Sunday, March 18, 2018

क्या ओशो के साथ अमेरिकी सलूक को भूल चुके हैं ओशो के चाहने वाले?

ओशो शैलेन्द्र से हुई मेडिटेशन से लेकर अमेरिकी सलूक तक की चर्चा  
लुधियाना: 18 मार्च 2018 :(न्यूज़ मेकर टीम)::
आज बरसों बाद यहां फिर ओशो का विशाल उत्सव था जिसका प्रचार ज़ोरशोर से किया गया था। ओशो के छोटे भाई ओशो शैलेंदर यहां गुरुनानक भवन में पधारे थे। उनके आने की धूम कई हफ्तों से यहां थी। बड़े बड़े बैनर जगह जगह लगे थे। गुरुनानक भवन के अंदर और बाहर पांव रखने को जगह तक नहीं थी। किताबों के स्टाल ओशो के विचारों को फ़ैलाने में सहायक हो रहे थे। यहां पर बहुत बड़ी संख्या में आए लोग भी ओशो से मिलने ही आए थे। ओशो शैलेन्द्र में उनको ओशो रजनीश नज़र आये या नहीं? इस ओशो से उनकी मुलाकात संतोषजनक रही या नहीं इसका सही जवाब मिलने वाले ही दे सकते हैं। 
माधोपुर में बरसों से चल रहे संगठन "ओशोधारा" की तरफ से आए ओशो शैलेन्द्र ने ज़िंदगी में कदम कदम पर आने वाली कठिनाईयों की चर्चा की और मेडिटेशन के रास्ते भी बताये। ओशो के अंदाज़ में ही उन्होंने श्रोताओं की तरफ से आए सवालों के जवाब भी बिलकुल उसी अंदाज़ में दिए। मन की शांति और धन की कमी से लेकर बहुत से मुद्दे उठे। हर बात की चर्चा हुई।  हाल में मौजूद श्रोताओं ने सांस रोक कर ओशो को सुना। हाल में केवल ओशो शैलेन्द्र की आवाज़ थी या फिर श्रोताओं की तरफ से बजायी जाती तालियों की संगीतमय। यह आवाज़ श्रोताओं के मनोभावों को व्यक्त कर रही थी। कभी जोश और उत्साह के भाव, कभी ख़ुशी के भाव और कभी उत्सव के भाव। ओशो के ही अंदाज़ में हल्के फुल्के सवालों की चर्चा से सहज हंसी की छनकाहट भी हाइन अक्सर गूंज जाती। 
श्रोताओं में हर उम्र के लोग थे। महिलाओं की श्रद्धा तो देखने वाली थी। "अमृतधारी सिंह" और "कामरेड" कहे जानेवाले लोग भी हाल में ओशो को बहुत ही ध्यान से सुनते दिखे। अमृतधारी सिंह ओशो की जानी मानी पुस्तक:एक ओंकार सतनाम" से प्रभवित थे तो कामरेड सोच वाले दर्शकों के लिए ओशो एक ऐसी शख्सियत थे जिहोने अपने विचारों और कम्यून की जीवन शैली से अमेरिका को डरा दिया था। ओशो को ज़हर दिए जाने का उल्लेख यहां आयोजन हाल के बाहर खड़े दर्षकों के छोटे छोटे ग्रुपों में भी रहा। 
इसके बाद दीक्षा की रस्म भी हुयी। दीक्षा लेने वालों की लम्बी लाईन में हर कोई अपनी बारी की इंतज़ार कर रहा था। कुछ लोग ओशो शैलेन्द्र के लिए किताबों की सौगात भी लेकर आये जिसे ओशो शैलेन्द्र जी ने बहुत ही सम्मान और स्नेह के साथ स्वीकार किया। 
"ओशो आपने कमाल कर दिया--" इस गीत के बोलों पर सारा हाल थिरक उठा।  दीक्षा लेने वाले मस्त हो कर नाच रहे थे लेकिन इनका होशो हवास भी देखने वाला था। ज़रा सी आहट पर सबंधित साधक के पाँव रुक जाते ध्यान की मस्ती में बंद आँखें खुल जाती और वह झट से अपना संदेश देने आये दुसरे साधक के नज़दीक हो लेता। 
इसके तुरंत बाद मीडिया मीट हुई। इस प्रेस कांफ्रेंस में ओशो ने पत्रकारों की तरफ से उठाये सवालों के जवाब भी दिए। इन सवालों में मेडिटेशन से ले कर ओशो के साथ अमेरिकी सलूक तक की चर्चा हुई।  ओशो शैलेन्द्र ने कई सवालों के मामले में टालमटोल जैसा रवैया भी अपनाया। कुल मिला कर लुधियाना में एक यादगारी कार्यक्रम हुआ।  इस आयोजन से निश्चय ही ओशोधारा नए लोगों को अपनी तरफ खींचने में सफल होगी। कुछ बाबाओं और कुछ डेरों के विवादों के चलते पैदा हुई नकारत्मक हवा के बाद जहां  "आध्यात्मिक" लोगों को फिर से एक नया मंच मिला है वहीँ वाम दलों से निराश हो चुके कुछ लोगों को एक बार फिर ओशो के विचारों से "क्रांति की दस्तक" सुनाई देने लगी है।  
हालांकि इस सारे उत्सव के दौरान बार बार यही महसूस हुआ की "ओशो के चाहने वाले" उस सलूक को भूल चुके हैं जो कभी अमेरिका ने ओशो के साथ किया था। अगर ओशो के पैरोकारों ने उस याद रखने और याद कराने की हिम्मत जुताई होती तो शायद आज ओशो क्राईस्ट की तरह पूजे जा रहे होते। अफ़सोस ओशो के पैरोकारों ने ओशो को जगह जगह ओशो के नाम पर खुले रेस्टोरेंटों तक ही सीमित कर दिया। भारत के जलते हुए प्रश्नों की आग खुद ओशो के इन पैरोकारों ने ही बुझा दी और नए प्रश्न करने वाला अब कोई ओशो नज़र नहीं आता। ओशो की तरह बेबाक और तर्कशील अब कोई नहीं 

Friday, March 16, 2018

बदतर हालात को देख कर छलका अनीता शर्मा के दिल का दर्द

Fri, Mar 16, 2018 at 3:43 PM
सियासतदानों की वायदा खिलाफी से बुरी तरह आहत है बेलन ब्रिगेड टीम 

लुधियाना: 16 मार्च 2018: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):: 
जब कुछ वर्ष पूर्व बेलन ब्रिगेड ने नशे के खिलाफ जंग छेड़ी थी तो शायद ही कोई सियासी या समाजिक संगठन हो जिसने इस जंग का समर्थन न किया हो।  शायद ही कोई नेता हो जो इस मौके पर अपना साथ देने न पहुंचा हो। जन शक्ति का सूर्य उदय होने लगा था। बहाना बेशक नशे का मुद्दा ही बना लेकिन धीरे धीरे बहुत से अन्य समाजिक मुद्दे भी सामने आने लगे। इन वर्षों में संघर्ष तो तेज़ हुआ लेकिन अनीता शर्मा का आर्थिक ढांचा बिगड़ गया। पारिवारिक ज़िम्मेदारियां मुश्किल लगने लगीं लेकिन फिर भी हार नहीं मानी। एक कुयालिफ़ाइड आर्कीटेक्ट अपना अच्छा भला कामकाज छोड़ कर समाज को नशा मुक्त करने निकल पड़ी थी। नशे का कारोबार करने वाला माफिया इसे कैसे बर्दाश्त करता? शुरू हुआ लालच देने का सिलसिला। वित्तीय हालत खराब थी लेकिन अनीता शर्मा मज़बूत बनी रही। आमदनी बंद हो गयी और खर्चे बढ़ गए। स्टाफ के वेतन, संगठन के खर्चे, पारिवारिक सिस्टम, बच्चों की फीस। अनीता शर्मा की एक हाँ इन सभी समस्यायों का हल निकाल सकती थी लेकिन ज़मीर की आवाज़ सुनने वाले लोग आजुक इम्तिहान में भी कभी नाकाम नहीं होते। अनीता ने किसी भी लालच के सामने कमज़ोरी नहीं दिखाई। फिर शुरू हुआ धमकियों का सिलसिला।  घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगवाने पड़े। इस आड़े वक़्त में जो लोग काम आते रहे वे किसी भामाशाह से कम भी नहीं थे। 
बहुत से लोग जुड़े--बहुत से लोग टूटे। हालात के इस उतराव चढ़ाव में बहुत बार नाज़ुक मोड़ आये। एक वक़्त ऐसा भी आया कि सियासत में कदम रखा जाये या नहीं? फैसला मुश्किल था। हर विचार के लोगों से भरी जनता को छोड कर किसी एक दल का होना आसान नहीं था लेकिन अनीता शर्मा ने विश्वास किया। इस बात को नज़र अंदाज़ करके विश्वास किया कि सियासत में वायदे किये ही तोड़ने के लिए जाते हैं। फिर वो वायदे चाहे 15-15 लाख रुपयों के हों या स्मार्टफोन के। इनकी कीमत जुमलेबाज़ी से ज़्यादा नहीं होती। वायदा पूरा न हो तो किसी पर कोई मामला भी दर्ज नहीं होता। फिर भी दलेर लोग विश्वास करते हैं। अनीता शर्मा ने भी किया। उम्मीद नहीं यकीन था कि नशा भी बंद होगा और समाज की हालत भी सुधरेगी। लेकिन हर रोज़ जब अखबार आती तो अनीता शर्मा ज़्यादा उदास हो जाती। जब शराब के सस्ता होने की खबर आई तो बहुत ज़्यादा सदमा लगा। इसके साथ ही एक छोटी सी बच्ची के साथ रेप की खबर छपी तो इस खबर ने तो हिला ही दिया। 
अनीता शर्मा के अंतर्मन की चीख कलम तक आयी। सवाल उठा क्या ऐसे ही सुधरेगा समाज? शराब की बोतल सस्ती होने की खबर से पहले ही दिन एक 40 वर्षीय शराबी व्यक्ति द्वारा छः वर्ष की बालिका से ब. लात्कार के बाद उसकी हत्या कर शव झाड़ियों में फेंक देना और बच्चियों के साथ आये दिन बलात्कार की घटनाओ से जनता में अपनी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिन्ताएं बढ़ रही हैं। 
बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रीय अध्यक्षा अनीता शर्मा ने एक सभा में बोलते हुए कहा कि अब जग जाहिर हो चुका है कि पंजाब को नशे ने बर्बाद कर दिया है। इनमें से एक नशा ज़्यादा आसानी  है और यही घरों और परिवारों को बर्बाद करने वाला नशा है--शराब का नशा; जो सरकारी मान्यता प्राप्त भी है। नए बजट सत्र में शराब के कारोबार को बढ़ाने के लिए पंजाब सरकार ने शराब सस्ती कर दी है ताकि गरीब बस्तियों व ग्यासपुरा के आंगनों में रहने वाले मजदूर ज्यादा से ज्यादा शराब पिये जिससे सरकार को एक्साइज टैक्स से मोटी कमाई हो। 
अनीता शर्मा ने कहा कि वर्तमान हालात देखकर लगता है कि महिलाओं की सुरक्षा आज वर्तमान सरकार, प्रशासन व पुलिस के पास नहीं है। यही कारण है कि आज गली मोहल्ले में पडोसीयो की  ही छोटी-छोटी कन्याओं को हवस के दरिंदे अपना शिकार बना रहे है। हवस के दरिंदो के हाथ मरने वाली कन्यायों की आत्मा यही पुकार कर रही है कि माँ मुझे कोख में ही मार देना क्योंकि चार छः साल की होने पर भी कोई हवस का भेड़िया मुझे एक दिन मार ही देगा। 
आज समाज में सबसे पीड़ित महिला है और ऐसा लगने लगा है कि समाज में महिला होना ही एक श्राप बन चूका है।  महिला बचपन से लेकर बुढ़ापे तक पुरुष प्रधान समाज में अपने आप को असुरक्षित समझने लगी है। दूसरी तरफ सरकार महिलाओं को सुरक्षा देने में असफल हो चुकी है। सरकार ने उल्टा शराब को सस्ता करके नशे के छठे दरिया के बहाव को ओर तेज कर दिया है ताकि पंजाब के गरीब मजदूर थोड़े पैसों में ज्यादा से ज्यादा शराब पिएँ और अपने घर परिवार को बर्बाद करें और मासूम बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाकर उन्हें जान से मार दें। 
अंत में अनीता ने कहा कि यदि पंजाब सरकार महिलाओं और बच्चियों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती, कम से कम शराब को सस्ता न करे  क्योंकि शराब ही एक ऐसा नशा है जो घरों को बर्बाद कर रहा है।

Saturday, March 10, 2018

महिलायों के खिलाफ बढ़ रहे जुर्मों के साथ साथ हुई साज़िशों की भी चर्चा

परत-दर-परत किया गया मौजूदा स्थिति को बेनकाब
लुधियाना: 10 मार्च 2018: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन)::
औरत की ज़िंदगी में हर कदम पर पैदा हो रहे संताप के लिए पूंजीवादी सोच से भरा यह सिस्टम भी ज़िम्मेदार है जिसने औरत को एक वस्तु की तरह बना दिया है। इस सिस्टम का हथियार बना हुआ मीडिया चौबीसों घंटे पल पल बाद यही विज्ञापन दिखता है कि अगर यह परफ्यूम उपयोग करो तो लड़कियां आपकी दीवानी बन जाएँगी।  अगर यह तैयार इस्तेमाल करो तो लड़कियां आपके पीछे हो लेंगी। अगर यह बाईक चलायो तो लड़कियां आपके आगे पीछे घूमेंगी। जनता के मुख्य मुद्दों को न तो पब्लिक ब्रॉडकास्टर दिखा रहे हैं और न ही प्राइवेट ब्राडकास्टरज़। इस मुद्दे पर आज प्रोफेसर मौसमी बासु ने पंजाब स्क्रीन के साथ खुल कर चर्चा की।  ये विचार चर्चा हुयी लुधियाना के पंजाबी भवन में। इस विचार चर्चा का आयोजन किया था जमहूरी अधिकार सभा ने। इस यादगारी अवसर पर मुख्य मेहमान थी जवाहर लाल नेहरू यूनियवर्सिटी नई दिल्ली से आई प्रोफेसर मौसमी बासु। इस मौके पर पंजाब स्टूडेंटस यूनियन की लीडर हरदीप कौर कोटला और बेलन ब्रिगेड की प्रमुख अनीता शर्मा ने विचारोत्तेजक भाषण देकर श्रोताओं के दिलों को झंकझौरा।
गौरतलब है कि जमहूरी अधिकार सभा के प्रांतीय महसचिव हैं शहीद भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह और प्रांतीय अध्यक्ष हैं प्रोफेसर ऐ के मलेरी।
पंजाब के छात्र आंदोलनों में किसी समय इतिहास रचने वाले छात्र  संगठन पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन की तरफ से इस कार्यक्रम में शामिल हुयी हरदीप कौर कोटला ने मंच से भी तीखी आलोचना करते हुए कहा कि महिला वर्ग को वस्तु बनाने में पूरा सिस्टम निंदनीय भूमिका निभा रहा है। "पंजाब स्क्रीन" के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि सस्ता और निरंतर नेट दे कर उसके ज़रिये जिस तरह से अश्लीलता परोसी जा रही है वास्तव में वह आज की युवा पीढ़ी का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाने की एक गहरी साज़िशों का ही एक हिस्सा है। युवा वर्ग को इस साज़िशी जाल से बचते हुए तकनीक का फायदा उठा कर स्वस्थ समाज बनाने की तरफ जुटना चाहिए।  
बेलन ब्रिगेड सुप्रीमो अनीता शर्मा ने पंजाब स्क्रीन के साथ बात करते हुए कहा कि वर्ष में एक दिन महिला दिवस मना कर हमें संतोष नहीं करना चाहिए।  इससे कुछ नहीं संवरने वाला।  इस मकसद के लिए हमें हर पल हर कदम पर सक्रिय हो कर खुद ही आगे आना होगा। उन्होंने मंच से भी कहा था कि हर महिला अगर पूरा दिन नहीं तो कम से कम दो घंटे हर रोज़,  तो सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार समाज के लिए वक़्त अवश्य निकाले।  
गौरतलब है कि अनीता शर्मा ने मंच से बोलते हुए कामरेडों को भी अपनी आलोचना का निशाना बनाया था जिसका जवाब देते हुए जसवंत जीरख ने कहा कि इस संबंध में अनीता मैडम के सुझावों को ध्यान में रखा जायेगा और प्रेक्टिस में भी लाया जायेगा। 
मंच से महिला वर्ग से जुड़े बहुत से मुद्दों की चर्चा हुई और इनका हल तलाश करने के लिए विचार विमर्श भी हुआ। जान दिल्ली से आयी मौसमी बासु ने जे एन यू और पंजाब यूनिवर्सिटी के ख़र्चों का अंतर् बताया तो सारा हाल सन्न रह गया। पढ़ाई लिखाई को केवल अमीरों का आरक्षित अधिकार बनाने की साज़िश सभी को समझ भी आयी। मंच से भी शांत और सांस्कृतिक भाषा में बहुत तीखे सवाल हुए।  श्रोतायों ने भी अपने सवाल खुल कर पूछे। प्रशासन की तरफ से अपनाये जाते रवैये की भी चर्चा हुई। मंच पर सुशोभित मेहमानों ने सभी के सवालों का जवाब दिया।  कुल मिला कर यह एक बहुत ही यादगारी आयोजन रहा। इस सारे आयोजन में महिला वर्ग की शमूलियत उत्साह वर्द्धक थी।