Monday, February 06, 2017

महान 'देशभक्त शायर प्रदीप को 102वें जन्मदिन पर शत शत नमन

जानेमाने पत्रकार इक़बाल सिंह चन्ना ने फिर ताज़ा की पुरानी यादें
ऐ मेरे वतन के लोगो

ज़रा आँख में भर लो पानी... 
भारत के महान 'देशभक्त शायर' कवि प्रदीप को 102वें जन्मदिन पर शत शत नमन !
आज देशभक्ति के गीत लिखने वाले भारत के महान शायर कवी प्रदीप का जन्मदिन है !
भारत चीन के 1962 के युद्ध के पश्चात दिल्ली के लाल किले पर जब लाता मंगेशकर ने प्रदीप का लिखा गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुरबानी...' गाया तो वहां बैठे तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ली आँखें भर आई थीं।
कवी प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को उज्जैन के पास बड़नगर में हुआ था। उनका असल नाम रामचंद्र नारायणजी दिवेदी था। 1939 में उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की थी। कॉलेज के दिनों के दौरान ही उन्होंने कविता लिखनी शुरू कर दी थी। अपनी रचना वह गाकर सुनाते थे, इसीलिए वह मुशायरों में बहुत पॉपुलर हो गए थे। इसी दौरान उन्होंने अपना 'पेन नेम' प्रदीप रख लिया था।
1939 में मुम्बई में हुए रक कवी सम्मेलन दौरान बॉम्बे टॉकी के हिमांशु रॉय ने उन्हें अपनी फिल्म 'कंगन' के लिए गीत लिखने को कहा। वह मुम्बई आ गए, उनके लिखे फिल्म के चार गीत बहुत मशहूर हुए और वह फ़िल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने में सफल हो गए। 1940 में फिल्म बंधन के लिए लिखा उनका गीत 'चल चल रे नौजवान ..' हर ज़ुबान पर आ गया क्योंकि उस समय भारत की आज़ादी का आंदोलन शिखर पर था। 1943 में फिल्म 'किस्मत' के इंकलाबी गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालो...' इतना प्रसिद्ध  हुआ कि वह ब्रिटिश सरकार के लिए वांटेड हो गए और कई वर्ष भूमिगत रहना पड़ा।
क्वी प्रदीप का ज्यादा रुझान देशभक्ति और धार्मिक शायरी की तरफ ही रहा। उनके लिखे कुछ अमर गीत हैं :
- ऐ मेरे वेतन के लोगो ज़रा आंक में भर लो पानी...
- चल चल रे नौजवान... (बंधन)
-आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है... (किस्मत)
- देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान... (नास्तिक)
- हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के...(जाग्रति)
-पिंजरे के पंछी रे...( नागमणि)
- इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैग़ाम हमारा... (पैग़ाम)
- भारत के लिए भगवान् का इक वरदान है गंगा... (हर हर गंगे)
- अँधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ डालो... (संबंध)
- मैं तो आरती उतारूं रे, संतोषी माता की... (जय संरोशी माँ)
1997 में भारत सरकार ने उन्हें सबसे बड़े फ़िल्मी अवार्ड 'दादा साहेब फाल्के अवार्ड' से सम्मानित किया था।   
11 दिसम्बर 1998 को 83 वर्ष की आयु में मुम्बई में कवी प्रदीप जी का निधन हुआ।

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