Tuesday, August 04, 2015

क्यूं गलत थी याकूब को फांसी//कुंवर रंजन सिंह

एक मुस्लिम की सोच और प्रोपेगंडा  
सोचने को मजबूर करती कुंवर रंजन सिंह की यह प्रस्तुति तथ्यों और दलीलों के साथ बात करती है। सोशल मीडिया पर लोकप्रिय हुआ यह आलेख कुंवर साहिब का है या किसी और का इस संबंध में हमारी बात नहीं हो पाई। मंगलवार 4 अगस्त 2015 की दोपहर को 1:22 पर पोस्ट हुआ यह आलेख आपको कैसा लगा अवश्य बताएं। -रेकटर कथूरिया 
कल से कई पोस्ट आये जो मेरे गैर मुस्लिंम भाइयों ने किए थे, उनके पोस्ट को पढ़ के लगा की वो कुछ गलतफेहमी में है, कुछ तो सियासी मेढंक थे जो की टर्र टर्र कररहे थे। खैर इनकी कोई बात ही नही इनकी फितरत ही है लाशो पे अपनी रोटी सेकना।
लेकिन मै कुछ बाते साफ़ करना चाहूँगा कि और अपने भाइयों की गलतफहमी दूर करना चाहूँगा...-----
जैसा कि लोग कह रहे है कि देश के मुसलमान याक़ूब मेनन का समर्थन इसलिए कररहे है क्यूकि वो एक मुस्लमान था। ये सरासर गलत है। हाँ मै कुछ फीसदी इस बात पे सहमत हूँ लेकिन ये बात गलत है। अगर बात सिर्फ मुस्लमान की ही है तो

मो0 आमिर अजमल कसाब कौन था????

अफजल गुरु कौन था???

क्या ये मुसलमान नही थे???

क्या इनको फांसी नही दी गयी???

कितने मुसलमान इनके समर्थन में खड़े हुए थे???

40 तो दूर 4 लोगो ने भी इनकी शिफारिश राष्ट्रपति से नही की थी।

फिर ये याक़ूब में इतनी दिलचस्पी क्यू हो गयी लोगो की???
क्या इनके सुर्खाब के पंख लगे थे???
नही....------
फिर????

तो सुनिए
पहली बात-- देश का कोई भी मुसलमान धर्म के नाम पे याक़ूब के समर्थन में नही उतरा।
दूसरी बात--अभी तक किसी भी मुस्लिम ने ये नही कहा कि याक़ूब मेनन बेकसूर था।और न ही किसी ने ये मांग की कि याक़ूब को रिहा किया जाए।
यहां समर्थन इस बात के लिए था कि ये फांसी का हकदार नही है। यदि इसकी फांसी में इतनी देरी न होती तो इतना बवाल न होता।

तीसरी बात--धर्म की वजह से याक़ूब का समर्थन नही  किया जा रहा था ज़्यादातर समर्थक हिन्दू और दूसरे धर्म के थे। लिहाजा यहां धर्म की बात करना महज़ सियासी हथकंडे है।
चौथी बात--हम अदालत के फैसले का सम्मान करते है। उसका हर फैसला हमे क़ाबिले क़ुबूल है।

मै बताता हूँ कि क्यू इतने लोग याक़ूब मेनन के समर्थन में उतरे******
ज़रा ये बताईये कि आत्मसमर्पण का मतलब क्या हुआ????
एक आदमी किस आधार पे सिरेन्डर करता है???
अगर एक आदमी को ये पता हो कि उसे आत्मसमर्पण करने पर भी मार दिया जायेगा तो वो कभी भी अपने आपको पुलिस के हवाले नही करेगा। वो यही सोचेगा कि मरना वहां भी मरना यहाँ भी है तो क्यू न यही आराम से मरा जाये। क्या फायदा आत्मसमर्पण का जब जेल में सड़ के आखिर में फांसी मिलनी है।
इतिहास के पन्ने पलटिये एक नही हजारो ऐसी घटनाये मिल जाएँगी जिसमे खुद को सिरेंडर करने वालो की जान बख्श दी गयी।
मै दूर की बात नही करता खुद हमारे मुल्क में ही हज़ारो बेगुनाहो और सैनिको का खून बहाने वाले नक्सलियों की जान तो बख्शी ही गयी साथ में उन्हें लाखो रुपये दे कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया गया।
नक्सली तो इंडिया में ही रहते है जब उन्हें गिरिफ्तार करना इतना मुश्किल  है तो फिर जो बाहर मुल्क में है उन्हें गिरफ्तार करना कितना मुश्किल होगा????

ऐसे हालात में कोई पाकिस्तान से आकर खुद को इंडिया में सिरेन्डर करता है तो ये उसकी अच्छी सोच है और अधिकारियो पे किया गया एक अहसान है क्यूंकि उसने खुद को फसा कर इन अधिकारीयों की जान बचाई।

एक आदमी जोकि अपने परिवार के साथ पाकिस्तान मे हो वो इस मुल्क के कानून पे भरोसा करता है अपनी जान जोखिम में डालता है अपनी किये की सज़ा भुगतने के लिए इंडिया आता है, अपने भाई टाइगर मेनन और दाऊद से पंगा लेकर उनके और ISI के खिलाफ सारे सुबूत indian agencies को सौंपता है।  22 साल जेल में रह कर अपनी सज़ा काटता है।
ऐसे में क्या इसे फांसी दी जानी चाहिए???
ये बात मै नही RAW के पूर्व चीफ स्व0 श्री रमन जी ने अपनी डायरी में कही है जोकि मुस्लिम नही है।

जिस आधार पे याक़ूब को फांसी की सज़ा हुई है वो दलीले और सुबूत कमज़ोर है। न तो याक़ूब ने अपना ज़ुर्म कबूला, न ही इस बात के सुबूत मिले कि याक़ूब मेनन ने बम प्लांट किया या बनाया। कोई चश्मदीद गवाह भी नही मिले। 
जिस गवाह के बयान को आधार माना गया वो अपने बयान से 2 बार पलट चुका है। पहले कुछ और बोला था और बाद में याक़ूब के खिलाफ बोला। इंडिया में पुलिस थर्ड डीगरी देकर तमाम यातना देकर कैसे बयान लेती है ये सब जानते है। लिहाज़ा याक़ूब को फाँसी नही दी जानी चाहिए।
ये बात भी मै नही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के president श्री काटजू जी ने कही है। को की मुस्लिम नही है।

pm का कातिल माफ़

cm का क़ातिल माफ़

गुजरात के क़ातिल घूम रहे, 
सिख दँगो के क़ातिल घूम रहे, 
मक्का मस्जिद, मालेगाव, अजमेर, अच्चरधाम ब्लास्ट के क़ातिल घूम रहे है।
आरोप भी तय है जुर्म भी साबित हो चूका है फिर भी जांनबुझ के देरी की जा रही है???
क्या ये सही है???
ये भेदभाव नही तो और क्या है???

यही वो बात थी जिसके बुनियाद पे मुस्लिम के साथ साथ इस मुल्क के ज़िम्मेदार लोग, पढ़े लिखे लोग और खुली सोच रखने वालो ने याक़ूब का समर्थन किया।

क्या ये समर्थन गलत था??

जिन 40 लोगो ने दया याचिका भेजी थी उसमे भी सब मुस्लिम नही थे। और आज जिस सलमान खान को जो लोग भला बुरा कह रहे है यही वो लोग है जब सलमान ने मोदी के साथ पतंग उड़ाई थी तो सलामन के गुड़गान करते फिर रहे थे। आज इनलोगो को क्या हो गया है???
सलामन इतना बुरा कैसे हो गया??
न वक़्त बदला है न सलमान।  बदल तो ये लोग गए है।

और आखिरी बात हमारी देशभक्ति पे शक मत करो।  इतिहास गवाह है हमने कहीं-  बहादुर शाह ज़फ़र, टीपू सुलतान, बेगम हज़रत महल और अशफ़ाक़ुल्ला खान, बनके दुश्मनो के छक्के छुड़ाए है तो कहीं-वीर अब्दुल हमीद बनके सीमा में घुस के पकिस्तानियो की नाक काटी है। तो कहीं अब्बदुल कलाम बन के भारत को परमाणु बम और दर्जनों मिसाइल दे कर दुनिया के नक्शे में जगह दिलाई है।

आज भी हम वही है बदले नही है। बदली है तो आपकी सोच,  हमे देखने का नज़रिया बदला है।
हम नही बदले है***

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