पति की शहादत के सदमे को भी अदम्य धैर्य एवं हौसले से झेला
भारत देश की महान वीर क्रांतिकारी दुर्गा भाभी जी को उनके 107 वे जन्म दिवस पर कोटि कोटि नमन
जन्म :- 7 अक्टूबर 1907
अपने जीवन को समिधा की भांति होम करके स्वाधीनता यज्ञ की पावन अग्नि को सदा प्रज्वलित करने वाली क्रान्तिमूर्ति दुर्गा भाभी जी वास्तव में देश की आज़ादी की नींव के चन्द पत्थरों में से एक है ।
वह आज़ादी के लिए क्रांति के पथ पर चलने वाली प्रथम भारतीय नारी थी ।
उन्होंने शौर्य और जीवटता के साथ क्रान्तिकारी आन्दोलन मे सक्रिय योगदान दिया था ।
उन्होंने शौर्य और जीवटता के साथ क्रान्तिकारी आन्दोलन मे सक्रिय योगदान दिया था ।
धन्य है,... उत्तरप्रदेश के कौशाम्बी जिला के सिराथू तहसील के गाँव शहजादपुर की धरती... जिसने इस महान वीरांगना को जन्म दिया ।
शहीद भगत सिंह जी, शहीद सुखदेव जी, शहीद चन्द्र शेखर आजाद जी आदि प्रखर क्रांतिकारियों की अनन्य साथी दुर्गा देवी बोहरा जी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को शाहज़ादपुर में हुआ था ।
उनके पिता बांके बिहारी भट्ट जी इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाज़िर थे ।
जब वह केवल 10 माह की थी... तभी उनकी माता यमुना की मृत्यु हो गयी थी... पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था... सौतेली माँ ने प्रताड़ित करके कर तीसरी कक्षा में ही उनकी पढ़ाई छुड़ा दी थी... पिता को भी वैराग्य की धुन लग गयी थी ।
जब वह केवल 10 माह की थी... तभी उनकी माता यमुना की मृत्यु हो गयी थी... पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था... सौतेली माँ ने प्रताड़ित करके कर तीसरी कक्षा में ही उनकी पढ़ाई छुड़ा दी थी... पिता को भी वैराग्य की धुन लग गयी थी ।
बुआ जी की सख्त संरक्षकता में शहजादपुर और गंगा नदी के किनारे करेहटी की कुटी में उनका बचपन बीता था ।
महज 11 वर्ष की अल्पायु में ही सन 1917-18 में शहीद भगवती शरण बोहरा जी से उनका विवाह हो गया था ।
वह प्रखर देशभक्त थे, उनके साथ ने दुर्गा देवी जी के मन में भी राष्ट्रप्रेम और देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने की अलख जगा दी थी... हालाँकि उनके ससुर अंग्रेज परस्त थे... जब उन्हें ब्रिटिश हूकुमत रायबहादुर का ख़िताब से विभूषित करने जा रही थी... तब इसके विरोध में शहीद भगवती चरण जी और दुर्गा देवी जी ने उनका घर त्याग दिया... फिर दुर्गा देवी जी ने पति की प्रेरणा से अपनी अधूरी पढाई पूरी की और नेशनल कॉलेज लाहौर से प्रभाकर की उपाधि ली थी ।
ससुर की मौत के बाद अंग्रेज सरकार द्वारा प्रताड़ित करने पर दुर्गा देवी जी अपने पति सहित 17 अगस्त 1920 को शहजादपुर आ गयी थी ।
वह प्रखर देशभक्त थे, उनके साथ ने दुर्गा देवी जी के मन में भी राष्ट्रप्रेम और देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने की अलख जगा दी थी... हालाँकि उनके ससुर अंग्रेज परस्त थे... जब उन्हें ब्रिटिश हूकुमत रायबहादुर का ख़िताब से विभूषित करने जा रही थी... तब इसके विरोध में शहीद भगवती चरण जी और दुर्गा देवी जी ने उनका घर त्याग दिया... फिर दुर्गा देवी जी ने पति की प्रेरणा से अपनी अधूरी पढाई पूरी की और नेशनल कॉलेज लाहौर से प्रभाकर की उपाधि ली थी ।
ससुर की मौत के बाद अंग्रेज सरकार द्वारा प्रताड़ित करने पर दुर्गा देवी जी अपने पति सहित 17 अगस्त 1920 को शहजादपुर आ गयी थी ।
2 माह तक वह दोनों यहाँ चोरी छिपे क्रांतिकारियों की मदद करते रहे ।
अपार धन दौलत, ऐश्वर्य और सुखों को त्याग कर क्रांति के कंटक से भरे मार्ग पर चलना कठिन तपस्या की भांति था ।
दुर्गा देवी जी को ससुर जी से 40 हज़ार रूपये मिले थे... हालाँकि पिता उनकी क्रांति पथ के पघधर नहीं थे... फिर भी उन्होंने दुर्गा के लिए 5 हज़ार रूपये श्री बटुक नाथ अग्रवाल जी के पास रखवा दिए थे... बाद में यह सम्पूर्ण राशि क्रान्तिकारी गतिविधियों के संचालन में काफी काम आयी थी ।
दुर्गा भाभी जी ने अपने पति शहीद भगवती चरण बोहरा जी के साथ मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
उन्होंने शहीद भगत सिंह जी , शहीद सुखदेव जी, शहीद राजगुरु जी, शहीद चंद्रशेखर आजाद जी और यशपाल जी के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
सभी क्रान्तिकारी साथी उन्हें आदर से ''भाभी'' कहते थे ।
उनके पति शहीद भगवती चरण जी ने शहीद भगत सिंह जी के साथ मिलकर क्रान्तिकारी दल हिन्दुस्तानी रिपब्लिक आर्मी का गठन किया था।
उन्होंने शहीद भगत सिंह जी , शहीद सुखदेव जी, शहीद राजगुरु जी, शहीद चंद्रशेखर आजाद जी और यशपाल जी के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
सभी क्रान्तिकारी साथी उन्हें आदर से ''भाभी'' कहते थे ।
उनके पति शहीद भगवती चरण जी ने शहीद भगत सिंह जी के साथ मिलकर क्रान्तिकारी दल हिन्दुस्तानी रिपब्लिक आर्मी का गठन किया था।
लाहौर में रावी के तट के किनारे बम विस्फोट में पति भगवती चरण बोहरा जी की शहादत के सदमे को भी उन्होंने अदम्य धैर्य एवं हौसले से झेला था और अपने वैधव्य के दर्द को भुला कर अपना जीवन दल और देश के लिए समर्पित कर दिया था ।
क्रान्तिकारी दल द्वारा अंग्रेज पुलिस कप्तान सांडर्स के वध उपरांत शहीद भगत सिंह जी और उनके साथियों को पुलिस लाहौर के चप्पे चप्पे में शिकारी कुत्तों की तरह तलाश कर रही थी... तब दुर्गा भाभी ने अफसर के वेशधारी शहीद भगत सिंह जी की पत्नी बनकर मेम साहब के रूप धारण कर के अपने छोटे से बच्चे शची का जीवन भी खतरे में डालकर उन्हें ट्रेन से लाहौर से कलकत्ता पहुँचाने में असीम शौर्य का परिचय दिया था ।
उनका दूसरा खास काम लैमिग्टन रोड गोलीकांड को अंजाम देना था ।
9 अक्टूबर 1930 को उन्होंने बम्बई के गवर्नर हैली को मौत के घाट उतरने के लिए उसी बंगले में धुसकर गोलिया चलायी थी... पर दुर्भाग्य से हैली तो बच गया... परन्तु एक अग्रेज अफसर और महिला को गोली लगी थी ।
9 अक्टूबर 1930 को उन्होंने बम्बई के गवर्नर हैली को मौत के घाट उतरने के लिए उसी बंगले में धुसकर गोलिया चलायी थी... पर दुर्भाग्य से हैली तो बच गया... परन्तु एक अग्रेज अफसर और महिला को गोली लगी थी ।
सन 1931 में भगत सिंह जी, राजगुरु जी और सुखदेव जी फांसी पर चढकर शहीद हो गए । चंद्रशेखर आजाद जी सहित सभी प्रमुख क्रान्तिकारी शहीद हो गए थे अथवा पकड़ जा चुके थे ।
क्रान्तिकारी दल छिन्नं भिन्न हो गया था ।
क्रान्तिकारी दल छिन्नं भिन्न हो गया था ।
गहन हताशा का दौर था... फिर भी दुर्गा भाभी क्रान्तिकारी बुलंद हौसले के साथ आन्दोलन को आगे बढ़ने में जुटी रही ।
अंततः वह भी पकड़ी गयी और जेल गयी ।
अंततः वह भी पकड़ी गयी और जेल गयी ।
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक दिल्ली में कांग्रेस के साथ काम किया... फिर उन्होंने सन 1939 में लखनऊ के पुराना किला इलाके में एक मांटेसरी स्कूल की स्थापना की और इसके बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन बच्चो की शिक्षा और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया... बाद में उन्होंने यही पर क्रान्तिकारी शिव वर्मा जी के साथ मिलकर शहीद स्मारक और स्वतंत्रता संग्राम शोध संस्थान की स्थापना की थी और बाद में अपनी पूरी सम्पति संस्थान को समर्पित करके उनके इकलौते बेटे शची के पास गाज़ियाबाद चली गयी थी ।
वही पर 14 अक्टूबर 1999 को दुर्गा भाभी जी ने दुनिया को अलविदा कर दिया था ।
वही पर 14 अक्टूबर 1999 को दुर्गा भाभी जी ने दुनिया को अलविदा कर दिया था ।
दुर्गा भाभी जी का शादी के बाद शहजादपुर आना जाना लगा रहता था ।
वह सन 1942 में पिता की मृत्यु के बाद यहाँ आई थी... फिर उनका शहजादपुर आना संभव न हो सका ।
वह सन 1942 में पिता की मृत्यु के बाद यहाँ आई थी... फिर उनका शहजादपुर आना संभव न हो सका ।
इस लेख को लिखने वाले लेखक ने बताया है की "मेरे आदरणीय बुजुर्ग शुभ चिंतक श्री हेतसिंह जी के भीतर 80 वर्ष की आयु में आज भी राष्ट्रप्रेम का वही अनूठा जज्बा है... जो स्वाधीनता के पूर्व युवावस्था में था ।"
देशभक्तों और क्रांतिकारियों की उपेक्षा से उनका मन बहुत व्यथित रहता है ।
वह स्वयं गत 1 अप्रैल 2014 को शहजादपुर गए थे और दुर्गा भाभी के चचेरे भतीजे श्री उदय शंकर भट्ट से मिले थे ।
वह स्वयं गत 1 अप्रैल 2014 को शहजादपुर गए थे और दुर्गा भाभी के चचेरे भतीजे श्री उदय शंकर भट्ट से मिले थे ।
उदय जी ने उन्हें यह बताया कि उनके पूर्वज करीब 350 वर्ष पूर्व गुजरात से यहाँ आकर बस गए थे ।
कालांतर में यहाँ उनके पूर्वजो की जमींदारी कायम हो गयी थी ।
कालांतर में यहाँ उनके पूर्वजो की जमींदारी कायम हो गयी थी ।
दुर्गा भाभी जी और भगवती चरण जी के क्रान्तिकारी हो जाने से अंग्रेजो ने उनके परिवार की सारी संपत्ति कुर्क कर हडप ली थी... पर उन्हें अपने परिवार के इस महान वीरांगना पर गर्व है ।
स्वाधीनता उपरांत महान क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी जी ने देश के लिए अपनी महान सेवाओं के लिए कोई प्रतिफल नहीं चाहा था ।
उनसे कम उपलब्धि हासिल करने वाली एक महिला क्रान्तिकारी सरकार ने भारत रत्न से नवाजा... जबकि दुर्गा भाभी जी पूर्णता गुमनामी के अँधेरे में खोयी रही ।
उनसे कम उपलब्धि हासिल करने वाली एक महिला क्रान्तिकारी सरकार ने भारत रत्न से नवाजा... जबकि दुर्गा भाभी जी पूर्णता गुमनामी के अँधेरे में खोयी रही ।
यह विडम्बना है कि अपनी ही सरजमीं पर भी दुर्गा भाभी जी आज तक यथोचित सम्मान से वंचित है ।
राजनेताओं द्वारा अनेक बार घोषणायें करने के बावजूद शाहजादपुर में दुर्गा भाभी का आज तक कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं बन सका है ।
राजनेताओं द्वारा अनेक बार घोषणायें करने के बावजूद शाहजादपुर में दुर्गा भाभी का आज तक कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं बन सका है ।
शहजादपुर में जिस ऐतिहासिक घर में दुर्गा भाभी का जन्म हुआ था... उसकी पावंन भूमि हर देश भक्त के लिए एक तीर्थ की भांति नमन किये जाने योग्य पवित्र स्थल है... पर आज भी वह मकान जीर्णशीर्ण हालत में पड़ा हुआ है ।
दुर्गा भाभी जी के नाम का सहारा लेकर राजनीति की वैतरणी पार करने वाले नेताओ द्वारा उनकी कोई सुध न लिया बेहद शर्मनाक है ।
आज यह स्थिति शहजादपुर की ही नहीं वरन पूरे देश की है ।
आज यह स्थिति शहजादपुर की ही नहीं वरन पूरे देश की है ।
क्रांतिकारियों और स्वाधीनता संग्राम सेनानियों से जुड़े अधिकांश ऐतिहासिक स्थल उपेक्षा के शिकार हो रहे है... उनका अस्तित्व ही मिटने की कगार पर है ।
आगामी पीढ़ियों के लिए देश की आज़ादी के इतिहास की इस बेशकीमती विरासत को संजोने की किसी को कोई फिक्र नहीं है ।
निसंदेह स्वाधीनता के उपरांत हम आर्थिक और भौतिक रूप से विकास की बुलंदियों तक पहुँच रहे है... पर यह भी कटुसत्य है कि... स्वाधीन भारत के वाशिंदों ने अपनी नीवं के उन पत्थरों को भुला दिया है... जिन पर तरक्की की यह बुलंद इमारते खड़ी है ।
" जिनकी लाशो पर चलकर यह आज़ादी आई है उनकी याद बहुत ही गहरी लोगो ने दफनाई है । ''
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Vijay Sharma's wall लेखक:अनिल वर्मा जी Shared from
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