Thursday, January 24, 2013

लगभग 7.56 मिलियन लोगों को रोजगार

24-जनवरी-2013 13:08 IST
विशेष लेख:राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि करता रेशम उद्योग
वस्त्र
रेशम भारतीयों की जिंदगी और संस्कृति में घुला-मिला है। रेशम उत्पादन में भारत का समृद्ध और व्यापक इतिहास रहा है और रेशम के व्यापार का इतिहास 15वीं सदी से चला आ रहा है। रेशम के व्यापार के लिए प्रचलित सभी पांचों प्रकार के रेशम- मल्बेरी, उष्णकटिबंधीय तसार, शाहबलूत तसार, इरी और मुगा भारत की विशिष्टता है। इनमें से सुनहरा मुगा भारत की अनूठी विशिष्टता है। भारत के परंपरागत और सांस्कृतिक घरेलू बाजार और रेशम वस्त्रों की उत्कृष्ट विविधता की वजह से भारत रेशम उद्योग में अग्रणी स्थान रखता है।
  पिछले छह दशकों में भारतीय रेशम उद्योग ने प्रभावी वृद्धि दर्ज की है। केन्द्रीय और राज्य की एजेंसियों द्वारा कार्यान्वित योजनाओं और हजारों समर्पित लोगों के अथक प्रयास इस संदर्भ में काफी मददगार रहे हैं।  उदाहरण के लिए मल्टीवोल्टीन संकर की प्राचीन परंपरा का स्थान मल्टीवोल्टीन एक्सबाइवोल्टीन और बाइवोल्टीन संकर रेशम ने ले लिया है। रेशम उद्योग ने कच्चे रेशम के उत्पादन में तीव्र विकास किया है।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में रेशम उद्योग
  रेशम उद्योग भारत के ग्रामीण और कस्बों के क्षेत्रों में लगभग 7.56 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इनमें से अधिकतर कामगर समाज के आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग से संबंध रखते हैं जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। इसके ज़रिए मुख्य तौर पर लाभ से वंचित समूह यानि महिलाओं, अजा, अजजा और अल्पसंख्यकों और अन्य सीमांत समूहों को रोजगार और आय कमाने का मौका मिलता है। इसके अलावा रेशम उद्योग से संबंधित 60 प्रतिशत गतिविधियां ग्रामीण  महिलाओँ द्वारा सुचारू की जाती हैं। लगभग 7.56 मिलियन लोग रेशम उद्योग और इसकी विभिन्न गतिविधियों में संलग्न हैं।
भारतीय रेशम
  विश्व में रेशम उत्पादन के 14.57 प्रतिशत भाग के साथ भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बडा रेशम उत्पपपपादक है। वर्ष 2011-12 के दौरान भारत ने लगभग 23230 एम. टन का उत्पादन किया है जिसमें 18395 एम. टन मल्बेरी रेशम और 4835 एम. टन वान्या रेशम शेमिल है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में मल्बेरी रेशम का मुख्य तौर पर उत्पादन किया जाता है। भारत दुनिया में कच्चे रेशम का सबसे बडा उपभोक्ता है। कच्चे रेशम का उपभोग (लगभग 28,733 एमटी) इसके उत्पादन से धिक होता है इसलिए अतिरिक्त मांग जो कि लगभग 5,700 एमटी रेशम की है, की पूर्ति मुख्य तौर पर चीन से आयात द्वारा की जाती है।
  इरी, तसार और मुगा रेशम की अन्य प्रजातियां हैं जिनका उत्पादन भारत में किया जाता है। इन्हें समग्र तौर पर वान्या रेशम (अथवा जंगली रेशम) कहा जाता है क्योंकि ये मुख्य तौर पर वन के उत्पाद होते हैं। तसार रेशम प्रमुख रुप से झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश और ओडिशा में उत्पादित किया जाता है इसके अलावा महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के कुछ भागों में छोटे स्तर पर इसका उत्पादन होता है। उप हिमालयी राज्यों जैसे मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम और मेघालय में शाहबलूत तसार का उत्पादन किया जाता है। इरी रेशम गैर-मल्बेरी रेशम उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ है और मुख्य तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों के पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है इसके अलावा बिहार, पं. बंगाल और ओडिशा राज्यों में भी यह पाया जाता है। सुनहले रेशम के नाम से जाने जाना वाला मुगा रेशम विशिष्ट तौर पर असम में पाया जाता है और ब्रह्मपुत्र घाटी में यह फैला हुआ है।
निर्यात
  2010-11 के दौरान निर्यात आय में 2009-10 के मुकाबले मामूली रुप से एक प्रतिशत की कमी हुई। हालांकि 2011-12 के दौरान अनंतिम निर्यात आय ने 2010-11 के मुकाबले 20.21 प्रतिशत की कमी दर्शाई। वैश्विक मंदी, आर्थिक संकट और डॉलर के मुकाबले बारतीय रुपए में गिरावट के कारण तथा उच्च उत्पादन लाग और चीन से कडी प्रतिस्पर्धा की वजह से पिछले तीन वर्षों के दौरान निर्यात आय प्रभावित हुआ है।
अनुसंधान औऱ विकास
  केन्द्रीय रेशम बोर्ड का देश भर में क्षेत्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान स्टेशनों और अनुसंधान केन्द्रों के साथ नेटवर्क है जिससे इस उद्योग को समर्थन के लिए आवश्यक अनुसंधान और विकास मुहैया किया जा सके। उत्पादन को बढ़ाने के लिए केन्द्रीय रेशम बोर्ड के अनुसंधान और विकास संस्थानों द्वारा विकसित तकनीकों को किसानों के बीच लोकप्रिय बनाया जा रहा है। कच्चे रेशम का उत्पादन 87.84 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (2007-08) से 90.90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (2011-12) हो गया है।
बीज सहयोग
  गुणवत्ता पूर्ण रेशम कीट बीज के उत्पादन के अलावा मूल बीज सामग्री की आपूर्ति करना सीएसबी का उत्तरदायित्व है। इस कार्यक्रम के तहत किसानों को तकनीकी और कार्य स्तर पर प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया जाता है। राज्यों को मूल बीज आपूर्ति करने वाले मूल बीज फार्मों की श्रृंखला सीएसबी के पास है। इसका व्यवसायिक बीज उत्पादन केन्द्र किसानों को व्यापारिक रेशम कीट बीज की आपूर्ति करने में राज्यों के प्रयासों को आगे बढ़ाता है।
केन्द्रीय रेशम बोर्ड द्वारा कार्यान्वित रेशम उत्पादन विकास कार्यक्रम
  केन्द्रीय रेशम बोर्ड वर्तमान में उत्प्रेरक विकास कार्यक्रमों को लागू कर रहा है जिसके तहत रेशम उत्पदान के विकास के लिए बहुत सी केन्द्र प्रायोजित योजनाओं को राज्य सरकार के सहयोग से चलाया जा रहा है। उत्प्रेरक विकास कार्यक्रम के तहत सरकार ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान 821.74 करोड़ रुपए का व्यय किया है। इस कार्यक्रम के तहत कृषि अवसंरचना का विकास, गुणवत्ता आधारित कीटों और धागों की खरीद आदि शामिल है।
  मुख्य तौर पर तीन क्षेत्रों बीज, कीट तथा इसके बाद के क्षेत्रों के लिए सीडीपी वर्तमान में विभिन्न पैकेजों को कार्यान्वति कर रही है ताकि किसानों, कीट पालकों और बुनकरों सभछी को ग्यारहवीं योजना के लक्ष्य और उद्देश्य का लाभ प्राप्त हो सके।
संकुल विकास कार्यक्रम
  केन्द्रीय रेशम बोर्ड ने राज्यों के समन्वय के साथ 45 पूर्व-कीट और 5 बाद के मॉडल रेशम उत्पादक संकुलों का सह-आयोजन किया है। इसका उद्देश्य संकुल आधार पर रेशम उत्पादन को बढ़ावा देना है। इसका प्रमुख लक्ष्य एक सिलसिलेवार रुप में नवीनतम प्रैद्योगिकी का हस्तांतरण है।
  ग्यारहवीं योजना अवधि (मार्च-2012 तक) के दौरान सीएसबी ने उत्प्रेरक विकास कार्यक्रमों के तहत 16 राज्यों के लिए 52.11 करोड़रुपएकी राशि जारी की। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन से नई तकनीकों को अपनाने में तेजी के साथ ही किसानों के ज्ञान, फसल स्थितरता, उत्पादन और उत्पादकता तथा किसानों के आय स्तर में भी तेजी आई।
रेशम का निशान (सिल्क मार्क)
रेशम मूल्य-श्रृंखला के उपभोक्ताओं और हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए वस्त्र मंत्रालय ने जून-2004 में "सिल्क मार्क" की एक विशिष्ट पहल की। सिल्क मार्क का लेबल इस बात की पुष्टि करता है कि जिस उत्पाद पर यह निशान लगा है वह असली रेशम का बना है जिसे वस्त्र मंत्रालयत के केन्द्रीय रेशम बोर्ड द्वारा संवर्धित सिल्क मार्क ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया द्वारा प्रस्तुत किया गया है। यह रेशम के मूल, मध्यवर्ती अथवा पूरे हो चुके उत्पादों पर लगाया जा सकता है जिसमें धागे, साडी , कपड़े, कालीन आदि शामिल है।
  इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं और इसके विशेषज्ञों के हितों की रक्षा करना है। जून-2004 में इसकी शुरुआत के बाद से 2150 से भी अधिक सदस्य इस संगठन में शामिल हुए हैं जिसमें से 1800 से अधिक अधिकृत उपयोगकर्ता हैं। लगभग 1.60 करोड़ रेशम निशान वाले उत्पाद उपभोक्तोँ के लाभ के लिए बाजार में पहुंच चुके हैं। उपभोक्ताओं के बीच अपनी पहचान बनाने के सात ही यह रेशम उद्योग में भी अपना भरोसा जगा रहा है। "सिल्क मार्क" को प्रोत्साहन देने के लिए लगातार चलाई जा रही गतिविधियों की वजह से  भारतीय रेशम उपभोक्ता अच्छी चीज के लिए और अधिक खोज करने लगे हैं जिससे असली रेशम उत्पादों की मांग आऩे वाले दिनों में बढ़ने वाली है। इसके अलावा सिल्क मार्क ऑर्गेनाइजेशन द्वारा देश भर में उपभोक्ताओं और व्यापारियों के लिए जागरुकता कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है।          (पसूका फीचर)
***
* वस्त्र मंत्रालय के केन्द्रीय रेशम बोर्ड से प्राप्त जानकारी के आधार पर
***
मीणा/विजयलक्ष्मी-24


खत्‍म होते कश्‍मीरी रेशम उद्योग का पुनर्रूद्धार

No comments: