Sunday, October 02, 2016

जप-प्रयोग का आँखों देखा दृश्य-प्रिंसिपल राजपाल कौर (जालंधर)


अमन ,शांति व एकता के लिए चल रहा वार्षिक नामधारी कार्यक्रम  
चालीस दिनों का सालाना जप-प्रयोग (नाम-सिमरन)जो की नामधारी सम्प्रदा के सदगुरु, सदगुरु प्रताप सिंह जी द्वारा 1920 ईस्वी में एक भादो से लेकर अश्विन मास तक देश में अमन ,शांति और सर्वत्र के भले के लिए शुरू किया गया था। उसके बाद निरन्तर यह नियम चलता रहा वर्तमान समय में भी एकता और विनम्रता के पुंज श्री सतगुरु दलीप सिंह जी द्वारा इसे सार्थक रूप देते हुए इस साल 2016 में भी चालीस दिनों का जप-प्रयोग शुरू किया गया है।यह जप प्रयोग नामधारियों के दूसरे प्रमुख तीर्थ स्थान श्री जीवन नगर (हरियाणा) में 20 भादों 2073  से 29 आश्विन 2073 मुताबिक 4 सितम्बर 2016 से 14 अक्टूबर 2016 तक चलेगा। इसमें सुबह से शाम तक लगभग 8 घण्टे नाम -सिमरन,कथा -कीर्तन आदि का प्रवाह चलता रहता है। इस समय दौरान सिक्ख अमृत वेले अर्थात ब्रह्ममुहूर्त में लगभग 2 बजे जाग कर सतगुरु जी के अनमोल खजाने का तो आनंद प्राप्त करता ही है ,साथ ही साथ सात्विक आहार और सादे पहरावे को अपनाते हुए, नाम सिमरन और सेवा करते हुए सारा दिन सतगुरु के रंग में ही रंगा रहता है और अपने आपको ज्यादा स्वस्थ महसूस करता है। विशेष बात यह है कि यहाँ संगत की सेहत को भी ध्यान में रखते हुए सुबह के नाम सिमरन के बाद योगा भी करवाई जाती है,फिर गिलोय की शरदाई छकाई जाती है, उसके उपरान्त देसी घी से तैयार अमृतमयी लंगर भी छकाया जाता है। 
            मुझे पहले दिन 4 सितम्बर 2016 ,दिन रविवार को जप-प्रयोग की आरम्भता में शामिल होने का मौका मिला। इस बार, हर बार से कुछ भिन्न ,अदभुत ही नज़ारा देखने को मिला,जिस का आँखों देखा विवरण इस तरह है--सुचना मुताबिक कि इस बार प्रयोग बीर -मंदिर की जगह ,श्री सतगुरु प्रताप सिंह सरोवर पर है। हम वहां पहुँच गए। सुबह का तीन बजे का समय था। चारो तरफ कुदरती नज़ारों के साथ मौसम भी सुहावना था। सुबह -सुबह पैदल और गाड़ियों पर आने वाली संगत का उमड़ता हुआ दृश्य था। हम मुख्य दरवाजे से अंदर आये तो वहां जोड़े (जूते) रखने वाले और चरण धुलाने वाले सेवादार हाजिर थे। फिर हम आगे बढ़े तो और भी सुन्दर दृश्य था। जहाँ से सीढ़ियों से उतर कर नीचे की ओर जाते हैं ,वहाँ एक तरफ श्री सतगुरु प्रताप सिंह जी की तस्वीर आसान पर सुशोभित थी ,दूसरी तरफ श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी की तस्वीर सुशोभित थी। (उल्लेखनी है कि यह स्थान इन गुरु साहिबानों का तप स्थान रहा है और लोग यहाँ स्नान कर के  नीरोग तो होते ही हैं, उनकी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं) वहाँ सीढ़ियों के सामने ही स्टेज सजी हुई थी जहाँ एक तरफ आसा की वार का कीर्तन हो रहा था तथा दूसरी तरफ फूलों से सुशोभित आसन पर श्री सतगुरु दलीप सिंह जी विराजमान थे। सामने, सरोवर के चारों तरफ ऊपर व् नीचे की ओर बैठी हुई संगत,हंसों के झुण्ड की तरह नज़र आ रही थी। सरोवर के चारो तरफ रंग-बिरंगी लाइटें लगी हुई थी जो रंग -बिरंगे सितारों की तरह चमक रही थीं। इन लाइटों की परछाई जब जल में पड़ रही थी तो और भी अद्भुत दृश्य लग रहा था। बीच में सरोवर का जल ,आस -पास सितारों जैसी रोशनी, सामने स्टेज पर शोभायमान सतगुरु जी,आस-पास बैठी अन्य संत -जन,चारो तरफ सफ़ेद कपड़ों में सुशोभित संगत हंसो के झुण्ड की तरह नज़र आ रही थी। स्वर्गलोक जैसा नज़ारा प्रतीत हो रहा था। ऐसा लग रह था मानो इस पवित्र सरोवर से हँस हीरे मोती-चुगने के लिए आये हों।जैसा कि गुरबाणी में अंकित है,"सरवर हंस तुरे ही मेला, खसमै एवै भाना। सरवर अन्दर हीरा मोती एह हँसा दा खाना।"वास्तव में सतगुरु के बनाये हंसो का आहार भी कीमती ही होता है। फिर सरोवर के किनारे समाधी में बैठे मेरे मन में यह विचार आया कि आज  हम पर सतगुरु जी ने कितनी कृपा की है हम कितने भाग्यशाली हैं कि जहाँ हमारे गुरु साहिबानों ने इतनी तपस्या की आज हमें भी मौका मिला है यहाँ बैठने का कितना आनंद है यहाँ !पवित्र सरोवर की छोह प्राप्त कर आती हुई ठंडी हवा,जो केवल तन को ही नहीं अंतर्मन को भी शीतल कर रही थी। सचमुच में बहुत राहत मिल रही थी। इस तरह हम ब्रह्ममुहूर्त का आनंद प्राप्त करते हुए लगभग डेढ़ घंटे 4 से 5:30 बजे तक समाधी में लीन रहने की कोशिश की। उसके बाद 5 :30 से 6 :30 बजे तक आसा जी की वार का कीर्तन हुआ। फिर श्री सतगुरु दलीप सिंह जी ने साध-संगत के कल्याण के लिए अनमोल प्रवचन किए। आप जी संगत को इन चालीस दिनों का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए समाधी लगाकर, अपनी ज्ञानेन्द्रियों को नियन्त्रित कर ,सतगुरु जी के चरणों में अपना मन लगाने का तरीका बताया। इसके अलावा इन चालीस दिनों में ज्यादा से ज्यादा मौन रहकर अर्थात बातें कम करने,गुरबाणी के फरमान ;"अलप आहार सुलप की निद्रा"के अनुसार अल्प आहार करने, प्रेमाभक्ति मार्ग को अपनाने ,अपने गुरु साहिबानों को याद रखने तथा सरोवर के पास बैठ कर भक्ति करने के महत्व को भी बताया। बाद में अरदास हुई तथा कड़ाह प्रसाद वितरित किया गया। 
                         इस तरह इस महान कुम्भ जप-प्रयोग की शुरुआत हुई जिसका भोग 29 अश्विन मुताबिक 14 अक्टूबर को सुबह (अमृत वेले) होगा।अन्तिम तीन दिन 12 ,13 तथा 14 अक्टूबर को विशाल समागम होगा।   --प्रिंसिपल राजपाल कौर (जालंधर)

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