कुलदीप शर्मा की चेतावनी
गत करीब दो महीनो से देश भर में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो माहौल बना है,मुझे उसमें एक बड़ी जनक्रांति की दस्तक सुनाई दे रही है...पहले गाँधीवादी अन्ना हजारे तथा बाद में योग शिक्षिक रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को मिला अभूतपूर्व जन-समर्थन अपने आप में एक इतिहासिक घटनाक्रम है....स्वतंत्र भारत में ऐसा जन-समर्थन शायद ही कभी किसी राजनेता को मिला हो..... ये घटनाक्रम राजनेताओं और सरकार के लिए गंभीर चेतावनी है...जब राजनितिक लोग जनापेक्षाओं के प्रति उदासीन हो जाते हैं,तो पहले तो आम आदमी के मन में निराशा उत्पन्न होती है और ये लम्बी निराशा की स्थिति धीरे-धीरे अविश्वास और फिर जनाक्रोश में परिवर्तित होती है...और यहाँ से क्रांति के अंकुर फूटने लगते हैं....अब कमोबेश देश का आम आदमी इसी मनोदशा में है. जब तक राज नेता अपने राज धर्म का अनुपालन करते हैं तब तक जनता उन पर भरोसा करती है,लेकिन जब आम आदमी गैर-राजनितिक लोगों को समर्थन देने लगे तो उसका सीधा सा अर्थ होता है कि आम आदमी के सामने राजनितिक विकल्प समाप्त हो गए हैं..ये स्थिति किसी भी राष्ट्र के लिए अत्यंत खतरनाक होती है...अन्ना हजारे तथा रामदेव को मिला जन-समर्थन असल में एक चौथाई भ्रष्टाचार के मुद्दे के कारण उन्हें मिला,बाकी तीन चौथाई जन-समर्थन उन्हें राजनेताओं के विरुद्ध निराशा के कारण मिला...इस हकीक़त को समझना आज के प्रत्येक राजनेता एवम जागरूक हिन्दुस्तानी के लिए अत्यंत आवश्यक है...हमारे सतापक्ष के नेताओं सत्ता का सरूर त्यग कर और विपक्षी नेताओं को सुविधा कि राजनीती का त्याग कर एकमत हो कर यह सोचना होगा कि देश का साधारण मानस आखिर चाहत क्या है? वो किस मूड में बैठा है?यदि ये राजनेता इसे गंभीरता पूर्वक नहीं लेंगे तो देश की क्षति होगी ही,लेकिन इन नेताओं की नैय्या भी डूब जाएगी,, रशिया, मिश्र ,तथा लीबिया जैसे देशों के नेताओं ने जन-साधारण के मूड को गंभीरता से नहीं लिया था,जिसके नतीजे इन देशों के नेताओं के साथ-साथ इन देशों को भी भुगतने पड़े....किसी गफलत में ने रहें इस देश के कर्णधार जनता मन बनाए बैठी है , अब गेंद नेताओं के पाले में है, निर्णय देश के नेताओं को करना है कि जनता कि अपेक्षाओं के अनुरूप शासन करना है अथवा देश को इक सामूहिक जन-क्रांति तक लेके जाना है......
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