Friday, November 12, 2010

प्रेम, मस्ती और परम होश की बरसात

पुस्तक के अंश  
पंजाब का नाम लें तो भांगड़ा भी तुरंत याद आता है और भांगड़ा का ज़िक्र चले तो ज़हन में एकदम पंजाब का नाम भी आता है. हज़ारों मुश्किलें सह कर तैयार हुई  फसल की कटाई का वक्त जब आता है तो किसान वैसाखी का त्यौहार मनाता है और खुश हो कर भांगड़े डालता है. इस तरह पंजाब और भांगड़ा एक दूसरे में रचे बसे हुए हैं. भांगड़ा फिल्मों में भी छाया, गीतों में भी छाया इसकी धूम देश विदेश में दूर दूर तक पहुंची पर इतना कुछ होने पर भी भांगड़ा इतने व्यापक स्तर पर नहीं देखा गया. कम से कम मेरी ज़िन्दगी में यह पहली बार थी की मैंने एक ही मंच पर 2100 नौजवानों को भांगड़े की मस्ती में मस्त हो कर नाचते देखा. मंच के नीचे, खुले ग्राऊंड में और अपने अपने घरों में जो लोग इस की ताल से ताल मिला रहे थे उनकी गिनती का अनुमान लगाना भी मुश्किल है. इनमें बच्चे भी थे, नौजवान भी और बुज़ुर्ग भी.  इनमें लडके भी थे और लड़कियां भी, पुरुष भी थे और महिलाएं भी, ये सब उस मस्ती में खोये हुए थे जो परम होश के बी ही बाद मिलती है. यह वोह मस्ती थी जिसके सामने दुनिया और दुनियादारी की यह होश बहुत ही बौनी और बेमानी लगती है. दिलचस्प बात यह थी की मस्ती में नाच रहे यह लोग अभी कुछ मिनट पूर्व ही तो वचन दे कर हटे थे कि वे कोई नशा नहीं करेंगे. वचन देते ही गुरुदेव श्री श्री रविशंकर उन्हें मस्ती का यह प्याला पिला देंगें यह तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा  और यह सब इतना होशपूर्वक था कि किसी को कोई कष्ट नहीं, किसी को कोई धक्का नहीं, किसी से कोई छेड़छाड़ नहीं. और यह था एक बड़े आयोजन का एक प्रयास तां कि भांगड़ा को गिन्नीज़ बुक में दर्ज करवाया जा सके. पंजाब कृषि विश्व विद्दालय के खुले मैदान में  लोगों ने नशामुक्त होने ऐ साथ साथ यह वचन भी दिया कि वे कन्या भ्रूण हत्या के पाप से भी पूरी तरह तौबा कर लेंगें. इस मौके पर सत श्री अकाल और बोले सौ निहाल के जयकारे भी खूब गूंजे. उन्हें एक बार फिर सम्मान मिला. यह सब हुआ 11 नवम्बर की शाम  को. ठीक एक दिन पूर्व अर्थात दस नवम्बर को इन लोगों ने अपने प्यारे से गुरूदेव श्रीश्री रविशंकर को आलमगीर  के निकट गाँव जरखड़ में भी यह वचन दिया कि  वे अब कभी नशा नहीं करेंगे. वहां माता साहिब कौर खेल स्टेडीयम में डि-एडिक्शन पर एक विशेष सेमीनार भी था. पी ऐ यू  के विशाल मैदान में एक तरह से मेला ही लगा हुआ था. चहल पहल ऐसे थी जैसे कोई बहुत बड़ा घरेलू समारोह हो. लोग अपने घर की तरह आ जा रहे थे. प्रबन्धक बहुत ही प्रेम से सेवा कर रहे थे जैसे अपने घरों में हों. ऐसे लगता था कि जैसे हिंसा मुक्त समाज का सपना अब साकार होने के नज़दीक है. जीवन जीने की कला अर्थात आर्ट ऑफ़ लिविंग सीखने के लोग बहुत ही स्नेह और उत्साह से उमड़ कर आये हुए थे. सुदर्शन क्रिया का जादू साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था. इतना बड़ा आयोजन, इतनी बड़ी संख्या में आये लोग, इतना बड़ा मंच पर कहीं कोई आपाधापी नहीं, कहीं कोई झगडा नहीं.....बस प्रेम ही प्रेम बरस रहा था. आप अगर अभी तक इस प्रेम रस को नहीं चख पाए तो अब देर मत कीजिये. .......अरे हां सच कार्यक्रम में नवजोत सिंह सिद्धू ने भी अपने शायराना अंदाज़ से श्री श्री रविशाकर जी को सुस्वागतम कहा.    ---रेक्टर कथूरिया 

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