Sunday, September 15, 2013

प्रभात संगीत पर हुआ विशेष आयोजन

आनन्द मार्ग आश्रम लुधियाना में हुआ क्वालियों का गायन
                                                                                     --Click here to see the video of this song 
लुधियाना: 14 सितम्बर 2013: जब सारा हिंदी जगत 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मना रहा था आनन्द मार्ग में एक  अलग सा ही दिन था   था। आनन्द मार्ग के  में फैले स्कूलों, आश्रमों और अन्य संस्थानों में को प्रभात संगीत दिवस के तौर  रहा था। गौरतलब है कि आनन्द मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनन्द मूर्ति उर्फ़ प्रभात रंजन सरकार ने 14 सितम्बर 1982 को प्रभात संगीत की अनमोल संगीत इस विश्व को दी। प्रभात संगीत केवल  प्रभात संगीत नहीं बल्कि इस के स्वरों और गीतों में  सुबह अर्थात प्रभात का उजाला मिलेगा, सुबह के उगते हुए सूर्य की लालिमा मिलेगी जो तन मन के साथ साथ दिल और दिमाग की कालिमा को भी पल भर में दूर कर देगी।
लुधियाना के न्यू कुन्द्न्पुरी इलाके में स्थित आनन्द मार्ग आश्रम में प्रभात संगीत के आयोजन का निमन्त्रण मुझे अचानक मिला। सामने काम का अम्बार लगा था और स्वास्थ्य की गडबड़ी अलग थी। जाने का कोई मन नहीं था पर आश्रम के इंचार्ज आचार्य गोविंदानन्द जी को इनकार भी नहीं कर पाया। जा कर देखा तो वहां बच्चों के गीत संगीत मुकाबिले चल रहे थे। पहले बुलाया गया नये बच्चों को। ये बच्चे गीत संगीत की कोई खास जानकारी नहीं रखते थे पर इन्हें बोलने का मौका देकर इनके जीवन में एक नया उत्साह जगा दिया गया था। इनमें संगीत की एक लग्न पैदा हो गयी थी।  लेकिन मुझे तो बोरियत हो रही थी लम्बित पढ़ा काम याद आ रहा था---कार्यक्रम के समापन का इंतजार तेज़ हो रहा था कि इतने में ही इन बच्चों की दीदी रत्न ज्योति जो कि छोटे हैबोवाल में स्थित आश्रम की इंचार्ज भी हैं और स्कूल की प्रिंसिपल भी; ने स्वयं माईक सम्भाला। ढोलक की थाप बदली, हारमोनियम के सुरों की आवाज़ बदली----कवाली शुरू हो चुकी थी---बाबा के रचे 5018  गीतों में से एक गीत के बोल थे;
अंखियां तुम्ही को चाहती हैं--पाने को प्यासी हैं !
सबकी बोरियत दूर हो चुकी थी--सब ताली से ताली मिला रहे थे---सब के सब झूम रहे थे--सब के सब गा रहे थे---ताल से ताल मिली हुई थी------सुर से सुर मिली हुई थी…… !! सब मस्त हो चुके थे---!
इतने में दीदी गीत की अगली पंक्ति के बोल कह रही थी---
वृन्दावन के  वन  वन में,
ब्रजवासी के मन मन में। 
जमुना के काले नीर में;
एक मोहन ही रमता है।।
तालियों में पूरा हाल मस्त हो चूका है---दीदी की गई कवाली जादू सा असर कर रही है! दीदी इसी गीत अगले बोल कह रही है---:
धेनु चले तुम्हारी खोज में,
वेणु बोले तुम्हारी आश में।  
कोयल* रोये खोने की लाज में;  
बिना चाँद अँधेरा है।।**
इस कवाली के साथ ही कार्यक्रम के समाप्त का इंतज़ार सभी भूल चुके थे और हर ओर से फरमायश आ रही थी एक और--एक और--! दुःख और गमों की मारी ज़िंदगी में जैसे किसी आब-ए-हयात  की बरसात हो रही हो!
दिलचस्प बात है की इस गीत में ज्ञान का एक भंडार भी छुपा है। आम तौर पर हम यही कहते और समझते हैं की कोयल बोल रही है---बहुत से शायरों ने कोयल बोली जैसे गीत भी लिखे---फिल्मों में इनका शुमार भी हुआ लेकिन बाबा इसी गीत की एक पंक्ति में कहते हैं कोयल तुम्हारे खो जाने की लज्जा में रो रहा है। बाबा स्पष्ट करते हुए कहते हैं---कि केवल नर कोयल ही बोलता है और मादा कोयल की तो आवाज़ ही नहीं होती। उत्तर प्रदेश के पश्चिम दिशा में इलाहबाद से लेकर आगरा तक के इलाके में बोली जाती ब्रजभाषा में लिखा गया यह गीत भी बाबा के लिखे गये पांच हजार से भी अधिक गीतों के खजाने में से एक है।
प्रभात संगीत के इस स्वर पर बहुत से और गीत भी गए जिनका विवरण समय समय पर फिर कभी सही।कार्यक्रम देर रात तक जारी रहा। प्रतियोगिता में विजेता बच्चों को पुरस्कार देने की रस्म जाने माने समाज सेवी अशोक चावला ने अदा की। आनन्द मार्ग के लुधियाना स्थित आश्रम ने कई बाल कलाकार भी पैदा किया हैं जिनका परिचय आपको भविष्य में कराया जाता रहेगा। फिलहाल रात काफी हो चुकी है सो इजाज़त दीजिये। --रेक्टर कथूरिया (सहयोग: दिलजोत और कार्तिका) 

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