अज़मत अली बंगश भी सच का पुजारी था. उसने सच को सामने लाने का जनून नहीं छोड़ा पर अपनी जान कुर्बान कर दी. यह 48 घंटों के अंदर अंदर ही Samaa टीवी के लिए दूसरा बड़ा झटका था. अभी तो इसी चैनल के एक कैमरामैन मलिक आरिफ के शहीद होने की खबर भी ताज़ा थी कि दूसरी शहादत की खबर भी आ गयी.
इस बार जान ली गयी अज़मत अली बंगश की जो कि काफी समय से तालिबानी आतंकवादियों की हिट लिस्ट पर था. जब उसने हकीमुल्लाह के मारे जाने की खबर ब्रेक की तो उसे मिलने वाली धमकियों का सिलसिला और तेज़ हो गया. धमकियों के बाद उसने अपना जिला हंगू छोड़ दिया.अब पेशावर और इस्लामाबाद उसकी नयी कर्मभूमि बने.
उसने अपनी ख़ास ख़ास खोजपूर्ण ख़बरों में बताया कि किस तरह आतंकी संगठन बेक़सूर लोगों को यातनायों का शिकार बनाते हैं और फिर मौत के घाट उतार देते हैं.
अब भी वह एक कवरेज डयूटी पर था एक साथ हुए दो धमाकों ने उसकी भी जान ले ली. यह सब कुछ हुआ उत्तर पशिचम सीमान्त क्षेत्र के कोहात में चल रहे एक कच्चा पक्का कैंप में जहां शरणार्थियों के लिए भोजन बंट रहा था. अज़मत अली बंगश Samaa टीवी के साथ साथ एसोसिएटड प्रेस आफ पाकिस्तान और पीटीवी के लिए भी काम करता था.
मुझे इस असह सदमे की दुखद सूचना दी जर्नलिस्ट फार इंटरनैशनल पीस के अध्यक्ष और मित्र इफ्तिखार चौधरी ने. हिंसा की इन घटनायों में कई पत्रकार बुरी तरह घायल भी हुए. पत्रकार संगठनो ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दिखाई है और मांग की है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम पहल के आधार पर उठाये जायें. --रैक्टर कथूरिया
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