Monday, January 16, 2017

पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तरविरोध समाजवादी क्रान्तियों के नए संस्करणों का निर्माण करेंगे

‘महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति व आज का समय’ विषय पर विचार-चर्चा
लुधियाना: 15 जनवरी 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): For more Pics Please Clik Here
पूंजीवाद के लालच, स्वार्थ और संवेदनाविहीन सिस्टम में सताये लोगों के लिए शायद आखिरी उम्मीद बन कर उभरी थी रूस में आई अक्टूबर क्रांति। शायरों ने गीत लिखे-वो सुबह कभी तो आएगी।  फिल्मों के गीत हिट हुए-
हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे-
इक बाग़ नहीं -इक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे।  
इस वाम विचारधारा ने गम के मारे लोगों को शक्ति दी, नई ऊर्जा दी, आश्वासन दिया-
रात भर का है मेहमां अँधेरा--किसके रोके रुका है सवेरा..! 
विचारों में दम था और इस विचारधारा के लिए लोग अपने सभी सुख छोड़ कर पूरे जोश के साथ आगे आये। नावल मां ने इस अभियान में एक नया जोश भरा। इस वाम आंदोलन के लिए कुर्बानियां देने वालों की कमी नहीं रही। इस विचारधारा से प्रभावित हो कर बहुत से लोगों ने अपनी सारी सारी ज़िन्दगी लगा दी, अपना घरघाट परिवार सब कुछ दांव पर लगा दिया पर इस सब के बावजूद एक समय आया जब इनको लगने लगा शायद हम गलत हो गए। बहुत से मित्रों ने व्यक्तिगत मुलाकातों में रुयासे हो कर कहा शायद हमने सारी उम्र अँधेरा ढोया। इनको भी इन्कलाब दूर होता महसूस हुआ। पार्टी के लिए पूरी उम्र लगाने वालों ने भी कभी कभी अनौपचारिक भेंटवार्ता में यही कहा कि इंकलाब तो अब आने वाला नहीं। यह कहने पर कि फिर कौन सी पार्टी में जाना है तो उनके आंसू निकल आते-कहते-पार्टी तो मां होती है कामरेड --हम पार्टी नहीं छोड़ेंगे। स्पष्ट था कि उनका गिला शिकवा पार्टी से नहीं बल्कि पार्टी पर काबिज़ हुए या घुस आये स्वार्थी नेतायों से था। बहुत से वरिष्ठ कामरेड ऐसे हैं जिनकी अपनी सन्तान ने भी वाम सियासत में आना उचित नहीं समझ। आज वाम दलों के पास युवा केडर चिंतनीय हद तक कम हो रहा है और वृद्ध लोग बारी बारी अलविदा कह रहे हैं इसके बावजूद पदों का मोह छूट नहीं रहा। ऐसे हालात में जब वाम दलों का आम केडर ठगा ठगा सा महसूस कर रहा था और उसे लग रहा था कि बड़े बड़े वाम नेतायों की ज़िन्दगी और उनके परिवारों का इंकलाब आ चुका है और हमारा इंक़लाब कभी आने वाला नहीं।  इस बेहद नाज़ुक दौर में जिसके बारे में पूंजीवादी साम्प्रदायिक दलों के बड़े नेता अक्सर मज़ाक करते हैं कि कामरेड तो अब खत्म हो चुके तो उनका मज़ाक न खोखला लगता है न ही मज़ाक। एक कड़वा सत्य जिसका सामना आज बहुत से कामरेड कर रहे हैं लेकिन अपनी ज़िन्दगी में। इन विचारों से जुड़ा केडर निराश नज़र आ रहा था। जहाँ एक वाम ट्रेड यूनियन के आह्वान पर लाल झंडे वालों की भीड़ का सागर लहराता नज़र आता था वहां अब चार चार वाम दल मिलकर भी 50-100 से ज़्यादा वर्कर अपनी रैलियों में एक्टर नहीं कर पाते। 
और इसके चाहनेवालों के लिए पैदा हुई इस चिंतनीय स्थिति से भरे इस तरह के हालात में एक आयोजन वह था जब छात्र नेता कन्हैया के आने पर लुधियाना के पंजाबी भवन में इतनी भीड़ जुटी थी कि उसे सम्भालना मुश्किल था। उसके बाद एक मौका अब और देखने को मिला जब 15 जनवरी 2017 दिन रविवार को अक्टूबर क्रांति पर हुए सेमिनार में पंजाबी भवन का हाल पूरी तरह से भरा हुआ था। यहाँ तक कि इस सेमिनार को सुनने के लोग कड़क सर्दी के मौसम में भी नीचे फर्श पर बैठे थे और वो भी बर्फीली शीत लहर में। हाल में मौजूद श्रोता और कार्यकर्ता पूरी तरह से ध्यान मगन थे। न कोई शोर न कोई बेचैनी। मुख्य वक्ता शशि प्रकाश के प्रभावशाली व्यक्तित्व के सामने सभी मंत्रमुग्ध हुए एक एक बात को सांस रोक कर सुन रहे थे। For more Pics Please Clik Here

15 जनवरी 2017 को लुधियाना के पंजाबी भवन में मार्क्सवादी स्टडी सर्किल द्वारा ‘महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति व आज का समय’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। मार्क्सवादी लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता व अंग्रेजी मार्क्सवादी पत्रिका ‘द एनविल’ के सम्पादक शशि प्रकाश सेमिनार के मुख्य वक्ता थे। सेमिनार की शुरुआत क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच, दस्तक द्वारा पेश क्रान्तिकारी गीतों से हुई। मंच संचालन मार्क्सवादी स्टडी सर्किल की ओर से साथी सुखविन्दर ने किया। 

मुख्य वक्ता शशि प्रकाश ने विषय पर बात रखते हुए कहा कि रूस में 25 अक्टूबर 1917 को होने वाली मज़दूर क्रान्ति दुनिया की तब तक की सबसे महान घटना थी। यह पहला मौका था जब राज्यसत्ता किसी शोषक वर्ग के हाथों से निकलकर शोषित-उत्पीड़ित वर्ग के कब्ज़े में आ गयी। यह सचेतन तौर पर की जाने वाली दुनिया की सबसे पहले क्रान्ति थी जिसका मकसद था इन्सान के हाथों इन्सान की हर तरह की लूट का ख़ात्मा करना। इस क्रान्ति ने सम्पत्तिवान वर्गों का तख्ता पलट दिया। इस क्रान्ति ने दिखा दिया कि अगर समाज का नियन्त्रण मज़दूर वर्ग के हाथों में आ जाये तो मेहनतकश वर्गों की चेतना, संस्कृति, शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान, तकनीकी और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया जा सकता है। यह एक युगप्रवर्तक घटना थी जिसके बाद मज़दूर क्रान्तियों के युग की शुरुआत हुई। महान अक्टूबर क्रान्ति आज भी हमें प्रेरणा दे रही है और उसकी शिक्षाएँ हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति के सबकों को आत्मसात किए बिना क्रान्तिकारी आन्दोलन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। उन्होंने कहा कि मौजूदा विश्व पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तरविरोध समाजवादी क्रान्तियों के नए संस्करणों का निर्माण करेंगी। अक्टूबर क्रान्ति की शिक्षाओं को व्यापक जनता तक पहुँचाना क्रान्तिकारी आन्दोलन का एक अहम कार्यभार है।For more Pics Please Clik Here

उनके अलावा प्रो. जगमोहन, डा. जगजीत चीमा, जरनैल सिंह, रवि कुमार, मास्टर दविन्दर, जगसीर जीदा, गुरप्रीत, वरूण आदि ने भी बात रखी। For more Pics Please Clik Here

इस सेमिनार से एक बात उभर कर सामने आई कि शोषित वर्ग आज भी शोषकों के खिलाफ संघर्ष के लिए मार्गदर्शन चाहता है और अगर इस तरह का कोई अवसर मिले तो वह चूकता नहीं। मार्क्सवाद के चाहनेवालों की प्यास अभी भी बरकरार है। अब आगे सोचना वाम नेतायों का काम है कि वे केवल एकता की बातें करते हैं या इस मकसद के लिए कोई ठोस कदम उठाने को भी तैयार हैं? 
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