नवम्बर-84 कभी भी न भूलने वाले उन काले दिनों की दास्तान है जिसमें अमानवीय अत्याचारों की सभी हद्दें पार कर दीं गयीं थीं. उन दिनों में भी मुझे बहुत से मित्रों ने बताया कि उनके हिन्दू मित्रों ने उन्हें पनाह दी, उनकी रक्षा की, उन्हें सहयोग दिया. इसी तरह की कई कहानियाँ आतंकवाद के उन दिनों की भी हैं जब पंजाब में एक ही सम्प्रदाय के लोगों को निशाना बनाया जाने लगा था. उन दिनों सिख परिवारों ने अपने हिन्दू पड़ोसियों की रक्षा की थी.शायद यही वजह है कि हिन्दू सिख दंगों कि सत्ता लोलुप राजनीती की साजिशें कभी कामयाब नहीं हो सकीं. आज उन भयावह दिनों की याद फिर ताज़ा हुई एक लेख को पढ़ कर. इसे लिखा है एम.पी त्रिलोचन सिंह ने और प्रकाशित किया है पंजाब केसरी ने. लेखक ने याद दिलाया है कि कश्मीर के पूछ क्षेत्र में तकरीबन सारी आबादी उन सिखों कि है जो ब्राह्मणों से सिख सजे थे. सभी ग्रन्थी पहले इन्हीं क्षेत्रों से आते थे. इस तरह के बहुत से हवाले देते हुए लेखक ने अंत में सवाल भी किया है कि हाकी, फूटबाल और कबड्डी खेलने वाले सिख बहुत ही कम नज़र आते हैं क्या यह हिन्दुओं ने किया है?

आजादी आने के बरसों बाद भारतीय करंसी रूपये को जब एक मौलिक और नयी पहचान मिली तो लोग बहुत खुश हुए. खुश होना स्वभाविक भी था. अब डालर हो, यूरो हो या कोई और मुद्रा उनके बराबर हमारे रूपये का निशान भी एक दम पहचाना जा सकेगा. पर यह ख़ुशी अभी सभी तक पहुच भी नहीं पायी थी कि इसमें भी भ्रष्टाचार होने की खबरें आ गयीं. लेकिन इस सब के बावजूद भी कुछ ख़ास लोग हैं जिन्हों ने अपनी रचनात्मिकता को खोने नहीं दिया. इसी तरह के हमारे एक ब्लागर साथी है शेखर कुमावत जी. बहुत गहरी बात करते हैं और बहुत ही खूबसूरती से करते हैं.उन्हों ने कहा...भारतीय मुद्रा रुपए को नई पहचान मिल गई तो सोच कुछ अपने नजरिये से भी समझा जाये कि मैं और इसे कितना अच्छा बना सकता हूँ ,अपनी और से किसी सिम्बोल के साथ की गई ये मेरी पहली निजी गुस्ताखी है | इसे बनाने के लिए मैने 3Ds Max का उप्तोग किया है.मैं आशा करता हूँ ये नया रूप आपको अच्छा लगेगा , आप के विचारों की प्रतीक्षा मे मुझे उनके विचार और मुद्रा की 3Ds तस्वीर जीमेल के बज़ में मिली.आपको उनकी यह खूबसूरत गुस्ताखी कैसी लगी अवश्य बताएं|अमृतसर में जन्में सहादत हसन मंटो पर अश्लीलता के आरोपों का सिलसिला शायद उतना ही पुराना है जितना उसकी रचनाएँ. पर इसके बावजूद उसे पढने वालों ने कभी भी उसे पढना नहीं छोड़ा. अश्लील महसूस होता मंटो कब आपको अश्ललीलता से दूर किसी गहरी सोच में ले जाता है...इसका पता ही नहीं चलता. उसकी इन खूबियों और रचनायों की चर्चा मुझे एक बार फिर पढने को मिली आरम्भ में. अम्रित्य्सर से मुंबई और पत्र प्त्त्रिकयों से लेकर फिल लेखन तक उनके लम्बे संघर्ष को संजीव तिवारी ने अपनी दमदार कलम से बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है. अगर आप ने अभी तक मंटो को नहीं पढ़ा तो यह रचना आपको बताएगी कि मंटो को पढना क्यूं ज़रूरी है और उसकी प्रमुख रचनाएँ कौन सी हैं इस लिए इसे अवश्य पढ़िए. आपको इसके साथ साथ बहुत कुछ और भी पढने को मिलेगा.आप को आज की यह प्रस्तुती कैसी लगी अवश्य बताएं.--रेक्टर कथूरिया
पोस्ट स्क्रिप्ट:

एक रात धड़कन ने आँख से पुछा
तू दोस्ती में इतनी क्यूँ खोयी है?
तब दिल से आवाज़ आई
दोस्तों ने ही दी हैं खुशियाँ सारी.
वरना प्यार कर के तो हर आँख रोई है.
(लखनयू से बहुत ही गहरी और सुंदर बातें करने वाली मित्र सताक्शी ने भेजा.)

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