Wednesday, April 24, 2013

पहले से अधिक बड़ा रहा इस बार का पीरखाना मेला लेकिन----

इक बाप के दो बेटे--किस्मत जुदा जुदा है
इक अर्श पर खड़ा है--इक मांगता गज़ा है
लुधियाना: (पंजाब स्क्रीन टीम): न्यू पीरखाना दरबार लुधियाना के प्रमुख सेवादार बंटी बाबा ने करीब दो वर्ष पूर्व एक अंतरंग भेंट में स्पष्ट कहा था कि मेरा जीवन इन सब लोगों का है---मेरा जीवन एक खुली किताब है---इसके साथ ही उन्होंने कहा था--मैं एक व्यापरी पुत्र हूं---इस लिए आदत से मजबूर---भगवान् के मामले में भी घाटे का सौदा कैसे कर सकता हूं---मैं जानता हूं मैं कुछ भी नहीं---मेरी औकात एक बूंद भर भी नहीं----अगर मांगने जाऊं तो भी जो मांगूंगा वह मेरी अपनी औकात की तरह बहुत तुच्छ ही होगा।।बहुत ही मामूली----बूँद होकर सागर से मुकाबिला सम्भव ही नहीं----इसलिए बूँद को सागर में मिलना होता है तभी वह सागर बनती है----उस समय मैंने भी इस बात को बाबा का प्रवचन समझा ....और बात आई गई हो गई। लेकिन अब जब 2013 का मेला सजा तो बंटी बाबा की दो वर्ष पूर्व कही बात समझ में आने लगी----आसपास के लोगों ने बताया कि जिस दुकान का भाव कुछ वर्ष पहले तक एक लाख रुपया भी नहीं मिलता था वह दूकान अब साढ़े बारह से लेकर 15-15 लाख तक बिकने लगी है। जो लोग काकोवाल रोड पर रहना बुरा समझते थे--यहाँ रहना खतरे की बात समझते थे---या यहाँ बसना उन्हें अपने स्टेट्स के
दैनिक भास्कर से साभार 
मुताबिक नहीं लगता था वही लोग अब यहाँ किसी भी भाव पर जमीन, प्लाट, दूकान या मकान लेकर बस यहीं बसना चाहते है...गीत संगीत और फ़िल्मी दुनिया के कई कलाकार इस दरबार के नजदीक रहने के प्रयासों में हैं तांकि वे अधिक से अधिक समय कला के लिए निकाल सकें---इस दरबार के शुरू होने से पूरी रोड और पूरे इलाके का भाव बढ़ गया---गरीब लोग अपनी जमीन/मकान के कुछ टुकड़े बेच कर रातोरात अमीर बन गए हैं ---यह वही जमीन थी जो कभी उन्हें कौड़ियों के भाव बिकती भी नजर नहीं आती थी--जिसे वे बेकार समझते थे--। जब जमीन के भाव आसमान छूने लगे तो अब समझ में आने लगा कि बूँद सागर कैसे बनती है ! गौरतलब है कि बाबा अब भी यहाँ आने वाले श्र्द्धालूयों से यही कहते हैं मुझ से नहीं पीर बाबा से मांगो---
लोग श्रद्धा से दरबार में जाते हैं--अदब से सर झुकाते हैं और अपने सभी कामों और फिकरों की ज़िम्मेदारी पीर बाबा को सौंप आते हैं---जल्द ही जब उनका काम पूरा हो जाता है तो मन्नत पूरी होने के बाद लोग फिर फिर आते हैं और अपने वादे के मुताबिक यहाँ प्रसाद चढ़ाते हैं---इस तरह यह सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है----छोटे बड़े, अमीर गरीब, हिन्दू सिख, महिला पुरुष यहाँ सब आते हैं---!
दैनिक जागरण से साभार

पर यहाँ बाबा के आसपास कुछ ऐसे लोग भी जुटने लगे जो समझते हैं कि बस जो करते हैं हमीं करते हैं---लगता है इन लोगों को  न पीर बाबा का डर है---न ही बंटी बाबा का। ये कुछ ऐसे लोग हैं जो बहुत ही मेहनत और प्रेम से बनी खीर पर राख डालने का काम करते हैं---सिर्फ इसलिए तांकि   का   सकें---  अपने अपने स्वार्थ में लिप्त ये लोग जिसको भी अपने रास्ते की रुकावट समझते हैं उसे हटाने के साजिशों में जुट जाते हैं---जिस दरबार में बंटी बाबा सब को गले लगाते हैं---- उसी दरबार में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सजदा करने के मामले में भी आम गरीब जन साधारण को वहां ठीक से सजदा नहीं करने देते---पास ही बीटी माडल स्कूल की गली में रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि जब गुरदास मान के आने की घोषणा हुई तो एक ऊंचे मंच पर बने पीर बाबा हैदर शेख के दरबार में वे लोग माथा  टेकने ही वाले थे---बस इतने में ही वहां मौजूद प्रबंधकों ने उन्हें ऐसे पकड़ कर आगे धकेला जैसे धोबी कपड़े फेंकता है---एतराज़ करने पर वहां का एक चौधरी बोला तुम लोगों की औकात ही क्या है---बताने वाला कह रहा था---मेरा दिल चाहा उसे थप्पड़ मारूं--लेकिन मेरे भाई ने मुझे पकड़ लिया---और कान में कहने लगा---कुछ मत कहो---उल्टा सब लोग हमें पकड़ कर पीट देंगें---जो हमें अपनी औकात बता रहे हैं---पीर बाबा और बंटी बाबा ही इन्हें इनकी अपनी असली औकात बतायेंगे----
दैनिक सवेरा से साभार 
.....जब इनसे कहा गया कि आप लोग बंटी बाबा को सब बता दो---जवाब था--न जी न---जो लोग भरे दरबार में बंटी बाबा और पीर बाबा की प्रवाह नहीं करते--वे हमें कब छोडेंगे----? कुछ और पूछने पर इन लोगों ने औकात बताने वाले और पीटने के अंदाज़ में आगे धकेलने वाले का हुलिया भी बताया जिसे यहाँ जानबूझ कर नहीं दिया जा रहा---बहुत हैरानी हुई---धार्मिक स्थान---धार्मिक आयोजन---सूफियाना महफिल पर कितनी दहशत है लोगों के दिलों में---सुन कर दिल को दुःख हुआ---साथ ही चिंता कि तेज़ी से बढ़ रहे जमीन के भावों पर कहीं यह दहशत ब्रेक न लगा दे।
यह तो हुई आम गरीब जन साधारण से दुर्व्यवहार की बात---पर कुछ लोग पहुँच वाले होते हैं---वहां उनसे गलत सलूक नहीं हो सकता---उन्हें इस तरह औकात नहीं बताई जा सकती---तो इस तरह के मामलों में गुटबंदी होती है…राजनीति होती है---और किसी न किसी बहाने मामला पहुँच जाता है बंटी बाबा के पास---हालाँकि बाबा इन लोगों को कई बार डांट चुके है--झाड़ चुके हैं--- साफ़ साफ़ कह चुके हैं---देखो मेरे पास किसी की शिकायत लेकर मत आया करो---पर साजिशी गुट सरगर्म रहते हैं--इसको बुलाना है---उसको नहीं बुलाना---इसके स्टेज पर चढने देना है---इसको रोकना है---यह सब मीडिया के साथ भी चलता रहा…मेले के मौके पर भी---मीडिया के कुछ मित्र लोगों को कोल्ड ड्रिंक्स पिलाई जा रही थी---जबकि कुछ नए लोगों को पीने वाला पानी देने से भी इनकार किया जा रहा था---मेले के अंतिम दिन तक यही हाल था---कुछ लोग मुख्य मंच पर थे
पंजाब केसरी से साभार 
--कुछ आम संगत के आगे बैठ गए----कुछ बंटी बाबा के मंच पर भी पहुंचे हुए थे--कुछ बिलकुल सामने और कुछ को वहां बैठाया गया जहाँ बिलकुल सामने एक पिल्लर था और न तो मंच नजर आता था--न ही बोलने वाला---अपमानित महसूस करते हुए कुछ मीडिया वाले गुस्से से बाहर भी आ गए---- सोच रहा था इस धार्मिक दरबार में यह सब क्या हो रहा है ??? बंटी बाबा से पूछना चाहा---पर बंटी बाबा तो दूर थे---बहुत ऊंचे मंच पर और रास्ते में थी उनकी दीवार जो केवल जान  पहचान वालों को ही पास जाने का रास्ता देती थी---सोच रहा था---यह सब क्या है---इतने में एक सूफी गायक की आवाज़ आई----नाम था शायद शौकत अली---आवाज़ आ रही थी---
इक बाप के दो बेटे--किस्मत मगर जुदा है---
इक अर्श पर खड़ा है---इक मांगता गज़ा है------
दूर से देखा---बंटी बाबा मस्ती में सर हिल रहे थे---फिर झूमने लगे  और फिर उठ कर उसे इनाम देने भी गए---
दिलचस्प बात है कि किस्मत और जिंदगी में कदम कदम पर फैला हुआ अर्श और फर्श का यह अंतर मीडिया की कवरेज में भी नज़र आया---तीन प्रमुख अख़बारों में इस सूफी महफिल की रिपोर्ट अलग अलग थी---पर सूफी शायरी और गायन की दो चार पंक्तियाँ  किसी भी रिपोर्ट का हिस्सा न बन सकीं---न जाने यह यह आगे से भी आगे न बैठ पाने की नाराजगी थी---या फिर विज्ञापन कम मिलने का गिला---या बैठने की दुर्व्यवस्था का परिणाम ???? 
बंटी बाबा यहाँ कभी डांट कर और कभी प्रेम से सभी से यही कहते हैं कि शराब का सेवन मत करो---उनके उपदेशों में यह बात प्रमुख है-- इसका ज़िक्र बार बार होता है---हर गुरुवार और हर मंगलवार को भी इसकी चर्चा रहती है------पर नारी या पर पुरुष की तरफ  आँख उठाने से भी बाबा मना करते हैं----पर मेले के आखिरी दिन जब गुरदास मान के गीत अभी चला ही रहे थे कि पटवारी और पत्रकार स्तर के कुछ लोग वीआईपी पंडाल से भी उठ कर चले आये क्यूंकि शराब में तल्ली हुए कुछ लोग शराब की बदबू से इस सूफियाना रंग में रंग में भांग डालने आये हुए थे---इन लोगों को न तो बच्चों का कुछ ध्यान था और न ही महिलायों का---ये सब के ऊपर गिरते जा रहे थे---भक्त और श्रद्धालू परेशान थे कि ये लोग पीर बाबा के कहर से भी नहीं डरते---
(पंजाब स्क्रीन टीम)

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