दिल्ली में रह रही पूनम मटिया के पास गज़ब की प्रतिभा है. बात ज्ञान विज्ञान की हो, कला की हो, अदाकारी की हो, गीत संगीत की हो या फिर कविता की उसकी जादूई प्रतिभा पहली बार में ही अपना असर छोडती है. बातों में समझ आने वाली गहराई और ऊंची उड़ान......बहुत कुछ है उसकी रचनायों में. सुन्दरता के बारे में पूनम का मानना है कि वास्तविक सुन्दरता अंदर से आती है......नैतिकता और आत्म विशवास इसे और निखारते हैं... दिल शुद्धता और विचारों की ऊँचाई को बहुत ही महत्व देने वाली पूनम प्रकृति से बहुत ही प्यार करती है. उसके मन और विचारों की झलक उसकी रचनायों में भी अक्सर ही मिल जाती है. गौरतलब है इस सब में उनके पति नरेश मटिया की भूमिका भी ज़बरदस्त है. हाल ही में उन्होंने अपनी कुछ रचनायें पंजाब सक्रीन के लिए भी भेजी.आपको इनका रंग कैसा लगा ..अवश्य बताएं. रेक्टर कथूरिया
चित्र साभार: ओपन बुक्स |
1...........
उसका' अक्स
माना है असंभव 'चाँद' को पाना .......
पर दिल पर किस का जोर है 'जाना' .........
जिद्द है इसकी चाहेगा वही ......
जिसे पाने में करनी पड़े जद्दो-जहद ..
गर होसलों में उड़ान न हो
जुस्तजु दीदार-ए-यार की न हो
नहीं ऐसी शक्सियत की ख्वाइश
मुझे
जो हाथ में न कैद कर सके
उस चाँद की चादनी
और ज़हन में 'उसका' अक्स
2..........
माना है असंभव 'चाँद' को पाना .......
पर दिल पर किस का जोर है 'जाना' .........
जिद्द है इसकी चाहेगा वही ......
जिसे पाने में करनी पड़े जद्दो-जहद ..
गर होसलों में उड़ान न हो
जुस्तजु दीदार-ए-यार की न हो
नहीं ऐसी शक्सियत की ख्वाइश
मुझे
जो हाथ में न कैद कर सके
उस चाँद की चादनी
और ज़हन में 'उसका' अक्स
2..........
चित्र साभार:दिल का दर्पण |
गर्माहट प्यार की
शिखर पर थी मै अकेली
गर्व से परिपूर्ण
बर्फ सी जमी थी मेरे ज़मीर पर
न अहसास के गुल खिल सके वहाँ
पर जब फैली गर्माहट प्यार की
और छाया उजाला आत्म-ज्ञान का
उठी और उठकर चली
मानो पंख लगे मुझे अनजाने
अभिमान हो गया चूर
मै कुछ अलग नहीं ‘इनसे’
आते ही दिल में ये ख्याल
दिल ने चाहा धरा बनू शीतल जल की
और जा मिलूँ विशाल सागर से
जो पहले ही लिखा था मेरी नियति में
....
शिखर पर थी मै अकेली
गर्व से परिपूर्ण
बर्फ सी जमी थी मेरे ज़मीर पर
न अहसास के गुल खिल सके वहाँ
पर जब फैली गर्माहट प्यार की
और छाया उजाला आत्म-ज्ञान का
उठी और उठकर चली
मानो पंख लगे मुझे अनजाने
अभिमान हो गया चूर
मै कुछ अलग नहीं ‘इनसे’
आते ही दिल में ये ख्याल
दिल ने चाहा धरा बनू शीतल जल की
और जा मिलूँ विशाल सागर से
जो पहले ही लिखा था मेरी नियति में
....
बैचैन मै, सुकून तलाशती रही गली-कुंचें में
ए-मेरे खुदा तूने भी क्या कायनात बनाई है
मुझसे मेरी ही शक्सियत मिल न पायी है
इन्तेज़ार में जिसकी मैं बैठी रही सजदे मे
वो कमज़र्फ न जाने छुपी है कितने पर्दों में
----पूनम.....18/11/90
10 comments:
wow ! that's a nice collection...
Rector ji.........aap ne jis sneh se mujhe protsahit kiya aur logon ke samaksh meri kuchh rachnaye aur articles laaye.........shabd kam padte hai ........shukriya ke liye......bahut achha lay out aur pics .........introduction ...........sabhi kuchh bahut sunder hai ..................Punjab screen ko dhanyawaad ..aage bhi ye sneh banaye rakhiyega ..
Rector ji.........aap ne jis sneh se mujhe protsahit kiya aur logon ke samaksh meri kuchh rachnaye aur articles laaye.........shabd kam padte hai ........shukriya ke liye......bahut achha lay out aur pics .........introduction ...........sabhi kuchh bahut sunder hai ..................Punjab screen ko dhanyawaad ..aage bhi ye sneh banaye rakhiyega ..
भाभी जी /प्रणाम
मैं तो शुरू से कह रहा हूँ आपमें प्रकृति प्रदत
प्रतिभा है ....आपकी प्रतिभा निखरे और आप निरंतर हमलोगों पर स्नेह बनाए रखे //
रेक्टर कथूरिया जी भी ..आपके बारे में एकदम सही कह रहे है //
अच्छा लगा पढ़ कर|
उसका अक्स ...... गर्माहट प्यार की और इन्तेजार बहुत ही सुन्दर रचना है|........हमारी शुभकामनाएं|
किसी तक्नीकी उल्झन के कारण अबोहर से परवीन कथूरिया जी के विचार भी सबमिट नहीं हो पा रहे...यह समस्या बहुत से मित्रों को पेश आ रही है....अब मेल से प्राप्त उनके विचार यहाँ हू ब हू दिए जा रहे हैं.....रेक्टर कथूरिया
poonam ji ki poems mein vo jaadu hai ki har koi is se parbhavit hota hai...sadharn shabdon mein bahut badi aur sachchi baat kahne ki kala hai...jo seedhe dil ki gahraion tak chhu jati hai....congratulates poonam ji...in beautiful poems likhne ke liye....(parveen kathuria)
Good
Keep on.
Gurdip Singh
बर्फ जमी थी मेरे मानस पर पर...
शीत सिमटा प्रेम बसंत ने आकर...
कोमल भाव मन में ज्वलित किया...
अनुभूति वह तुम्हारे गेसुओं की सी...
चंचल किया जिसने चितवन को...
शीतल-स्निग्ध शांत प्रकाश पुंज सी...
लकीर सी सोच घुसती चली आयी...
(बाकी की कविता को नीचे वाले लिंक पर पढ़ें...)
पूनम जी मेरी पहली पंक्ति को देखें , यह आप ही की कविता से प्रेरित हुई है...... धन्यवाद...... :)
जोगेन्द्र सिंह
((मेरी लेखनी..मेरे विचार..))
.
संदर कविताएँ| बधाई|
shukriya aap sabhi ka .....for appreciating and encouraging
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