Saturday, October 08, 2016

इप्टा को और मज़बूत करेगा इप्टा विरोधियों का हमला

देश के कोने कोने तक पहुँच रही है इप्टा पर हमले की आग 
इंदौर//चंडीगढ़//लुधियाना: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
इंदौर में उठी चिंगारी अब आग बन कर पूरे देश में फैलने की तैयारी में है। गौरतलब है कि इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के 14वें राष्ट्रीय अधिवेशन में आरएसएस  समर्थकों ने अचानक पहुँच कर मंच को कब्ज़े में ले लिया था और नारेबाजी की थी। आपसी टकराव में लात घूंसे भी चले और हाल के बाहर पथराव भी हुआ था। इस हमले का तीखा विरोध भी हुआ। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की मध्यप्रदेश इकाई के राज्य सचिव बादल सरोज ने हमले के दिन चार अक्टूबर को ही स्पष्ट कह दिया था हा कि इंदौर में शुरू हुए इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के राष्ट्रीय सम्मेलन के मंच पर कुछ संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा हमले की कोशिश की गयी जो भर्त्सना योग्य है। उन्होंने इसकी सख्त निंदा की थी। 
कुण्ठित तालिबानी सोच 
श्री सरोज ने यहां पार्टी की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा था कि सम्मेलन पर कुछ स्वयंभू हिंदुत्व ध्वजाधारियों ने धावा बोला जो एक आपराधिक हरकत है। उन्होंने कहा कि किसी भी साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैचारिक आयोजन पर गुंडागर्दी की कोशिशें न सिर्फ अलोकतांत्रिक हैं, बल्कि शुद्ध रूप में कुण्ठित तालिबानी सोच और हिटलरी फासीवादी कार्यशैली का घिनौना प्रतिरूप हैं। माकपा इस बेहूदा हरकत की भर्त्सना करती है। देश के अन्य भागों में भी इसका विरोध हुआ था। 
13 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी विरोध
इसके विरोध में इप्टा ने 13 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी विरोध की घोषणा की है। इसकी तैयारियां तकरीबन हर जगह जोरशोर से जारी हैं। यएह विरोध दिवस इप्टा को एक बार फिर सक्रिय तो करेगा हिसाथ ही उन जगहों पर भी पहुंच देगा जहाँ इप्टा का आधार नहीं है या अब टूट चूका है। 
इप्टा पर राजनीती का आरोप
दूसरी तरफ इप्टा के विरोधियों का कहना है कि वे इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में रंगमंच के राजनीतिक मंच में बदल जाने से शहर के कला प्रेमी निराश हुए। उनकी शिकायत है कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन और राष्ट्रीय जन सांस्कृतिक महोत्सव में इप्टा ने आम शहरी को जोड़ने की कोशिश नहीं की, बल्कि मंच का इस्तेमाल विचारधारा विशेष को बढ़ाने के लिए किया गया। इनका यह भी कहना है कि इप्टा का इस्तेमाल अब जन मुद्दों पर आधारित न होकर एक विशेष विचारधारा के प्रवक्ता की तरह किया जा रहा है। 
इंदौर में ही रंगकर्मी सुशील जौहरी का कहना था कि यह आयोजन किसके लिए हुआ, किन उद्देश्यों को लेकर हुआ, जिस गरीब तबके की आवाज इप्टा बनता रहा है, क्या उनकी बात हुई, बात कहां तक पहुंची, इन सबका विश्लेषण जरूरी है। संस्कृति कर्म विशेषकर नाटकों के लिए लोग इप्टा को जानते हैं और जब इसका राष्ट्रीय सम्मेलन इंदौर में होने की घोषणा हुई तो शहर के रंगकर्मी और कलाप्रेमियों में उत्साह था। शहर के लिए यह पहला मौका था कि देश की बड़ी और पुरानी नाट्य संस्था का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, लेकिन पहले सत्र में ही सर्जिकल स्ट्राइक को शर्मनाक बताकर विवाद खड़ा कर दिया गया। इंदौर थिएटर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील गोयल कहते हैं राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए, देश के मान-सम्मान को हानि नहीं होना चाहिए। इप्टा के मंच से उठे मुद्दे उससे जुड़े लोगों का नैतिक चिंतन है, निजी मसला है। मंच से नाटकों के जरिए सामाजिक उत्थान और गरीबों के हित में मुद्दे उठना चाहिए थे, जिसके लिए इप्टा को बरसों से जाना जाता है।
आखिरी दिन हमला एक सुनियोजित साज़िश 
उल्लेखनीय है कि इप्टा के इस राष्ट्रीय  सम्मेलन के आयोजन की घोषणा तक इसका कोई विरोध नहीं हुआ। जब इस सम्मेलन में 20 राज्यों से करीब एक हज़ार डेलीगेट इसमें शामिल हुए तो इसकी सफलता से इसके विरोधी कैम्प में भी खलबली मचने लगी। सम्मेलन के आखिरी दिन हमले की योजना को अम्ल में लाया गया। सभी को मालूम था कि  अधिकतर लोग अन्य राज्यों से ए हैं और आखिरी दिन का कर्यक्रम देखने के बाद सभी अपने अपने गन्तव्य की ट्रेन पकड़ कर रवाना हो जाएंगे। अगर यह हमला पहले होता तो इप्टा के सदस्य और अन्य कलाकार अगले दिन इंदौर में रोष मार्च आयोजित करके हंगामा खड़ा कर सकते थे। इसलिए हमलावरों ने आखिरी दिन चुना। सूत्रों के मुताबिक हमले के बाद जब इप्टा के कुछ कार्यकर्ता पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखाने गए तो वहां गेट से पहले ही हमलावरों के लोग  मौजूद थे। सारी   स्थिति को भांप कर रिपॉर्ट लिखने गए लोग वापिस आ गए। 
शुरू हो चुका है हमले का विरोध 
विरोध दिवस के तौर पर 13  अक्टूबर को सारे देश में विरोध व्यक्त करने की काल से पहले ही हमले का विरोध शुरू हो चुका है।  इंदौर में तो चार अक्टूबर को ही तीखा विरोध दर्ज कराया।  पटना में विरोध का सिलसिला 5 अक्टूबर को ही शुरू था। अब देश हिस्सों में भी विरोध की आवाज़ गूंजने वाली है। इप्टा के वो लोग जो जन आंदोलनों और जन शक्ति से वाबस्ता नहीं रहे उनको शायद इसकी सफलता पर सन्देह हो या किसी तरह का डॉ लेकिन इप्टा का खामोश बैठा केडर जानता है कि अब फिर से इप्टा के दिन लौटने वाले हैं। इप्टा पर हुआ हमला इप्टा को और मज़बूत बना कर जायेगा।   

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