Tuesday, July 11, 2017

2050 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा


11-जुलाई-2017 18:34 IST
विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष 
*सविता वर्मा
दुनियाभर में करीब 7.5 बिलियन लोग रहते हैं। वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर करीब 9 बिलियन होने का अनुमान है। जनसंख्या के लिहाज से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत की आबादी करीब 1.3 बिलियन है, और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़कर शीर्ष पर पहुंच जाएगा। बढ़ती आबादी के मद्देनज़र, लोगों का पेट भरने और संसाधनों को बनाए रखने संबंधी चिंताएं सरकारों, विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए सर्वोपरि और प्राथमिक सूची में हैं।
जनसंख्या संबंधी इन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। विश्व जनसंख्या दिवस पहली बार 1989 में तब मनाया गया था, जब विश्व की आबादी 5 बिलियन पहुंच गई थी। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की शासकीय परिषद् ने जनसंख्या संबंधी मुद्दों की आवश्यकता एवं महत्व पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने की अनुशंसा की थी। तभी से, जनसंख्या रुझान और बढ़ती जनसंख्या के कारण पैदा हुई प्रजननीय स्वास्थ्य, गर्भ निरोधक और अन्य चुनौतियों के बारे में विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रत्येक वर्ष विचार-विमर्श किया जाता है।
2017 विश्व जनसंख्या दिवस का मुख्य विषय ‘‘परिवार नियोजनः सशक्त लोग, विकसित राष्ट्र’’ है। इस वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर यह संयोग है कि परिवार नियोजन 2020 (एफपी 2020) पहल के तहत दूसरा परिवार नियोजन सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है। इस परिवार नियोजन 2020 का उद्देश्य वर्ष 2020 तक 120 मिलियन अतिरिक्त महिलाओं तक स्वैच्छिक परिवार नियोजन को पहुंचाना और उसे सुगम बनाना है।
आंकड़े बताते हैं कि विकासशील देशों में करीब 214 मिलियन महिलाएं जोकि गर्भधारण नहीं करना चाहती हैं, वे परिवार नियोजन की सुरक्षित एवं प्रभावशाली विधियों को नहीं अपना रही हैं। ऐसे में इस वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस का विषय विशेष रूप से प्रासंगिक है। गर्भनिरोधक की मांग करने वाली ज़्यादातर महिलाएं सबसे गरीब 69 देशों से आती हैं। पर्याप्त स्वास्थ्य नियोजन सेवाओं का अभाव महिलाओं के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है। समाज और परिवार से प्राप्त होने वाली सूचनाएं अथवा सेवाएं अथवा समर्थन तक पहुंच के अभाव की वजह से महिलाएं इन सेवाओं का फायदा लेने में सक्षम नहीं हैं।
आबादी को स्थिर करने में इसके महत्व को देखते हुए, सुरक्षित एवं स्वैच्छिक परिवार नियोजन विधियों तक पहुंच को मानव अधिकार और लिंग समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए केंद्रीय माना जाता है। इसे गरीबी कम करने के प्रमुख कारक के रूप में भी देखा जाता है। परिवार नियोजन उपलब्ध कराने की दिशा में निवेश आर्थिक वृद्धि को बल देने के साथ विकास को भी बढ़ावा देता है।
विशाल आबादी वाले भारत में भी परिवार नियोजन संबंधी तमाम ऐसी आवश्यक ज़रूरतें हैं, जिन्हें अभी तक पूरा नहीं किया है, मगर सरकार इससे निपटने की दिशा में कार्य कर रही है।
वर्ष 2001 से 2011 के मध्य भारत ने दुनिया की कुल जनसंख्या में 181 मिलियन का योगदान दिया है, जोकि ब्राज़ील देश की कुल आबादी से थोड़ा ही कम है। भारत में अधिकांश आबादी गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि रखने वाले लोगों के बीच बढ़ी है। भारत की विशाल जनसंख्या के बारे में एक तथ्य यह है कि सरकार के अनुमान के अनुसार वर्ष 2035 तक भारत की आबादी बढ़कर 1.55 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जोकि देश के लिए एक चुनौती एवं अवसर दोनों है। चूंकि इस जनसंख्या में से 60 फीसदी से भी अधिक लोग 40 वर्ष या उससे कम आयु के युवाओं की श्रेणी में होंगे, ऐसे में यदि इन युवाओं को कौशल विकास के क्षेत्र में शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाता है तो यह देश के आर्थिक विकास में अहम योगदान देंगे। मगर इस विशाल जनसंख्या को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना, ताकि वे स्वस्थ रहकर देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दे सकें, यह सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2035 तक करीब 223 मिलियन तक पहुंचने वाली वृद्ध आबादी की देखभाल करना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी, जिसके लिए निवारक, उपचारात्मक और वृद्धावस्था देखभाल की आवश्यकता होगी।
भारत के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए। ईस्ट एशिया फोरम में आईएमटी नागपुर के रंजीत गोस्वामी द्वारा प्रस्तुत किए गए एक लेख के अनुसार, वर्ष 2050 में जल की मांग वर्ष 2000 की तुलना में करीब 50 गुना अधिक होने का अनुमान है, वहीं दूसरी और खाद्य पदार्थों की मांग भी दोगुना होने का अनुमान है। औसतन, एक टन अनाज का उत्पादन करने के लिए करीब एक हजार टन जल की ज़रूरत होती है। यही वजह है कि भारत के विभिन्न राज्यों में जल विवाद से मुद्दों को तेज़ी से दोहराया जा रहा है, जहां सर्वोच्च न्यायालय को अक्सर इस तरह के विवादों में हस्तक्षेप करने की ज़रूरत पड़ रही है।
अनुमानों को एक तरफ रखते हुए, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल प्रजनन दर वर्ष 2008 में 2.6 से घटकर 2.3 पर पहुंच गई है। भारत 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर तक पहुंचने से सिर्फ 0.2 अंक दूर है। वास्तव में, 24 राज्यों ने पहले ही प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता को हासिल कर लिया है और करीब 60 फीसदी आबादी पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब सहित प्रजनन क्षमता हासिल करने वाले या निकट भविष्य में हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे राज्यों में रहती हैं।
सरकार अब परिवार नियोजन उपायों को तेज़ कर रही है। सरकार ने 146 ऐसे ज़िलों को चिन्हित किया है, जहां कुल प्रजनन दर प्रति महिला तीन बच्चों से अधिक है, ताकि इन जगहों पर विशेष ध्यान दिया जा सके। ये जिले उत्तर-प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और असम राज्यों में हैं और भारत की कुल आबादी में इनका करीब 28 फीसदी का योगदान है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय परिवार नियोजन सेवाओं की सुगमता, जागरूकता सृजन और परिवार नियोजन विकल्प की उपलब्धता को बेहतर बनाने के लिए इन ज़िलों में “मिशन परिवार विकास” नामक कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रही है।
इसके अलावा, सरकार पहले से ही लड़कियों के विवाह की उम्र को बढ़ाने और पहले बच्चे को पैदा करने में देरी करने और दूसरे बच्चे के बीच बड़ा अंतर रखने को बढ़ावा देने के लिए विशेष रणनीति पर कार्य कर रही है। इस रणनीति को अपनाने वाले जोड़ों को सुविधानुसार पुरस्कृत किया जाता है। संतुष्टि स्ट्रेटजी, जनसंख्या स्थिरता कोष नामक अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत सरकारी निजी भागीदारी के तहत नसबंदी करने के लिए निजी क्षेत्र के स्त्री रोग विशेषज्ञों एवं शल्य चिकित्सकों को आमंत्रित किया गया है। निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने वाले निजी अस्पतालों/नर्सिंग होम रणनीति अनुसार समय-समय पर पुरस्कृत भी किया जाता है।

*लेखिका 18 वर्ष से अधिक का अनुभव रखने वाली वरिष्ठ विज्ञान एवं स्वास्थ्य पत्रकार हैं। वर्तमान में वह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। इससे पहले वह पीटीआई के अलावा कई अन्य प्रमुख समाचारपत्रों में सेवारत रही हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के स्वयं के हैं।
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