Monday, March 03, 2014

अब गुमनाम शहीदों को उनकी पहचान दिलाने को होगी जद्दोजेहद

Mon, Mar 3, 2014 at 6:41 PM
*डीएनए टेस्ट कराने के लिए स्थानीय कमेटी करेगी कोशिश, ताकि शहीदों की हो सके पहचान*केंद्र और राज्य सरकार या प्रशासनिक अधिकारियों ने नहीं किया अभी तक कोई भी संपर्क
*सैनिकों के हाथों से सिक्के, सोना, मोती और अन्य कीमती सामान भी हुआ बरामद
अमृतसर: (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन):
देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बगावत करने वाले भारत मां के 45 सपूतों ने अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी थी। इसका सुबूत 157 साल बाद कुएं की खुदाई में मिले हैं। अंग्रेजों द्वारा इन 45 सैनिकों को अजनाला में स्थित ‘शहीदां वाला खूह’ में 1857 में अंग्रजों ने जिंदा दफन कर दिया था। ये सैनिक 30 जुलाई 1857 को 500 साथी सैनिकों के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मोर्चे पर निकले थे। अगले ही दिन 218 सैनिकों को गोली मार अजनाला के रावी दरिया में शहीद कर दिया गया। बचे 282 सैनिकों को अमृतसर का डिप्टी कमिश्नर फैडिक हैनरी कूपर गिरफ्तार कर अजनाला लाया गया। यहां सुबह 237 सैनिकों को शहीद कर शव कुएं में फिंकवाया था जबकि 45 सैनिकों को जिंदा ही कुएं में फेंक कर ऊपर से कुएं को मिट्टी डालकर बंद कर दिया गया था।  रविवार को ‘शहीदां वाला खूह’ की खुदाई के तीसरे दिन सात शहीदों के कंकाल एक-दूसरे के साथ सटे हुए निकले। यह कंकाल गवाही दे रहे थे, 
कि जीवन के अंतिम समय में भी इन जवानों ने कुएं से बाहर निकलने व अंग्रेजी हकूमत का सामना करने के लिए प्रयास किए होंगे। खुदाई के दौरान कुएं से 50 शहीदों की खोपड़ियां अंग्रेजी की बर्बरता की कहानी भी बयां कर रही थीं। कई शहीद सैनिकों के जबड़े चीख-चीख कर उस काली रात की दर्दनाक कहानी को बयान कर रहे थे। इन शहीदों के कंकालों के साथ ब्रिटिश शासन कंपनी के एक-एक रुपये के 47 सिक्के भी बरामद मिले हैं। शहीदों के तीन ताबीज, सोने के चार मोती, दो अंगूठी, दो मेडल भी मिले हैं। सिक्कों पर 1835 व 1840 वर्ष लिखा हुआ है। इन पर महारानी विक्टोरिया की तस्वीर व ईस्ट इंडिया कंपनी अंकित है। अमृतसर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फेडिक हेनरी कूपर की इस क्रूर करतूत से निहत्थे भारतीयों को गोलियों से छलनी करने की व्यथा इतनी दर्दनाक थी, कि खुदाई के दौरान जितनी बार अस्थियां व कंकाल मिले, उन्हें देख कर
कार सेवा कर रही महिलाओं की आंखें छलक उठीं। गमजदा महिलाएं इन कंकालों की आत्मा की शांति के लिए सतनाम वाहेगुरु का जाप करती रहीं। शनिवार को बारिश व ओले के बीच कार सेवकों का हौसला बरकरार रहा। भीगते हुए कार सेवक खुदाई करते रहे। महिलाएं अस्थियों को उठाकर पास ही रखे टब में डालती रहीं। कुछ कंकाल ऐसी अवस्था में मिले, जिससे लगता है, कि जिंदा सैनिकों ने बाहर निकलने के लिए एक-दूसरे का सहयोग किया होगा। ऐसा लग रहा था, कि इन सैनिकों ने कुएं से बाहर निकलने के लिए एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर सीढ़ी बनाने की कोशिश भी की थी, लेकिन गोलियों से छलनी टूट चुके इन सैनिकों की सांसें जल्दी उखड़ गईं थी। करीब 157 वर्षों के बाद अब जब इन शहीद सैनिकों की अस्थियों को जब कुएं से आजाद किया गया है, तो अब इनकी पहचान के लिए जद्दोजेहद का दौर शुरू होने जा रहा है। स्थानीय कमेटी के मुताबिक इन शहीदों की पहचान करने के लिए डीएनए टेस्ट कराया जाएगा। इतना ही नहीं, स्थानीय कमेटी पंजाब और केंद्र सरकार के साथ-साथ जिला प्रशासन से भी काफी नाराज दिखाई दी, क्योंकि अभी तक न तो पंजाब और केंद्र सरकार ने और न ही जिला प्रशासन ने इस ओर कोई पहल कदमी ही की है। इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान परमजीत सिंह सरकारिया ने बताया, कि पहले तो इन अस्थियों के साथ मिली मिट्टी को गोइंदवाल साहिब या ब्यास दरिया में बहाया जाएगा। इसके बाद इन अस्थियों को साफ कर इनका डीएनए टेस्ट कराने के बाद रिती रिवाजों से इनका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया, कि कुएं से बरामद सिक्के और अन्य सामग्री को यहां तैयार किए जाने वाले म्यूजियम में रखा जाएगा। ताकि देश की जनता इन गुमनाम शहीदों के बारे में न सिर्फ जानकारी हासिल कर सकें, बल्कि वे इनकी अमर गाथा से भी अवगत हो सकें।

No comments: