इस बार सामना हुआ एक फिल्म की ऑडिशन में
ज़िंदगी बहुत से सवाल पूछती है। सवाल भी बहुत ही मासूम से लगते हैं।बिलकुल भोलेभाले से महसूस होते हैं लेकिन परेशान कर देते हैं। इनका जवाब नहीं सूझता। घर में दाल रोटी की जंग। रास्ते में महंगे होते पैट्रोल डीज़ल की जंग। अख़बारों में कश्मीर के आतंकवाद की जंग। कुल मिला कर ज़िंदगी का चैन दूर की कौड़ी लगने लगता है पर इस तरह के गंभीर माहौल के बावजूद भी करिश्मे हो ही जाते हैं। परमिंदर कौर और उनकी टीम इसी तरह के करिश्मों से एक हैं। घुटन भरे माहौल में ताज़ी हवा के झौंके जैसी।
शुद्ध मुनाफे की सोच से भरे इस स्वार्थी और मशीनी युग में कला की बात करना किसी करिश्मे से कम तो नहीं। हालांकि इसमें बहुत से खतरे भी हैं लेकिन फिर भी परमिंदर कौर लगातार सक्रिय रहती है। कभी नन्हे मुन्ने बच्चों की प्रतिभा को उड़ान देनी और कभी बड़ी उम्र के लोगों में दब गयी या छिप गयी कला को बाहर लाना। कलाकारों का चयन, कलाकारों की प्रतिभा को पहचान कर उसका विश्लेषण करने वाले जजों का चयन और फिर कलाकारों की कला को और चमकने के लिए विशेषज्ञों का चयन। इन सब को एक मंच पर लाना आसान नहीं होता लेकिन परमिंदर कौर यह सब करती हैं बहुत कुशलता से।
More Pics on Facebook
More Pics on Facebook
इस बार मैडम परमिंदर कौर से मुलाकात हुई एक ऑडिशन टैस्ट में। मॉडल टाऊन एक्सटेंशन की मार्किट में कलाकारों का चयन था। मकसद था हरदीप सिंह खंगूड़ा की मूवी के लिए कलाकारों का चुनाव। जज की भूमिका निभाने वालों में थे थिएटर के जाने पहचाने हस्ताक्षर तरलोचन सिंह, पॉलीवुड से जुड़े हुए विजय शर्मा और निदेशक व कोरियोग्राफर वरुण राजपूत।
More Pics on Facebook
More Pics on Facebook
इस ऑडिशन में गायन और अदाकारी के साथ साथ डांस गया और आवाज़ का भी। लेखन का स्तर भी देखा गया और प्रस्तुतिकरण भी। सुबह 9 बजे से शुरू हुई प्रक्रिया शाम पांच बजे के बाद तक भी जारी रही। बहुत सी नयी प्रतिभाएं सामने आयीं। बहुत से चेहरों पर उम्मीद की चमक दिखाई दी। बहुत से मनों में आसमान छूने के हिम्मत जगी। सपने ने नई करवट ली। ज़िम्मेदारियों के बोझ में छुपी दबी प्रतिभा एक नई अंगड़ाई ले कर बाहर आई। यह लोह वो कलाकार थे जिन्होंने दुनियादारी को निभाते हुए भी अभी तक अपने अंतर्मन में छुपी कला को मरने नहीं दिया था। उनके अंदर की संवेदना इस बेरहम युग में भी ज़िंदा है। उनको अभी भी संगीत में स्कून महसूस होता है। उनके पाँव अभी भी अंदर से सुनाई देते किसी संगीत पर थिरकते हैं। उनको अभी अभी पहाड़ों और झरनों की सुंदरता का संगीत सुनाई देता है। उनको प्रकृति की कलात्मक आवाज़ें अभी भी बुलाती हैं। ये वो कलाकार थे जिन्होंने न तनावों भरी ज़िंदगी के सामने हार मानी और न ही बढ़ती हुई उम्र के सामने घुटने टेके। इनके चेहरे अंतर्मन में रौशन किसी मशाल की रौशनी से दमक रहे थे। उम्मीद करनी चाहिए कि इनको जल्द ही नई पहचान मिलेगी किसी नई फिल्म में, किसी सीरियल में या किसी और मंच पर।
More Pics on Facebook
More Pics on Facebook
No comments:
Post a Comment