गौरतलब है कि इस बैंड को सभी के सामने लाने वाले इसके संयोजक अनूप रंजन पांडे अपने छात्र जीवन से ही इस कला से जुड़े हुए हैं. बस्तर की आदिवासी संस्कृति की संपूर्ण झलक दिखाने वाला बस्तर बैंड अक्टूबर में होने वाले दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में धमाल मचाएगा। इसे उद्घाटन अवसर की चुनिंदा प्रस्तुतियों के लिए चुना गया है। अब देखना होगा कि इस संगीत से मायोवादियों के दिल और दिमाग में कौन सी संगीत लहरियां झंकृत होती हैं. --रेक्टर कथूरिया
Saturday, September 18, 2010
बच्चे, नक्सलवादी और बैंड
बंदूक के बल पर सत्ता पाने के प्रयासों में जुटे रक्तरंजित नक्सलवादी अब बच्चों के रोल माडल भी बन चुके हैं. आपको यह बात असत्य या कड़वी लग सकती है पर है यह हकीकत और यह हकीकत सामने आयी है बस्तर में करवाए गए एक सर्वेक्षण के दौरान.सर्वेक्षण में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए इन बच्चों ने सब से प्रथम चुनाव किया नक्सलवादियों का जबकि शिक्षा जगत से जुड़े लोग दूसरे नम्बर पर आये हैं. इसे पूरे विस्तार से प्रकाशित किया है राजकुमार ग्वालानी ने राजतन्त्र में. पढ़ने के लिए यहां चटखा लगायें. इसके साथ ही एक और कहबर आई है बस्तर के जंगलों से. उन्हीं जंगलों से जहां गोली की आवाज़ और बारूद की गंध शायद कोई नयी बात न लगती हो लेकिन वहां से अब आ रही हैं संगीत सवरियां.विस्फोट.कॉम में संजीव तिवारी बता रहे हैं कि हाल के वर्षों में देश दुनिया बस्तर को सिर्फ इसलिए जानती है कि वहां कब कहां कैसे कितने नक्सली मारे गये या फिर नक्सलियों ने कितने पुलिसवालों को मार गिराया है. लेकिन आदिवासियों की समृद्ध दैवीय परंपरा से एक ऐसा नाद उठ खड़ा हुआ है जो संगीनों की कर्कश आवाज को दबाने के लिए बस्तर से निकल पड़ा है. यह बस्तर बैण्ड है. आदिवासियों की अपनी पहल पर निर्मित हुए बस्तर बैंड देश दुनिया को बस्तर के इस परंपरागत स्वरूप से परिचय करा रहा है जो बस्तर के संगीत में विराजमान दैवीय नाद से श्रोताओं के अनहद को छू रहा है.लीजिये आप भी महसूस कीजिये जंगल के इस आदिवासी संगीत का दैवीय नाद. बस्तर बैंड के संयोजन, निर्देशन और परिकल्पना रंगकर्मी एवं लोककलाकार अनूप रंजन पांडेय कहते हैं कि हमारा प्रयास इस बैंड के रूप में बस्तर की अलग-अलग बोलियों और प्रथाओं को एक मंच पर लाने का है। आगे वे सहजता से स्वीकार करते हुए कहते हैं कि वे स्वयं इन कलाकारों से निरंतर सीख रहे हैं, विलुप्त होते आदिवासी वाद्य यंत्रों के संग्रहण के जुनून ने कब बस्तर बैंड की शक्ल अख्तियार कर ली पता ही नहीं चला। इस खर्चीले, श्रम समय साध्य उपक्रम की शुरुआत करीब 10 साल पहले हुई थी, लेकिन 2004 के आसपास बैंड ने आकार लिया। किसी बड़े मंच पर तीन साल पहले उसकी पहली प्रस्तुति हुई। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए बस यहां चटखा लगाना होगा.
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1 comment:
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने। आभार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
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