Sunday, August 28, 2011

मीडिया पर छाई अन्ना की जीत

पंजाब केसरी के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित खबर 
अन्ना की जीत ने एक नया इतिहास रचा है. जन तन्त्र में डगमगाया विशवास इस जीत ने एक बार फिर भाल कर दिया है. जिन लोगों के सामने इस भ्रष्ट तन्त्र ने अन्धेरा ही अन्धेरा कर रखा था, उह्नें भी लगा है कि नहीं बहुत कुझ किया जा सकता है. जो लोग माओवाद या नक्सलवाद के रास्ते की तरफ  कुछ आशाएं बांध कर सोच रहे थे उन्हें लगा है कि नहीं अभी भी इस हालत में भी इस देश में शांतमय  रह कर बड़ी से बड़ी लड़ाई लड़ी जा सकती है. बाबा रामदेव के साथ सलूक से नाराज़ हुए लोगों ने भी सरकार के रवैये पर दोबारा सोचना शुरू कर दिया है. आतंकी संगठन इस देश में लोक तन्त्र की हत्या जैसे जिन मुद्दों को अक्सर उठाते थे उनके सामने सरकार ने साबित कर दिया है कि यहां ऐसा कुछ नहीं होता. यहां लोक तांत्रिक ढंग से उठाई गयी आवाज़ को पूरी गंभीरता से सुना जाता है. इस जीत की ख़बरों को अख़बारों ने पूरी प्रमुखता से प्रकाशित किया है.जालंधर से प्रकाशित पंजाब केसरी ने भी इस जीत की खबर को अपनी मुख्य खबर बनाते हुए शीर्षक दिया है जन का होगा लोक पाल. इस खबर के अलावा भी अख़बार ने इस मुद्दे पर बहुत कुछ प्रकाशित किया है.
इसी तरह दैनिक जागरण ने भी इसे अपनी मुख्य खबर बनाते हुए लिखा है कि भारत के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में शनिवार को एक और गौरवशाली अध्याय जुड़ गया। जन आंदोलन के सामने आखिरकार सरकार झुकी। अपार जन समर्थन की बदौलत अन्ना हजारे का जनलोकपाल आंदोलन जीत गया। संसद में उनकी तीनों प्रमुख मांगों के समर्थन में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित हुआ। इसके साथ ही अन्ना ने रविवार को सुबह १० बजे अपना अनशन तोड़ देने का एलान भी कर दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कहा कि जनता की इच्छा ही संसद की इच्छा है। संसद में प्रस्ताव पारित होने की खबर मिलते ही रामलीला मैदान के साथ-साथ देश के दूसरे अन्य भागों में लोगों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। अपने अनशन के १२वें दिन अन्ना हजारे अपने हजारों समर्थकों के साथ दूसरी बार जश्न मना रहे थे। इस बार आंदोलनकारियों के बीच एक मंत्री और दो कांग्रेसी सांसद भी मौजूद थे। केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख और सांसद संदीप दीक्षित तथा विलास मुत्तमवार प्रधानमंत्री की चिट्ठी लेकर आए थे। इसमें अन्ना की तीनों मांग के समर्थन में संसद में प्रस्ताव पारित होने की सूचना थी। साथ ही अनुरोध था अनशन तोड़ देने का। अन्ना ने तुरंत कहा कि वे अगली सुबह दस बजे अनशन तोड़ देंगे। इससे पहले अन्ना की तीनों मांगों को संसद में पारित किया जा चुका था। छुट्टी के दिन बुलाई गई संसद की कार्यवाही की शुरुआत में ही इसका प्रस्ताव सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने रख दिया। उन्होंने पहले अन्ना के आंदोलन और उस संबंध में सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी दी। रात आठ बजे तक चली कार्यवाही के अंत में यह प्रस्ताव पारित माना गया। यही प्रक्रिया राज्यसभा में भी अपनाई गई। इस तरह जन लोकपाल के तीनों अहम बिंदुओं के पक्ष में सदन की भावना जाहिर हो गई। अन्ना की तीन अहम मांगों में पहली थी-राज्यों में भी लोकपाल की तर्ज पर लोकायुक्त कायम हो। उनकी दूसरी मांग थी- सभी केंद्रीय कर्मचारी लोकपाल के और राज्य सरकार के सभी कर्मचारी लोकायुक्त के दायरे में आएं। तीसरी मांग थी कि नागरिक घोषणापत्र के जरिये जनता के सारे काम तय समय सीमा में हों। हालांकि शनिवार को भी सरकार लगातार इस कोशिश में रही कि सिर्फ सदन में चर्चा कर इस मामले को निपटा दिया जाए और इस पर प्रस्ताव पारित नहीं करना पड़े। सरकार के इस रवैये से एक बार फिर माहौल बिगड़ने की नौबत आ गई, मगर मुख्य विपक्षी दल भाजपा के हस्तक्षेप के बाद कुछ ही घंटों के अंदर सरकार ने फिर सफाई दी कि वह प्रस्ताव पारित करने के लिए तैयार है। आखिरकार रात लगभग आठ बजे प्रणब ने एक बार फिर सरकार का प्रस्ताव रखा, जिसे सदस्यों ने मेज थपथपा कर पारित करवाया। साढ़े आठ बजे राज्यसभा में भी यह प्रस्ताव पारित हुआ। सदन की इस भावना को संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाएगा। वहां इस बिल पर पहले से ही चर्चा हो रही है। संसद में आम तौर पर किसी भी प्रस्ताव के पक्ष में ध्वनि मत विभाजन की प्रक्रिया इस मामले में नहीं अपनाए जाने के बावजूद इसे सदन से पारित प्रस्ताव माना जाएगा। पूर्व सॉलीसिटर जनरल हरीश साल्वे के मुताबिक चूंकि इस प्रस्ताव का किसी सदस्य ने विरोध नहीं किया इसलिए इसमें ध्वनि मत की जरूरत नहीं थी। प्रस्ताव पास होने के बाद खुद प्रणब मुखर्जी ने कहा भी कि उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके साथ ही संसद की सर्वोच्चता और इसे चुनौती जैसी बहस अब समाप्त हो जाएंगी। सदन में चर्चा के दौरान भाजपा और जद (यू) ने तीनों बिंदुओं का पूर्ण समर्थन किया। बसपा और वाम दलों ने लोकायुक्त की मांग को छोड़ बाकी दोनों मांगों का समर्थन किया। कांग्रेस सदस्यों ने किंतु-परंतु के साथ इन मांगों को समर्थन दिया।

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