एक ख़ास तरह का रौब, एक खास तरह की कशिश, एक ख़ास तरह की सादगी.और इस तरह ...उन्होंन कितने ही ख़ास गिनवा दिए और कहा कि इन सब का सुमेल नज़र आता है इस तस्वीर के नक्श में. ये कुमेंट किए गए थे एक जाने माने शायर और पत्रकार की तरफ से हाल ही में एक जानीमानी शायरा की तस्वीर पर. जो बात इस टिप्पणी में थी तकरीबन तकरीबन वही बात अन्य टिप्पणियों में भी थी अगर अन्तर था तो बस इतना ही कि शब्द अलग थे, अन्दाज अलग था. मैं हैरान था क्यूंकि यह मेरे दिल की बात भी थी. क्या आप जानते हैं कि यह तस्वीर किसकी है. मैने पता लगाया तो उनका फोन नंबर भी मिल गया और जब बात की तो मैं और भी हैरान हुआ जो बातें तस्वीर में महसूस हो रहीं थीं वही अहसास उस दमदार आवाज़ में भी था बल्कि यूं कहें कि उस से भी कहीं ज्यादा. उसके विचारों की चमक, उसके आत्म विशवास की हिम्मत, उसके निशानों की दृडता...इन सभी की झलक उसके चेहरे पर दिखाई देती है..बस यही बात उसे वशिष्ठ बना देती है.
18 फरवरी 1971 को चंडीगढ़ में जन्मी अलका चंडीगढ़ से बहुत प्यार करती है. शिक्षा के क्षेत्र में भी अलका ने सफलता को अपने साथ साथ रखा. 1993 का वर्ष आया तो लोक -प्रशासन में पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर उपाधि पायी और भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया। चंडीगढ़ की सुंदर घाटियों में जन्मी अलका सैनी को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा जो आज भी जारी है.। कॉलेज के ज़माने में साहित्य और संस्कृति के प्रति रूझान ऐसा बढ़ा कि आज तक लगातार बढ़ रहा है. पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती, कार्यक्षेत्र : न मैं कोई लेखिका हूँ ,न मैं कोई कवयित्री , न मेरी ऐसी कोई खवाहिश है , बस ! ऐसे ही मन में एक उमंग उठी, कि साहित्य -सृजन करूँ जो नारी-दिल की व्यथा को प्रकट करें एक सच्चे दर्पण में , एक आशा के साथ , कवि की पंक्तियों की कभी पुनरावृति न हो , हाय ! अबला तेरी यही कहानी , आँचल में है दूध और आँखों में पानी.पर इस नारीवादी भावना के साथ साथ उसने पुरुष के मनोभावों पर भी लिखा. कहानी दिग्वलय में मुख्य पात्र दिवाकर के मन की एक झलक :दिवाकर यह सब बातें देख- सुनकर मन ही मन बहुत हताश होता कि वह दिन भर घर से बाहर नौकरी करता है और अपनी तरफ से हर एक को खुश रखने की हर मुमकिन कौशिश करता है फिर भी उसकी भावनाओं का ख्याल रखने की कोई कोशिश नहीं करता . क्या वह पुरुष है इसी लिए उसको किसी से शिकायत करने का कोई हक़ नहीं है ? वो क्या चाहता है यह कोई जानना नहीं चाहता .क्या यही वास्तविक सच है हमारे पुरुष प्रधान समाज का . ? वह किसी के सामने रो भी नहीं सकता यह सोचते ही उसकी आँखें नम हो गई. वह अशांत मन से दिग्वलय में डूबते दिवाकर की ओर देखने लगा जैसे उसके आस पास अँधेरा फैलने लगा हो.और उसने अपनी दोनों आँखें बंद कर ली.....इस रचना पर टिप्पणी करते हुए अमित प्रजापति ने लिखा, "अलका जी स्त्रियों की समस्याओं पर आये दिन बहुत कुछ पढने को मिलता है पर पुरुष के मनोभावों और समस्याओं पर प्रकाश डालती आपकी रचना के लिए अपको बहुत बहुत बधाई.... पर आज हम आपको मिलवा रहे हैं अलका सैनी के शायरा वाले रूप से.
"प्यार तो जीवन है "
प्यार तो जीवन है , हर रोज का जीना
प्यार कोई बिन मौसम की बरसात नहीं
बरसे ना बरसे , तो कभी जम के बरसे
प्यार वो ठंडी हवा का झोंका ,
जो बिन मौसम बहता जाए
प्यार कोई पूर्णिमा की रात नहीं ,
कभी चाँद दिखे ,तो कभी बादलों में छिपे
प्यार वो चांदनी ,
प्यार कोई पूर्णिमा की रात नहीं ,
कभी चाँद दिखे ,तो कभी बादलों में छिपे
प्यार वो चांदनी ,
जो अमावस में भी ठंडक बहाए
प्यार कोई बसंत का त्यौहार नहीं ,
कभी फूल ,तो कभी कांटे खिलाए
प्यार वो खुशबू है,
प्यार कोई बसंत का त्यौहार नहीं ,
कभी फूल ,तो कभी कांटे खिलाए
प्यार वो खुशबू है,
जो पतझड़ में भी बहार लाए
प्यार कोई दिन , कोई मौसम , ना कोई महीना
प्यार तो जीवन है, हर रोज का जीना
प्यार कोई दिन , कोई मौसम , ना कोई महीना
प्यार तो जीवन है, हर रोज का जीना
--अलका सैनी
आप अलका सैनी की रचनाएँ नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं....आपके विचारों की इंतज़ार तो रहेगी ही....! ...रेक्टर कथूरिया
1 comment:
गज़ब का लेखन है।
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