Wednesday, June 28, 2017

देश को मादक पदार्थों से मुक्त करवाने का आह्वान

28-जून-2017 18:52 IST
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का जनजागरण कार्यक्रम
The Union Minister for Social Justice and Empowerment, Shri Thaawar Chand Gehlot lighting the lamp at a programme on the occasion of the “International Day against Drug Abuse & Illicit Trafficking”, organised by the Ministry of Social Justice & Empowerment, in New Delhi on June 28, 2017. The Ministers of State for Social Justice & Empowerment, Shri Krishan Pal and Shri Vijay Sampla and the Secretary, Ministry of Social Justice and Empowerment, Smt. G. Latha Krishna are also seen.
नई दिल्ली: 28 जून 2017: (पीआईबी//पंजाब स्क्रीन):: 
मादक पदार्थों के दुरूपयोग और अवैध तस्करी के विरूद्ध अंतराष्ट्रीय दिवस पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का जनजागरण कार्यक्रम
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मादक पदार्थों के दुरूपयोग और अवैध तस्करी के विरूद्ध अंतराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आज यहां एक समारोह आयोजित किया। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावर चंद गहलोत ने समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री श्री कृष्ण पाल गुर्जर और श्री विजय सांपला के अलावा भारत में यूएनओडीसी के प्रतिनिधि श्री सरगी कैपीनोस, मंत्रालय में सचिव श्रीमती जी.लता कृष्ण राव और अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
इस अवसर पर थावर चन्द गहलोत ने युवाओं और जनता का आह्वान किया कि वे देश को मादक पदार्थों और अवैध तस्करी से मुक्त करायें। उन्होंने कहा कि केवल सरकार के प्रयासों से इस उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता। इस बुराई को समाप्त करने के लिए लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। उन्होंने मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए अनेक व्यक्तियों और इस क्षेत्र में काम कर रहे एनजीओ के प्रयासों की सराहना की और जानकारी दी की उनका मंत्रालय नशा करने वालों की पहचान करने, उनके इलाज और पुनर्वास के लिए स्वयं सेवी संगठनों के जरिए समुदाय आधारित सेवायें प्रदान करता है।
अपने संबोधन में श्री कृष्ण पाल गुर्जर ने कहा कि मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए सरकार ने अनेक पहल की हैं और परिवार के सदस्य तथा समाज बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। श्री विजय सांपला ने कहा कि लोगों को मादक पदार्थों की बुराइयों के प्रति जागरूक करना चाहिए और अनेक संगठन इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।
प्रतिनिधियों ने इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी देखी। भारत में यूएनओडीसी के प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव का संदेश पढ़ा। इस अवसर पर एक नृत्य नाटिका दिखाई गयी।
मंत्रालय मादक पदार्थों के दुरूपयोग की निगरानी करता है जिसमें नशा करने वालों की समस्या का आकलन, एहतियाती उपाय, इलाज और पुनर्वास, सूचना का प्रसार और जनजागरण शामिल है। मंत्रालय नशा मुक्ति केन्द्र चलाने के लिए देश भर के करीब 400 एनजीओ को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। मंत्रालय ने नशा मुक्ति के लिए 24 घंटे की एक टोल फ्री सेवा भी स्थापित की है।
इससे पहले आज सुबह नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर ‘मादक पदार्थ के दुरूपयोग के विरूद्ध दौड़’ आयोजित की गयी जिसमें 4000 लोगों ने भाग लिया। श्री थावर चंद गहलोत ने इस दौड़ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर श्री गुर्जर, श्री सांपला, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मंत्रालय की सचिव जी. लता के अलावा अनेक अन्य लोग उपस्थित थे।
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Sunday, June 18, 2017

पत्थरों के शहर में शीशे की बात करती परमिंदर कौर

इस बार सामना हुआ एक फिल्म की ऑडिशन में  
लुधियाना: 18 जून 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::  More Pics on Facebook
ज़िंदगी बहुत से सवाल पूछती है। सवाल भी बहुत ही मासूम से लगते हैं।बिलकुल भोलेभाले से महसूस होते हैं लेकिन परेशान कर देते हैं। इनका जवाब नहीं सूझता। घर में दाल रोटी की जंग।  रास्ते में महंगे होते पैट्रोल डीज़ल की जंग। अख़बारों में कश्मीर के आतंकवाद की जंग। कुल मिला कर ज़िंदगी का चैन दूर की कौड़ी लगने लगता है पर इस तरह के गंभीर माहौल के बावजूद भी करिश्मे हो ही जाते हैं। परमिंदर कौर और उनकी टीम इसी तरह के करिश्मों से एक हैं। घुटन भरे माहौल में ताज़ी हवा के झौंके जैसी। 
शुद्ध मुनाफे की सोच से भरे इस स्वार्थी और मशीनी युग में कला की बात करना किसी करिश्मे से कम तो नहीं। हालांकि इसमें बहुत से खतरे भी हैं लेकिन फिर भी परमिंदर कौर लगातार सक्रिय रहती है। कभी नन्हे मुन्ने बच्चों की प्रतिभा को उड़ान देनी और कभी बड़ी उम्र के लोगों में दब गयी या छिप गयी कला को बाहर लाना। कलाकारों का चयन, कलाकारों की प्रतिभा को पहचान कर उसका विश्लेषण करने वाले जजों का चयन और फिर कलाकारों की कला को और चमकने के लिए विशेषज्ञों का चयन। इन सब को एक मंच पर लाना आसान नहीं होता लेकिन परमिंदर कौर यह सब करती हैं बहुत कुशलता से।
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इस बार मैडम परमिंदर कौर से मुलाकात हुई एक ऑडिशन टैस्ट में। मॉडल टाऊन एक्सटेंशन की मार्किट में कलाकारों का चयन था। मकसद था हरदीप सिंह खंगूड़ा की  मूवी के लिए कलाकारों का चुनाव। जज की भूमिका निभाने वालों में थे थिएटर के जाने पहचाने हस्ताक्षर तरलोचन सिंह, पॉलीवुड से जुड़े हुए विजय शर्मा और निदेशक व  कोरियोग्राफर वरुण राजपूत।
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इस ऑडिशन में गायन और अदाकारी के साथ साथ डांस  गया और आवाज़ का भी। लेखन का स्तर भी देखा गया और प्रस्तुतिकरण भी। सुबह 9 बजे से शुरू हुई प्रक्रिया शाम पांच बजे के बाद तक भी जारी रही। बहुत सी नयी प्रतिभाएं सामने आयीं। बहुत से चेहरों पर उम्मीद की चमक दिखाई दी। बहुत से मनों में आसमान छूने के हिम्मत जगी। सपने ने नई करवट ली। ज़िम्मेदारियों के बोझ में छुपी दबी प्रतिभा एक नई  अंगड़ाई ले कर बाहर आई। यह लोह वो कलाकार थे जिन्होंने दुनियादारी को निभाते हुए भी अभी तक अपने अंतर्मन में छुपी कला को मरने नहीं दिया था। उनके अंदर की संवेदना इस बेरहम युग में भी ज़िंदा है। उनको अभी भी संगीत में स्कून महसूस होता है। उनके पाँव अभी भी अंदर से सुनाई देते किसी संगीत पर थिरकते हैं। उनको अभी अभी पहाड़ों और झरनों की सुंदरता का संगीत सुनाई देता है।  उनको प्रकृति की कलात्मक आवाज़ें अभी भी बुलाती हैं। ये वो कलाकार थे जिन्होंने न तनावों भरी ज़िंदगी के सामने हार मानी और न ही बढ़ती हुई उम्र के सामने घुटने टेके। इनके चेहरे अंतर्मन में रौशन किसी मशाल की रौशनी से दमक रहे थे। उम्मीद करनी चाहिए कि इनको जल्द ही नई  पहचान मिलेगी किसी नई  फिल्म में, किसी सीरियल में या किसी और मंच पर।
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Friday, June 16, 2017

न्याय के लिए कब तक मिलेगी तारीख दर तारीख ?

पंजाबी भवन लुधियाना में हुआ न्याय व्यवस्था पर सेमिनार 
लुधियाना: 15 जून 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):: More Pics on Facebook 
अदालत में न्याय पाना हो तो गुज़रना पड़ता है एक लम्बे सिलसिले से जिसमें मिलती है बार बार तारीख..और तारीख और तारीख....। तारीखों के इस चक्रव्यूह में फंसा इंसान तो चल बस्ता है लेकिन न्याय की झलक उसे नहीं मिल पाती। इस अमानवीय सिलसिले के खिलाफ संघर्ष शुरू किया है जज एडवोकेट पीड़ित संगठन (JAPO) ने।
इस संगठन की तरफ से आज एक सेमिनार स्थानीय पंजाबी भवन में करवाया गया। इस मौके पर मुख्य मेहमान थे शहीद भगत सिंह के भान्जे प्रोफेसर जगमोहन सिंह और छत्तीसगढ़ से आये प्रवीण पटेल।  इनके साथ ही मंच पर मुख्य मेहमानों में मौजूद थी बेलन ब्रिगेड प्रमुख अनीता शर्मा और कुछ अन्य लोग।
वक्ताओं ने न्याय व्यवस्था के हालात का दृश्य दिखाते हुए इस सिस्टम के बखिये उधेड़ दिए। एक एक मुद्दे पर बात हुयी।  विस्तार से चर्चा हुई। समस्या को सभी के सामने  रखा गया। इसके साथ ही हल की तलाश पर भी विचार विमर्श हुआ। 
सेमिनार का मुद्दा महत्वपूर्ण था लेकिन हाल में मौजूद लोगों की संख्या बहुत ही कम थी। इस संबंध में प्रबंधन बेहद कमज़ोर साबित हुआ। हाल की खाली कुर्सियां संकेत थी की इस गहन गंभीर मुद्दे पर या तो लोग डर के मरे चुप हैं या फिर उन्हें पता ही नहीं चला की यहाँ इस मुद्दे पर कोई चर्चा आयोजित हो रही है। 
वास्तव में इसके आयोजकों में से प्रमुख सुभाष कैटी और उनकी टीम लम्वे समय से संघर्षशील होने के बावजूद उन लोगों तक पहुँच नहीं कर सकी जिन्होंने न्याय व्यवस्था की पीड़ा को झेला है। इसके बावजूद यह एक सफल आयोजन था क्यूंकि एक ऐसे मुद्दे पर बात तो शुरू हुई जिस पर कहने को बहुत से लोगों के पास बहुत कुछ है लेकिन बात ज़ुबान पर नहीं आ पाती।  उम्मीद है यह मंच और यह आयोजन उन बेबस लोगों की ज़ुबान बनेगा जिनसे न्याय के नाम पर लगातर अन्याय हुआ है। पत्रकारअरविंदर सिंह सराना ने भी इस मुद्दे पर इसी मंच से विस्तृत चर्चा की।  More Pics on Facebook
आखिर में डा. राहत इन्दोरी साहिब का एक शेयर इसी मुद्दे पर:
जो जुर्म करते हैं, इतने बुरे नहीं होते;
सज़ा न दे के अदालत बिगाड़ देती है। 

Wednesday, June 14, 2017

सरकार आज तक महिलाओं को सशक्त नहीं बना सकी-अनीता शर्मा

Wed, Jun 14, 2017 at 2:51 PM

बेलन ब्रिगेड लौटा अपने पुराने विद्रोही रंग में 

पूछा:निगम चुनावों में 50% आरक्षण महिलाओं को या पति को 
                                                                          Courtesy: Poster Women

लुधियाना: 14 जून 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):: 
संघर्षों की आग में रह कर जन सेवा करने वाले लोगों को सुख सुविधाओं के जाल में फांस कर ज़्यादा देर तक कर्तव्य विमुख नहीं किया जा सकता।  अन्तर आत्मा की आवाज़ सुनाई देते ही वे फिर लौट आते हैं संघर्षों के मैदान में आर पार की जंग लड़ने।  कुछ ऐसा ही होता महसूस हो रहा है बेलन ब्रिगेड प्रमुख अनीता शर्मा और उनकी टीम के साथ जो बहुत से मुद्दों पर पिछले कुछ समय से खामोश चल रही थी या केवल संकेतिक विरोध कर रही थी। सुश्री शर्मा ने एक प्रेस वक्तव्य में पंजाब सरकार के एक फैसले को अपना निशाना बनाया है। मैडम अनीता ने कहा है कि पंजाब  सरकार ने विधान सभा में कानून पास किया है जिसके तहत नगर निगम चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत सीटें मिलेंगी। 
इसके साथ ही बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीता शर्मा ने अपनी आशंका को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सरकार ने महिलाओं को नगर निगम में 50 प्रतिशत सीटों पर आरक्षण तो दे दिया है लेकिन सरकार आज तक महिलाओं को सशक्त नहीं बना सकी है। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा है कि जो महिलाऐं नगर निगम में पार्षद हैं उनका सारा कार्य उनके पति करते है और उन्हें पति पार्षद का पद  दिया जाता है। कोई भी महिला आज पुरुष प्रधान समाज में अकेले राजनीति नहीं कर सकती। खासकर नगर निगम में महिला पार्षद अपने परिवार व पति के सहारे ही कार्य करती है। मैडम अनीता ने पूछा कि आखिर ऐसा क्यूं?
गौरतलब है कि मंच पर भाषण तो खूब दिए जाते है महिला सशक्तिकरण के लेकिन असलियत बिलकुल इससे परे है। और ये पार्षद प्रतिनिधि की प्रथा कोई नई नहीं है बरसो बरस से चली आ रही है पार्षद पुत्र,पार्षद पिता, पार्षद पति की ये प्रथा आखिर कब खत्म होगी इसका कोई स्थाई हल तो हमारे राजनेताओ को ही ढूंढना होगा। यह पुरुष प्रधान सिस्टम किसी एक ज़िले मैं नहीं तकरीबन देश भर में इसी तरह चल रहा है। 

उन्होंने कहा कि नगर निगम चुनावों में सभी राजनैतिक पार्टियों के नेता चुनाव लड़ने के चाहवान होते है और अपनी पार्टी से पार्षद की टिकट लेने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते है। प्रभावशाली लोग चूल्हे चौंके पर काम करने वाली घर की गृहणी को ही पार्षद का चुनाव लड़ा देते हैं और चुनाव जीतने के बाद महिला पर्षद अपने पति के कंधे पर हाथ रख कर काम करती हैं। मैडम ने पूछा कि आखिर क्यूं  छीन ली जाती है उनकी स्वतंत्र सोच और कार्यशैली?

कुछ माह पूर्व राजस्थान में इसी आशय की आवाज़ बुलंद हुई थी। वहां बीकानेर जिले में ऐसे कितने ही वार्ड है जिनमें पार्षद महिलाएं है पर इनकों स्वतंत्र कार्य की अनुमती नहीं मिल रही है क्यूंकि यहां भी पार्षद प्रतिनिधि के दबाव में ही हर कार्य किया जाता है। यह सब इतना ज़ोर पकड़ चूका है कि क्षेत्र के सारे अहम फैसले भी पार्षद प्रतिनिधि ही लेता है। वास्तव में यह देश भर की एक गंभीर समस्या है। एक तरफ केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा रहे है लेकिन सरकार के इन मंसुबों को पार्षद पति, पिता ,पुत्र (पार्षद प्रतिनधि) ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में नहीं लागु होने दे रहे है। आखिर पुरुषों के अपने रसूख होते हैं जिनको संभालना उनकी पहली ज़िम्मेदारी होती है। तों ऐसे में आाखिर कब होगी पार्षद पति, पिता,पुत्र संस्कृति की ये प्रथा खत्म ???
अपने इन लोगों के बारे में तो अक्सर कथा कथाओं में सुना होगा उमापति, रमापति, कमलापति, लक्ष्मीपति, कुंती पति इतियादी। राष्ट्र का संवैधानिक मुखिया आमतौर पर राष्ट्रपति कहलाता है। विश्वविद्यालय में कुलपति और उपकुलपति के पद भी होते हैं। धनवान लोगों को लखपति करोड़पति अरबपति कहने की परम्परा भी सदियों से चलती आ रही है लेकिन यह पार्षद पति, पार्षद पिता, पार्षद पुत्र आखिर क्या बला है? क्या यह सब महुला अधिकारों पर सदियों से चले आ रहे वर्चस्व को और मज़बूत बनाने की कुप्रथा है? अगर इसी तरह महिला को अक्षम, अपाहिज, अज्ञानी साबित करने के लिए यह सब चल रहा है तो मत दो महिला को दया की यह भीख। जब महिला में शक्ति आएगी वह यह सब खुद ही छीन लेगी। इन आडंबरों से महिला के क्रोध को शांत मत करो।

अनीता शर्मा ने साफ शब्दों में कहा कि सभी राजनैतिक पार्टियां केवल उन्ही महिलाओं को टिकट दें जो पहले ही घरों से बाहर रहकर समाज सेवा कर रही है तभी महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा नहीं तो इस आरक्षण महिलाओं के नाम पर पुरुष ही इसका लाभ उठाएंगे। इसके साथ हीयहनने यह सब कहा कि  बेलन ब्रिगेड यह सब होने नहीं देगा।  

Monday, June 12, 2017

माछीवाड़ा में हुई वाम छात्र संगठन AISF की बैठक

महंगी शिक्षा के पीछे छुपी साज़िशों को किया गया बेनकाब 
माछीवाड़ा: 11 जून 2017: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्री):: More Pics on Facebook
जब भी नए समाज के लिए संघर्ष उठेगा तो माछीवाड़ा के जंगल उस वक़्त की याद दिलाएंगे जब श्री गोबिंद सिंह जी महाराज इस पावन भूमि पर पहुंचे थे। माछीवाड़ा एक ऐसी भूमि जिसका सिख इतिहास के साथ गहरा संबंध है। सरबत्त दा भला के मिशन को सफल बनाने के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है माछीवाड़ा। मित्र प्यारे नूं हाल मुरीद दा कहना... इसी भूमि पर रचा गया शब्द है जिसे सुन कर आज भी दिल और दिमाग उस समय के हालात को बहुत गहन संवेदना से महसूस करने लगता है। More Pics on Facebook
शोषण रहत समाज के निर्माण में लगा शायद ही कोई मानव हो जिसे माछीवाड़ा की भूमि के  जंगलों ने संघर्ष का संकल्प याद कराने की आवाज़ न दी हो। इस बार इस आवाज़ को सुना वामपंथी छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंटस फेडरेशन ने। मीटिंग बहुत अल्प समय के लिए थी लेकिन जब बात चली तो यह मीटिंग भी लम्बे समय तक चली। मीटिंग दुर्गा शक्ति मंदिर के हाल में हुई लेकिन वाम के वरिष्ठ जिला नेता कामरेड रमेश रत्न ने इस पावन भूमि के इतिहास की चर्चा भी शुरू की। वहां मीटिंग में मौजूद छात्रों से चमकौर की गढ़ी और आनंदपुर साहिब के इतिहास से जुड़े सवाल भी पूछे गए। श्री भैणी साहिब से जुड़े इतिहास की भी चर्चा हुई। 
मीटिंग में मुख्य मुद्दा था दिन-ब-दिन महंगी हो रही शिक्षा का। लगातार कम हो रहे सरकारी स्कूलों का। आम जन साधारण को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित करने की साज़िश का तांकि गरीब का बच्चा कभी भी अमर बच्चों के सामने चुनौती न बन सके। More Pics on Facebook
वहां विशेर्ष तौर पर पहुंचे डाक्टर अरुण मित्रा ने लार्ड मैकाले और उसकी शिक्षा पद्धति और शिक्षा नीति की भी विस्तृत चर्चा की। डाक्टर मित्रा ने बहुत ही आसान शब्दों में इस क्षेत्र में काम कर रही गहन साज़िशों का पर्दाफाश किया। मीटिंग में मौजूद छात्र छात्राओं ने यह सब कुछ बहुत ही ध्यान से तकरीबन तकरीबन सांस रोक कर सुना।  शिक्षा के क्षेत्र की अहमियत को समझा और इस मामले में हो रही खतरनाक साज़िशों के खतरों को बहुत नज़दीक से महसूस किया।  More Pics on Facebook
इस युवा वर्ग की समझ आ रहा था कि  क्यों हर बार फीसें बढ़ा दी जाती हैं? क्यों आसमान छूने लगती है किताबों की कीमत? क्यों मुश्किल होता जा रहा है आम छात्र का पढ़ना लिखना। 
इस मीटिंग में आर एस एस और वीर सावरकर के इतिहास की भी विस्तृत चर्चा हुई। शहीद भगत सिंह की कुरबानी और वीर सावरकर द्वारा माफ़ी का इतिहास यहाँ मौजूद छात्र-छात्राओं को आज समझ में आ रहा था। साम्प्रदायिक संगठन क्यों ढून्ढ लेते हैं प्रगतिशील तत्वों के साथ दुश्मनी निभाने का कोई न कोई बहाना यह भी समझ आ रहा था। More Pics on Facebook
कामरेड रमेश रत्न ने छात्र वर्ग को समझाया कि गुरु साहिब की जंग किसी विशेष सम्प्रदाय या धर्म से नहीं थी। उनकी सेना में मुस्लिम वर्ग भी शामिल था।  दूसरी तरह आनंदपुर साहिब का किला घेरने वालों में हिन्दू राजाओं की सेनाएं भी शामिल थी। इस लिए श्री गुरु ग्बिन्द सिंह जी के संघर्ष को हिन्दू-मुस्लिम या सिख मुस्लिम संघर्ष में बाँट कर न देखा जाये। यह शोषण और अन्याय के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष था।
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महंगाई के चलते कैम्पों से मिलती है आम लोगों को कुछ राहत

श्री दण्डी स्वामी मंदिर के मेडिकल कैम्प में हुई 600 मरीज़ों की जांच 
लुधियाना:11 जून 2017: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन):: More Pics on facebook 
विकास के दावे सियासत वालों की या उनके समर्थकों की तो मजबूरी हो सकती है पर हमारी नहीं। ज़मीनी हकीकत देखना और दिखाना हमारा कर्तव्य भी है और मकसद भी। दावे कितने सच्चे हैं यह हकीकत हम आपके सामने लाते रहते हैं। इस बार इस हकीकत कोदेखने का बहाना बना है एक मेडिकल कैम्प। जब कहीं मेडिकल कैम्प लगता है तो वहां बहुत से ऐसे लोग भी आते हैं जो कभी कभी उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों से भी सबंधित होते हैं। कैम्प में आये हुए इन लोगों के दिल को टटोलने और उनकी आंखों में ध्यान से देखने पर पता चलता है कि कितनी देर हो चुकी है उन्हें यह सोचते हुए कि अपना इलाज  लेकिन लेकिन वे चाह कर भी अपना इलाज नहीं करवा पाए। दिन-ब-दिन महंगे हो रहे इलाज के कारण अस्पतालों में जाने से पहले बार बार सोचना पड़ता है। ऐसे बेबस और मजबूर लोगों के लिए मेडिकल कैम्प आवश्यक इलाज की सुविधा और अवसर का वरदान ले कर आते हैं। 
आज लुधियाना के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल श्री सिद्ध पीठ श्री दंडी स्वामी मंदिर में एक ऐसा ही कैम्प था। बहुत से लोग मिले जो बहुत देर से अपनी शूगर तक चैक नहीं करवा सके थे। बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनके लिए बीपी चैक करवाना भी सम्भव न हो सका। बहुत से लोग ऐसे थे जिनको अपनी बीमारी की समझ नहीं आ रही थी। बहुत से लोग आंखों का आपरेशन करवा पाने की स्थिति में भी नहीं थे। हमारी टीम को इस कैम्प में जाने का अवसर मिला गांव मंसूरां वाले डाक्टर रमेश की तरफ से आये निमंत्रण के बहाने से। कैम्प में पहुँच कर मिली बहुत से लोगों की बहुत सी कहानियां जिनको आम तौर पर न तो मीडिया में जगह मिलती है न ही सियासतदानों के दरबार में। यूं भी दुःख सभी को बता पाना आसान कहाँ होता है। हम भी उनके दिलों में छुपा उतना ही दुःख पाए जितना बातों बातों में उनकी आँखों तक झलक आया। हमें लगा अगर इनकी बेबसी और मूलभूत आवश्यकता को नज़र अंदाज़ करके समाज का विकास देखा गया तो विकास के वे आंकड़े सच्चे नहीं होंगें। More Pics on facebook 
शहर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित श्री सिद्ध पीठ श्री दंडी स्वामी मंदिर में फ्री मेडिकल कैंप का आयोजन पं. राज कुमार शर्मा की अगुवाई में किया गया था। सफेद वस्त्रों में पंडित राजकुमार जी हर टेबल पर जा कर काम तो बार बार चैक करते हैं पर जल्दी किये मीडिया के सामने नहीं आते। पूछ भी लो तो कहेंगे आप मरीज़ों से बात करो--डाक्टरों के विचार सुनो। मैं तो सेवादार हूँ। इस कैंप में विशेष रूप से आंखों के माहिर डॉ. रमेश मंसूरा, डॉ. वरुण मेहता, डॉ. अमित कांसल, डॉ. संदीप शर्मा, डॉ. सुरिंदर गुप्ता और अन्य डॉ. विशेष रूप से मरीज़ों का इलाज़ करने को सहयोग दिया। कैंप में आंखों के 600 मरीज़ों का चेकअप किया गया। इस मौके पर चौधरी मदनलाल बग्गा, अनिल शर्मा, चंदर मोहन, राजेश गाबा, रवि मल्होत्रा, गुलशन नागपाल, पं. गोपाल शर्मा, राजिंदर नागपाल, धर्मवीर, दीपक शर्मा भी मौजूद थे। तकरीबन हर टेबल पर भीड़ थी। दुःख और मसीबत के मरे लोगों की आँखों में एक चमक भी थी। यह चमक उम्मीद की किरण से आ रही थी। खुद को फिर स्वस्थ महसूस करने की उम्मीद। More Pics on facebook 
शूगर की जाँच टेबल पर जा कर पूछा तो पता चला कि  ज़्यादातर लोग 30 वर्ष से अधिक उम्र के ही आए थे पर शूगर सभी को थी। किसी को कम किसी को ज़्यादा। इसी तरह ब्लड प्रेशर की जाँच कर रही मैडम आशा ने बताया कि ब्लड प्रेशर भी यहाँ जाँच के लिए आये तकरीबन सभी लोगों को था। हाँ हाई बीपी के मरीज़ लो बीपी से कुछ ज़्यादा थे। इसी तरह गैस्ट्रो के मरीज़ भी बहुत ज़्यादा थे। डाक्टर वरुण मेहता बहुत ध्यान से सभी को देख रहे थे। कुछ मरीज़ों ने बताया कि उनके इलाके में पानी शुद्ध नहीं आ रहा। बहुत बार कहा लेकिन पानी शुद्ध नहीं हुआ। आँखों के मरीज़ों की संख्या शायद सभी से अधिक थी। बाद दोपहर तक लम्बी लम्बी लाइनें. नज़र आयी।  सफेद मोतिया, कला मोतिया और बहुत सी अन्य समस्याएं। डाक्टर रमेश से मिल कर इन मरीज़ों को एक नयी ख़ुशी मिली।  दुनिया को फिर से ठीक रूप में देख पाने की उम्मीद जगी। इनकी अँधेरी ज़िंदगी में रौशनी का संदेश लाये डाक्टर रमेश। ये वे लोग थे  जो दोबारा देख पाने की संभावना का सपना भी नहीं लेते थे। More Pics on facebook 
इसी तरह ई एन टी के जांच टेबल पर कम सुनने वाले मरीज़ों की संख्या ज़्यादा थी। डाक्टर संदीप शर्मा बहुत बारीकी से सभी की जाँच कर रह थे। इन मरीज़ों में भी छोटी बड़ी उम्र के मिले जुले मरीज़ ज़्यादा थे। फैक्ट्रियों में चलती बड़ी बड़ी मशीनों के आवाज़ों से पैदा होते शोर के प्रदूषण ने इनके कानों पर बहुत बुरा असर डाला। इन मरीज़ों को भी इसी कैम्प में आ क्र राहत मिली। 
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Saturday, June 10, 2017

प्रेस क्लब के चुनाव 25 जून को करवाने की ज़िद जारी?

 15 जून को जारी होगी वोटरों की सूची?
लुधियाना: 10 जून 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::
लुधियाना में प्रेस क्लब बनाने की सरगर्मियां ज़ोरों से जारी हैं। हाल ही में घोषित चुनावी कार्यक्रम से डी.सी. और डी पी आर ओ ने खुद को चुनावी प्रक्रिया और पत्रकारों की आपसी गुटबंदी से अलग कर लिया था। प्रशासन के उस कदम से लगा था कि शायद इन चुनावों के लिए कोई नई तारीख घोषित होगी पर लगता है कि एक विशेष गुट 25 जून को ही चुनाव करवाने पर बज़िद है। इस मकसद के लिए लुधियाना प्रेस क्लब को रजिस्टर्ड नाम को रजिस्टर्ड भी करवा लिया गया है। इस मकसद का एक विशेष पत्र "इस प्रेस क्लब" के "सदस्यों" को ईमेल से भी भेजा गया है। इस पत्र के मुताबिक चुनाव 25 जून को होंगें और वोटिंग के लिए 350 पत्रकारों की प्राथमिक सूची बनाई गयी है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि वोटर सूची 15 जून तक जारी कर दी जाएगी।                  
पत्र इस प्रकार है:             
प्रिय बंधुवर

हम बेहद खुशी के साथ यह ऐलान करते है कि आप सभी की सलाह एवं मांग के अनुसार लुधियाना शहर के लिए पत्रकारो का एक सरवसांझा प्रैस क्लब बनाने के प्रयासों के तौर पर लुधियाना प्रैस क्लब रजिस्ट्रड करवाकर इसके पदाधिकारियों के रूप में किसी एक ग्रुप या समाचार पत्र के प्रतिनिधि को आगे करने की बजाये कल्ब के सभी पदाधिकारियों का चुनाव वोट के जरिये करवाने का फैसला लिया गया है। आप भी इस क्लब के  मेंबर के तौर पर शामिल हैं । 

कार्यकारिणी कमेटी ने लोकतान्त्रिक तरीके से 25 जून को वोटिंग करवाने के लिए सभी प्रमुख समाचार पत्र, टीवी चैनल, लोकल अखबारों में से करीब 350 पत्रकारों की प्राथमिक सूची बनाई है।

जो पत्रकार इस सूची में शामिल होने से रहते है, उनसे  दस्तावेज मांगे गए है जोकि एपीआरओ दफ्तर या फिर परमेश्वर सिंह 98141 74325 को जमा करवा सकते हैं।
वोटर सूची 15 जून तक जारी कर दी जाएगी।

यदि आप अपना पहचान पत्र बनाना चाहते है तो कृपया अपनी वर्तमान फोटो इस ई-मेल पर भेजने का कष्ट करें जी। किसी भी और जानकारी के लिए आप इस ईमेल आईडी पर सम्पर्क कर सकते हैं।
Ludhiana press club <ludhianapressclub2017@gmail.com>

गौरतलब है कि शहर में प्रेस क्लब बनाने को लेकर एक विशेष मीटिंग का आयोजन पत्रकारों की ओर से लुधियाना क्लब में ९ जून को किया गया था। इस मीटिंग के बाद दावा किया गया था कि इस बैठक में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सभी जर्नलिस्ट और फोटो जर्नलिस्ट विशेष तौर पर पहुंचे। इस दौरान प्रेस क्लब को लेकर 26 सदस्यों पर आधारित कमेटी का गठन भी किया गया। इसमें सभी संस्थानों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का दावा किया गया। 
इस दावे के मुताबिक मीटिंग के दौरान करीब 250 पत्रकार शामिल हुए। शामिल रहे पत्रकारों में से प्रमोद बातिश, रणदीप वशिष्ट, हितेश गुप्ता, भूपिंदर सिंह भाटिया, नीरज मैनरा, मुनीष अत्री, परमिंदर सिंह आहूजा, महेश औल, कुलवंत सिंह, गुरमीत सिंह, राजदीप सिंह, तरसेम भारद्वाज, अर्शदीप समर, राजीव शर्मा, संजय वशिष्ट, आशुतोष गौतम, रविंदर अरोड़ा, कुलदीप सिंह, योगेश कपूर, हरजोत अरोड़ा, अमनदीप सिंह मक्कड़, तुषार भारती को कमेटी में शामिल किया गया। कमेटी के मेंबर क्लब को लेकर रूप-रेखा तैयार करेंगे। इसके अलावा राजदीप सैनी, वरिंदर राणा, विनय दुआ, विक्की शर्मा, सुरिंदर अरोड़ा, राजेश शर्मा, निखिल भारद्वाज, दीपक सैलोपाल, मुनीष कुमार और नीरज जैन भी मौजूद रहे। 
इस मीटिंग के दौरान वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद बातिश और रणदीप वशिष्ट ने कहा कि आने वाले समय में पत्रकारों की समस्याओं का हल करने के लिए सभी एकजुट होकर चलेंगे। उन्होंनें कहा कि क्लब बनाने के लिए पत्रकार भाईचारे को आगे बढ़ कर पहल करनी चाहिए। विशवास भी दिलाया गया कि प्रेस क्लब के गठन के लिए अन्य एसोसिएशनों को भी साथ लेकर चला जाएगा। मीटिंग में समझाया गया कि क्लब के गठन से सभी पत्रकारों को एक मंच मिलेगा। यह भी कहा गया कि कमेटी की अगली मीटिंग जल्द ही की जाएगी। इसके बाद अलग-अलग कमेटियों का भी गठन भी किया जाएगा, ताकि क्लब के गठन को लेकर जल्द कार्रवाई शुरू की जा सके। उल्लेखनीय है कि पत्रकारों की ओर से लुधियाना में प्रेस क्लब बनाने के लिए लम्बे समय से मांग की जाती रही है। 
इस मांग के चलते कई उतराव चढ़ाव भी आये हैं लेकिन सच्ची एकता सामने नहीं आ सकी। इसका अहसास बहुत बार होता रहा। वर्ष 2014 में जब वरिष्ठ पत्रकार गौतम जालंधरी को अध्यक्ष बनाया गया था उस समय भी बहुत से सपने थे। जब लुधियाना में इस मकसद की सरगर्मियां तेज़ हुईं तो बहुत कुछ और भी सामने आया। प्रेस क्लब बनाने के मामले को लेकर स्वयंभू टीम की तानाशाही भी चर्चा में आई। इस सब कुछ के बावजूद सरगर्मियां जारी रहीं। उन दिनों भी डीपीआरओ कार्यालय को एक गुट अपने व्यक्तिगत कार्यालय की तरह प्रयोगकर रहा था। उस समय भी डीपीआरओ कार्यालय ने अपनी स्थिति स्पष्ट की थी। मई 2015 में भी लुधियाना में मीडिया के अधिकारों की जंग तेज़ हुई। उस समय भी लगने लगा था कि बस आजकल में ही प्रेस क्लब बना जायेगा। हालांकि एक वरिष्ठ पत्रकार चरणजीत सिंह तेजा ने पंजाबी भवन के खुले प्रांगण में एक पेड़ के नीचे खड़े हो कर स्पष्ट किया था कि यह सब इतना आसान नहीं है। इस सपने को साकार करने के लिए संघर्ष करना होगा। उस के बाद इस मीटिंग से अलग हो कर एक विशेष बैठक 23 मई 2015 को आयोजित की गयी थी।  इसकी तैयारियों के चलते भी लगता था कि बस अब बहुत जल्द बनेगा प्रेस क्लब। उन दिनों भी बहुत बार कन्फूज़न की स्थिति पैदा हुई। कभी लगा सब कुछ गया कभी लगा सब कुछ बना। पर वास्तव में सब कुछ अपनी अपनी शक्ति के प्रदर्शन जैसा ही था। इसके बावजूद सरकारी सरगर्मियों का विरोध करने वाले गुट ने तेज़ी दिखाते हुए कुछ पहलकदमियां की और अपनी कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया था। उन दिनों ही प्रेस लायन्ज़ क्लब भी सामने आया। पत्रकारों का जोश भी बहुत था। उत्साह भी बहुत था लेकिन इस सब के बावजूद बात नहीं बन सकी। आखिर बात बिगड़ती क्यों थी। क्या अलग अलग गुटों ने कोई ज़मीन बांटनी थी या जागीर अपने नाम लगवानी थी। अफ़सोस कि प्रेस क्लब की बात बिगड़ती क्यों थी यह सवाल आज भी कायम है। 
प्रेस क्लब के लिए दो या तीन या अधिक गुट भी सामने आएं तो कोई बुर बात नहीं। लोकतंत्र में सभी को अपनी आवाज़ बुलंद करने का अधिकार है। जालंधर प्रेस क्लब में शायद मुख्यता तीन गुट थे। लेकिन सभी का संविधान, ऐजेंडा और सदस्य सूची सामने आने में क्या हर्ज है। इस सरे काम को आराम से सहज हो कर करने में क्या बुराई है? सब कुछ किसी हड़बड़ी में क्यों?
अगर इस तरह की बातों से प्रेस क्लब बन भी जाता है तो उसमें एकता और प्रेम का अभाव हमेशां रहेगा। अगर पहले कदम पर ही पूर्ण एकता नहीं है तो आधा राह चल कर एकता होगी यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। इस हड़बड़ी में कहीं ऐसा न हो--

Monday, June 05, 2017

प्रकृति से दोबारा जुड़ने की चुनौतियां

05-जून-2017 15:05 IST
5 जून– विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष लेख                                           *पांडुरंग हेगड़े
वन और पर्यावरण संरक्षण के व्यापक मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए 1972 से दुनिया भर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘लोगों को प्रकृति से जोड़ना’ है। इस दिवस के अवसर पर लोगों को घरों से बाहर निकलकर प्रकृति के संसर्ग में उसकी सुंदरता की सराहना करने तथा जिस पृथ्वी पर रहते हैं, उसके संरक्षण का आग्रह किया जाता है।

इन वर्षों में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोगों का प्रकृति से अलगाव बढ़ रहा है।
आधुनिक व्यक्ति के जीवन में व्यस्तता है और उसका दिमाग तो और भी व्यस्त है। ऐसी परिस्थितियों में मन को शांत करने के लिए प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना अति महत्वपूर्ण है। शहरों में उपलब्ध हरित स्थानों विशेष रूप से वृक्षों और पार्कों के जरिये लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने का अवसर मिलता है।
प्रकृति से दोबारा जुड़ने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (एनईएसी) शुरू किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, महिला और युवा संगठनों को पर्यावरण के मुद्दों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। प्रकृति के संरक्षण और पर्यावरण संबंधित समस्याओं के समाधान से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करने में लगभग 12000 संगठन शामिल हैं।
पारम्परिक रूप से तीर्थयात्रा के केंद्र मुख्य रूप से प्राकृतिक परिवेश विशेष रूप से पहाड़ों या नदियों के तटों पर स्थित होते हैं। हिमालय में चार धाम यात्रा इसका उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे हमारी संस्कृति देश भर के लोगों को श्रद्धा से वृक्षों, नदियों और पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने का अवसर प्रदान करती है। ऋषिकेश में गंगा नदी के तट से शुरू होने वाली इस यात्रा का मार्ग यमुना और गंगा नदी के उद्गम स्थल तक का है, जो पवित्र तीर्थस्थल हैं और करोड़ों लोग वहां जाते हैं।
जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ गुफा और चीन के तिब्बती पठार में कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के मार्ग में भी कई असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य के स्थल हैं, जिनका आम आदमी के लिए काफी आध्यात्मिक महत्व है। तीर्थयात्रा के ये मार्ग प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ने के मुख्य तरीके हैं और मानव, प्रकृति तथा आध्यात्मिकता के बीच अंतर संयोजनात्मकता को दर्शाते हैं।
इसी प्रकार नर्मदा परिक्रमा भी एक और परम्परागत तीर्थयात्रा का मार्ग है, जिसमें लोग नर्मदा नदी के तट के साथ-साथ चलते हुए नदी की सुंदरता और प्राकृतिक परिवेश की सराहना करना सीखते हैं।
देश के कुल भगौलिक क्षेत्र के दो प्रतिशत इलाकों में बने मौजूदा 166 राष्ट्रीय उद्यान और 515 वन्यजीव अभ्यारण्यों से भी लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने, वन्य जीवन और देश के हरित स्थलों को आनंद लेने का अवसर मिलता है।
प्राकृतिक संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर हरियाली को बढ़ावा देने तथा सभी प्रकार के अपशिष्ट को कम करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। शहरी क्षेत्रों में सड़क निर्माण और खुले स्थानों पर फर्श तथा सीमेंट लगाने के जुनून के कारण युवा पीढ़ी प्रकृति से दूर हो गई है। सड़कों को चौड़ा करने के लिए पुराने वृक्षों को गिराने और पैदल यात्री तथा साईकिल चालकों से अधिक स्थान वाहनों के लिए रखने से शहरी नागरिकों का प्रकृति से जुड़ाव और कम हुआ है। सभी हितधारकों तथा समुदाय की सक्रिय भागीदारी से शहरी पारिस्थितिकी को कायम रखा जा सकता है। 
प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना आधुनिक समय के तनाव को कम करने तथा व्यक्ति और समुदाय में सद्भाव लाने में मददगार होता है। हरियाली से न केवल शोर और ध्वनि प्रदूषण कम होता, बल्कि तापमान कम करने में भी मदद मिलती है, जो जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में सहायक है।


भारत सरकार विश्व पर्यावरण दिवस पर देश भर के 4000 शहरों में विशाल अपशिष्ट प्रबंधन अभियान शुरू कर रही है। इस अभियान के अंतर्गत इन शहरों में कूड़ा एकत्र करने के नीले और हरे रंग के डिब्बे वितरित किए जाएंगे तथा आम लोगों को अपनी जीवन शैली में स्वच्छता की संस्कृति अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा, “मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम स्वच्छता हासिल करने की दिशा में संस्कृति विकसित करेंगे और उसे जारी रखने के लिए नये कदम उठाएंगे। तभी हम गांधीजी के उस सपने को साकार कर सकेंगे, जो उन्होंने स्वच्छता के लिए देखा था”।
सरकार का उद्देश्य मूल स्थान पर ही सूखे और गीले कूड़े को अलग-अलग करने में लोगों की आदत में बदलाव लाना है ताकि तद्नुसार कूड़े का प्रबंधन किया जा सके। यह शहरों की स्वच्छता का आधार होगा, जिससे शहर अधिक प्रकृति अनुकूल बनेंगे तथा रहने के लिए स्वच्छ बुनियादी स्थिति उपलब्ध होगी। यह स्वच्छ भारत अभियान (एसबीए) का तार्किक अनुकरण है, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में कूड़े के ढ़ेर के निपटान की समस्या से निपटने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे भूजल पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा कूड़े के ढ़ेर के आसपास की हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। यह एक चुनौती भरा कार्य है क्योंकि लोगों की आदत बदलने की आवश्यकता है, ताकि कूड़े को अलग करने का कर्तव्य या धर्म निभाने के लिए प्रत्येक परिवार के ये लोग बदलाव के दूत बनें।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति के साथ जुड़ना ज्ञान और शांति प्राप्त करने का आधार है। संत या ऋषि जंगलों या अरण्य संस्कृति से ज्ञान प्राप्त करते हैं। वे प्रकृति के साथ सद्भाव से रहते हैं और अपने प्राकृतिक परिवेश से अधिकतर ज्ञान आत्मसात करते हैं।
प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ने के लिए हमें इन विचारों को अपनी दैनिक गतिविधियों में शामिल करने की आवश्यकता है। आम व्यक्ति के लिए ये जानना आवश्यक है कि जो सांस वह लेता है, पानी पीता है, भोजन खाता है, वे सभी प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति के उत्पाद हैं और प्रकृति से जुड़ाव मानव जाति के जीवित रहने का आधार है।

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*लेखक कर्नाटक में स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं।
इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के स्वयं के हैं।
जीवाई/एमके/एमएस-88

Saturday, June 03, 2017

स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में भारत का बड़ा अभियान

02-जून-2017 17:54 IST
परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों में भी व्यापक स्तर पर हुई वृद्धि

                                                                                           विशेष लेख//*अनुपमा ऐरी

पिछले तीन वर्षों के दौरान नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों में व्यापक स्तर पर हुई वृद्धि भारत के ऊर्जा मिश्रण में स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता देने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
भारत ने पहले ही नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विशेषरूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की तरक्की ने देश को दुनिया के ऊर्जा नक्शे पर विशेष पहचान दिलाई है। वर्तमान सरकार के तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं, ऐसे में हाल ही में भारत की ऊर्जा क्षमता में परमाणु ऊर्जा के रूप में 7 गीगा वॉट (7000 मेगा वॉट) ऊर्जा क्षमता को शामिल किए जाने का निर्णय, जोकि एक ही बार में भारत के घरेलू परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम कि दिशा में सबसे बड़ी मंज़ूरी, एक स्थायी रूप से कम कार्बन विकास रणनीति की दिशा में भारत की गंभीरता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।



भारत की वर्तमान परमाणु ऊर्जा क्षमता 6.7 गीगा वॉट (अथवा 6780 मेगा वॉट) है और 700 मेगावॉट प्रति रिएक्टर की क्षमता वाले 10 नए परमाणु रिएक्टरों को मंज़ूरी भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को व्यापक स्तर पर और मज़बूत करेगा। 6.7 गीगा वॉट (6700 मेगा वॉट) की अन्य परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं और 2021-22 तक इनके परिचालन में आने की उम्मीद है।



घरेलू कंपनियों को करीब 70,000 करोड़ रुपये के संभावित विनिर्माण का कार्य मिलने के साथ ही, इस परियोजना से भारतीय परमाणु उद्योग में बड़े बदलाव के लिए मदद मिलने और प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से 33,400 से अधिक नौकरियां सृजित होने का अनुमान है।



नवीकरणीय ऊर्जा के मोर्चे पर, आंकड़े अपने आप सफलता बयां करते हैं...

वर्ष 2014 में केन्द्रीय विद्युत, नवीकरणीय ऊर्जा, कोयला एवं खान राज्य मंत्री श्री पीयूष गोयल ने जब महत्वपूर्ण ऊर्जा क्षेत्र की बागडोर संभाली, उस समय भारत में सौर ऊर्जा क्षमता केवल 2.65 गीगा वॉट (अथवा 2,650 मेगा वॉट) थी। एनडीएस सरकार के तीन वर्ष पूरे करने पर, तीन वर्ष के भीतर ही भारत की सौर ऊर्जा क्षमता अभूतपूर्व तरीके से 4.5 गुणा बढ़कर 12.2 गीगा वॉट (अथवा 12,200 मेगा वॉट) पर पहुंच गई है।


यहां एक अन्य महत्वपूर्ण बात, जिसका जिक्र किया जाना महत्वपूर्ण है, वह है सौर ऊर्जा की दरें। वर्ष 2014 में सौर ऊर्जा की दर 13 रुपये प्रति यूनिट से भी अधिक थी, जोकि वर्तमान में 500 मेगावॉट की क्षमता वाले राजस्थान के भाड़ला सौर पार्क की नीलामी में ऐतिहासिक रूप से कम होकर 2.44 रुपये प्रति यूनिट के निम्न स्तर पर पहुंच गई हैं। यह अब तक का रिकॉर्ड स्तर है।



यह विश्व बैंक बिजली सुगमता रैंकिंग में 2014 के 99वें स्थान से वर्तमान में 23वें स्थान पर पहुंचने वाले भारत के लिए किसी भी मानक के अनुसार सराहनीय उपलब्धि है।



दिलचस्प बात यह है कि सौर ऊर्जा आज भारत में ताप और कोयला आधारित ऊर्जा से भी सस्ती हो गई है, जबकि एक समय में ताप और कोयला ऊर्जा भारत के ऊर्जा क्षेत्र के आधार रहे हैं। यहां तक कि भारत की सर्वाधिक ऊर्जा सृजन कंपनी-एनटीपीसी की ऊर्जा की औसत लागत, सौर ऊर्जा के मोर्चे पर हासिल किए की गई उपलब्धियों से अधिक है।



उद्योग जगत और विशेषज्ञों के बीच उठे संदेहों को दूर रखते हुए, ऊर्जा की कम दरों की स्थिरता के बारे में केन्द्रीय विद्युत, नवीकरणीय ऊर्जा, कोयला एवं खान राज्य मंत्री श्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि “पिछले तीन वर्षों के दौरान हमने जब भी कम कीमतें तय की, हमने कीमतों के अनिश्चित स्तर के बारे में सुना। हमने इसके बारे में 12 से 10 होने पर सुना, 10 से 8, 8 से 5 और आज जब हम 4 पर हैं, जब भी ये सुन रहे हैं।”



नवीकरणीय ऊर्जा की दरों में इस गिरावट से उत्साहित, केन्द्रीय मंत्री श्री गोयल को विश्वास है कि जल्द ही भारत की स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 60-65% हिस्सा हरित ऊर्जा का होगा। मंत्री श्री गोयल ने हाल ही में कहा कि “ हम जिन दरों पर पहुंचे हैं, उनसे मुझे पूरी उम्मीद है कि आगामी दिनों में भारत की स्थापित क्षमता का 60-65 फीसदी हिस्सा हरित ऊर्जा का होगा।”



यहां यह उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े ज़मीन आधारित सौर संयंत्र और दुनिया के सबसे बड़े छत आधारित सौर संयंत्र, दोनों ही भारत में हैं।



पवन ऊर्जा क्षमता के मोर्चे पर, भारत ने ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों को पीछे छोड़कर पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता के मामले में चीन, अमरीका और जर्मनी के बाद चौथा स्थान हासिल कर लिया है। सभी को सस्ती हरित ऊर्जा सुनिश्चित कराने के लिए भारत ने वर्ष 2016-17 में रिकॉर्ड 3.46 रुपये प्रति यूनिट की दर से 5.5 गीगावॉट की अतिरिक्त उच्चतम पवन क्षमता में वृद्धि के लक्ष्य को हासिल किया है।



सौर, पवन, छोटी पनबिजली और जैव-शक्ति सहित भारत की नवीकरणीय क्षमता की बात करें, तो इन क्षेत्रों में पिछले तीन वर्ष में दो तिहाई की वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि 35 गीगावॉट से बढ़कर 57 गीगावॉट पर पहुंच गई है। सरकार वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट सौर और 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। वर्ष 2022 तक भारत में कुल 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा सृजन की परिकल्पना की गई है।



वर्तमान सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 में मौजूद सौर ऊर्जा क्षमता की तुलना 370 फीसदी की वृद्धि दर्शाती है। वर्ष 2014 में 2621 मेगावॉट से बढ़कर वर्तमान में मार्च 2017 तक भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 12,277 मेगावॉट पर पहुंच गई है। इसी प्रकार, मार्च 2017 के अनुसार पवन ऊर्जा में भी 52 फीसदी की असामान्य वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2014 में 21,042 मेगावॉट पवन ऊर्जा की तुलना में मार्च 2017 में बढ़कर यह 32,304 मेगावॉट हो गई है। इसी अवधि के दौरान छोटे हाइड्रो पावर और जैव-ऊर्जा के क्षेत्र में प्रत्येक में 14% वृद्धि हुई है।



नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तीन प्रमुख सुधारों का सारांश निम्नानुसार किया जा सकता हैः

पवन क्षेत्र – यह क्षेत्र निश्चित टैरिफ व्यवस्था से प्रतिस्पर्धी बोली व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ चुका है, जिससे बिजली की लागत 20 फीसदी तक कम हो सकती है। सौर पार्कों के जरिए प्लग एंड प्लेय मॉडल का प्रयोग कर सौर ऊर्जा सस्ती हो चुकी है और इसकी दरें 75 फीसदी से भी अधिक कम हो गई हैं। और तीसरा अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन के गठन के जरिए दुनिया में सौर क्रांति का नेतृत्व कर भारत ने जगतगुरु का खिताब पुनः प्राप्त किया है।


ग्रामीण भारत में, इस कैलेंडर वर्ष के अंत (दिसंबर 2018 तक के अपने लक्ष्य को खारिज करते हुए) तक सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का सरकार का कार्यक्रम तीव्र गति से चल रहा है। इस दिशा में सौर ऊर्जा के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता, क्योंकि अब तक ग्रामीण इलाकों में बिजली की अनुपस्थिति में छात्रों को पढ़ाई करने में सक्षम बनाने के लिए इस कार्यक्रम के तहत करीब 10 लाख सौर लैंप छात्रों को वितरित किए जा चुके हैं।



इसके अलावा, सौर पंप स्थापित करके किसानों को सस्ती बिजली उपलब्ध कराना, पिछले तीन वर्षों में इस सरकार की एक अन्य प्रमुख उपलब्धि है। जहां एक ओर मार्च 2014 तक करीब 11,000 सौर पंप स्थापित किए गए थे, वहीं अब इन सौर पंपों की संख्या 1.1 लाख पहुंच गई है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान एनडीए सरकार ने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद से करीब 9 गुणा अधिक संख्या में सौर पंप स्थापित करने के लक्ष्य को हासिल किया है। (PIB)
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*लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं, और ऊर्जा क्षेत्र में नियमित रूप से लेखों के जरिए अपना योगदान देती हैं।

लेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के अपने हैं।