Thursday, September 23, 2010

तुम अपनी करनी कर गुज़रो

अख़बारों और टीवी चैनलों के मुकाबिले में बहुत ही तेज़ी से अपना अलग स्थान बना रहे हिंदी ब्लॉग जगत में एक और शानदार ब्लाग आया है...जो फैज़ साहिब को समर्पित है. गौरतलब है कि फैज़ साहिब पर, उनकी शायरी पर बहुत कुछ लिखा गया है और बहुत कुछ लिखा जाता रहेगा. मुझे एक शाम मेरे नाम भी याद है....शीशों का मसीहा कोई नहीं क्या आस लगाये बैठे हो. कविता कोष की वोह ख़ास पोस्ट भी एक महत्वपूर्ण संकलन है. इसी तरह वह ब्लॉग जिसमें फैज़ साहिब की शायरी को संकलित करने के लिए बहुत मेहनत की गयी है. कलाम-ऐ-फैज़ जिसमें ज़िक्र है...
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त 
शाहराहों पे ग़रीबों का लहू बह्ता है 
आग सी सीने में रह रह के उबलती है न पूछ
अपने दिल पर मुझे क़ाबू ही नहीं रहता है.
अंदर की बात में भी कमाल किया गया था. हिंदी कुञ्ज में भी फैज़ साहिब की चर्चा बहुत ही यादगारी अंदाज़ से हुई और साहित्य कुञ्ज का निराला अंदाज़ भी मुझे याद है. इसी तरह चत्रांजलि में भी फैज़ साहिब का क्रांति वाला रंग उभर कर सामने आता है जब वह कहते हैं :
मता-ऐ-लोह कलम छीन गया तो क्या गम है, 
कि खून-ऐ-दिल में डुबोली हैं उंगलियां मैंने. 
इस सब के साथ साथ आज हम जिस ब्लॉग कि चर्चा कर रहे हैं वह मेरी नज़र में कल रात ही आया. इसमें फैज़ साहिब की चर्चा है, उनकी शायरी की चर्चा है, उनकी ज़िन्दगी की चर्चा है. इस ब्लॉग का संचालन कर रही है लखनऊ की ऋचा जिसे नवाबों के शहर का शायराना माहौल कुछ और ज़िम्मेदार और काव्यपूर्ण बना देता है. शायद इसी लिए वह फैज़ साहिब की शायरी के प्रस्तुति करण  को और खूबसूरत भी बना पायी. इस ब्लॉग की  शुरुयात होती है फैज़ साहिब के ही एक बहुत ही अर्थपूर्ण कथन से जिसमें फैज़ साहिब कहते हैं: शेयर लिखना जुर्म न सही लेकिन बेवजह शेयर लिखते रहना ऐसी दानिशमंदी भी नहीं. इसके साथ ही आता है फैज़ साहिब का एक छोटा सा शेयर : 

बात बस से निकल चली है
दिल की हालत संभल चली है
अब जुनूं हद से बढ़ चला है
अब तबीयत बहल चली है.
इसके साथ ही शुरू होती है उनके रूबरू होने की औपचारिकता कुछ इस तरह से:फैज़ की शेर-ओ-शायरी से रु-ब-रु होने से पहले आइये मिलते हैं फैज़ से... यूँ तो फैज़ की शख्सियत और फ़न के बारे में कुछ भी कहने की ना तो हैसियत है हमारी ना ही हम ये हिमाक़त कर सकते हैं... बस जो थोड़ा बहुत उनके बारे में पढ़ा और जाना है वो ही आप सब के साथ बाँट रही हूँ...3 फरवरी सन 1911 को, जिला सियालकोट(बंटवारे से पूर्व पंजाब)के कस्बे कादिर खां के एक अमीर पढ़े लिखे ज़मींदार ख़ानदान में जन्मे फैज़ अहमद फैज़ आधुनिक काल में उर्दू अदब और शायरी की दुनिया का वो रौशन सितारा हैं जिनकी गज़लों और नज़्मों के रौशन रंगों ने मौजूदा समय के तकरीबन हर शायर को प्रभावित किया है. इस ब्लॉग में उनकी ज़िन्दगी की बहुत सी अहम बातों को बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है. इसे पूरा पढ़ने के लिए बस यहां क्लिक करिए. आपको यह पोस्ट कैसी लगी अवश्य बताएं.    --रेक्टर कथूरिया








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आप फैज़ साहिब को रोमन में पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें . आप को बहुत कुछ मिलेगा.
* देवनागरी और रोमन  दोनों में इसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है पंजाबी पोर्टल ने .
* फैज़ साहिब यहां भी हैं पर उर्दू में.
फैज़ साहिब पर एक नज़र यहां भी.

*फैज़ साहिब का आखिरी मुशायरा 

3 comments:

richa said...

कथूरिया साहब आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया, "फैज़" जैसी शख्सियत को लोगों तक पहुँचाने की इस कोशिश में हमारा साथ देने के लिये... उम्मीद हैं आपको और फैज़ के चाहने वालों को निराश नहीं करुँगी... साथ बनाए रखियेगा...

मनोज कुमार said...

इस जानकारी को शेयर करने के लिए आभार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!

अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

ऋचा को बधाई एक अच्छी शुरुआत करने के लिये