Tuesday, May 15, 2012

राज्‍य अपने सहकारी अधिनियमों को संशोधित करें: श्री पवार

कृषि और खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्री श्री शरद पवार ने राज्‍यों का आह्वान किया है कि वह 97वें सं‍विधान (संशोधन) अधिनियम के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए अपने सह‍कारी अधिनियमों में संशोधन करें। श्री पवार सहकारी समितियों के राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन को आज सहां संबोधित कर रहे थे। उन्‍होंने कहा कि देश में सहकारी समितियों के जनतंत्रीय, स्‍वायत्‍ता और व्‍यावसायिक कार्य प्रणाली सुनिश्चित करने हेतु केंद्र सरकार ने इस संवधिान (संशोधन) अधिनियम को लागू किया है । उन्‍होंने कहा कि केंद्र ने सहकारी आंदोलन के विकास के लिए मज़बूत बुनियाद रखने हेतु अनेक प्रयास किए हैं।

श्री पवार ने राज्‍य सरकारों से ज़ोर देकर कहा कि वे अल्‍पकालिक सहकारी ऋण ढांचे के पुनर्निमाण के पैकेज के कार्यान्‍वयन को तेज़ी देने के लिए कार्य करें। जब तक कि किसानों को बैंको के साथ –साथ बैंक सह‍कारी समितियों द्वारा आवश्‍यक ऋण सहायता नहीं मिलेगी तब तक उचित परणिाम नहीं निकल कर आएंगे।

सहकारिता क्षेत्र में लोगों के विश्‍वास का भरोसा फिर से जीतने की आवश्‍यकता पर श्री पवार ने कहा कि चूंकि अनेक सहकारी समितियां गंभीर समस्‍याओं का सामना कर रही हैं इसलिए इस मामले में सुशासन का मुद्दा काफी महत्‍व रखता है।। उन्‍होंने कहा कि कानूनी और नीति सुधारों के जरिए सहकारिता प्रशासन के ढांचे को नया रूप देने की बेहद ज़रूरत है।

श्री पवार ने कहा कि सहकारिताओं ने वर्ष 2011-12 के दौरान करीब 25 करोड़ टन का रिकॉर्ड खाद्यान्‍न उत्‍पादन करके महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। उन्‍होंने कहा कि सहकारिता प्रणाली सबसे मजबूत स्‍तभों में से एक है जिसमें भारत का कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र फल-फूल रहे हैं।

पूर्व राष्‍ट्रपति ए पी जे अब्‍दुल कलाम ने अपने भाषण में सहकारी समितियों की उपलब्धियों खासतौर से उर्वरक वितरण, चीनी उत्‍पादन, डेयरी, सहकार समितियां , आवासीय सहकारी समितियों, कृषि ऋण आदि की चर्चा की। उन्‍होंने राष्‍ट्र के विकास और समुदाय को मजबूत बनाने में सहकारी समितियों की सराहना की। साथ ही उन्होंने कहा कि देश में सहकारी समितियों को प्रोत्‍साहित करने की जरूरत है। उन्‍होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ सहकारी ढांचों की संभावनाओं का सुझाव दिया था कि ताकि खाद्यान्‍न, दालों, सब्जियों, फलों और फूलों का उत्‍पादन बढ़ाया जा सके और किसानों की आमदनी बढ़ सके।

कृषि राज्‍य मंत्री श्री हरीश रावत और कृषि विभाग में सचिव श्री पी. के. बसु ने भी सम्‍मेलन को संबोधित किया। (पीआईबी)

बहुत ही उत्साह से देखा गया रेड रिबन एक्सप्रेस को

रेड रिबन एक्सप्रेस जब 15 मई 2012 को तमिलनाडू के ज़िला करूर में पहुंची तो वहां इसे बहुत ही उत्साह से देखा गया।  इस मौके पर जिला कुलेक्टर सुश्री वी शोभना ने भी इस रेलगाड़ी में लगी प्रदर्शनी को विशेष तौर पर देखने के लिए \वक्त  निकला।.(पीआईबी फोटो)   15-May-2012

रेड रिबन एक्सप्रेस क्रूर रेलवे स्टेशन पर

सावधान रह कर स्वस्थ जीवन जीने के गुर समझती रेड रिबन एक्सप्रेस रेलगाड़ी जब 15 मई 2012 को तमिलनाडू के क्रूर रेलवे स्टेशन पर पहुची तो वहां इसे देखने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। स्कूली छात्रछात्रायों ने भी इसे उत्सुकता और उत्साह से देखाइस रेलगाड़ी में लगी प्रदर्शनी का उद्घाटन क्रूर की जिला 
कुलेक्टर वी. शोभना ने किया। इस अवसर पर कई अन्य प्रमुख  व्यक्ति भी मौजूद थे।  पत्र सूचना कार्यालय के कैमरामैन ने इन पलों को अपने कैमरे मैं संजो लिया। (पीआईबी फोटो)

रेड रिबन एक्सप्रेस

रेड रिबन एक्सप्रेस जब 15 मई 2012 को  तमिलनाडू के जिला क्रूर स्टेशन पर पहुंची तो वहां इसका स्वागत  बहुत ही गर्म जोशी से किया गया। क्रूर की जिला कुलेक्टर सुश्री वी शोभना ने इसका उद्घाटन किया। पीआईबी के कैमरामैन ने इन पलों को अपने कैमरे में संजो लिया और अब वे पल फिर इस तस्वीर के ज़रिये 
आपके सामने एक बार फिर जीवंत हो उठे हैं।     . (PIB photo)   

Monday, May 14, 2012

राज्य सभा में बताया सुश्री अम्बिका सोनी ने

देश भर में कुल 275 प्रसारण केन्‍द्र कार्यशील
सूचना और प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी ने आज राज्‍य सभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में बताया कि प्रसार भारती ने सूचित किया है कि दिनांक 31 मार्च 2012 तक की स्थिति के अनुसार 67 दूरदर्शन केन्‍द्र (स्‍टूडियो केन्‍द्र) और विभिन्‍न क्षमता के 1415 टीवी ट्रांस्‍मीटर कार्यशील थे। इनमें से, 22 स्‍टूडियो केन्‍द्र और 529 टीवी ट्रांस्‍मीटर जनजातीय क्षेत्रों में अवस्थित हैं। जहां तक आकाशवाणी का संबंध है, दिनांक 31 मार्च, 2012 तक की स्थिति के अनुसार देश भर में कुल 275 प्रसारण केन्‍द्र कार्यशील हैं। इनमें से, आकाशवाणी के 71 प्रसारण केन्‍द्र जनजातीय जिलों के क्षेत्रों में अवस्थित हैं।

मंत्री महोदया ने सदन को यह भी जानकारी दी कि सामान्‍यतया दूरदर्शन केन्‍द्रों, टीवी ट्रांस्‍मीटरों और आकाशवाणी केंन्‍द्रों का कामकाज संतोषजनक है। तथापि, दूरदर्शन नेटवर्क में स्‍टॉफ का भीषण अभाव है और अनेक वर्षों से नई परियोजनाओं की देख-रेख करने के लिए स्‍टॉफ संस्‍वीकृत या भर्ती नहीं किया गया है। पर्याप्‍त स्‍टॉफ की अनुपलब्‍धता के कारण जनजातीय क्षेत्रों के 21 ट्रांस्‍मीटरों सहित 46 अल्‍पशक्ति ट्रांस्‍मीटर आंशिक ट्रांसमिशन का रिले कर रहे हैं और जनजातीय क्षेत्रों के 7 केन्‍द्रों सहित 23 स्‍टूडियो केन्‍द्रों के कार्यकलाप सीमित हैं।

जहां तक आकाशवाणी का संबंध है, जनजातीय जिलों में कार्यशील 71 केन्‍द्रों में से 18 केन्‍द्र जनशक्ति के अभाव के कारण अधिकतम कार्य-निष्‍पादन से कम पर कार्यशील हैं। इसके अतिरिक्‍त, इन 18 केन्‍द्रों में से 11 केन्‍द्रों पर बहुत पुराने ट्रांस्‍मीटर लगे हुए हैं और समय बीतने के साथ उनकी दक्षता में कमी आयी है। (पीआईबी)
14-मई-2012 15:13 IST

पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

पंचायती राज मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री वी किशोर चन्द्र देव ने आज लोक सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि पंचायती राज मंत्रालय(एमओपीआर) उपलब्ध सूचनानुसार, पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई'ज) में निर्वाचित महिला प्रतिनिधित्व (ईडब्लयूआर'ज) की भागीदारी की प्रतिशतता में प्रगामी व्यापक वृद्धि रही है। वर्ष 2000, 2008 और 2010 में विभिन्न राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की प्रतिशतता बढ़ती जा रही है।मंत्री महोदय ने सदन में यह भी बताया कि पंचायती राय मंत्रालय द्वारा ए.सी.नेल्सन ओआरजी मार्ग के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों पर एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन करवाया गया और अप्रैल 2008 में प्रकाशित किया गया। इस अध्यन रिपोर्ट से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की सकारात्मक प्रतिनिधित्व एवं अधिकारिता का संकेत प्राप्त हुआ, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ उनके आत्म सम्मान, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता में बढ़ोतरी, उनकी संबंधित विभागों और समानांतर निकायों के साथ मेलजोल बढ़ाना, उनके विरूद्ध ज़ेंडर आधारित भेदभाव में कमी आना, उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए समुदाय और उनके समकक्षों से पहचान, ग्राम सभा बैठकों के दौरान मामले उठाने के लिए उनके द्वारा स्वतंत्र महसूस करना, अपने परिवारों में आर्थिक मामलों व अन्य मामलों के संबंध में निर्णय लेने में उनकी बातें अधिक मुखर होना शामिल है। (पीआईबी)

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ई-न्यायालय व्यवस्था की दिशा में बढ़ते कदम

वि‍शेष लेख                                                                                                  --अनूप भटनागर*
               विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों की बढती संख्या से प्रभावकारी ढंग से निपटने, वादियों उनके अदालती मामलों से जुड़ी आवश्‍यक सूचनाएं तत्परता से उपलब्ध कराने, न्यायाधीशों को कानूनी बिन्दुओं से जुडी न्यायिक-व्यवस्थाएं और आंकड़े सहजता से उपलब्ध कराने तथा समूची न्याय-प्रणाली को गति प्रदान करने के लिए न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण की दिशा में दो दशक पूर्व प्रयास शुरू किए गए थे। न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण का ही नतीजा है कि आज उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के साथ ही कई जिला अदालतों में ई-न्यायालय व्यवस्था भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले लोग अपने किसी भी मुकदमे की प्रगति और स्थिति के बारे में सिर्फ अदालत की वेबसाइट पर एक क्लिक करके ही अपेक्षित जानकारी घर बैठे प्राप्त कर पा रहे हैं।

           ई-न्यायालय के महत्व को महसूस करते हुए जुलाई 2004 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ने न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण के लिए देशव्यापी नीति तैयार करने के लिए ई-कमेटी के गठन के बारे में केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर 2004 में इस पत्र पर कार्यवाही करते हुए देश के प्रधान न्यायाधीश के महत्वाकांक्षी और न्यायिक व्यवस्था में सुधार के इस दीर्घकालीन प्रस्ताव को मंजूरी दी। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने इसके बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डॉ. जी. सी. भरूका की अध्यक्षता में ई-कमेटी के गठन की अधिसूचना जारी कर दी थी। केन्द्र सरकार की इस अधिसूचना के साथ ही ई-न्यायालय व्यवस्था की दिशा में काम शुरू हो गया।

           न्यायमूर्ति भरूका की अध्यक्षता वाली ई-कमेटी ने मई, 2005 में भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रोद्योगिकी लागू करने की योजना के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रधान न्यायाधीश को सौंपी जिसमें न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी लागू करने के प्रारूप को रेखांकित किया गया था। ई-कमेटी की इस रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायपालिका में कम्प्यूटरीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी लागू करने की देशव्‍यापी योजना तैयार हुई।

           रिपोर्ट में न्यायिक पोर्टल और ई-मेल सेवा, सहजता से इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर उपकरण, न्यायाधीशों और अदालत के प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के दौरान आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अदालत परिसर में प्रशिक्षित स्टाफ की उपस्थिति के लिए एक अलग काडर बनाने, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय परिसरों में मौजूद संरचना को अपग्रेड करने, समूचे रिकॉर्ड  के लिए डिजिटल संग्रह तैयार करने और तमाम लॉ-पुस्तकालयों को कम्प्यूटर-नेटवर्क से जोड़ने जैसे कार्यों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया शुरू की गई।

           देश की न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण की दिशा में 1990 से ही प्रयास हो रहे थे। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों को कम्प्यूटर प्रणाली से परस्पर जोड़ा जा रहा था। लेकिन इन प्रयासों ने 2001 से गति पकड़ी। 2001-03 के दौरान चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में सात सौ अदालतों का कम्प्यूटरीकरण किया गया। इसके बाद 2003-04 में राज्यों की राजधानियों और केन्द्र शासित प्रदेशों के 29 शहरों की नौ सौ अदालतों के कम्प्यूटरीकण का कार्य शुरू हुआ।

           न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण के संतोषजनक नतीजे सामने आने पर मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने फरवरी 2007 में अदालतों में लंबित मुकदमों के निपटारे को गति प्रदान करने, मुकदमे के वादियों को सूचना उपलब्ध कराने में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और न्यायाधीशों को न्यायिक प्रक्रिया से जुडे आंकडे़ तथा जानकारियां सहजता से उपलब्ध कराने के इरादे से 441.08 करोड़ रूपए की ई-न्यायालय मिशन मोड  परियोजना को मंजूरी दी।

           ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना के अंतर्गत जिला और अधीनस्थ अदालतों का कम्प्यूटरीकरण और उच्चतर न्यायालयों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की आधारीय संरचना को अधिक सुदृढ बनाना था। सरकार ने सितंबर 2010 में इस परियोजना के लिए निर्धारित रकम में संशोधन करके इसे 935 करोड़ रूपए कर दिया था। इस वृद्धि का मकसद  न्यायालय परिसरों और न्यायालयों की संख्या में वृद्धि करना, उत्पादों और सेवाओं की दरों में वृद्धि करना और क्षेत्राधिकार में वृद्धि तथा नई मदों को इसमें शामिल करना था। इसके बाद ई-न्यायालय परियोजना के दायरे में न्यायालय परिसरों की संख्या 2,100 से बढकर 3,069 अर्थात ऐसी अदालतों की संख्या 13,000 से बढकर 14,249 हो गई।

           इस परियोजना के अंतर्गत देश के पहले कागजरहित ई-न्यायालय ने फरवरी 2010 में दिल्ली के कड़कड़डूमा अदालत परिसर में काम करना शुरू किया था। ई-न्यायालय में न्यायाधीश के समक्ष मुकदमों की मोटी फाइलें नहीं बल्कि लैपटॉप होता है।

           सरकार के इन महती प्रयासों के नतीजे अब सामने आने लगे हैं। इस समय उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ही नहीं बल्कि निचली अदालतों में भी कम्प्यूटरीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी लागू करने की महत्वाकांक्षी देशव्‍यापी योजना बेहद असरदार ढंग से काम कर रही है।

           इस परियोजना के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और देश के 20 उच्च न्यायालयों में कम्प्यूटर्स, प्रिंटर्स, स्कैनर्स, सर्वर, नेटवर्किग उपकरण और नेटवर्क केबलिंग और व्यवधान रहित बिजली आपूर्ति जैसे उपाय करके सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित संरचरना को अपग्रेड किया जा चुका है। इस काम पर अब तक 41.47 करोड रूपए खर्च किये जा चुके हैं। यही नहीं, अब जम्मू कश्‍मीर, गुवाहाटी, राजस्थान और कलकत्ता उच्च न्यायालयों में वीडियो कांफ्रेसिंग सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है।

           केन्द्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और न्यायपालिका में प्रशासनिक सुधारों पर निगाह रखने के लिए बनी ई-कमेटी की कमान देश के प्रधान न्यायाधीश के हाथ में सौंपी है। इस समिति में न्यायिक अधिकारियों और सूचना प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों के अलावा अटॉर्नी जनरल और कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं को भी शामिल किया गया है।

           सरकार ने भारतीय न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी की देशव्यापी नीति पर ई-कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार ई-न्यायालय परियोजना को पांच साल में लागू करने के लिए इसे तीन चरणों में बांटा था। पहले चरण में 854 करोड़ रूपए खर्च करके सभी 2,500 अदालत परिसरों में कम्प्यूटर कक्ष और न्यायिक सेवा केन्द्रों की स्थापना हुई। करीब 15,000 न्यायिक अधिकारियों को लैपटॉप उपलब्ध कराने और तालुका स्तर से लेकर उच्चतम न्यायालय तक सभी अदालतों को डिजिटल इंटरकनेक्टीविटी से जोड़ने और उच्चतम न्यायालय तथा सभी उच्च न्यायालयों में ई-फाइलिंग सुविधा शुरू करने का लक्ष्य रखा गया था। दूसरे चरण में फाइलिंग की प्रक्रिया से लेकर इसके कार्यान्वयन स्तर तक की सारी न्यायिक प्रक्रिया के साथ ही प्रशासनिक गतिविधियों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के दायरे में लाने तथा तीसरे चरण में अदालतों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों तथा विभागों के बीच सूचना के सहज प्रवाह को सुनिश्चित बनाने का लक्ष्य रखा गया था।

           इस परियोजना के कार्यान्वयन से जहां न्यायिक प्रक्रियाओं को गति प्रदान करने,  मामलों के तेजी से निपटान को सुविधाजनक बनाने मे मदद मिल रही है वहीं मुकदमों की स्थिति, वादियों को मामले पर हुए निर्णय के बारे मे बार के सदस्यों तथा व्यक्तियों को पारदर्शी तरीके से सूचना मिलना संभव हो सका है।

           ई-न्यायालय सेवा के जरिए न्यायालय में मुकदमों के प्रबंधन की प्रक्रिया को आटोमेशन मोड में डाला गया। इस सेवा के दायरे में मुकदमों को फाइल करना, मामलों की जांच पडताल, मामलों का पंजीकरण, मामले का आबंटन, अदालत की कार्यवाही, मामले से संबंधित विस्तृत विवरण, मुकदमे का निष्पादन और स्थानांतरण जैसी जानकारी मुहैया कराई जा रही है। इसी तरह ई-न्यायालय सेवा के तहत न्यायिक आदेश और फैसलों की प्रमाणित प्रति, कोर्ट फीस और इससे जुड़ी दूसरी जानकारियां ऑनलाइन प्राप्त की जा सकती है।

           देश के दूरदराज इलाके में रहने वाले व्यक्ति कही से और कि‍सी भी समय वेब साइट क्लिक करके किसी भी मुकदमे की जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हैं। इस परियोजना के तहत पहले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और इसके बाद जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में ई-फाइलिंग सुविधाजनक होती जा रही है।

           ई-न्यायालय परियोजना के अंतर्गत एक फरवरी 2012 की स्थिति के अनुसार 9,389 अदालतों का कम्प्यूटरीकरण हो चुका है। कुछ अदालतों में मामला दर्ज करने, पंजीकरण, मुकदमों की सूची तैयार करने जैसी सेवाएं भी शुरू हो गई हैं। ई-न्यायालय परियोजना के कार्यान्वयन के लिए एन.आई.सी. को 487.84 करोड़ रूपए उपलब्ध कराए गए हैं।

           न्यायालयों में उच्च गुणवत्ता वाले कम्प्यूटर, प्रिंटर्स, स्कैनर्स, सर्वर, नेटवर्किग उपकरण और नेटवर्क केबलिंग और व्यवधान रहित बिजली आपूर्ति जैसे उपाय करके सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित संरचना को सुदृढ बनाने के सतत् प्रयास चल रहे हैं। इस काम पर  उच्चतम न्यायालय में तीन करोड़ से अधिक रकम खर्च की जा चुकी है जबकि उच्च न्यायालयों में बंबई  उच्च न्यायालय में सबसे अधिक सात करोड़ 53 लाख और सबसे कम एक लाख रूपए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में खर्च हुए हैं।

           ई-न्यायालय प्रक्रिया का उपयोग करने से पहले इसकी प्रक्रिया को भी समझना जरूरी है। उच्चतम न्यायालय में सिर्फ एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर करने वाले ही ई-फाइलिंग सुविधा का उपयोग कर सकते हैं। इस सुविधा के इस्तेमाल के इच्छुक व्यक्ति या एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को अपना पता, संपर्क के लिए विवरण तथा ई-मेल का पता देना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया को पूरा करने पर ही एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को लॉग- इन आईडी और व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर करने वाले को साइन अप प्रक्रिया से लॉग इन आईडी मिलती है। इस प्रक्रिया के तहत दी जाने वाली कोर्ट फीस का भुगतान सिर्फ क्रेडिट कार्ड से किया जा सकता है। यही प्रक्रिया उच्च न्यायालयों और निचली अदालतें में ई-फाइलिंग के लिए अपनानी होगी।   ***  (पीआईबी)

* स्‍वतंत्र पत्रकार
11-मई-2012 14:22 IST