फोटो रेडियो रूस |
'यूथ स्पीरिट' नामक इस महोत्सव में रूसी और भारतीय युवा फ़िल्मकारों द्वारा बनाए गए दस वृतचित्र दिखाए जाएँगे। रूसी सांस्कृतिक केन्द्र की प्रमुख अधिकारी येलेना श्तापकिना ने बताया कि इस तरह के फ़िल्म महोत्सव का आयोजन पहली बार किया जा रहा है। रूसी सांस्कृतिक केन्द्र ने इसका आयोजन रूसी-भारतीय यूथ क्लब फ़ेडरेशन, दिल्ली की 'सिन्थसिज फ़िल्म फ़ोरम' नामक एक फ़िल्म सोसायटी, जगन प्रबन्ध संस्थान की जनसंचार फ़ैकल्टी और मंत्र विश्वविद्यालय के साथ मिलकर किया है। येलेना श्तापकिना ने
बताया :
इस वृतचित्र महोत्सव में भाग लेने के लिए 80 वृत्तचित्र आए थे। लेकिन महोत्सव की ज्यूरी ने सिर्फ़ दस वृत्तचित्रों को ही इस महोत्सव में दिखाने के लिए चुना। इनमें पाँच युवा फ़िल्मकार भारत के नई दिल्ली, नोयडा, अलीगढ़, मुम्बई और चेन्नई जैसे शहरों का प्रतिनिधित्त्व कर रहे हैं। रूसी फ़िल्मकारों में मास्को फ़िल्म इंस्टीट्यूट की पाँच महिला फ़िल्मकारों को शामिल किया गया है। इस वृतचित्र महोत्सव के लिए जो फ़िल्में चुनी गई हैं, वे उन तीख़ी समस्याओं के बारे में हैं, जिनपर अक्सर चर्चा की जाती है। ये फ़िल्में सामाजिक असमानता, पर्यावरण-दूषण, भ्रष्टाचार, रंगभेद या जातिभेद, बाल-अधिकारों की उपेक्षा तथा विकलांगों के बारे में हैं।
दिल्ली की 'सिन्थसिज फ़िल्म फ़ोरम' नामक एक फ़िल्म सोसायटी के संचालक और 'यूथ स्पीरिट' नामक इस वृतचित्र महोत्सव की ज्यूरी के अध्यक्ष विमल मेहता ने बताया कि दोनों देशों के युवा फ़िल्मकारों को लगभग एक जैसी समस्याएँ बेचैन करती हैं और इन समस्याओं के प्रति उनका नज़रिया भी क़रीब-क़रीब एक जैसा है। जैसे मैं अरविन्द राज शर्मा की फ़िल्म 'आई एम गिल्टी' यानी 'मैं दोषी हूँ' -- जो आवारा बच्चों के बारे में है और नियति सेंगरा व अमरेश कुमार सिंह की फ़िल्म 'प्रीस्टीन वाटर्स' यानी 'पवित्र जल' का ज़िक्र करना चाहूँगा, जो भारत की नदियों के प्रदूषण को दर्शाती है और उनकी जल्दी से जल्दी सफ़ाई करने की हमारी ज़िम्मेदारी की ओर हमारा ध्यान खींचती है। इसी तरह रूसी फ़िल्मकार सोफ़िया गेवेयलर की फ़िल्म 'सूर्यपुत्र' उन अर्धविक्षिप्त लोगों के बारे में है, जिन्हें सचमुच प्यार, सहानुभूति और मदद की ज़रूरत है। यूलिया बिवशेपा की फ़िल्म 'सिनकोपा' एक ऐसे अन्धे बच्चे के बारे में बताती है, जो पियानो बजाता है और एक बड़ा पियानोवादक बनना चाहता है। संगीत के प्रति यह लगाव ही उसे एक अनूठा व्यक्तित्त्व प्रदान करता है। वृतचित्र महोत्सव की ज्यूरी के अध्यक्ष विमल मेहता ने बताया :
ये सभी फ़िल्मकार एकदम युवा हैं। हो सकता है कि कभी इनमें से कोई इतना मशहूर हो जाए कि उसकी फ़िल्में बड़े परदे पर भी दिखाई जाएँ और किसी की फ़िल्म इसके बाद कभी दिखाई ही नहीं जाए, सिर्फ़ इण्टरनेट पर ही ये फ़िल्में देखी जाएँ। लेकिन फिर भी ये फ़िल्में ऐसी हैं कि इनकी तरफ़ विशेष रूप से ध्यान देना ज़रूरी है। इन सभी में हमारी समस्याओं पर सोचने और उन्हें अभिव्यक्त करने की क्षमता है। ये लोग हमारे दर्द को महसूस कर सकते हैं और परिस्थिति को बदलने की कोशिश कर सकते हैं।
'यूथ स्पीरिट' नामक इस वृतचित्र महोत्सव के विजेताओं को विशेष प्रमाणपत्र और पुरस्कार दिए जाएँगे। इनमें से दो भारतीय फ़िल्मकारो को आगामी सितम्बर-अक्तूबर में भारतीय युवा संस्कृतिकर्मियों और कलाकारों के प्रतिनिधिमण्डल के साथ रूस की यात्रा भी कराई जाएगी। रूस की विदेश सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद ने इस यात्रा का प्रबन्ध किया है। इस यात्रा के दौरान भी ये लोग अपनी नई फ़िल्म बना सकते हैं और रूस के बारे में तस्वीरें खींच सकते हैं। कुछ लोग रूस के बारे में लेख लिखेंगे और उसके बाद ये सभी 'आँखों देखा रूस' नामक प्रदर्शनियों में भाग लेंगे। भारत स्थित रूस के सांस्कृतिक केन्द्रों में इन प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाएगा।
भाग लेने के लिए 80 वृत्तचित्र आए थे
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