Tuesday, October 08, 2013

पारदर्शिता सहित बेहतर मुआवजे से ली जायेगी जमीन

07-अक्टूबर-2013 18:47 IST
आने वाले 20 सालों में देश की आधी आबादी शहरों पर रहने लगेगी
विशेष लेख                                                                       *मनोहर पुरी
हम भारतवासियों अपनी धरती को मां मानते है। भारत की तीन चौथाई आबादी सीधे तौर पर खेती पर निर्भर है। किसी भी देश का विकास इस बात से जुड़ा होता है कि उसने अपनी भू सम्पदा का उपयोग किस प्रकार किया है। आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए भूमि की आवश्यकता होती है। देश में बढ़ती आबादी के लिए सरकार द्वारा अधिक रोजगार मुहैया करवाये जा रहे हैं। उनके रहने के लिए अधिक मकान उपलब्ध करवाये जा रहे हैं। उनकी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए तरह तरह के उद्योग धन्धे लगाये गये हैं। देश की तरक्की के लिए बड़े बड़े उद्योग विकसित किये जा रहे हैं।

     बढ़ती आबादी और लगातार लगने वाले छोटे बड़े कारखानों के कारण गांवों में खेती के लिए जमीन कम होने लगी है। लोग रोजी रोटी की तलाश में शहरों की ओर आ रहे हैं। इससे शहरों की आबादी लगातार बढ़ रही है। यह अंदाजा लगाया गया है कि आने वाले 20 सालों में देश की आधी आबादी शहरों पर रहने लगेगी। इन सब कामों के लिए सरकार को भूमि का अधिग्रहण करना पड़ता है। आवास बनाने वाली कम्पनियां और बड़े बड़े कारखाने लगाने वालों को भी जमीन की जरूरत होती है। वे अपनी जरूरत के लिए किसानों से सीधे जमीन खरीद लेते हैं। कुछ लोगों ने किसानों की गरीबी, अशिक्षा और भोले पन का लाभ उठाते हुए उन्हें ठगना शुरू कर दिया था। ऐसी स्थिति में किसानों के हितों की हिफाजत के लिए सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित करवाया है। इसे उचित मुआवजा तथा भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता, पुनर्वास और पुनर्स्थापन विधेयक 2012 नाम दिया गया है। यह अधिनियम भूमि अधिग्रहण अधिनियम,1894 के स्थान पर लाया गया है। स्पष्ट है कि पहला कानून बहुत अधिक पुराना हो चुका था। समय समय पर उसमें कोई बदलाव किये गये थे फिर भी वह आज कल के हालात के अनुरूप नहीं था।

     इस विधेयक के अधिनियम बनते ही किसानों को उचित मुआवजा मिलने का रास्ता साफ हो जायेगा। इस अधिनियम से सरकार ने ऐसा प्रबंध किया है कि देश के विकास में कोई रूकावट न आये। किसानों को अपनी धरती का उचित मुआवजा भी मिले। एक समय था जब विकास के कामों के लिए राज्य सरकारें बिना उचित मुआवजे के किसानों की जमीन ले लेती थी। इस कारण कई जगहों पर समय समय पर आन्दोलन होते थे। इस अधिनियम द्वारा सरकार ने यह तय कर दिया है कि जिन की जमीन ली जाये उनको पूरा पूरा और ठीक मुआवजा मिले।

     इस अधिनियम के अनुसार अब मुआवजे की राशि के बारे में जमीन के मालिकों को फ्रिक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। नये कानून के अनुसार उनकी जमीन की बाजार में कीमत से चार गुना मुआवजा उन्हें मिलेगा। शहरी इलाकों की जमीन के लिए यह मुआवजा बाजार मूल्य से दो गुना तय किया गया है। ऐसे मामलों में जिन लोगों को मकान खाली करने पड़ेंगेे उनके लिए आवास का प्रबंध भी किया जायेगा। इसके लिए जरूरी है कि ऐसे लोग पुराने मकान में तीन से पांच साल की अवधि तक रह रहे हो। यदि कोई व्यक्ति सरकार द्वारा दिये जा रहे आवास को न लेना चाहे तो उसे मकान बनाने के लिए एक मुश्त सहायता दी जायेगी। यह रकम कम से कम डेढ़ लाख रुपये होगी।

     इतना ही नहीं जमीन मालिकों को ठीक से बसाने और उनकी रोजी रोटी का इन्तजाम भी किया जाये। इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि यदि जमीन पर कब्जा लेने के बाद कब्जा लेने वाले उसे किसी तीसरे पक्ष को ऊंचे दामों पर बेचेंगे तो उसे बढ़ी हुई कीमत का 40 फीसदी हिस्सा जमीन के मालिक के साथ बांटना पड़ेगा। इन सब बातों के पीछे सरकार की मंशा यही रही है कि यदि किसी की जमीन पर बड़े प्रोजेक्ट लगाये जाते हैं तो उनसे होने वाले फायदे में उनकी भी हिस्सेदारी हो जिन्होंने अपनी जमीन दी है। 

     इस अधिनियम में अनुसूचित जातियों और जन जातियों के हितों की रक्षा के लिए खास ख्याल रखा गया है। यह कोशिश की  जायेगी कि अधिसूचित इलाकों की जमीन को न लिया जाये। जमीन का अधिग्रहण तभी होगा, जब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा। विविध फसलों वाली सिंचित जमीन का अधिग्रहण नहीं हो सकेगा। अनुसूचित जनजाति परिवारों को अधिसूचित इलाके के ही किसी एक स्थान पर बसाने का काम किया जायेगा ताकि वे लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाये रखें। कानून में इस बात का ध्यान रखा गया है कि जिन अनुसूचित जाति और जनजाति और वनवासी लोगों को प्रभावित इलाकों की नदियों, तालाबों और बांधों में मछली पकड़ने का हक मिला हुआ था उन्हें सिंचाई और पन बिजली परियोजना के जलाशय वाले इलाके में मछली पकड़ने का हक दिया जायेगा।

     किसी भी परियोजना के लिए जिस जमीन के अधिग्रहण की बात हो वहां पर रहने वालों पर उसका क्या असर होगा इस बात की जांच पड़ताल पहले से ही की जायेगी। इसके लिए उन लोगों से बातचीत करना भी जरूरी बनाया गया है। ग्राम सभा,पंचायत,नगर पालिका अथवा नगर निगम के लिए यह जरूरी कर दिया गया है कि वहां के लोगों को इस बारे में पहले से ही पूरी जानकारी दी जाये। यह भी पक्का किया जाये कि जिन लोगों की जमीन ली जाने वाली है उनमें से 80 फीसदी लोग इसके लिए रजामंद हों। निजी कम्पनियों के मामले में यह संख्या 70 प्रतिशत तय की गई है। यदि किसी मामले में राज्य सरकार अथवा निजी कम्पनियां सही जानकारी लोगों को नहीं देती तो उन्हें सजा दी जा सकेगी।

     जिन परिवारों के रोजगार पर असर होगा उन्हें भत्ता अथवा रोजगार का मौका मिलेगा। रोजगार न मिलने पर हर प्रभावित परिवार को 5 लाख रुपये का अनुदान मिलेगा। चाहें तो ऐसे परिवार 20 साल तक हर माह दो हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैं। महंगाई बढ़ने पर इस रकम में भी बढ़ोतरी होती जायेगी। एक साल तक अपनी जगह से हटाये गये परिवारों को हर महीने तीन हजार रुपये मिलेंगे। अधिसूचित इलाकों से हटाये जाने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति के परिवारों को 50 हजार रुपये के बराबर अतिरिक्त राशि मिलेगी। इतना ही नहीं हर प्रभावित कुनबे को 50 हजार रुपये परिवहन भत्ता और 50 हजार रुपये का अतिरिक्त पुनर्वास भत्ता भी मिलेगा। कारीगरों और छोटे छोटे काम धन्धे करने वाले की मदद राज्य सरकारें करेंगी। मुआवजे का भुगतान तीन महीने के भीतर ही कर दिया जायेगा। ऐसे ही दूसरी सब बातों के लिए भी समय सीमा निश्चित कर दी गई है। प्रभावित लोगों के हकों का पूरा फैसला होने के बाद ही जमीन का अधिग्रहण किया जा सकेगा। यह अधिग्रहण भी उस इलाके का कलेक्टर ही कर सकेगा। आदिवासी इलाकों में ग्राम सभा की सहमति के बिना अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। इसके लिए  अलग अलग योजनाओं के अनुसार हटाये जाने वाले लोगों को और भी अनेक सुविधायें देने का प्रावधान उनके कानूनी हक के तौर पर किया गया है।

     कानून में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि मुआवजा रकम पर किसी प्रकार का आयकर और स्टैम्प शुल्क भी नहीं देना पड़ेगा। इस अधिनियम के द्वारा सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। (PIB)

*लेखक एक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।
वि.कासोटिया/सुधीर/एसएस-218

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