Tuesday, May 13, 2014

धर्म बल ही सबसे बड़ा बल है--श्री श्री आनंद मूर्ति

धर्म साथ है तो जय तुम्हारी जेब में है-14:मई अवतरण पर विशेष 
मनुष्य के सामने दो रास्ते हैं-एक श्रेय का रास्ता ओर दूसरा प्रेय का रास्ता। प्रेय के रास्ते में क्षणिक सुख है ओर अंत में मिलता है दुःख। श्रेय का जो रास्ता है, हो सकता है, उस पर चलने से सामयिक रूप से दुःख हो, किन्तु अंततः उसी पर चलने से कल्याण होता है। 
मनुष्य जब प्रेय का रास्ता अपना लेते हैं, तो वे युक्ति से परिचालित नहीं होते हैं, भावप्रवणता(सेंटिमेंट) से चलते हैं, ओर जब श्रेय का रास्ता अपना लेते हैं तो उस वक्त भी युक्ति से नहीं, कल्याणबोध के भाव से चलते हैं। वे सोचते हैं कि यह काम जो मैं कर रहा हूँ वह कल्याण का काम है, इससे मनुष्य की सेवा होगी, मनुष्य की भलाई होगी। 

'युक्ति ' शब्द का अर्थ है किसी भी बात के साथ दिल मिल जाना,किसी भी थ्योरी के साथ दिल मिल जाना। जहाँ कल्याण बोध है, वहाँ भी वही बात है अर्थात वहाँ परमपुरुष से दिल मिल जाता है। इसलिए मनुष्य चलेंगे आदर्श के अनुसार श्रेय की राह पर। प्रेय की राह पर आपात सुख है, किन्तु अंत में दुःख है। किसी भी प्रकार से उस रास्ते पर चलने की सलाह नहीं देनी चाहिए और कहना चाहिए कि कल्याण के पथ पर चलो, जिससे व्यक्ति का भी कल्याण हो और सामूहिक जीवन का भी कल्याण हो। 

कल्याण की राह जिन्होंने अपनायी है, उनको हमेशा यह याद रखना चाहिए कि दुनिया में ऐसे बहुत से लोग होगें जो किसी को अच्छा काम करने नहीं देना चाहते हैं। ऐसे आदमी बहुत कम रहते हैं जो खराब काम में बाधा डालते हैं, अड़ंगा लगाना चाहते हैं। 

मनुष्य कि सहज मानसिकता यही है कि जो भी अच्छा काम करना चाहता है उससे लोग भयभीत हो जाते हैं, कि अच्छे कर्म करने के कारण यदि इस आदमी को प्रतिष्ठा मिल गयी तो मेरी प्रतिष्ठा नष्ट हो जाएगी और लोग मुझे नहीं मानेगें। इसी भावना से प्रेरित हो कर वे अच्छे आदमी का विरोध करते हैं। सही बात यही है। इसीलिए कहा गया है-

"निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि व स्तुवन्तु, 

लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु व यथेष्टम। 

अद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे व, 

न्यायात पथः प्रविचलन्ति पथं धीराः।"

अगर बड़े-बड़े पंडित निंदा करते हैं और कहते हैं कि ऐसा काम नहीं होने देंगे तो उनके विषय में पता लगाने से पता लगेगा कि वे खुद निक्कमे हैं। खुद कुछ कर पाने की कूवत नहीं है, कुछ करने की ख्वाहिश भी नहीं है, केवल उनका एक ही काम है दूसरों के काम में बाधा डालना। अगर वे विरोध करते हैं तो उन्हें विरोध करने दो। हम अपने आदर्श पर चलेंगे। हमें कल्याणबोध से प्रेरित हो कर आगे बढ़ना है। 

बड़े-बड़े पंडितों का एक स्वाभाव और है कि वे जब यह देखते हैं कि इस व्यक्ति का समर्थन अधिक लोग करने लगे तो वे भी उसका समर्थन करने लगते हैं। खतरे के समय में बोलेंगे कि हम उनके समर्थक नहीं हैं, किन्तु प्रशंसा के समय में  बोलेंगे कि हम तो उनके सबसे बड़े समर्थक थे और हैं भी। इसलिए उन लोगों कि प्रशंसा या निंदा की कोई कीमत नहीं है। तुम अपने आदर्श के अनुसार अपनी राह पर चलते रहोगे। कौन तुम्हारी निंदा कर रहे हैं, कौन तुम्हारी स्तुति कर रहे हैं, उनकी ओर ताकना तुम्हारा काम नहीं है। ताकने में भी समय बर्बाद होता है। तुम्हारा समय बहुत कीमती है। अतः तुम उधर नहीं ताकोगे।

तुम्हारे कर्म के कारण यदि लक्ष्मी तुम्हारे घर में आ गयी तो भी कोई बात नहीं है, और अगर वह कहती है मैं यहाँ नहीं रहूंगी तो भी कोई बात नहीं है। उनसे तुम कहोगे, तुम जहाँ चाहो जाओ। 

तुम लोग वह कहानी जानते हो कि एक राजा थे, जो बड़े धार्मिक थे, अच्छे आदमी थे, उनकी बात की बड़ी कीमत थी। तुम लोग जानते हो जिस की बात में वजन नहीं है उस मनुष्य का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने एक बाज़ार लगवाया। किन्तु लोग उस बाज़ार में जाना नहीं चाहते थे। अतः राजा का आदेश निकला कि यदि कोई व्यक्ति वहाँ सामान बिक्री के लिए आयेंगे और यदि बिक्री नहीं हुई तो संध्या के समय राजा वह सब सामान ख़रीद लेंगे। 

देहात के एक शिल्पी थे। वे अलक्ष्मी की एक मूर्ति बना कर लाये थे उस बाज़ार में बेचने के लिए। संध्या तक मूर्ति बिकी नहीं, क्योंकि अलक्ष्मी की मूर्ति को कौन खरीदता। संध्या के समय राजा ने उसे ख़रीद लिया। राजा ने तो वचन दिया था, इसलिए उन्होंने ख़रीद लिया। उसके बाद रात में राजा एक आवाज सुन रहे हैं कि कोई औरत रो रही है। राजा वहाँ गए और देखा कि एक औरत रोते हुई राजप्रसाद से बाहर जा रही है। राजा ने पूछा,"क्यों माँ ! क्यों रो रही हो और क्यों इतनी रात को बाहर जा रही हो ?" तो उस औरत ने कहा," मैं राजलक्ष्मी हूँ। इस घर में तुमने अलक्ष्मी को ला कर रख दिया है, तो में यहाँ कैसे रह सकती हूँ, मैं यहाँ नहीं रह सकती हूँ।"

तो राजा ने कहा, "अलक्ष्मी को इसलिए रखा गया  है कि  मैंने वचन दिया था कि बिकने से बचा हुआ सामान राजा ख़रीद लेंगे, इसलिए उसे ख़रीदा गया।" लक्ष्मी ने कहा,"नहीं, मैं  नहीं रहूंगी।" राजा ने कहा,"मैं धर्म के पथ पर हूँ, मैंने अन्याय नहीं किया है। " तो लक्ष्मी ने कहा,"नहीं,मैं रहूंगी नहीं।" फिर राजा ने कहा,"ठीक है, तुम जैसा उचित समझो करो।" इस पर लक्ष्मी चली गयी।

उसके बाद राजा फिर सुन रहे हैं खट-खट की आवाज, जूते की आवाज। राजा वहाँ गए और देखा कि एक पुरुष निकल रहे हैं। तो राजा ने पूछा,"कौन है ?" तो वह पुरुष बोले,"मैं नारायण हूँ।" राजा बोले," क्या बात है ?" नारायण बोले कि,"लक्ष्मी चली गयी तो मैं कैसे रह सकता हूँ, मैं भी जा रहा हूँ।" राजा ने कहा," क्यों जा रहे हैं आप?" तो नारायण बोले," अलक्ष्मी क्यों रखे हो?" तो राजा बोले कि,"धर्म के कारण रखे हैं, वचनबद्ध हैं इसलिए रखे हैं।" तो नारायण बोले कि,"मैं नहीं रहूँगा।" तो राजा बोले,"जो चाहो करो " नारायण भी चले गए।

उसके बाद छोटे-बड़े-मझोले सभी देवता जाने लगे और सभी चले गए। राजा ने कहा,"ठीक है,जो चाहे ये लोग करें,धर्म मेरे साथ है।"

जब सब चले  गए तो अंत में एक और देवता निकलने लगे,तो राजा बोले,"आप कौन हैं?" तो वे बोले," मैं धर्मराज हूँ।" तो राजा बोले कि ,"तुम क्यों जाते हो?" धर्मराज बोले,"सब देवता चले गए। नारायण चले गए,लक्ष्मी चली गयी, तो मैं कैसे रहूँ? कोई देवी-देवता नहीं है।" तो राजा बोले,"देखो धर्मराज तुम नहीं जा सकते हो, क्योंकि धर्म के कारण ही न मैंने अलक्ष्मी को रखा है, इसलिए तुम कैसे जा सकते हो?" धर्म बोला,"हाँ राजा, यह बात तो तुम ठीक कह रहे हो। तब मैं रह जाऊँगा।" फिर धर्म रह गया। उसके बाद नारायण फिर वापस आ गए और राजा से बोले,"राजा फाटक खोलो। राजा बोले,"क्यों जी?" नारायण बोले,"फाटक खोल दो, धर्म जहाँ रहेंगे वहीं न नारायण रहेंगे।" तब राजा अपने सुरक्षा सैनिकों से बोले,"अच्छा खोल दो फाटक।" फाटक खुल  गया तो नारायण धीरे-धीरे अंदर आ गए।

फिर उसके बाद देखा कि घूँघट काढ़े एक औरत भी आने लगी है तो राजा ने पूछा," तू कौन है?" औरत बोली,"मैं राजलक्ष्मी हूँ।" राजा बोले," तुम तो चली गयी थी।" राजलक्ष्मी बोली,"नारायण जहाँ रहेंगे मैं भी वहीं रहूंगी।" तो राजा सुरक्षा सैनिकों से कहा कि,"ठीक है उसको भी आने दो।" तो वह भी आ गयी। उसके बाद सभी छोटे-बड़े-मझोले देवी-देवता सब घुसने लगे। कोई खिड़की से, कोई स्काईलाईट  (रोशनदान) से घुसने लगे। सभी बोलने लगे,"धर्म जहाँ है,नारायण जहाँ हैं,हम भी वहीँ रहेंगे।" अंततः धर्म की जय हो गई।

सच्चे मनुष्य धर्म के साथ रहेंगे। कौन प्रशंसा कर रहे हैं, कौन निंदा कर रहे हैं उसकी ओर ताकेंगे नहीं। धर्म साथ है-धर्मबल सबसे बड़ा बल है ओर धर्म बल जिनके पास है उनके सामने दुनियावी शक्तियाँ कुछ भी मह्त्व नहीं रखतीं। तुम लोग धर्म के साथ हो, धर्म के साथ थे और धर्म के साथ रहोगे, किसी से डरना नहीं,किसी भी हालत में घबराना नहीं। जय के लिए हाहाकार करना नहीं। तुम जय के पीछे दौड़ते नहीं रहोगे। जय तुम्हारी जेब में है। जय तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ती रहेगी।
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