बढ़ते जाना पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी है. इसे रोकने के लिए पूरे समाज को पुलिस से सहयोग करना ही चाहिए. रेक्टर कथूरिया