विशेष लेख-इस्पात नागिन्दर सिंह किशोर *
भारत में इस्पात एक ऐसा उद्योग है जिसने भारतीय गणतंत्र की स्थापना की शुरुआत से ही राष्ट्रीय विकास में अपना योगदान दिया है। राष्ट्र की बुनियादी ज़रुरतों के विकास में सहयोग देने से लेकर अर्थव्यवस्था का उत्प्रेरक बनकर विकास को दिशा देने तक में, इसकी भूमिका एक मिश्र धातु से कहीं अधिक बढ़कर रही है।
इस्पात की वजह से संभव हो सके बहुआयामी विकास के बावजूद इसके इस्तेमाल को ठीक प्रकार से पहचान नहीं मिल सकी है। इस क्षेत्र में जो भी विकास हुआ है वह बुनियादी ढ़ांचों की प्रमुख परियोजनाओं और योजनाओं की पृष्ठभूमि में हुआ है। आनेवाले दस वर्षों में, भारत में इस्पात की मांग में दस प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) की गति से वृद्धि होने का अनुमान है। इस अवधि में भारत की इस्पात उत्पादन क्षमता में इसी दर से बढ़ोतरी होने का भी अनुमान है।
आकलनों से यह संकेत प्राप्त होता है कि, वर्ष 2020 तक भारत की इस्पात उत्पादन क्षमता 120 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी जबकि वर्तमान क्षमता 78 मिलियन टन है। यदि ग्रामीण भारत में इस्पात की मांग में वृद्धि होती है तो इसमें और अधिक बढ़ोतरी हो सकती है। इसके लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्यमों द्वारा बड़े पैमाने पर क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है। इस्पात मंत्रालय द्वारा समय पर किए गए रणनीतिक प्रयासों के कारण इसकी शुरुआत हो चुकी है।
अब देश में इस्पात उत्पाद में क्षमता वृद्धि पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है ताकि राष्ट्र इस्पात की घरेलू मांग के स्वयं पूरा कर सके। विस्तारण की प्रक्रिया में बहुत सी निजी कंपनियों के अलावा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) जैसे सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों ने भी परियोजना प्रारंभ कर दी है ताकि भविष्य में इस्पात की मांग की पूर्ति की जा सके।
इस्पात मंत्रालय के विशाल सार्वजनिक उद्यमों में से एक सेल की योजना अपनी हॉट मेटल क्षमता को वर्तमान की 13.82 मिट्रिक टन से बढ़ाकर 2012-13 तक 23.4 मिट्रिक टन करने की है। लगभग 72,000 करोड़ रुपए के साथ सेल के आधुनिकीकरण और विस्तारण की योजना अपने उन्नत चरण में है। इससे विक्रय योग्य इस्पात क्षमता में 11.07 एमटीपीए से 20.23 एमपीटीए का इजाफा होगा। यह क्षमता में 83 प्रतिशत की वृद्धि है। पिछले वर्ष दिसंबर तक लगभग 56,000 करोड़ रुपए के ऑर्डर को पूरा कर लिया गया और लगभग 32,000 करोड़ रुपए का व्यय किया गया। सालेम इस्पात संयंत्र में 0.18 एमटीपीए स्टेनलेस स्टील का निर्माण करने वाले नवीन केन्द्र का संचालन पहले ही शुरु किया जा चुका है।
इस्पात क्षेत्र में निम्नलिखित प्रमुख सुविधाओं की योजना है:-
भारत में इस्पात एक ऐसा उद्योग है जिसने भारतीय गणतंत्र की स्थापना की शुरुआत से ही राष्ट्रीय विकास में अपना योगदान दिया है। राष्ट्र की बुनियादी ज़रुरतों के विकास में सहयोग देने से लेकर अर्थव्यवस्था का उत्प्रेरक बनकर विकास को दिशा देने तक में, इसकी भूमिका एक मिश्र धातु से कहीं अधिक बढ़कर रही है।
इस्पात की वजह से संभव हो सके बहुआयामी विकास के बावजूद इसके इस्तेमाल को ठीक प्रकार से पहचान नहीं मिल सकी है। इस क्षेत्र में जो भी विकास हुआ है वह बुनियादी ढ़ांचों की प्रमुख परियोजनाओं और योजनाओं की पृष्ठभूमि में हुआ है। आनेवाले दस वर्षों में, भारत में इस्पात की मांग में दस प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) की गति से वृद्धि होने का अनुमान है। इस अवधि में भारत की इस्पात उत्पादन क्षमता में इसी दर से बढ़ोतरी होने का भी अनुमान है।
आकलनों से यह संकेत प्राप्त होता है कि, वर्ष 2020 तक भारत की इस्पात उत्पादन क्षमता 120 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी जबकि वर्तमान क्षमता 78 मिलियन टन है। यदि ग्रामीण भारत में इस्पात की मांग में वृद्धि होती है तो इसमें और अधिक बढ़ोतरी हो सकती है। इसके लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्यमों द्वारा बड़े पैमाने पर क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है। इस्पात मंत्रालय द्वारा समय पर किए गए रणनीतिक प्रयासों के कारण इसकी शुरुआत हो चुकी है।
अब देश में इस्पात उत्पाद में क्षमता वृद्धि पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है ताकि राष्ट्र इस्पात की घरेलू मांग के स्वयं पूरा कर सके। विस्तारण की प्रक्रिया में बहुत सी निजी कंपनियों के अलावा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) जैसे सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों ने भी परियोजना प्रारंभ कर दी है ताकि भविष्य में इस्पात की मांग की पूर्ति की जा सके।
इस्पात मंत्रालय के विशाल सार्वजनिक उद्यमों में से एक सेल की योजना अपनी हॉट मेटल क्षमता को वर्तमान की 13.82 मिट्रिक टन से बढ़ाकर 2012-13 तक 23.4 मिट्रिक टन करने की है। लगभग 72,000 करोड़ रुपए के साथ सेल के आधुनिकीकरण और विस्तारण की योजना अपने उन्नत चरण में है। इससे विक्रय योग्य इस्पात क्षमता में 11.07 एमटीपीए से 20.23 एमपीटीए का इजाफा होगा। यह क्षमता में 83 प्रतिशत की वृद्धि है। पिछले वर्ष दिसंबर तक लगभग 56,000 करोड़ रुपए के ऑर्डर को पूरा कर लिया गया और लगभग 32,000 करोड़ रुपए का व्यय किया गया। सालेम इस्पात संयंत्र में 0.18 एमटीपीए स्टेनलेस स्टील का निर्माण करने वाले नवीन केन्द्र का संचालन पहले ही शुरु किया जा चुका है।
इस्पात क्षेत्र में निम्नलिखित प्रमुख सुविधाओं की योजना है:-
1. राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) और इस्को इस्पात संयंत्र (आईएसपी) में ड्राई कोक को ठंडा करने वाले उपकरण के साथ नवीन 7 मीटर लंबी कोक ओवन बैटरियां।
2. आरएसपी और आईएसपी में सिंटर संयंत्र।
3. आरएसपी में नवीन 4060 एम3 ब्लास्ट फरनेंस।
4. बोकारो इस्पात संयंत्र में 1.2 एमपीटीए कोल्ड रोलिंग मिल।
विस्तारण परियोजनाओं के पूरा होने से इस्को (IISCO) इस्पात संयंत्र की क्षमता में 2.7 एमटी की वृद्धि होगी। सेल के बोकारो, भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर इस्पात संयंत्रो के नवीनीकरण का कार्य वर्ष 2012-13 तक पूरा हो जाने की संभावना है।
इससे होने वाली क्षमता वृद्धि का अनुमान इस प्रकार है:-
विस्तारण परियोजनाओं के पूरा होने से इस्को (IISCO) इस्पात संयंत्र की क्षमता में 2.7 एमटी की वृद्धि होगी। सेल के बोकारो, भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर इस्पात संयंत्रो के नवीनीकरण का कार्य वर्ष 2012-13 तक पूरा हो जाने की संभावना है।
इससे होने वाली क्षमता वृद्धि का अनुमान इस प्रकार है:-
संयंत्र | वर्तमान क्षमता (मिट्रिक टन) | विस्तारण के बाद क्षमता (मिट्रिक टन) |
बोकारो | 4.59 | 5.77 |
भिलkई | 4.08 | 7.50 |
राउरकेला | 2.00 | 4.50 |
दुर्गापुर | 2.09 | 2.45 |
* मीडिया और संचार अधिकारी, पसूका ***
30-जनवरी-2012 12:27 IST
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