Friday, April 24, 2009
गीता से गीतांजलि तक मार्क्सवाद के साथ साथ
साहित्य एक कला भी है और हथियार भी - इस विचार को ले कर अपनी प्रथम पुस्तक के साथ किताबों की दुनिया में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने वाले ग्लेक्सी के तीखे तेवर अपने पुरे तर्क के साथ इस रचना में भी नज़र आते हैं. दुनिया भर के कुछ सत्यों का ज़िक्र करते हुए ग्लेक्सी ने याद दिलाई है - "कर्मयोग से पलायन तो गीता में भी सहन नहीं किया गया था.....!" साथ ही तीखा व्यंग्य भी है... किसी को इस बात का सहम है कि अगर कुछ कहा तो अँधेरा उसे सहन कैसे करेगा ?
गौरतलब है कि दशकों पूर्व किसी ज़माने में जाने माने पंजाबी शायर सुरजीत पात्र की ओर से उठाये गए इस सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर औलख कहते हैं - अँधेरे ने तो कभी भी सहन नहीं किया वह तो हिटलर के गैस चेम्बरों तक भी पहुंचा देता है, फांसी के फंदे पर भी लटका देता है और बंद बंद भी कटवा देता है. यह अँधेरे की फितरत है जो हमेशां रहेगी.........! अगर जिसम में जान और आत्मा में ज़मीर ही नहीं तो कलम उठाई ही क्यूँ थी ? पांच रुपयों की चूहे मारने वाली दावा हर गली के मोड़ पर मिल जाती है वही खा ली होती...! कम से कम कलम उठा कर पूरी मानवता को शर्मसार, कलंकित और लहूलुहान तो न किया होता...! दस्तावेजी और गल्प शैली के खूबसूरत आवरण में रची गयी कुल ११ कहानीयां इस पुस्तक में दर्ज हैं...
कवर पर लेखक का छदम नाम ही नज़र आता है लेकिन बैक कवर पर अपनी असली तस्वीर के साथ लेखक ने यह सवाल भी उठाया है-- फाशीवाद क्या है? नाजीवाद से इसका क्या रिश्ता है ? तालीबान, खालिस्तानी, तामिल-टाईगर्स, बाल ठाकरे और आर.एस.एस. इतियादी किस विचारधारा की प्रतिनिधिता करते हैं.लेखक का एक सुझाव भी है के कार्लमार्क्स अच्छा है या बूरा, गांधी सही है या गलत, हिटलर खराब है या बढ़िया...यह फैसला पाठकों को करने दो. हकीकत की सभी परतों को पाठकों के सामने पूरी तरह से नगन कर दो एक इमानदार पत्रकार की तरह....पर अपना निर्णय मत थोपो.
आओ देखें किताब का एक अंश :
मैं शैतानों के मुल्कों में घूमा. वे इसे लोकतंत्र कहते हैं.......पर उफ़ वहां बहुत गन्दगी थी.चारो तरफ गंदगी ही गंदगी. भर्ष्टाचार, बेईमानी, छल,वहां की जीवन जाच हैं... लोगों को बुद्धू बनाना सरकारों का हुनर है. घोटालों से देश के विकास को मापा जाता है. बैंक घोटाला, शेयर घोटाला, हवाला और गावाला घोटाला. सैनिकों के कफ़न तक खरीदने में घोटाले.
किताब में किडनी कांड वाले डॉ. अमित का भी जिक्र है सत्यम के राजू का भी और बहुत से कई ऐसे मामलों का जिन्हें देख-सुन कर दिन का चैन उड़ जाता था और रातों की नींद भी...या फिर रोंगटे खड़े हो जाते थे. इस पुस्तक में और भी बहुत कुछ है जिसे पढ़ खोखले साहित्य का मज़ा शायद न मिले पर अंतर आत्मा में कुछ झंकुरत होता हुआ ज़रूर महसूस होगा. जो आप को रुला भी सकता है और आंदोलित भी कर सकता है इस लिए अगर आप इसे पढ़ना ही चाहते हैं तो दिल और दिमाग दोनों को सावधान ज़रूर कर लें...बा मुलाहजा होशिआर... आ गयी है या फिर ( जा रही है ) "रब दी हकूमत"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
सरप्राइजिंग पोस्ट।
vishleshan parkar to lagta hai, this book should be a good read.
Post a Comment