मच्छर ने आदमी को कटा,आदमी बोला" दिन में भी काट रहे हो,मच्छर बोला," क्या करूं घर में मां-बाप बीमार हैं\, बहन जवान है और लड़के वालों ने एक लीटर खून दहेज में माँगा है. समाज पर तीखी चोट करती हुई यह छोटी सी अणू रचना भेजी है आगरा से बोधिसत्व कस्तूरिया ने. कविता, संगीत और अदाकारी के साथ बहुत ही गहरे से जुड़े हुए बोधिसत्व बहुत ही सम्वेदनशील इन्सान हैं. वैदिक हिन्दू की आस्था के साथ साथ इस बात पर बहुत ही तेज़ नज़र रखते हैं की समाज और राजनीती के क्षेत्र में क्या हो रहा है.उन्होंने एक कविता भी भेजी है जो बताती है कि आज जिस युग को हम आधुनिक कहते नहीं थकते, उस युग में भी एक बेटी का पिता अभी तक निशचिंत नहीं हो पाया.लीजिये पढ़िए उन की कविता और बताईये कि यह आपको कैसी लगी. --रेक्टर कथूरिया
बेटी का बाप
ऐसा लगता है कि बात कल की ही है,
जब मैने अपनी बेटी को रुखसत किया !
बता सकता नहीं मैं कुछ भी आपको ,
कि यह चाक दिल मैने, कैसे-कैसे सिया !! ऐसा लगता है....
उसके रुखसार पर बहते हुए आँसू देख,
सोचा गम न कर,उसको मिल गया है पिया!! ऐसा लगता है ....
गले जब मेरे लगी,कलेज़ा मुँह को आ गया,
कह कुछ न पाया ,लगा वार दिल पर किया!! ऐसा लगता है....
अच्छी तालीम और दहेज़ देकर भी घबराता हूँ,
फ़िर भी उन्होने सीना उसका छलनी किया !! ऐसा लगता है.....
आज भी टेलीफ़ोन पर ,रोने की आवाज़ आती है
न जाने क्यूँ लगता है,किसी ने कुछ किया !! ऐसा लगता है...
अब तो सुबह,अखबार पढने से डर लगता है,
दहेज़-लोभियों ने,बेटी को तो नही जला दिया!!ऐसा लगता है....
आप नही समझेंगे, मै एक बेटी का बाप हूँ,
फ़िर क्यूँ उसे देवी का दर्ज़ा उन्होने है दिया !!ऐसा लगता है.....
---बोधिसत्व कस्तूरिया
ऐसा लगता है कि बात कल की ही है,
जब मैने अपनी बेटी को रुखसत किया !
बता सकता नहीं मैं कुछ भी आपको ,
कि यह चाक दिल मैने, कैसे-कैसे सिया !! ऐसा लगता है....
उसके रुखसार पर बहते हुए आँसू देख,
सोचा गम न कर,उसको मिल गया है पिया!! ऐसा लगता है ....
गले जब मेरे लगी,कलेज़ा मुँह को आ गया,
कह कुछ न पाया ,लगा वार दिल पर किया!! ऐसा लगता है....
अच्छी तालीम और दहेज़ देकर भी घबराता हूँ,
फ़िर भी उन्होने सीना उसका छलनी किया !! ऐसा लगता है.....
आज भी टेलीफ़ोन पर ,रोने की आवाज़ आती है
न जाने क्यूँ लगता है,किसी ने कुछ किया !! ऐसा लगता है...
अब तो सुबह,अखबार पढने से डर लगता है,
दहेज़-लोभियों ने,बेटी को तो नही जला दिया!!ऐसा लगता है....
आप नही समझेंगे, मै एक बेटी का बाप हूँ,
फ़िर क्यूँ उसे देवी का दर्ज़ा उन्होने है दिया !!ऐसा लगता है.....
---बोधिसत्व कस्तूरिया
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
3 comments:
बोधिसत्व एक बेटी के बाप के दिल को दर्द को बखूबी उकेरा है अपने शब्दों के माध्यम से| बधाई| रेक्टोर भाई ऐसी महत्वपूर्ण पोस्ट्स पब्लिश करने के लिए बहुत बहुत बधाई|
रेक्टर जी .......सच ये दिल से लिखी कविता है .........जो आज भी समाज में फैली अमानवीयता को दर्शाती है ..........और माँ-बाप के जहन में जो डर समाया रहता है ...........उसे व्यक्त करती है ......बोधित्सव जी बहुत शुक्रिया ....पूनम
Its true !
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