पक्षीवास
समीक्षा: अलका सैनी
सरोजिनी साहू |
सरोजिनी साहू न केवल उड़ीसा वरन भारत एवं दुनिया में भी साहित्य के क्षेत्र में जाना -माना नाम है. सरोजिनी साहू द्वारा लिखे गए उपन्यास एवं कहानियां ज्यादातर ओडिया भाषा में लिखी गई हैं जो कि नारीवादी संवेदनाओं पर आधारित है . इन उपन्यासों और कहानियों का हिंदी भाषा में अनुवाद करके दिनेश कुमार माली जी ने बहुत सराहनीय काम किया है जोकि हिंदी जगत के लिए गौरव की बात है. सरोजिनी साहू जी की कहानियां उनके ब्लॉग से पढने का मुझे अक्सर मौका मिलता रहता है , पिछले दिनों उनके हाल ही में दिनेश जी द्वारा अनूदित उपन्यास " पक्षीवास " को पढने का मौका मिला . इस उपन्यास के अनुवादक दिनेश कुमार माली जो कि राजस्थान के मूल निवासी है के लिए राजस्थान के मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलोत जी का प्रशंसनीय सन्देश भी है जो हम साहित्यकारों के लिए काफ़ी गौरवशाली बात है. यह उपन्यास मूलतः भारत के उत्तर पूर्व इलाके में फैले नक्सलवाद और निम्नजाति जो कि चमार का काम करती है और सतनामी के नाम से भी जानी जाती है की भावनाओं का संजीव चित्रण किया है . इस उपन्यास को पढने से हमारे जैसे उत्तर भारतीय लोगों को रौंगटे खड़े कर देने वाली सच्चाई का पता चलता है कि पूर्व इलाके में लोग अभी भी कितने पिछड़े हुए हैं और किस तरह चमार जाति के लोग मरे हुए जानवरों के मॉस और हड्डी से अपनी रोटी रोजी कमाने को मजबूर है.
दिनेश कुमार माली अनुवादक |
अंतरा और सरसी जो कि पति -पत्नी है जिनके तीन बेटे और एक बेटी है .अंतरा एक चमार का काम करता है परन्तु उसके बेटे अपने पुश्तैनी काम को अपनाने से गुरेज करते हुए रोटी- रोजी के चक्कर में घर से बेघर हो जाते हैं . एक बेटा नक्सली बन जाता है और बेटी पेट की आग को शांत करते हुए लोगों के जिस्म की आग को शांत करते- करते वैश्यावृति में पड़ जाती है .
सरसी जो कि एक माँ है उसके बच्चों की गैरमौजूदगी में उसकी मानसिक हालत को भी लेखिका ने बखूबी दर्शाया है .अंतरा जो कि मरे हुए जानवरों से अपना पेट भरता है किस तरह रात भर घने जंगल में सुबह होने के इन्तजार में भूखे पेट पड़ा रहता है कि कोई भी इस उपन्यास को पढ़कर भावुक हुए बिना नहीं रह सकता.
अलका सैनी समीक्षक |
उपन्यास में लेखिका द्वारा निम्न जाति के लोगों के अपने बच्चों को लेकर बड़े- बड़े सपने देखने का भी अच्छा चित्रण है . किस तरह वे लोग अपने बच्चों को डाक्टर , वकील और कलेक्टर आदि के नामों से बुलाते हैं और तरह- तरह के रंगीन सपने बुनते हैं. यह उपन्यास जाति प्रथा के पीछे छिपी मानवीय संवेदनाओं और चीत्कारों का बहुत ही मार्मिक चित्रण है और हमारे समाज में फैली झूठी परम्पराओं और ढकोसलों के बारे में किसी भी इंसान को गहराई से सोचने के लिए मजबूर कर देगा.
दिनेश कुमार माली द्वारा नक्सलवाद पर आधारित उपन्यास " पक्षीवास " का हिंदी में सफल अनुवाद अत्यंत सराहनीय काम है . इस उपन्यास के हिंदी संस्करण द्वारा अन्य प्रान्तों में रहने वाले लोग भी पूर्व इलाके की भौतिक , प्राकृतिक , और आर्थिक परिस्थितियों से भली- भांति परिचित हो सकते हैं .इस तरह के राष्ट्र - भाषा में अनुवाद पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम बखूबी करते है .
यह उपन्यास हमारे समाज के लिए एक खिड़की का काम करता है जिस पर बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों द्वारा विचार किया जाना और उसमे सुधार लाया जाना अनिवार्य जिम्मेवारी बन जाती हैं .
गौरतलब है कि चंडीगढ़ में रह रहीं अलका सैनी जी ने अपनी लिखी यह समीक्षा हमें पंजाब स्क्रीन के लिए विशेष तौर भेजी है. इस पुस्तक की चर्चा ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित ' हिंदी गौरव ' पत्रिका के दूसरा प्रिंट संस्करण में भी हुई है. आपको यह उपन्यास और इसकी यह समीक्षा कैसी लगी.....इस पर अपने विचार अवश्य भेजें. हमें आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी.--रेक्टर कथूरिया
Title: Pakshivas
Original Author: Sarojini Sahoo
Hindi Translation: Dinesh Kumar Mali
Genre: Novel
Format: Hardcover
Edition: 1st Edition,2010
Publisher: Yash Publication,
X/999, Chand Mohalla
Gandhinagar
Delhi- 110031
ISBN 81-89537-45-8
Length 116 pages
Price: 195 INR
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