उन दिनों दैनिक जागरण ने अभी पंजाब में कदम रखा ही था. पंजाब के जानेमाने पत्रकारों वाले इस स्टाफ में हंमारे साथ पूनम सपरा भी थी. पूरी तरह गहर गंभीर और एक दम तेज़ तरार. उस ने मेडिकल बीट संभाली तो सब के छक्के छुड़ा दिए. खबर की तलाश में निकलती तो एक शिकारी की तरह. वह कभी ख़बरों के शिकार से खाली हाथ नहीं लौटी थीं. खबर भी ऐसी कि परत दर परत वह सब कुछ बेनकाब कर देती.
लड़कियों के लिए एक मिसाल बन कर रहने वाली पूनम कलम के साथ साथ बहादुरी में भी तेज़ थी. एक दिन कुछ मनचले उसे अकेली लड़की समझ कर उसके पीछे हो लिए. वे नहीं हटे तो लुधियाना के जगराओं पुल पर बने शहीदी स्मारक वाले चौक पर उसने अपना स्कूटर रोका और कराटे का वार करते हुए उन मनचलों को नानी याद करवा दी. उन दिनों पुल उतरते ही दैनिक जागरण का कार्यालय हुआ करता था. सो कुछ ही पलों में हम सब भी वहां पहुंच गए लेकिन तब तक पूनम ने सारी हालत खुद ही संभाल ली थी. पुलिस वाले और वहां मौजूद लोग पूनम की बहादुरी की तारीफ कर रहे थे.
इसी तरह एक बार किसी खबर का मामला था. क्रिसमिस के पावन त्यौहार के मौके पर पूनम की दलेराना कवरेज के कारण गुस्से में आये कुछ लोगों ने उस पर हमला करवा दिया. लेकिन पूनम ने अपनी दलेरी नहीं छोड़ी और उसने इस मामले में भी साबित किया की हम किसी से कम नहीं. ख़बरों की दुनिया में उसकी दलेरी एक मिसाल थीं. मामला चाहे सिवल अस्पताल में भ्रष्टाचार का हो, चाहे लुधियाना जेल के कैदियों की तरसयोग हालत का या फिर स्टाम्प घोटाले का. उसने हर खबर में अपनी कलम कौशलता को साबित किया. काम के दौरान होने वाले हमारे गुस्से गिले और शिकवे शिकायतें सब चलते थे पर पूनम ने कभी इन बातों को अपने मन में स्थायी घर नहीं बनाने दिया.
रविवार 21 मार्च 2010 को उसके निधन की दुखद खबर सुन कर मुझे एक बार तो यकीन ही नहीं हुआ. पूनम ने तो अभी बहुत कुछ करना था. समझ नहीं आ रहा था कि नवरात्र के इन दिनों में भगवान ने यह क्या कर दिया. पूनम का निधन केवल उसके परिवार के लिए या अकेले जागरण समूह के लिए ही नहीं बल्कि पूरे मीडिया जगत के लिए, हम सब के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उसकी हिंदी मुहारत. उसकी ठेठ पंजाबी और कभी कभी मूड आने पर मुल्तानी का रंग...अब सब अतीत का हिस्सा हो गया..जिसे हम अब नहीं सुन पायेंगे...बस केवल उसकी यादें हैं जो बनी रहेंगी....! --रैक्टर कथूरिया
4 comments:
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
आपके शब्दों से काम के साथ साथ ज़िन्दगी के लिए भी एक नयी ऊर्जा मिलती है....उत्साह बढाने के लिए आपका आभारी हूं...निवेदन कह कर आप शर्मिंदा न करें...मैंने तो आपकी हर बात को एक आदेश समझा है समीर जी.....और उसकी पालना भी कर रहा हूं......हाँ अब निश्चय ही और अधिक ध्यान दूंगा....!!
kuch log apne kaam ki vajha se hamesha zinda rahte hain chahe physically wo hame dikhai na de so she is still alive with her work...i salute her
आप सही कह रही हैं शैली जी.....बहुत बहुत शुक्रिया....!
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