Monday, June 11, 2012

श्री मोतीलाल नेहरु की 150वीं जयंती

स्मरणोत्सव के लिए राष्ट्रीय समिति की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री का संबोधन 
श्री मोतीलाल नेहरु की 150वीं जयंती के स्मरणोत्सव के लिए राष्ट्रीय समिति की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संबोधन का अनूदित पाठ इस प्रकार है-

“मोतीलाल नेहरुजी की 150वीं जयंती को मनाने के लिए राष्ट्रीय समिति की इस बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुझे खुशी हो रही है। यह समिति आधुनिक भारत की महानतम विभूतियों में से एक श्री मोतीलाल नेहरूजी के जीवन और उनकी उपलब्धियों को मनाने के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों से बौद्धिक सहयोग प्राप्त करेगी।

मोतीलाल नेहरुजी शुरुआती वर्षों से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे रहे। वह जलियावालां बाग हत्याकांड की जांच के लिए गठित कांग्रेस जांच समिति के भी सदस्य थे। इस कारण वह महात्मा गांधी के सानिध्य में आए।

1921 में महात्मा गांधी द्वारा शुरु किए गए असहयोग आंदोलन में भी मोतीलाल नेहरु जी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस आंदोलन में हिस्सा लेने के उनके निर्णय से नेहरुजी की जीवनशैली में बहुत बड़ा परिवर्तन आया और उन्होंने पाश्चात्य जीवन पद्धति का त्याग कर दिया। उन्होंने साधारण खादी कपड़ों को पहनना शुरु किया जो भारत में गांधीवादी राष्ट्रीयता का पहचान बन गया। महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने वकालत भी छोड़ दी।

मोतीलाल नेहरुजी असहयोग आंदोलन के भंग होने के बाद राष्ट्रीय स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए गठित समिति के भी सदस्य थे। इस रिपोर्ट में असहोयग आंदोलन की विस्तृत और ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ ही इस बात का भी ज़िक्र है कि आंदोलन को रौंदने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने किस प्रकार की कोशिश की। यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के बेहद महत्वपूर्ण चरण का मूल्यवान रिकॉर्ड है।

असहयोग आंदोलन के समाप्त होने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन को नवीन दिशा प्रदान करने के लिए मोतीलाल नेहरुजी ने श्री सी. आर. दास और अन्य राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर स्वराज पार्टी का गठन किया। उनके नेतृत्व में स्वराज पार्टी ने परिषदों से नए संविधान के प्रारुप में संशोधन पर चर्चा की।

मोतीलाल नेहरु जी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा 1928 में जारी विख्यात नेहरु रिपोर्ट के भी लेखक थे। इस रिपोर्ट ने एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत के लिए संवैधानिक प्रारुप तैयार करने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रयासों को प्रतिबिंबित किया। स्वतंत्रता के पश्चात 1950 में तैयार हुए संविधान में इस रिपोर्ट के अनेक प्रमुख पहलू शामिल थे। इस रिपोर्ट ने व्यस्क मताधिकार और सभी के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक आधिकारों के साथ लोकतांत्रिक पद्धति की आधारशिला रखी।

मोतीलाल नेहरु जी ने दिसंबर 1928 में कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की और उनके संबोधन ने विभिन्न राष्ट्रवादी समूहों के बीच अनेकता में एकता का आह्वान किया। इस अधिवेशन में ब्रिटिश हुकूमत को भारत के लिए डोमिनियन दर्जे की मांग मंजूर करने के लिए एक वर्ष का समय दिया गया। 1928 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में संस्थान निर्माण और चयनित व्यवस्थापक के तौर पर, खासतौर पर आज के बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र में उनकी भूमिका काफी प्रासंगिक है।

1929-1931 के वर्ष भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में काफी महत्वपूर्ण दौर था जिसमें मोतीलाल नेहरुजी ने बड़ी भूमिका अदा की। दिसंबर 1929 में लाहौर अधिवेश ने दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया जिसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई। अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद गांधीजी द्वारा शुरु किए गए नमक सत्याग्रह के प्रति नैतिक सहयोग दर्शाने के लिए वह गुजरात में जंबोसर तक गए। यह लोकप्रिय आंदोलन पूरे देश में तेजी से फैला। बहुत से कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। मोतीलाल नेहरु जी ने कांग्रेस अध्यक्ष का उत्तरदायित्व वहन किया इसके पश्चात उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया। उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के मद्देनज़र सितंबर 1930 में उन्हें रिहा कर दिया गया और इसके कुछ महीनों के भीतर उनका स्वर्गवास हो गया।

मोतीलाल नेहरूजी स्वतंत्र भारत को नहीं देख सके। लेकिन गांधीवादी आंदोलन के शुरुआती चरणों के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में उन्होंने जो भी निभाई उससे उन्होंने भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खात्मे को सुनिश्चित किया। शुरुआत में वह ब्रिटिश मूल्यों और संस्थानों के प्रशंसक थे लेकिन जैसे ही ब्रिटिश राज का शोषक चरित्र उनके समक्ष प्रकट हुआ वह इसके घोर विरोधी बन गए। देश के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और प्रेम के कारण वह स्वतंत्रता संग्राम से जुडे।

हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में मोतीलाल नेहरुजी का बेहद विशिष्ट स्थान है और उनके अतुलनीय योगदान के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए। उनकी 150वीं जयंती को मनाने के लिए हमें अनेक सुझाव प्राप्त हुए। इलाहाबाद में आनंद भवन और नेहरु स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय इन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। लेकिन हमें अन्य संस्थानों, विश्वविद्यालयों और संगठनों को भी उन आयोजनों और कार्यक्रमों से जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए जिन्हें आयोजित करने की योजना है। आधुनिक संचार मीडिया के ज़रिए खासतौर पर हमें देश के युवाओं को इन आयोजनों में शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए।

संस्कृति मंत्रालय के ज़रिए भारत सरकार इन आयोजनों को पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी। मुझे आशा है कि वर्ष के अंत तक हम एक व्यवस्थापक, जन हितैषी और राजनैतिक विचारक के रुप में मोतीलाल नेहरू जी के विविध पहलूओं और योगदान को रेखांकित करने में सक्षम होंगे

इन शब्दों के साथ ही मैं इस बैठक में आप सब का स्वागत करता हूं और साथ ही यह आशा भी करता हूं कि 150वीं जयंती के स्मरणोत्सव पर एक सार्थक चर्चा होगी जिससे हमारे देश के संस्थापकों में से एक मोतीलाल नेहरूजी की महानता को प्रतिबिंबित किया जा सकेगा।”
08-जून-2012 19:22 IST

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